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Friday, March 11, 2011

बीजेपी की कद्दावर नेता,सुषमा स्वराज को कमज़ोर करने की साज़िश

शेष नारायण सिंह

बीजेपी में शीर्ष स्तर पर गडबडी के संकेत साफ़ नज़र आने लगे हैं . मुख्य सतर्कता आयुक्त के मसले पर लोक सभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने जो कुछ भी किया उस पर लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्ववास रखने वालों को संतोष ही होगा . सुषमा स्वराज ने सी वी सी की नियुक्ति के मामले में जो भी काम किया है वह शुरू से अंत तक मर्यादा की मिसाल है . जानकार बताते हैं कि अगर उनका आचरण ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले वक़्त में वे एक स्टेट्समैन राजनेता के रूप में स्थापित हो जायेगीं . संविधान में दी गयी व्यवस्था के तहत लोकसभा में विपक्ष की नेता ,सुषमा स्वराज उस सेलेक्शन कमेटी की सदस्य हैं जो सी वी सी का चुनाव करती है . जब चुनाव करने के लिए बैठक हुई तो तो सुषमा स्वराज ने विरोध किया और कहा कि एक भ्रष्ट आदमी को भ्रष्टाचार पर काबू करने वाले पद पर नहीं तैनात किया जाना चाहिए . उनके अलावा उस कमेटी में प्रधान मंत्री और गृह मंत्री भी सदस्य थे. उनके विरोध को दरकिनार करके सरकारी पक्ष ने पी जे टामस को नियुक्त कर दिया . लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने टामस की नियुक्ति को रद कर दिया तो सरकार की भारी किरकिरी हुई और प्रधानमंत्री को संसद में अपनी गलती माननी पड़ी .ज़ाहिर है कि अब एक नया सी वी सी तैनात किया जाएगा और सरकारी काम अपने ढर्रे से चलेगा . सुषमा स्वराज ने लोकतांत्रिक और उदारता की परम्पराओं को ध्यान में रख कर अपने ट्विटर पर बयान दे दिया कि ' मैं समझती हूँ कि इतना काफी है और अब बात यहीं ख़त्म कर डी जानी चाहिए और अब आगे बढ़ जाना चाहिए '. सुषमा स्वराज का यह बयान ऐसा है जिस पर किसी भी लोकतांत्रिक मूल्यों के कद्रदान को गर्व होगा . लेकिन उनके इस बयान के बाद बीजेपी का असली चेहरा सामने आ गया . नागपुर शहर के बीजेपी नेता और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपनी हनक स्थापित करने का मौक़ा देखा और ऐलान कर दिया कि सुषमा जो कह रही हैं वह बीजेपी की पार्टी लाइन नहीं है . बीजेपी वाले इस चक्कर में हैं कि प्रधानमंत्री को एक गलत काम करते पकड़ लिया है तो उस से अधिकतम राजनीतिक लाभ लिया जाना चाहिए . राज्यसभा में आज का अरुण केतली का बयान भी इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए. उन्होंने राज्य सभा में आज एक तरह से सुषमा स्वराज की लाइन को रद्द करते हुए कहा कि सी वी सी की नियुक्ति और उस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनज़र, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को राष्ट्र को पूरी तरह से जवाब देना चाहिए. इसका मतलब यह हुआ कि एक बहुत ही साधारण से मामले को लेकर बीजेपी के आपसी मतभेद पूरी तरह से सामने आ गए हैं . यह मतभेद कोई एक स्तर पर नहीं हैं . इसकी कई परते हैं . सबसे बड़ी बात तो यही है कि बीजेपी में नागपुर लाइन वाले कभी भी किसी ऐसे नेता को राष्ट्रीय स्तर पर मह्त्व नहीं लेने देगें जो आर एस एस का "तपा तपाया "कार्यकर्ता न हो . यह भेद बहुत शुरू से चला आ रहा है .ताज़ा मिसाल यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा की है . बीजेपी के गैर आर एस एस नेता लोग अक्सर मौक़ा चूक जाते हैं . क्योंकि बीजेपी में जो लोग भी ऊपर पंहुचे हैं और संघी ट्रेनिंग लिए बिना पार्टी में आये हैं ,उन्हें 'तपे तपाये ' भाजपाइयों से नीची श्रेणी में रखा जाता है . इस पैमाने पर सुषमा स्वराज बिलकुल फेल हो जाती हैं . जहां तक यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह का सवाल है , वे तो सरकारी नौकर थे . उनके खिलाफ कुछ भी नही है लेकिन सुषमा स्वराज तो समाजवादी रही हैं. वे एस वाई एस की सदस्य भी रह चुकी हैं , इमरजेंसी के खिलाफ इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ लाठी भी भांज चुकी हैं और समाजवादी कोटे से जनता पार्टी में १९७७ में शामिल हुई थीं . बडौदा डायनामाईट केस में जब वे जार्ज फर्नांडीज़ की वकील बनीं तो दुनिया ने उनकी हिम्मत का लोहा माना था .जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वे मंत्री भी बनीं , हरियाणा में सबसे कम उम्र की मंत्री रहने का सौभाग्य भी उन्हें मिल चुका है . वे मूल रूप से समाजवादी सोच की नेता हैं और शायद इसीलिये वे लोकत्रांत्रिक मूल्यों के प्रति ज्यादा सजग हैं . लेकिन यह बात संघ के "तपे तपाये " लोगों के गले नहीं उतरती है . इस बात में दो राय नहीं है कि बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बाद सुषमा सबसे कद्दावर नेता हैं . बीजे पी का मौजूदा झगडा शायद इसी वैचारिक मतभेद के कारण ही एक मामूली से मुद्दे पर उबल पड़ा और आर एस एस की ओर से आये लगभग सभी नेता सुषमा स्वराज के खिलाफ जुट पड़े हैं . बीजेपी जैसी पुरुषप्रधान मानसिकता वाली पार्टी में किसी महिला के लिए सबसे ऊंचे पद पर पंहुचना वैसे भी बहुत मुश्किल माना जाता है . ऊपर से सुषमा स्वराज 'तपे तपाये' कटेगरी की नहीं हैं ,वे समाजवादी बैकग्राउंड से आई हैं . उनके लिए और भी मुश्किल होगा .