Showing posts with label घिघियाते पत्रकार. Show all posts
Showing posts with label घिघियाते पत्रकार. Show all posts

Sunday, December 12, 2010

राडिया गैंग की ताक़त के सामने घिघियाते पत्रकार और वेब मीडिया

शेष नारायण सिंह

नीरा राडिया के टेलीफोन के शिकार हुए लोगों की नयी किश्त बाज़ार में आ गयी है .पहली किश्त में तो अंग्रेज़ी वाले पत्रकार और दिल्ली के काकटेल सर्किट वालों की इज्ज़त की धज्जियां उडी थीं . उनमें से दो को तो उनके संगठनों ने निपटा दिया . वीर संघवी और प्रभु चावला को निकाल दिया गया है लेकिन बरखा दत्त वाले लोग अभी डटे हुए हैं , मानने को तैयार नहीं हैं कि बरखा दत्त गलती भी कर सकती हैं . आउटलुक और भड़ास वालों की कृपा से सारी दुनिया को औपचारिक तौर पर मालूम हो गया है कि पत्रकारिता के टाप पर बैठे कुछ लोग दलाली भी करते थे .हालांकि दिल्ली में सक्रिय ज़्यादातर लोगों को मालूम है कि खेल होता था लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि उसके बारे में बात कर सके .नयी खेप में नीरा राडिया की वास्तविक हैसियत का पता चलता है जहां वह पी टी आई जैसी ताक़तवर न्यूज़ एजेंसी को ब्लैक लिस्ट करने की बात करती हैं . हिन्दी के सबसे बड़े अखबारों को सेट करने की बात करती हैं और हिन्दी ,उर्दू और अंग्रेज़ी में काम कारने वाले एक मीडिया हाउस के मुख्य अधिकारी को लाईन में लेने की बात करती हैं . इसी टेप में उनका कारिन्दा बताता है कि देश के एक बड़े मीडिया हाउस का रिपोर्टर उसके पास बैठा है जिसने अनिल अम्बानी के खिलाफ सारी जानकारी उपलब्ध करवाई है . पुरानी किश्तों के पब्लिक होने के बाद वीर संघवी नाम के पत्रकार किसी टी वी चैनल पर नमूदार हुए थे और उपदेश देते हुए बता रहे थे कि पत्रकार को तरह तरह के लोगों से बात करके खबरें जुटानी पड़ती हैं . और उन्होंने नीरा राडिया से खबरें ही जुटाने की कोशिश की थी. हालांकि उस बार भी साफ़ नज़र आ रहा था कि वे राडिया दलाली काण्ड के ख़ास सिपहसलार थे लेकिन नयी खेप से साफ़ पता चल रहा है कि वे न केवल राडिया के हुक्म से लिखते थे बल्कि अपना कालम छपने के पहले नीरा राडिया को फोन करके सुनाते थे और उस से मंजूरी लेते थे. इस बार के टेपों से पता चला है कि राडिया गैंग की एक और लठैत, बरखा दत्त भी जो कुछ कर रही थीं, वह पत्रकारिता तो नहीं थी. नीरा राडिया अपने किसी चेले को बताती सुनी जा रही हैं कि बरखा दत्त ने कांग्रेस से कहकर एक बयान जारी करवा दिया है . तुर्रा यह कि बरखा दत्त अभी पिछले दिनों अपने चैनल पर कहती पायी गयी थीं कि वे राडिया की सूचना का इस्तेमाल ख़बरों के लिए कर रही थीं. उनका दलाली से कोई लेना देना नहीं था .

नयी खेप में उन लोगों के नंगा होने का काम भी शुरू हो गया है जो काकटेल सर्किट में नहीं आते हैं . हिन्दी पत्रकारों के बारे में अपने किसी कारिंदे को जिस तरह से राडिया समझा रही हैं उस से कहानी की बहुत सारी बारीक परतें भी खुलना शुरू हो गयी हैं . देश के सबसे बड़े हिन्दी अखबारों का नाम जिस तरह से राडिया जी के श्रीमुख से निकल रहा है उसे सुनकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं रह गया है कि आने वाले दिनों में बड़े बड़े सूरमा राडिया के टेपों की ज़द में आ जायेगें . लेकिन दिल्ली में सक्रिय ज़्यादातर दलालों की पोल खुल जाने का एक ख़तरा भी है . इनमें से ज़्यादातर लोग मीडिया में बहुत ही ताक़तवर नाम हैं . इसलिए इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह सारे लोग लामबंद हो जाएँ और उन लोगों के खिलाफ ही मोर्चा खोल दें जो राडिया काण्ड में शामिल नहीं हैं . राडिया गैंग के लोग यह भी अभियान शुरू कर सकते है कि जो लोग राडिया के लिए काम नहीं कर रहे हैं वे बेकार के पत्रकार हैं . इसका भावार्थ यह हुआ कि जिन लोगों के नाम राडिया की लिस्ट में नहीं हैं , उनकी नौकरी ख़त्म हो सकती है . इसका एक अंदाज़ कल देखने को मिला जब देश के एक बहुत बड़े पत्रकार ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि देश का बड़े से बड़ा उद्योगपति विदेशों में जा रहा है . जिस से वे बात कर रहे थे उन्होंने कहा कि टाटा जैसा बड़ा उद्योगपति विदेशों में जा रहा है क्योंकि उसे अपने देश में धंधा करने की छूट नहीं है यह वही टाटा हैं जिनका इस्तेमाल इसी स्वनामधन्य पत्रकार ने कुछ दिन पहले राडिया टेप में फंसे पत्रकारों के बचाव के लिए किया था . बाद में संविधान का हवाला देकर टाटा जी ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि राडिया से उनकी बातचीत बहुत ही व्यक्तिगत है लिहाज़ा उसके प्रसारण को रोक दिया जाना चाहिए . सुप्रीम कोर्ट ने स्टे देने से इनकार कर दिया था . ऐसी हालत में लगता है कि जो भी ताक़तवर लोग हैं ,चाहे वे राजनीति में हों , मीडिया में हों या सरकारी अफसरतंत्र का हिस्सा हों , राडिया के गिरोह के संभावित सदस्य हो सकते हैं . यह लोग अगर एकजुट हो गए तो देश की नीति को प्रभावित कर सकते हैं . ऐसी हालत में केवल वेब मीडिया के जांबाज़ पत्रकार ही बचेगें जो पुरानी नैतिकता की लड़ाई लड़ रहे होंगें .लेकिन उनकी आर्थिक क्षमता सीमित होगी . लगता है कि अब रास्ते रोज़ ही सिमटते जा रहे हैं और अवाम को ही कुछ करना पड़ेगा जिस से दिल्ली दरबार के हर कोने में घात लगाए बैठी बे-ईमानी को घेरा जा सके..