शेष नारायण सिंह
डिसेंट नोट में लिखा है की २०१० के सरकारी विशेयक में एक वाक्य था की " अगर बलात्कार करने वाला व्यक्ति सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक प्रतिष्ठा के पद पर है तो इस अपराध को और भी गंभीर माना जायेगा. , मौजूदा अध्यादेश में इस परिभाषा से " राजनीतिक " शब्द को हटा दिया गया है .स्थायी समिति ने भी परिभाषा में इस संशोधन से सहमति व्यक्त की है. हम ' राजनीतिक ' शब्द को हटाये जाने से पूरी तरह से असहमत हैं .धारा ३७६ के खंड जे में राजनीतिक शब्द हर हाल में जोड़ा जाना चाहिए . यह प्रावधान वंचित महिलाओं के शोषण को ख़त्म करने के लिए लगाया गया था . पिछले कुछ वर्षों में ऐसे बहुत सारे मामले आये है जहां राजनीतिक पदों पर मौजूद लोगों ने बलात्कार किये हैं और उनको कानून की ज़द से बाहर करना तो उनके आतंक को बढ़ावा देने से कम नहीं होगा .वैसे भी कोई भी बलात्कारी जुगाड़ करके राजनीतिक पद हासिल कर सकता है और उस से वह अपराध के दंड से बच निकलेगा .सरकारी कर्मचारियों के बारे में कहा गया है किअगर वह " जानबूझकर " कोई गलती करता है तो दंड दिया जायेगा. यह बेकार की बात है क्योंकि किसी भी सरकारी कर्मचारी को कानून के अनजान होने के बहाने बचने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए .
कायदे से बलात्कार कानूनों में प्रस्तावित बदलाव के बारे में सरकार की तरफ से पेश किये गए बिल पर सभी दलों के बड़े नेताओं की सदस्यता वाली संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट को आज की मुख्य खबर बनना चाहिए था लेकिन डी राजा और प्रशांत चटर्जी का डिसेंट नोट ही आज की मुख्य खबर है . डिसेंट नोट को भी रिपोर्ट के साथ संलग्न किया गया है . इन दो सदस्यों ने वर्मा समीति की सिफारिशों को बिल में तोड़ मरोड़ कर शामिल किये जाने का घोर विरोध किया है . उन्होंने कहा है कि स्थाई समिति को चाहिए को वह सरकार से मांग करे की जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों को शामिल करके सरकार एक नया बिल संसद में विचार करने के लिए लाये. समिति की रिपोर्ट के खंड पांच में अध्यादेश की धारा ८ की तरह सेक्सुअल असाल्ट के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया है जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों ही दोषी साबित हो सकते हैं . . यह पुरुषों द्वारा होने वाले बलात्कार की घटनाओं को गौण बनाता है . . यह खंड वर्मा समिति की सिफारिशों के विरुद्ध है . जिसमें अपराध करने वाले को पुरुष के रूप में परिभाषित करने की सिफारिश की गयी है .. आरोपी व्यक्ति केवल पुरुष ही हो सकता है जबकि पीड़ित पक्ष केवल महिला हो सकती है . मौजूदा बिल वर्मा समिति की इस मंशा को ख़त्म कर देता है .
सरकारी बिल में वैवाहिक बलात्कार को आई पी सी की धारा ३७५ के तहत अपराध नहीं मन गया है जबकि वर्मा समिति में ऐसा करने की सिफारिश की गयी थॆ. . यह व्यवस्था भारतीय संविधान के भी विरुद्ध है .. संविधान में सभी महिलाओं को हिंसा मुक्त जीवन जीने का अधिकार है . . शायद इसीलिये वर्मा समिति ने कहा था की आई पी सी में " वैवाहिक बलात्कार को शामिल न करना विवाह की उस पुरातन परम्परा पर आधारित है जिसमें पत्नी को अपने पति की संपत्ति माना गया है .जबकि आधुनिक समय में विवाह दोनों का सामान उत्तरदायित्व माना गया है ." कमेटी ने भी इस मामले में सरकार की हाँ में हाँ मिला दी है .बाद में कमेटी ने नेताओं को बरी कारने वाला प्रावधान हटा दिया लेकिन डी राजा का कहना है कि अगर दबाव न डाला गया होता तो शायद यह प्रस्ताव कानून का हिस्सा बन जाता .