Showing posts with label कश्मीरियत. Show all posts
Showing posts with label कश्मीरियत. Show all posts

Sunday, June 20, 2010

माँ खीर भवानी का जयकारा कश्मीरियत की एक अहम पहचान है

शेष नारायण सिंह



करीब बीस साल बाद कश्मीरी पंडितों ने माता खीर भवानी के मंदिर पर अपने श्रद्धा सुमन चढ़ाए. धार्मिक कश्मीरी पंडित के लिए माता खीर भवानी के दर पर सिर झुकाना दुनिया की सबसे बड़ी नेमत है . १९९० के बाद से यहाँ के पंडितों को घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था. तब राजनीतिक हालात ठीक नहीं थे . भारत में अस्थिरता चौतरफा मुंह बाए खडी थी.हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बाबरी मस्जिद के नाम पर पूरे देश में विभाजन करने की राजनीति के इर्द गिर्द राजनीतिक पार्टियां डोल रही थीं. देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ,कांग्रेस में नेतृत्व का संकट था. दुनिया की दूसरी बड़ी ताक़त , सोवियत रूस टूट चुका था . अमरीका पूंजीवादी विश्व व्यवस्था कायम करने के अपने सपने को पूरा करने के लिएय कुछ भी करने को तैयार था. अमरीकी पैसे से पाकिस्तानी जनरल और तानाशाह जिया उल हक ने अपने देश में भारत विरोधी आतंकवादियों की एक फौज खडी कर रखी थी और वे कश्मीर में आतंक फैला रहे थे. अमरीकी साम्राज्यवादी डिजाइन की सफलता की आहट पूरी दुनिया में महसूस की जा रही थी . भारत भी उसकी चपेट में आ चुका था . ऐसी हालत में कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों ने घाटी में कश्मीरी पंडितों को मारना पीटना शुरू किया . उस वक़्त कश्मीर में जो भी नेता थे उनमें से ज़्यादातर बहुत ही लालची और पाकिस्तान परस्त थे. हालांकि एक कश्मीरी ही गृह मंत्री की कुर्सी पर मौजूद था लेकिन हालात बेकाबू हो गए थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह बी जे पी की कृपा से प्रधान मंत्री बने थे और उसके सामने उनका सिर झुका हुआ था. दबाव में आकर उन्होंने जगमोहन को कश्मीर का राज्यपाल बना दिया . यह इतनी बड़ी राजनीतिक गलती है जिसका खामियाजा आज तक भोगा जा रहा है . जगमोहन ने अपनी आदत के हिसाब से मुसलमानों के खिलाफ काम करना शुरू कर दिया और पाकिस्तानी आतंकवादियों को कश्मीर में मुसलमानों के रक्षक के रूप में अपने आप को पेश करने का मौक़ा मिल गया . आम तौर पर अशिक्षित कश्मीरी नौजवानों को भी आतंक की सेना में भर्ती किया जाने लगा . कश्मीर में अफरा तफरी मच गयी और भारत के खिलाफ एक अजीब सा माहौल बनता गया . बाद में जगमोहन को भी हटाया गया और कश्मीर में स्थिरता लाने की राजनीतिक कोशिश भी की गयी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी .ऐसी हालत में कश्मीरी पंडितों ने अपना घर छोड़ कर बाकी देश में शरण ली . हर साल जब भी माता खीर भवानी की पूजा का समय आता था , आतंरिक रूप से विस्थापित कश्मीरी पंडित के दिलों में हूक सी उठती थी लेकिन उल्मूला की हालत ऐसी थी कि वहां जाकर कोई भी पूजा पाठ नहीं कर सकता था.देश के बाकी शहरों में शरण लेकर अपना वक़्त काट रहे कश्मीरी तड़प उठते थे और घाटी में खीर भवानी के मंदिर के आस पास रहने वाले मुसलमान अपने विस्थापित कश्मीरी पड़ोसियों की याद में मायूस हो जाया करते थे. शायद इसी लिए इस बार खीर भवानी के मंदिर पर पूरी दुनिया और भारत के कोने कोने से आये कश्मीरियों को यह लग रहा था कि यह तीर्थ यात्रा एक तरह से घर वापसी की शुरुआत थी . जब वे अपनी मातृभूमि छोड़कर बाहर जाने को मजबूर हुए थे , उस वक़्त की राजनीतिक हालात और आज की हालत में बहुत फर्क पड़ चुका है . आज पाक्सितानी आतंकवाद की कमर टूट चुकी है . कश्मीर में उनके लिए काम करने वाले नेताओं को अब कहीं से आर्थिक मदद नहीं मिल रही है . अमरीका अब भारत में पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ पोजीशन ले चुका है . मौजूदा पाकिस्तान सरकार के लिए अमरीकी इच्छा को सम्मानित करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. कश्मीर में रहने वाला मुसलमान अब आज़ादी का नारा लगाने वाले पाकिस्तान के एजेंटों की बात का विश्वान नहीं कर रहा है . मुकामी कश्मीरी मुसलमान कभी भी न तो भारत के खिलाफ था और न ही कश्मीरी पंडितों के. यह बात इस बार माता खीर भवानी मंदिर में पूजा करने आये पंडितों की सेवा में लगे मुसलमानों की मौजूदगी से लगा. मुस्लिम नौजवान तीर्थ यात्रियों के लिए कोल्ड ड्रिंक और पानी का इंतज़ाम कर रहे थे . उसमें कुछ २१ साल के थे जिन्होंने पहली बार खीर भवानी की पूजा देखी और कुछ साठ साल के थे जो अपने बिछुड़े हुए कश्मीरी पंडित पड़ोसियों से गले मिलकर अपनी यादें ताज़ा कर रहे थे. वहां राज्य के मुख्य मंत्री , उमर अब्दुल्ला भी अपनी पत्नी पायल के साथ आये और रुंधे हुए गले से ऐलान किया कि यही कश्मीरियत है .उमर अब्दुल्ला ने कहा और ठीक कहा कि कश्मीर में निहित स्वार्थ के लोगों ने कश्मीरी अवाम के बीच खाई खोदने की कोशिश की थी . आंशिक रूप से वे सफल भी हो चुके थे लेकिन अब उस गड्ढे को बंद करने का वक़्त आ चुका है . हालांकि अभी बहुत काम बाकी है लेकिन माता खीर भवानी की अर्चना से शुरू होने वाला यह अभियान दूर तलक जाएगा, खासकर अगर पूजा कर रहे कश्मीरी पंडितों की हिफाज़त में उनके मुस्लिम भाई भी खड़े रहें . दरार तो बहुत बड़ी है लेकिन अगर विदेशी आतंकवाद और साम्प्रदायिक ताक़तों को कमज़ोर करने में सरकार और आम जनता सफलता पाती है तो कश्मीर में हालात बहुत जल्द दुरुस्त हो जायेगें .