Showing posts with label परमाणु सुरक्षा. Show all posts
Showing posts with label परमाणु सुरक्षा. Show all posts

Sunday, March 13, 2011

जापान की परमाणु सुरक्षा पर उठे सवाल, भारत को सजग रहना पड़ेगा

शेष नारायण सिंह

जापान में कहर बरपा हुए २ दिन से ज्यादा हो गए हैं .कुदरत ने मुसीबत का इतना बड़ा तूफ़ान खड़ा कर दिया है कि पता नहीं कितने वर्षों में यह दर्द कम होगा . मुसीबत का पैमाना यह है कि अभी तक यह नहीं पता चल पा रहा है कि इस प्रलय में कितने लोगों की जानें गयी हैं . जापान में आये भूकंप और सुनामी ने वहां के लोगों की ज़िंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया है . लेकिन इस मुसीबत का जो सबसे बड़ा ख़तरा है उसकी गंभीरता का अंदाज़ लगना अब शुरू हो रहा है . जापान सरकार के एक बड़े अधिकारी ने बताया है कि शुक्रवार को आये भयानक भूकंप में जिन परमाणु बिजली घरों को नुकसान पंहुचा है उनमें से एक में पिघलन शुरू हो गयी है . यह बहुत ही चिंता की बात है . सरकारी प्रवक्ता का यह स्वीकार करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है . इसके पहले वाले बिजली घर में भी परमाणु ख़तरा बहुत ही खतरनाक स्तर तक पंहुच चुका है . जापान सरकार के एक प्रवक्ता ने इस बात को स्वीकार भी किया था लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के डर से वे बात को बदल रहे हैं . अब वे कह रहे हैं कि शुरू में तो ख़तरा बढ़ गया था लेकिन अब कानूनी रूप से स्वीकृत स्तर पर पंहुच गया है . जापान के मुख्य कैबिनेट सेक्रेटरी , युकिओ एडानो ने रविवार को बताया कि अब फुकुशीमा बिजली घर की समस्या का भी हल निकाल लिया गया है .इन परमाणु संयंत्रों की बीस किलोमीटर की सीमा में अब कोई भी आबादी नहीं है . करीब सत्रह लाख लोगों को इस इलाके से हटा लिया गया है . यह परमाणु संस्थान जापान की राजधानी टोक्यो से करीब २७० किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ है . जापान की परेशानी पूरी इंसानियत की परेशानी है .करीब ५० मुल्कों ने जापान को हर तरह से मदद देने का प्रस्ताव भी किया है .अमरीका का सातवाँ बेडा उसी इलाके में ही है ,उसका इस्तेमाल भी बचाव और राहत के काम में किया जा रहा है . सच्ची बात यह है कि जापान को किसी तरह की आर्थिक सहायता की ज़रुरत नहीं है लेकिन इतनी बड़ी मुसीबत के बाद हर तरह की सहायता की ज़रुरत रहती है . ज़ाहिर है जापान इस मुसीबत से बाहर आ जाएगा.
लेकिन जापान की इस प्राकृतिक आपदा के बाद परमाणु सुरक्षा के सम्बन्ध में चर्चा के नए अवसर खुल गए हैं . .परमाणु निरस्त्रीकरण और शान्ति गठबंधन के संयोजक अनिल चौधरी ने दिल्ली में एक बयान जारी करके भूकंप और सुनामी से हुई तबाही पर शोक व्यक्त किया है. बयान में फुकुशीमा परमाणु संयंत्र में हुए विस्फोट और उसके बाद की दुर्घटना का ज़िक्र है . इस दुर्घटना के बाद बहुत सारा रेडियो एक्टिव पदार्थ समुद्र में चला गया है . अभी पता नहीं है कि उसकी मात्रा कितनी है . इस हादसे के बाद एक बात बिलकुल साफ़ हो गयी है कि तथाकथित शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल का कोई मतलब नहीं है . इस आपदा के बाद वैज्ञानिकों की वह बात बिलकुल सच साबित हो गयी है जिसमें कहा गया है कि किसी भी किस्म का परमाणु संयंत्र हो ,उस से इंसानियत के लिए भयानक खतरों की आशंका को कम नहीं किया जा सकता . अमरीका में १९७९ हुआ 'थ्री माइल द्वीप ' का परमाणु हादसा , और यूक्रेन में १९८६ में हुआ ' चेर्नोबिल परमाणु हादसा ' इस तरह के खतरों के उदाहरण के रूप में इस्तेमाल होते रहे हैं . लेकिन फुकुशीमा परमाणु संयंत्र के हादसे ने यह बात बिलकुल साबित कर दी है कि इंसानी कोशिश से चाहे जितना सुरक्षित कर दिया जाए लेकिन अगर परमाणु बिजली के उत्पादन में इतने खतरनाक रेडियो एक्टिव सामान का इस्तेमाल किया जा रहा है तो प्राकृतिक आपदा से कैसे बचा जा सकता है .चेर्नोबिल के हादसे में एक लाख से ज्यादा लोगों की जानें गयी थी . आशंका जताई जा रही है कि फुकुशीमा में हुए नुकसान का जब सही आकलन कर लिया जाएगा तो यह उस से भी ज्यादा भयावह होगा .
इस आपदा के बाद एक बात बिलकुल साफ़ हो गयी है भारत को इस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से सबक लेना चाहिए और भारत के सभी परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किये जाने चाहिए .सबको मालूम है कि भारत में सुरक्षा के वे इंतज़ाम नहीं हैं जो जापानी संयंत्रों में मौजूद हैं , भारत सरकार को चाहिए कि अपने संयंत्रों की सुविधाओं को बहुत की उच्च कोटि का बनाए और दुर्घटना की स्थिति में आपातकालीन हालत को काबू करने का पारदर्शी तंत्र स्थापित करे. परमाणु निरस्त्रीकरण और शान्ति गठबंधन ने मांग की है कि देश के सभी सिविलियन परमाणु योजनाओं पर चल रहा निर्माण कार्य फ़ौरन रोक दे . सरकार को महाराष्ट्र के जैतापुर वाले परमाणु संयंत्र का काम भी तुरंत रोक देना चाहिए . यह काम दुबारा तब तक न शुरू किया जाए जब सरकार और अन्य सम्बंधित पक्ष भारत की परमाणु नीति की बाकायदा समीक्षा न कर लें . जापान जैसा टेक्नालोजी के क्षेत्र में विकसित देश अगर प्राकृतिक आपदा के सामने असहाय खड़ा नज़र आ रहा है तो अभी अपने देश में वैज्ञानिक रूप से बहुत पिछड़ापन है . जापान की आपदा में पूरी मदद करने के साथ साथ हमें अपने देश के परमाणु संयंत्रों को भी सुरक्षित बनाने की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए .

Saturday, August 7, 2010

परमाणु सुरक्षा पर बात करते वक़्त नागासाकी और हिरोशिमा का ध्यान रखना चाहिए

शेष नारायण सिंह

६५ साल पहले,६ अगस्त १९४५ के दिन एक अमरीकी हवाई जहाज़ ने जापान के हिरोशिमा शहर पर पहला परमाणु बम गिराया था . उसके बाद से ही दुनिया परमाणु बम की दहशत में जिंदा है . परमाणु बम गिराने के बाद अमरीका ने बाकी दुनिया से अपने आप को सुपीरियर साबित कर लिया था.जब अमरीका ने तबाही का यह बम जापानी शहर पर गिराया था तो उस वक़्त के अमरीका के राष्ट्रपति हैरी. एस. ट्रूमैन अटलांतिक महासागर में "आगस्ता" जहाज़ी बेड़े पर मौजूद थे और उन्होंने शेखी मारी थी कि इस एक बम के गिर जाने के बाद युद्ध के मानदंड बदल जायेगें..हिरोशिमा शहर को निशाना इसलिए बनाया गया था कि वहां जापानी सेना का सप्लाई डिपो था. शहर की 60 प्रतिशत से भी अधिक इमारतें नष्ट हो गईं थीं. हिरोशिमा की कुल 3 लाख 50 हज़ार की आबादी में से 1 लाख 40 हज़ार लोग इसमें मारे गए थे .इस बम के कारण 13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी.इनमें सैनिक और वह लोग भी शामिल थे जो बाद में परमाणु विकिरण की वजह से मारे गए. बहुत से लोग लंबी बीमारी और अपंगता के भी शिकार हुए...तीन दिनों बाद अमरीका ने नागासाकी शहर पर पहले से भी बड़ा हमला किया.अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने कहा था कि परमाणु बम ने दुनिया की मूलभूत शक्तियों को इकट्ठा करने का काम किया है, उन्होंने दावा किया था कि उस बम ने परमाणु हथियार बनाने की दौड़ में जर्मनी पिछड़ गया है .यह बम अमरीका की एक सोची समझी चाल के तहत चलाया गया था . इसके १० दिन पहले अमरीकी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी जिसमें जापान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने को कहा गया था. हालांकि पिछले ६५ वर्षों में अमरीका ने हर मंच से यह साबित करने की कोशिश की है कि उसने युद्ध की नीति शास्त्र का पूरी तरह से पालन किया है लेकिन सही बात यह है कि अंतर राष्ट्रीय संबंधों के मामले में यह अमरीकी दादागीरी की शुरुआत का पहला अध्याय है और आज भी उसी परमाणु ताक़त और हथियारों के ज़खीरे के बल पर वह देशों को धमकाता फिरता है.केंद्र सरकार की परमाणु ज़िम्मेदारी बिल को पास करवाने की कोशिश को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के बाद हुई तबाही को नज़र में रखा जाए. अमरीकी बमबारी के ६५ साल बाद भी आज हिरोशीमा और नागासाकी में लोग परमाणु खतरों से जूझ रहे हैं , बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं और वहां के लोगों की भावी पीढियां तबाह हो गयी हैं. . हैरानी की बात यह है कि परमाणु दुर्घटना के मामले में केंद्र सरकार का सुझाव है कि सम्बंधित पक्ष की ज़िम्मेदारी केवल १० साल रखी जाए. अखबारों के माध्यम से सरकार ने खबरें लीक कर के यह कोशिश की कि इसे बढ़ाकर २० साल करने पर विचार किया जा रहा है . बिल के लोक सभा में पेश होने के पहले उस पर संसद की एक समिति विचार कर रही है .ज़्यादातर सदस्यों का कहना है कि इस मामले में समय सीमा तय करने की ज़रुरत नहीं है . उनक अतार्क है कि भोपाल में जो औद्योगिक हादसा हुआ था उसमें तो कहीं कोई परमाणु ज़हर नहीं था लेकिन वहां के लोगआज २५ साल बाद भी उस ज़हर के शिकार हो रहे हैं . इसलिए जब परमाणु ज़हर माहौल में फैलेगा तो २० साल का समय तो कुछ भी नहीं है . वास्तव में इसे हमेशा के लिए लागू किया जाना चाहिए २० या ५० साल की समय सीमा बाँधने का कोई मतलब नहीं है . सरकार की तरफ से लाये मूल बिल में प्रस्ताव था कि हादसे की सूरत में ज़िम्मेदार पक्ष को पांच सौ करोड़ रूपये के लिए ज़िम्मेदार माना जाए . अब मीडिया के माध्यम से यह सुझाया जा रहा है कि इसे दुगुना या तिगुना किया जा जा सकता है लेकिन बड़ी संख्या में सांसदों के एरे है कि इसे कम सेकम पांच हज़ार करोड़ रूपये पर फिक्स किया जा सकता है . टी सुबीरामी रेड्डी की अध्यक्षता में बनी कमेटी को तय करना है कि सरकार इस बिल में अभे यौर क्या क्या संशोधन करे. सम्बंधित विभागों के अफसरों को तलब कर के उनसे जानकारी ली जा रही है . उसके बाद की तय होगा कि इस बिल का भविष्य क्या होगा लेकिन ज़रूरी है कि टी सुबीरामी रेडी सहित कमेटी के बाकी सदस्य बहुत ही ज़िम्मेदारी से फैलसा लें क्योंकि जो कुछ वह तय करेगें ,हमारी भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा उसी पर निर्भर करेगी.