शेष नारायण सिंह
अगले महीने नेल्सन मंडेला ९५ साल के हो जायेगें .उनकी तबियत बहुत खराब है .अस्पताल में आठ जून को भर्ती किये गए थे और तब से ही उनका स्वास्थ्य “स्थिर लेकिन गंभीर” बना हुआ है .२०११ के बाद से तो वे अक्सर अस्पताल में भर्ती होते रहे हैं .वैसे सार्वजनिक रूप से उनको बाहर निकले करीब तीन साल हो गए हैं . २०१० के फीफा वर्ल्ड कप के समय वे गोल्फ कार्ट में बैठकर आये थे . उस समय भी बहुत कमज़ोर थे, हाथ उठाने में भी दिक्कत हो रही थी. उनकी बीमारी दक्षिण अफ्रीका में चिंता का विषय बनी हुई है . एक दक्षिण अफ्रीकी अखबार ने तो बैनर हेडलाइन लगा दी थी कि , “लेट हिम गो “ यानी अब उन्हें जाने दिया जाए.
दस साल पहले नेल्सन मंडेला ने राजनीति से संन्यास ले लिया था . उसके बाद से वे सार्वजनिक रूप से बहुत कम देखे गए हैं .उनको फेफड़े की बीमारी है और वह शायद उनकी बहुत लंबी गिरफ्तारी के समय से ही है . अपनी गिरफ्तारी के दौरान वे पत्थर की खान में काम करने के लिए भेजे जाते थे . जानकार बताते हैं कि पत्थर की खान में जितने भी कैदियों को भेजा जाता था सभी फेफड़े की बीमारी का शिकार हुए . उनमें से ज़्यादातर तो अब जीवित नहीं हैं लेकिन एक एन्ड्रयू म्लान्गेनी जिंदा हैं और उन्होंने मंडेला के परिवार से कहा है कि अब उनको जाने दीजिए जिस से ईश्वर उनको अपनी हिफाज़त में ले ले. उनके साथी और अफ्रीका में आज़ादी के बहुत बड़े नेता डेसमंड टूटू ने कहा है उनको अपना जीवन सम्मान और मर्यादा के साथ बिताना चाहिए. पूरे अफ्रीका में लोग दुआ कर रहे हैं कि मदीबा जल्दी ठीक हो जाएँ .अफ्रीका में लोग मुहब्बत से मंडेला को मदीबा ही कहते हैं , जैसे महात्मा गांधी को अपने यहाँ लोग बापू कहते थे . उनके अस्पताल के बाहर मीडिया के लोग दिनरात मौजूद हैं और किसी खबर ,शायद उनकी मौत की खबर का इंतज़ार कर रहे हैं. वे प्रिटोरिया के मेडीक्लिनिक हार्ट हास्पिटल में दाखिल कराये गए हैं . उनके स्वास्थ्य की जानकारी दक्षिण अफ्रीका में अति विशिष्ट जानकारी मानी जाते है और उस पर देश के राष्ट्रपति के दफ्तर का कंट्रोल है . सरकारी कंट्रोल से बहुत कम खबर बाहर निकलती है लेकिन इतना तय है कि मदीबा की तबियत बहुत खराब है .
आज भी दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला एक राजनीतिक पूंजी हैं . अगले साल आम चुनाव होने हैं .सत्ताधारी अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी दल , डेमोक्रेटिक अलायंस , दोनों की ही नज़रें उनके नाम पर चुनाव अभियान चलाने की है . उनकी कामना है कि आज़ादी का यह महानायक तब तक अस्पताल में ही सही ,जिंदा रहे . उनके नाती पोते भी मंडेला की दीर्घायु की कामना कर रहे हैं . उनमें से कई मंडेला के नाम पर धंधे कर रहे हैं और कुछ के ऊपर तो अदालतों में मुक़दमें चल रहे हैं . वे भी नहीं चाहते कि मंडेला को मुक्ति मिले. हालांकि अब उनकी आँखें बहुत कमज़ोर हैं , फेफड़े मशीन के सहारे ही काम कर रहे हैं और उनकी याददाश्त भी बहुत कमज़ोर हो गयी है लेकिन जिजीविषा का यह महानायक अभी भी मौत को चुनौती दिए जा रहा है , दिए जा रहा है .