Showing posts with label ब्योर्नसन. Show all posts
Showing posts with label ब्योर्नसन. Show all posts

Thursday, August 29, 2013

ओस्लो का नैशनल थियेटर साहित्यिक इतिहास का केन्द्र भी है


शेष नारायण सिंह

ओस्लो,२७ अगस्त . किसी भी शहर के सामाजिक जीवन में किसी थियेटर का कितना महत्व हो सकता है , वह ओस्लो के  नैशनल थियेटर के आसपास की ज़िन्दगी को देखकर समझा जा सकता है . यहाँ पार्लियामेंट बिल्डिंग , ग्रैंड होटल, ओस्लो विश्वविद्यालय का पुराना हाल सबकुछ इसी के आस पास है . नया ओस्लो विश्वविद्यालय तो थोड़ी दूर पर है जैसे मुंबई विश्वविद्यालय की पुरानी बिल्डिंग दक्षिण मुंबई वाली इमारत मानते हैं लेकिन पढाई लिखाई से सम्बंधित अधिकतर काम अब कलीना कैम्पस में होते है .हम दिल्ली में पार्लियामेंट के आसपास की  दो किलोमीटर तक की इमारतों का पता भी संसद भवन के हवाले से बताते हैं लेकिन यहाँ जब मैंने पूछा कि  पार्लियामेंट बिल्डिंग कहाँ है तो बताया गया कि नैशनल थियेटर के बिलकुल करीब है . इसके पास ही राजा का महल है और थोड़ी दूर पर ही  इब्सेन म्यूज़ियम , नोबेल शान्ति पुरस्कार का मुख्यालय ,समुद्रतट आदि हैं लेकिन ओस्लो के रहने वाले सभी इमारतों पता नैशनल थियेटर  के सन्दर्भ से ही बताते हैं .
शेक्सपीयर के किंग लियर का यहाँ आजकल मंचन चल रहा है . लेकिन कई दिनों तक की टिकट बिक चुकी है . अजीब लगा क्योंकि अपने दिल्ली में तो ज़्यादातर नाटक देखने वाले मुफ्त पास के इंतज़ार में रहते  हैं और अगर कोई टिकट लेने पंहुचता है तो आयोजक खुश हो जाते हैं . इसके बाद नार्वेजी समाज से नाटक के सम्बन्ध और नैशनल थियेटर के महत्व जानने की उत्सुकता हुई .उसी उत्सुकता का नतीजा है यह छोटी सी रिपोर्ट .
नैशनल थियेटर के रूप में इस  संस्था  का उदघाटन करीब ११४ साल  पहले १ सितंबर  १८९९ के दिन हुआ था . उसके बाद तीन दिन लगातार यहाँ तीन महान साहित्यकारों के नाटकों का मंचन हुआ .सबसे पहले लुडविग होल्डबर्ग की कुछ चुनिन्दा कृतियों का नाट्य रूपांतर , उसके बाद हेनरिक इब्सेन के ‘ इंसान के दुश्मन ‘ और तीसरे दिन ब्योर्नसन के नाटक का मंचन हुआ . इन तीनों ही महापुरुषों की मूर्तियां नैशनल थियेटर के कैम्पस में लगी हुई हैं . थियेटर की मौजूदा बिल्डिंग की डिजाइन हेनरिक बुल नाम के एक आर्किटेक्ट ने तैयार किया था .
हेनरिक इब्सेन के नाटकों का तो नैशनल थियेटर को नैहर ही माना जाता है . वे रोज ही इसके आस पास देखे जाते थे .आधुनिक थियेटर के संस्थापकों में से एक इब्सेन को वस्तुवादी नाटकों की परंपरा का जनक कहा जाता  है . उनके नाटकों ब्रैंड, एन इनमी आफ द पीपुल, ए डॉल्स हाउस , घोस्ट, और मास्टर बिल्डर का दुनिया भर में बार बार मंचन हुआ है .बीसवी सदी में ‘ए डॉल्स हाउस ‘ नाटक दुनिया के बहुत सारे शहरों में कई कई बार मंचन हुआ है और वह एक तरह से विश्व रिकार्ड है .
इब्सेन को यूरोपीय साहित्य में एक मूर्तिभंजक रचनाकार के रूप में जाना जाता है . अपने समकालीन साहित्यकारों की साँचाबद्ध सोच को उन्होंने चुनौती दी. शालीनता और पारिवारिक जीवन की भद्र्जनोचित व्याख्या को उन्होंने सिर के बल खड़ा कर दिया और आपने समकालीन समाज को ललकारा कि वह वास्तविकता की ज़मीन पर आये और आभिजात्य के फसाड  को अलविदा कहे.  नैतिकता को लागू करने की आदर्शोन्मुखी अवधारणा को इब्सेन ने कहीं का नहीं  छोड़ा और नार्वे में सामाजिक परिवर्तन के लिए चल रही सामूहिक इच्छा को हवा दी. इसी काल में आस्ता हंसतीन भी मानवीय संबंधों की मर्द्वादी व्याख्या को झकझोर रही थीं और महिलाओं के अधिकारों को आदर्श के ढर्रे पर डालने के पुरातनपंथी समुदाय की मान्यताओं को दफन करने की तैयारी कर रही थीं . उन्होंने स्त्री को  सामान मानने की  विचारधारा को इतनी बार झकझोरा की नार्वेजी समाज में लोग इब्सेन के नाटकों से अपने को जोड़कर देखने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुके थे . इस दौर में नैशनल थियेटर में बीसवीं सदी की शुरुआत में खेले गए इब्सेन के नाटकों ने आग में घी का काम किया . १९१३ में जब नार्वे में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला तो आस्ता हंसतीन और इब्सेन इस दुनिया में नहीं थे , कुछ ही साल पहले उनकी मृत्यु हो चुकी थी लेकिन उसका जश्न इसी नैशनल थियेटर के कैम्पस में ही मनाया गया था और इब्सेन और आस्ता हंसतीन को याद किया गया था . कृतज्ञ समाज ने इब्सेन के किराए के घर से नैशनल थियेटर और उसके आसपास तक के जिन रास्तों को इब्सेन अपनाया करते तह, वहाँ  उनके नाटकों की कुछ लाइनें पत्थर में जड़कर लगा दी हैं . हालांकि यह कहने वालों की भी कमी नहीं थी कि हेनरिक इब्सेन को बाद के नार्वेजी समाज और राज्य ने इतना महत्व इसलिए दिया कि उनका बेटा देश का प्रधानमंत्री बन गया था. लेकिन यह बात उसी समय खारिज कर दी गयी थी. हेनरिक इब्सेन का प्रभाव बाद के महान नाटककारों , जार्ज बर्नार्ड शा , ओस्कर वाइल्ड, आर्थर मिलर और यूजीन ‘ओ नील पर साफ़ देखा गया है .
नैशनल थियेटर के उद्घाटन के समय ब्योर्नसन के काम को भी नाटक के रूप में पेश किया गया था . उन्होने १९०३ का साहित्य का नोबेल जीता था . वे नार्वे के चार महान लेखकों में शुमार हैं . बाकी तीन हैं हेनरिक इब्सेन,जोनल लाइ और अलेक्जेंडर कीलैंड . यह नार्वेजी राष्ट्रगान के रचाकार भी हैं.
नैशनल थियेटर के कैम्पस में तीसरे महान नार्वेजी साहित्यकार की मूर्ति लुडविग होलबर्ग की है . उन्हें लेखक ,दार्शनिक, इतिहासकार और नाटककार के रूप में जाना जाता है .. उनको आधुनिक नार्वेजी और डैनिश साहित्य का संस्थापक  माना जाता है