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Saturday, January 19, 2013

जयपुर चिंतन शिविर नौजवानों को कर्त्तव्य और अधिकार की बात बतायी जा रही है




शेष नारायण सिंह 


आज़ादी के संघर्ष के मंच और आन्दोलन के रूप में कांग्रेस संगठन की जो स्थिति थी वह दुनिया से छुपी नहीं थी। कांग्रेस की सबसे बड़ी मजबूती  उसकी संगठनात्मक मजबूती थी। जवाहरलाल नेहरू के युग में कांग्रेस में आतंरिक लोकतंत्र उसका स्थायी भाव था . लेकिन 1969 में कांग्रेस के विघटन के बाद लोकतंत्र के क्षरण की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी।  जिन लोगों ने आम कांग्रेसी के मर्जी के  खिलाफ नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया वे इतिहास के गर्त में चले गए।जिन लोगों पर जनता को भरोसा था वे ही  असली कांग्रेसजन कहलाये । आज़ादी के बाद के कांग्रेसजनों की पीढी  की  नेता, इंदिरा गांधी थीं .और जब 1971 का चुनाव उन्होंने भारी बहुमत से जीत लिया तो वे कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता  बन गयीं . इंदिरा गांधी की इस उपलब्धि के बाद वे देश में एक नयी राजनीतिक संस्कृति शुरू कर सकती थीं . लेकिन दिल्ली के कुछ लोगों ने उनके छोटे बेटे  के कंधे  पर रख कर स्वार्थ की बंदूकें चलाना शुरू कर दिया . देश की राजनीति में यारबाजी का दौर शुरू हो गया और इंदिरा जी के जीवन के अंत आने तक वह एक ऐसी शक्ल अख्तियार कर चुका था जिसे दुबारा संभालने की ज़रुरत थी। जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकार किया तो  कांग्रेस के पास केंद्र की सत्ता नहीं थी। उनके साथ दो तरह के लोग जुड़े . एक तो वे जो दिल्ली की काकटेल सर्किट वाले हैं और दुसरे वे जो साम्प्रदायिकता की राजनीति के विरोधी हैं . उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने के पहले कांग्रेस में साफ्ट हिंदुत्व और बाबरी  मस्जिद के ध्वंस का कलंक लग चुका था। पार्टी को संभाल पाना बहुत मुश्किल था। देश की  दूसरी सबसे बड़ी  पार्टी के बड़े नेता उन्हें एक मामूली नेता ही मानते थे . उन्हें अपने बराबर का नेता मानने को तैयार नहीं थे . इसीलिये जब वे लोकसभा का पहला चुनाव लड़ने गयीं तो उनके खिलाफ आन्ध्र प्रदेश के रेड्डी बंधुओं की आयरन ओर  की काली कमाई का पैसा लगा दिया गया और  बीजेपी की एक महिला नेता को वहां से चुनाव लड़ने भेज दिया  गया। यह अलग बात है कि सोनिया गांधी चुनाव जीतकर आ गयीं लेकिन उनके खिलाफ  ऐसा अभियान चलाया गया जिसको  कि  सभ्य किसी भी सूरत में नहीं कहा जा सकता है .इन्हीं हालात में उनके  नेतृत्व में कांग्रेस ने 2004 के लोक सभा चुनाव में इतनी सीटें हासिल कीं जिसके बाद  कांग्रेस की अगुवाई वाली एक गठबंधन सरकार बन गयी .
 
कांग्रेस की कमान संभालने के बाद सोनिया गांधी ने हताश पड़  चुके कांग्रेस वालों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश की और 2004 आते आते सत्ता  उनकी पार्टी के पास आ गयी . मुख्य विपक्षी दल की हताशा उन दिनों देखने लायक थी। उनको प्रधान मंत्री पद की शपथ लेने से रोकने के लिए  बीजेपी के कुछ नेताओं से अपने सर मुंडवाने की योजना तक बना डाली। संतोष की बात यह है की सोनिया गांधी ने इन नेताओं को सर मुंडवाने से बचा लिया और डॉ मनमोहन सिंह  को कांग्रेस की तरफ से प्रधान मंत्री पद की शपथ दिला दी गयी।  संगठनात्मक रूप से लगभग शून्य हो चुकी कांग्रेस  को उन्होंने विचार धारा के स्तर  पर भी मजबूती देने की कोशिश शुरू कर दी। उसी कोशिश के  सिलसिले में उन्होंने चिंतन  शिविरों की  परम्परा डाली। पहला पंचमढी ,दूसरा शिमला  और अब तीसरा  जयपुर में हो रहा है .जयपुर के चिंतन शिविर में मूल रूप से आगामी लोक सभा चुनावों को ध्यान में रख कर रणनीति पर विचार किया जाएगा। आज़ादी की लड़ाई  के दौरान कांग्रेस के जो मुद्दे हुआ करते थे,  पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस उनसे भटक गयी थी। अब एक बार उन्हीं समस्याओं के आस पास कांग्रेस  की राजनीतिक दिशा को ढालने के लिए जयपुर चिंतन शिविर में काम  किया जाएगा। 

जयपुर चिंतन शिविर में मूल रूप से पांच विषयों पर चर्चा होगी । यह विषय बहुत पहले तय कर दिए गए थे।  इन विषयों पर पार्टी के  शीर्ष नेताओं और कुछ नौजवान नेताओं के बीच में गहन चर्चा  होने की बात कही जा रही हैं .  जो पांच विषय चुने  गए हैं उनमें सामाजिक आर्थिक चुनौतियां, संगठन को ठीक करना, राजनीतिक प्रस्ताव , विदेश नीति से संबंधित ग्रुप और महिला सशक्तीकरण जैसे मुद्दे हैं . जयपुर में जो चर्चा होगी उसी के आधार पर आगामी  कार्यक्रम बनाया जाएगा  . अगले  लोक सभा चुनाव  का मैनिफेस्टो भी जयपुर चिंतन के आधार पर ही बनाया जाएगा  .  जयपुर चिंतन शिविर के बाद जो कुछ फैसले लिए जायेगें  उनको  जयपुर घोषणापत्र के नाम से एक दस्तावेज़ के रूप में संकलित किया जायेगा। यह कांग्रेस की भावी नीतियों को उसी तरह से प्रभावित करेगा जिस तरह से  यू पी ए की पहली सरकार के दौरान तैयार की गयी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने प्रभावित किया था। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद यह साबित हो गया था  कि  मुसलमानों के  तुष्टीकरण की बोगी चलाने वाले कितने गलत थे . देश में बहुत सारे ऐसे सरकारी विभाग थे जहां एक भी मुसल्मान कर्मचारी नहीं था। शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमान देश के दलितों से भी ज्यादा पिछड़े हुए थे . ज़ाहिर है सच्चर कमेटी  की रिपोर्ट ने देश के आर्थिक योजनाकारों को एक नया दृष्टिकोण अपनाने का मौक़ा दिया था। 

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद   हे एप्रधन मंत्री का पंद्रह सूत्री कार्यक्रम आया था . इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए एक नया अमन्त्रलाया बनाया गया . सच्चर कमेटी की रिपोर्ट  आने के तीन साल बाद तक ऐसा कोई ढांचा  नहीं  बन पाया था जिसकी  बिना पर कोई काम किया जा सके। अगस्त 2010 में कांग्रेस  महासचिव , राहुल गाँधी ने पार्टी के मंचों पर बहुत नाराज़गी दिखाई थी।  पता चला था कि जिन राज्यों में उनकी पार्टी की विरोधी सरकारें हैं ,वहां मुसलमानों के लिए केंद्र सरकार की ओर से चलाई गयी योजनाओं को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा था।.  उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों की भलाई के लिए केंद्र से मंज़ूर रक़म का इस्तेमाल नहीं हो रहा था।.  प्रधान मंत्री की पन्द्रह सूत्री योजना को लागू नहीं किया जा रहा था। सरकार ने यह भी वादा किया था कि केंद्रीय अफसरों की मदद से पंद्रह सूत्री कार्यक्रम को लागू किया जाए  . लेकिन कुछ ख़ास हुआ नहीं . दर असल  पंद्रह सूत्री कार्यक्रम को लागू करने के लिए बनाए गए अल्पसंख्यक मामलों का जो मंत्रालय बनया गया था उसके दो शुरुआती मंत्रियों का मन अल्पसंख्यक मंत्रालय में लगा ही नहीं . नतीजा यह हुआ  कि  राहुल गांधी की  नाराज़गी के बावजूद भी काम कुछ ख़ास आगे नहीं बढ़ सका .

अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को के। रहमान खान के रूप में एक ऐसे मंत्री मिले हैं जिन्होंने  प्रधानमंत्री से इस विभाग को माँगा था और अब दिन रात उसी काम में लगे रहते हैं .कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक ख़ास बातचीत में  बताया कि  जिन राज्यों में आर एस एस के प्रभाव वाली सरकारें हैं वहां मुसलमानों के  हित के बारे में चलाई जाने वाली किसी भी केंद्रीय योजना को सही तरीके से नहीं चलाया जा सकता। इस सम्बन्ध में गुजरात सरकार का उदाहरण दिया जा सकता है जहां के मुख्यमंत्री ने साफ़ कह दिया है की वे मैट्रिक तक के  अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाले वजीफों की स्कीम  नहीं लागू करेगें . इसी तरह के कुछ और भी राज्य हैं .जयपुर चिंतन शिविर में इस बात पर भी विचार किया जा रहा है की जिस तरह से बहुत सारी अन्य स्कीमों का धन लाभार्थी के खाते में सीधे ट्रांसफर  करने की बात चल रही है . उसी तरह  अल्पसंख्यकों के लिए जो भी केंद्रीय स्कीमें हैं उन्हें केंद्र  आपका पैसा आपके हाथ योजना के माध्यम से सीधे उनके बैंक खाते में पंहुचा देने के बारे में कोई फैसला ले ले .

 प्रधान मंत्री के १५ सूत्रीय कार्यक्रम में से एक है 'अल्पसंख्यकों के लिए बहु आयामी विकास कार्यक्रम.' इस मद में केंद्र सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों के विकास के लिए आर्थिक पैकेज की व्यवस्था की गयी है . यह कार्यक्रम केंद्र सरकार की तरफ से चुने गए ९० जिलों में शुरू किया गया है .कांग्रेस महासचिव् दिग्विजय सिंह का कहना है की जयपुर में इस बात पर भी विचार किया जा सकता है की अल्पसंख्यकों के लाभ की योजनाओं के लाभार्थियों के बैंक खातों में  उनको जो रक़म मिलनी है  वह सीधे ट्रांसफर कर दी जाए .  एक प्रस्ताव यह भी है की अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों के साथ साथ अल्पसंख्यक आबादी  वाले  प्रखंड और गाँव भी चिन्हित करने की योजना बनायी जा सके . इस बात की संभावना से  इनकार नहीं किया जा सकता की ऐसी किसी बात की शुरुआत होने पर केंद्र राज्य संबंधों के आयामों की चर्चा भी होगी लेकिन यह ऐसी समस्या है जिसको राजनीतिक तौर पर हल किया जा सकता है। बहर हाल अभी यह  बात केवल आइडिया के स्तर  पर है . हालांकि वजीफे आदि तो सीधे ट्रांसफर स्कीम में आ चुके हैं लेकिन अल्पसंख्यकों के आर्थिक पॅकेज को इसमें शामिल कर लेने से बहुत फर्क पड़  जाएगा। ऐसी हालत में लगता है कि जयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस अपना  भविष्य तो ठीक करने  की कोशिश करेगी ही, अल्पसंख्यकों को भी कुछ लाभ मिल सकता है