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Thursday, May 19, 2011

राजनीति की भजनलाली परंपरा में भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ा

शेष नारायण सिंह

कर्नाटक में आजकल जो राजनीतिक ड्रामा चल रहा है उसने १९८० के भजन लाल की याद दिला दी. चरण सिंह सरकार की गिरने के बाद जब १९८० के लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई तो भजन लाल हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री थे. राज कर रहे थे ,मौज कर रहे थे , रिश्वत की गिज़ा काट रहे थे . लेकिन चुनावों के नतीजे आये तो जनता पार्टी ज़मींदोज़ हो चुकी थी . उसके कुछ ही दिनों बाद कुछ विधान सभाओं के चुनाव होने थे .हरियाणा का भी नंबर आने वाला था लेकिन भजन लाल पूरी सरकार के साथ दिल्ली पंहुचे और इंदिरा गाँधी के चरणों में लेट गए. हाथ जोड़कर प्रार्थना की उनको कांग्रेस में भर्ती कर लिया जाए.इंदिरा जी ने उन्हें अभय दान दे दिया . बस उसी वक़्त से उनकी सरकार हरियाणा की कांग्रेस सरकार बन गयी. अगर उस दौर में हरियाणा में भी विधान सभा चुनाव होते तो बिकुल तय था कि जनता पार्टी हार जाती और भजन लाल इतिहास के गर्त में पता नहीं कहाँ गायब हो जाते लेकिन उनकी किस्मत में राज करना लिखा था सो उन्होंने राजनीति की भजन लाली परम्परा की बुनियाद डाली . बाद में उन्होंने रिश्वतखोरी के तरह तरह के रिकार्ड बनाए , भ्रष्टाचार को एक ललित कला के रूप में विकसित किया . पी वी नरसिम्हा राव की सरकार में सांसदों की खरीद फरोख्त में अहम भूमिका निभाई और भारतीय राजनीतिक आचरण को कलंकित किया . कांग्रेस में आजकल भ्रष्टाचार के बहुत सारे कारनामें अंजाम दिए जा रहे हैं लेकिन बे ईमानी में जो बुलंदियां भजन लाल ने हासिल की थीं वह अभी अजेय हैं .भजन लाल की किताब से ही कुछ पन्ने लेकर बाद के वक़्त में अमर सिंह ने उत्तर प्रदेश में २००३ में मुलायम सिंह यादव को मुख्य मंत्री बनवाने में सफलता पायी थी . परमाणु विवाद के दौर में भी जो खेल किया गया था वह भी राजनीति के भजन लाल सम्प्रदाय की साधना से ही संभव हुआ था . आजकल कांग्रेस के जुगाड़बाज़ नेताओं में वह टैलेंट नहीं है जो भजन लाल के पास था . शहर दिल्ली के मोहल्ला दरियागंज निवासी हंस राज भरद्वाज में उस प्रतिभा के कुछ् लक्षण हैं .कांग्रेस ने उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया . उन्होंने वहां अपनी कला को निखारने की कोशिश की और कुछ चालें भी चलीं लेकिन वहां उनकी टक्कर राजनीति के भजनलाली परंपरा के एक बहुत बड़े आचार्य से हो गयी . वहां बीजेपी के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा जी विराजते हैं . उनके आगे भजन लाल जैसे लोग फर्शी सलाम बजाने को मजबूर कर दिए जाते हैं . बेचारे हंसराज भारद्वाज तो भजनलाली संस्कृति के एक मामूली साधक हैं . येदुरप्पा जी ने हंस राज जी को बार बार पटखनी दी. लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि उन्होंने अभी तक यह समझ नहीं पा रहे है कि येदुरप्पा जी भजनलाल पंथ के बहुत बाहरी ज्ञाता और महारथी हैं . भजनलाली परम्परा के संस्थापक, भजन लाल की कभी हिम्मत नहीं पड़ी कि वे अपने आला कमान को चुनौती दें , दर असल वे इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और पी वी नरसिंह राव के आशीर्वाद से ही भ्रष्टाचार की बुलंदियां तय करते थे लेकिन बी एस येदुरप्पा ने अपने आलाकमान को डांट कर रखा हुआ है .जब बेल्लारी बंधुओं के खनिज घोटाले वाले मामले में बीजेपी सरकार की खूब कच्ची हुई तो बीजेपी अध्यक्ष और दिल्ली के अन्य बड़े नेताओं ने उनको दिल्ली तलब किया और मीडिया के ज़रिये माहौल बनाया कि उनको हटा दिया जाएगा . इस आशय के संकेत भी दे दिए गए लेकिन येदुरप्पा ने दिल्ली वालों को साफ़ बता दिया कि वे गद्दी नहीं छोड़ेगें , बीजेपी चाहे तो उनको छोड़ सकती है . उसके बाद बीजेपी के एक बहुत बड़े नेता का बयान आया कि हम येदुरप्पा को नहीं हटाएगें क्योंकि उस हालत में दक्षिण भारत से उनकी पार्टी का सफाया हो जाएगा.उन दिनों दिल्ली के नेताओं के बहुत बुरी हालत थी.उस घटना का नतीजा यह हुआ कि इस बार जब कर्नाटक के राज्यपाल ने इंदिरा युग की राजनीतिक चालबाजी की शुरुआत की तो बीजेपी के बड़े से बड़े नेताओं ने येदुरप्पा के साथ होने के दावे पेश करना शुरू कर दिया और एक बार फिर यह साबित हो गया कि बीजेपी भी भ्रष्टाचार की समर्थक पार्टी है . जिन विधायकों के बर्खास्त होने के बाद तिकड़म से येदुरप्पा ने विधान सभा में शक्ति परीक्षण में जीत दर्ज किया था , उन्हीं विधयाकों की कृपा से आज बी एस येदुरप्पा ने दोबारा सत्ता हासिल कर ली और राजनीतिक आचरण में शुचिता की बात करने वाली वाली बीजेपी के सभी नेता उनके साथ खड़े हैं . यह बुलंदी बेचारे भजन लाल को कभी नहीं मिली थी .दिल्ली के उनके नेताओं ने जब चाहा उनका हटा दिया और कुछ दिन बाद वे दुबारा जुगाड़ लगा कर सत्ता के केंद्र में पंहुच जाते थे . लेकिन आला नेता की ताबेदारी कभी नहीं छोडी . येदुरप्पा का मामला बिलकुल अलग है . उनकी वजह से बीजेपी की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की कोशिश मुंह के बल गिर पड़ी है . विधान सभा चुनावों के नतीजों से साबित हो गया है कि जनता ने बीजेपी की मुहिम के बावजूद कांग्रेस को उतना भ्रष्ट नहीं माना जितना बीजेपी चाहती थी. जनता साफ़ देख रही है कांग्रेस तो भ्रष्ट लोगों को जेल भेज रही है , कार्रवाई कर रही है लेकिन बीजेपी अपने भ्रष्ट मुख्यमंत्री को बचा भी रही है और पार्टी के बड़े नेता उसी मुख्यमंत्री की ताल पर ताता थैया कर रहे हैं .ज़ाहिर है राजनीतिक अधोपतन के मुकाबले में देश की दोनों बड़ी पार्टियां एक दूसरे के मुक़ाबिल खडी हैं और राजनीतिक शुचिता की परवाह किसी को नहीं है .