शेष नारायण सिंह
देश में हुई आतंकवादी गतिविधियों में आर एस एस के शामिल होने की पोल खुलने के बाद नागपुर के मठाधीश बहुत परेशान हैं . एक बहुत ही आदरणीय पत्रकार से बात चीत में संगठन के एक ज़िम्मेदार नेता ने बताया कि यह ठीक नहीं है क्योंकि अगर आर एस एस के कार्यक्रताओं के नाम आतंकवादी काम में जुड़ गए तो उनकी उस रणनीति की हवा निकल जायेगी जिसके तहत वे कहते पाए जाते थे कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान होते हैं .. उनकी कोशिश रहती थी कि मुसलमानों को आतंकवाद के साचे में मुकम्मल तरीके से फिक्स रखा जाए . लेकिन महाराष्ट्र के मालेगांव, राजस्थान के अजमेर और आन्ध्र प्रदेश के मक्का मस्जिद धमाकों में आर एस एस के लोगों के पकडे जाने और उनके शामिल होने की बात के साबित हो जाने के बाद यह तो पता चल ही गया है कि सभी आतंकवादी मुसलमान नहीं होते, बल्कि यह भी कि आर एस एस ही इस देश में होने वाले आतंकवाद का एक प्रमुख नियंता है और आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता .. अब आर एस एस की ताज़ा लाइन अलग है. अब तक तो यह था कि अपने लोगों को आतंकवादी घटनाओं में पकडे जाने के बाद भी मदद की जायेगी . इस सोच के तहत ही जब उनकी मध्य प्रदेश की नेता, प्रज्ञा सिंह ठाकुर आतंकवादी होने के आरोप में पकड़ी गयी थीं तो उस वक़्त के आर एस एस की राजनीतिक शाखा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह और प्रधान मंत्री पद के प्रतीक्षक, लाल कृष्ण आडवानी ने उनके समर्थन में बयान दिया था लेकिन अब बात बिगड़ रही है. प्रज्ञा ठाकुर वाले मामले में बचत की एक गुंजाइश थी . वे आर एस एस के उन संगठनों के साथ थीं जो चोरी छुपे उनका काम करते हैं और पकडे जाने पर नागपुर उनसे पल्ला झाड लेता है . लेकिन अब बात बदल गयी है . अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जो धमाका हुआ था , उसका सरगना पकड़ लिया गया है और वह आर एस एस का आधिकारिक रूप से तैनात किया गया प्रचारक था. प्रचारक ,आर एस एस का सबसे महत्वपूर्ण पद्दाधिकारी होता है . सही बात यह है कि वही सारे खेल में केंदीय भूमिका अदा करता है . संगठन के सभी बड़े नेता मूल रूप से स्वयंसेवक होते हैं लेकिन जो प्रचारक होकर बी जे पी में आते हैं ,उनकी ताक़त औरों से ज्यादा होती है . गुजरात के नरेंद्र मोदी भी आर एस एस के प्रचारक रह चुके हैं . ज़ाहिर है प्रचारकों के पकडे जाने के बाद आर एस एस वालों को लगने लगा है कि अगर सारी पोल पट्टी खुल गयी तो उनका एक बार फिर वही हाल होगा जो गाँधी जी की हत्या में पकडे जाने के बाद हुआ था. उस मामले में तो उनके मुखिया ,गोलवलकर तक पकड़ लिए गए थे . बाद में छूट गए लेकिन उनके अपने बन्दे सावरकर , नाथूराम गोडसे वगैरह के ऊपर आरोप साबित हो गए थे. और उन लोगों को माकूल सज़ा भी हुई. गांधी हत्या में पकडे जाने की वजह से इस संगठन पर बहुत दिनों तक किसी को भरोसा नहीं हुआ था. वह तो १९७७ में जयप्रकाश नारायण ने इनको मुख्य धारा में लाने में मदद की. शायद इसीलिए अब आर एस एस के नेता लोग खुले आम बदमाशी करने या अपने लोगों को आतंकवादी कहलवाने का ख़तरा मोल नहीं लेना चाहते . जिस गुमनाम आर एस एस वाले ने एक प्रतिष्ठित अखबार की संवाददाता से बात की उसने साफ़ कहा कि गाँधी जी की ह्त्या वाले मामले के बाद उनका संगठन बहुत पिछड़ गया था .
इस नयी सोच के तहत अजमेर के आतंकवादी धामाके में पकड़ा गया नरेंद्र गुप्ता अपनी जान बचाने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है . हालांकि आर एस एस के लिए यह साबित कर पाना मुश्किल है कि नरेंद्र गुप्ता का उनसे कोई लेना देना नहीं है. क्योंकि आर एस एस ने ही उसे प्रचारक के रूप में झारखण्ड में कई वर्षों तक तैनात रखा था . उसका जो सिम कार्ड बरामद हुआ है उस से उसके सम्बन्ध अजमेर धमाके के दौरान भी आर एस एस के टाप नेताओं से बने रहने की बात साबित हो गयी है . यह भी साबित हो गया है कि अपने अन्य साथियों से भी वह उसी सिम कार्ड से संपर्क में था . उसकी मक्का मस्जिद विस्फोट में हिस्सेदारी की पुष्टि हो गयी है और आर एस एस के बाकी आतंकवादी भी उसकी निशान देही पर पकडे जा रहे हैं . इस तरह से आतंकवादी हरकतों में आर एस एस के शामिल होने के पुख्ता सबूत मिल जाने के बाद उसके आला नेता परेशानी में हैं और अब उनकी नीति यह है कि जब तक पकड़ा न जाए तब तक तो आर एस एस अपने आतंकवादियों की मदद करेगा लेकिन पकडे जाने के बाद उसको कुर्बान कर देगा. आर एस एस के इस गुमनाम बड़े नेता ने सम्मानित पत्रकार को बताया कि अगर एक दिन के लिए भी आर एस एस का आतंकवादी गतिविधियों में डाइरेक्ट शामिल होता हुआ पकड़ा गया तो बहुत बुरा होगा . यानी आगे से आर एस एस का जो भी स्वयंसेवक आतंक का काम करते पकड़ा जाएगा उसका वही हश्र होगा जो अजमेर के केस में पकडे गए नरेंद्र गुप्ता का हो रहा है . यानी अब नागपुर वाले अपने उन आतंकवादियों को नहीं बचायेंगें जो पुलिस की पकड़ में आ जायेंगें
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Friday, June 4, 2010
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