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Friday, February 4, 2011

भ्रष्टाचार के मैदान में भी बीजेपी ने कांग्रेस को रौंदा

शेष नारायण सिंह

आर एस एस-बीजेपी की राजनीति चलाने वालों के लिए भारी मुश्किल पेश आ रही है .आम तौर पर टेलिविज़न की बहसों में विपक्षी को दौंदिया लेने की कला के सहारे राजनीति चला रहे बीजेपी वाले मुश्किल में हैं . भ्रटाचार और अपराध के पैमाने पर उनका ग्राफ इतना ऊंचा है कि कांग्रेस बहुत पिछड़ गयी है . आमतौर पर अपनी पार्टी को बाकी पार्टियों से पवित्र बताने की आदत वाली संघी बिरादरी मुसीबत में है. कामनवेल्थ के घोटालों के ज़रिये कांग्रेस को घेरने की शुरुआती कोशिश अब पता नहीं कहाँ चली गयी.जब कामनवेल्थ का घोटाला सामने आया था तो बीजेपी के प्रवक्ता गण टूट पड़े थे और ऐसा हउफा बाँधा था कि लगता था कि कांग्रेस भारत की सबसे भ्रष्ट जमात है लेकिन थोड़े दिनों में ही खेल बदल गया . जब शुरुआती छापों में ही बीजेपी के बड़े नेता लपेट में आने लगे तो पता चला कि कामनवेल्थ की लूट में बीजेपी वाले भी पूरी तरह से शामिल हैं . अब बीजेपी कामनवेल्थ का नाम नहीं लेती. सी ए जी की जांच में घोटालों के राजा , तत्कालीन संचार मंत्री ए. राजा का नाम आने के बाद बीजेपी को अच्छा शिकार हाथ लगा था लेकिन यह कपिल सिब्बल टूट पड़ा . उसने पता नहीं क्या खेल शुरू किया कि अब २००१ से दूरसंचार विभाग के घोटालों की जांच होगी. वह भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यानी अब बीजेपी के नेता स्वर्गीय प्रमोद महाजन के कारनामों की भी जांच होगी. उस जांच में पता नहीं क्या क्या गुल खिल सकते हैं. इस सिब्बल का क्या भरोसा ? कहीं यह सिब्बल यह भी न कह दे कि भाई जेल में रह रहे ,हरियाणा पुलिस के आई जी, आर के शर्मा की संचार घोटाले में संलिप्तता की जांच भी करवा ली जाए . अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल खडी हो जायेगी .क्योंकि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में झाडू लगाने वाला भी जानता है कि स्व प्रमोद जी ने भ्रष्टाचार को जिन ऊंचाइयों पर पंहुचाया था, वहां तक तो कांग्रेस के अरुण नेहरू भी नहीं पंहुचा पाए थे.संचार घोटाले की जांच में लगभग तय है कि कांग्रेसी विदेश संचार निगम लिमिटेड की बिक्री की बात को ज़रूर ला देगें जिसमें १२०० करोड़ में उस सरकारी कंपनी को बेच दिया गया था जिसकी मुंबई की एक बिल्डिंग की कीमत ही १२०० करोड़ रूपयेसे बहुत ज्यादा थी. दिल्ली में उस कंपनी की इतनी संपत्ति है कि वह कई हज़ार करोड़ की होगी. यानी संचार का घोटाला भी ऐसा हथियार है कि अगर कांग्रेसी लोग उसकी जांच तबियत से करा देगें तो अपने सारे भ्रष्टाचार के बावजूद वे बहुत ही पाक-साफ़ नज़र आयेगें क्योंकि इस पिच पर भी बीजेपी के भ्रष्टाचार के सामने कांग्रेसी बिलकुल बौने साबित होगें. तुर्रा यह कि यह कांग्रेसी अभिषेक मनु सिंघवी और जयन्ती नटराजन ऐसी बातें करते हैं कि बीजेपी को परेशानी हो जाती है . जब भ्रष्टाचार की बात आती है तो यह लोग पता नहीं क्यों कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदुरप्पा का नाम लेने लगते हैं .यह माना कि येदुरप्पा जी भ्रष्ट हैं लेकिन अगर बीजेपी उनको हटा देगी तो दक्षिण में पार्टी ही ख़त्म हो जायेगी.इन कांग्रेसियों को कौन बताये कि बीजेपी आलाकमान ने येदुरप्पा को हटाने की कोशिश की थी लेकिन उन्होंने खुद कह दिया था कि हिम्मत हो तो हटाओ . उस दिन बीजेपी के एक बड़े नेता ने ईमानदारी से कह दिया था कि ईमानदारी के नाम पर पार्टी इतनी बड़ी बेवकूफी नहीं कर सकती कि कर्नाटक से बीजेपी को ही ख़त्म कर दे. बीजेपी की मुश्किल कांग्रेस ने और बढ़ा दिया जब उन्होंने येदुरप्पा के आर्थिक भ्रष्टाचार से बहुत छोटे भ्रष्टाचार में शामिल होने की आशंका के बाद अपने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को चलता कर दिया .कांग्रेस की गैरज़िम्मेदार हरकतों का बीजेपी के बड़े नेता बहुत बुरा मान रहे हैं. अब पता चला है कि कांग्रेसी उन मामलों को भी उठा रहे हैं जिनमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी लिप्त हैं . सारी दुनिया जानती है कि नरेंद्र मोदी ने २००२ में अपने राज्य में उन मुसलमानों को सबक सिखा दिया था जो हिन्दूराष्ट्र के रास्ते में रोड़ा बनना चाहते थे. उनके ऊपर तरह तरह के आरोप लग रहे हैं . मीडिया का एक बड़ा सेक्शन नरेंद्र मोदी की महानताओं से भरा पड़ा है लेकिन बीजेपी के लोग कहते हैं कि जब तक उनके ऊपर अपराध साबित न हो जाएँ तब तक वे बने रहेगें. इस बात में दम इस लिए है कि अभी बीजेपी यह इम्प्रेशन दे रही है कि जब अपराध साबित हो जाएगा तो वह मोदी को हटा देगी. . इस मुगालते के बने रहने से पार्टी की मजबूती का अहसास होता है हालांकि सच्चाई यह है कि दिल्ली में रहने वाले बीजेपी के किसी नेता की हैसियत नहीं है कि वह नरेंद्र मोदी की शान में गुस्ताखी कर सके क्योंकि पार्टी का हर नेता मोदी से कमज़ोर है
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आर एस एस -बीजेपी ने बहुत दिन तक यह प्रचार कर रखा था कि उसके लोग आतंकवादी नहीं होते .आर एस एस के सम्बन्ध वाले कई लोग आतंकवादी गतिविधियों में पकडे भी गए . आर एस एस ने कह दिया कि पकडे गए लोगों से उनका कोई मतलब नहीं है. अब आर एस एस का कोई सदस्यता अभियान तो चलता नहीं , सदस्यों की कहीं कोई लिस्ट तो होती नहीं .ज़ाहिर है किसी से भी पल्ला झाड़ लेना बहुत ही आसान होता है . ऐसा हुआ भी . प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित आदि को बाहरी आदमी बता दिया गया और साफ़ सन्देश दे दिया गया कि आर एस एस का आतंकवाद से कोई लेना देना नईं है . देवास का एक जोशी नौजवान बहुत दिक्क़त कर रहा था उसे ईश्वर ने ही उठा लिया . सब कुछ ठीक हो गया लेकिन यह नैशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी वाले भी अजीब हैं. अपने इन्द्रेश कुमार का नाम आतंकवाद के संचालकों में डाल दिया . इन्द्रेश कुमार को बाहरी आदमी नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह तो आर एस एस के आलाकमान है , राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य है और अब तक के आतंकवाद के कई कारनामों में शामिल पाए गए हैं. इन्द्रेश कुमार से जान नहीं बचने वाली है . वह आर एस एस के गले की फांस बन चुके हैं. ऊपर से मीडिया में इतना जनवादीकरण हो चुका है कि कोई भी सूचना अब छुपाई नहीं जा सकती. कुल मिलाकर बीजेपी की उस कोशिश की हवा निकल चुकी है जिसके तहत वह अपने को कांग्रेस से ज्यादा पवित्र बताती थी . सही बात यह है कि बीजेपी के भ्रष्टाचार का रिकार्ड कांग्रेस से बड़ा है

Tuesday, January 18, 2011

अब चोर कोतवालों को डांटते नहीं, उनपर हुकुम चलाते हैं

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शेष नारायण सिंह


पुराने ज़माने में जब को बड़ा चोर पकड़ा जाता था तो बेचारे कोतवाल की मुसीबत बढ़ जाती थी . दबंग चोर अक्सर कोतवाल को डांटते रहते थे .लेकिन उस दौर में ऐसे चोर होते ही बहुत कम थे जो कोतवाल को डांट सकें .इसलिए जब भी कोतवाल चोर को डांटता था तो खबर बन जाती थी . अब ऐसा नहीं होता . अब ज़्यादातर चोर कोतवाल को डांटते ही रहते हैं . यह रिवाज़ बिहार से शुरू हुआ जहां मुहम्मद शहाबुद्दीन नाम का खूंखार बदमाश जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र नेता को क़त्ल करके मौज करने लगा तो हल्ला गुल्ला हुआ . उस वक़्त बिहार में सामाजिक परिवर्तन के मसीहा लालू प्रसाद जी के रिश्तेदारों की हुकूमत थी. मुख्यमंत्री का अभिनय लालू जी खुद कर रहे थे . बाद में यह रोल भी उन्होंने को दे दिया था .नी पत्नी को मुख्य मंत्री पद पर बिठाकर जेल में छुट्टियां बिताने चले गए थे जहां से उन्होंने कोतवाल को डांटने की कला को नियम के सांचे में बाँधने का काम किया था. इन्हीं लालू जी के राज़ में पब्लिक ने उन्हें परेशान किया और शहाबुद्दीन भी जेल में कुछ वक़्त के लिए चले गए थे . उसी दौर में उस आचार संहिता का विकास हुआ था जिसमें बताया गया है कि जब चोर कोतवाल को डांटे तो कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए . इसके पहले भी कांग्रेस के राज में जेल में जाकर आराम करने की परम्परा तो बन चुकी थी, कुछ कम असर वाले लोग अस्पताल वगैरह में भर्ती होकर टाइम पास करते थे लेकिन जेल में ही रहकर हर भले आदमी को गलत साबित करने की कला शहाबुद्दीन के युग में ही शुरू हुई. अब इस खेल में और भी अधिक विकास हो गया है . अब ज़्यादातर दबंग चोर नेतागीरी का काम करने लगे हैं . अब उनके खिलाफ अगर कोई केस बनाने लगता है वे हर उस आदमी को डांटने लगते हैं जो उनके खिलाफ होता है . इस बिरादरी में आजकल सुरेश कालमाडी का नाम सबसे ऊपर है . उन्होंने कामनवेल्थ खेलों के आयोजन का ज़िम्मा मिलने के बाद मुल्क को तबियत से लूटा . उनके साथ कांग्रेस और बीजेपी के बहुत सारे नेता भी लगे हुए थे. लेकिन जैसे ही पकडे गए उन्होंने सबको डांटना शुरू कर दिया . बीजेपी के कुछ नेता ज्यादा बोल रहे तह तो जांच एजेंसियों के कुछ अफसरों को छापा मारने के लिए बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य के यहाँ अपने कांग्रेसी पार्टनरों से कह कर भिजवा दिया . बीजेपी वाले सन्न हो गए. उसके बाद चोरों की बिरादरी के चक्रवर्ती सम्राट ,ए राजा का नाम भी जोर शोर से उछला . लाखों करोड़ रूपये की बेईमानी से विभूषित राजा साहेब ने पहले सब को खुद डांटा ,बाद में अपने मालिक ,एम करूणानिधि से डंटवाया . जब फिर भी बात नहीं बनी तो अपने कांग्रेसी आकाओं की मार्फ़त जांच का दायरा इतना बड़ा करवा दिया कि उनके ऊपर आरोप लगाने वाले बीजेपी के भी नेता उसी लपेट में आ गए. अब २ जी स्पेक्ट्रम की चोरी की जांच भी मिल बाँटकर खाने वाली रेंज में आ चुकी है . उम्मीद है कि इसका भी वही हाल होगा जो जैन हवाला काण्ड की जांच का हुआ था जिसमें लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी पार्टियों के नेता अभियुक्त थे . जांच हुई लेकिन पता नहीं चला. आजकल उस मामले को फिर से उभारा जा रहा है क्योंकि लाल कृष्ण आडवाणी,शरद यादव और विपक्ष कुछ और नेता जैन हवाला काण्ड का ज़िक्र होते ही दुबक जाते हैं . जैसे बोफोर्स का नाम लेते ही कांग्रेसी घबडा जाते हैं . सरकार को उम्मीद है कि जैन हवाला काण्ड का नाम आगे कर देने के बाद बीजेपी वालों का भी वही हाल होगा जो बोफोर्स का नाम लेने के बाद कांग्रेसियों का होता है. इस तरह से हम देखते हैं अब चोरों ने कोतवाल को डांटना बंद करके कोतवाल को हुक्म देने का काम शुरू कर दिया है .

इस खेल का सबसे ताज़ा उदाहरण आर एस एस के टाप नेता इन्द्रेश कुमार के सन्दर्भ में है . उनपर हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, गरीब नवाज़ की अजमेर शरीफ़ स्थित दरगाह में तीन साल पहले हुए धमाकों की घटना की साज़िश में शामिल होने का आरोप है . अब पता चला है कि उनेक कुछ चाहने वालों ने उन्हीं ख्वाजा साहेब की मुक़द्दस दरगाह में उनकी सलामती के लिए दुआ माँगी है . इन्द्रेश कुमार के लिए दुआ का आयोजन छत्तीस गढ़ में रहने वाले एक मुस्लिम नेता की अगुवाई में हुआ डॉ सलीम राज नाम के इन महानुभाव का कहना है कि इन्द्रेश बेगुनाह हैं.इन्द्रेश के जेबी संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक मोहम्मद अफ़जाल कहते हैं कि उन्होंने डॉ सलीम के साथ एक समूह ने दरगाह में दुआ की और इन्द्रेश की सलामती के लिए चादर चढ़ाई.दरगाह में ख़ादिमों की संस्था अंजुमन के पूर्व सचिव सरवर चिश्ती कहते हैं कि ये शर्मनाक है, ''मुझे ये सुनकर बेहद दुख हुआ कि ऐसी कोई दुआ इस अमन के मु़द्दस मुक़ाम पर की गई. ऐसे लोग इंसानियत के ग़द्दार है,ये तो मीर जाफ़र जैसी हरकत है. क्या हक़ है ऐसे लोगो को दुआ करने का.''यानी जिस दरगाह को तबाह करने की कोशिश में इन्द्रेश के शामिल होने का आरोप है , उन्हीं ख्वाजा गरीब नवाज़ की शरण में जाकर दुआ मांगने का क्या मातलब है . लेकिन लगता है कि इन्द्रेश जी और भी कुछ बड़े काम करने वालों हैं . नामी अखबार इन्डियन एक्सप्रेस में छपे उनके आज के इंटर व्यू को देखें तो समझ में आ जाएगा कि वे हर उस काम के लिए अपने अलावा बाकी पूरी दुनिया को ज़िम्मेदार मानाने का आग्रह कर रहे हैं जिसमें वे गुनाहगार हैं , मसलन , समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों के लिए वे अब चाहते हैं कि उसके लिए रक्षा , विदेश और गृह विभाग के मंत्रियों की जांच हो . साथ ही राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह की भी जांच हो . यानी जो भी माननीय इन्द्रेश जी के ऊपर आरोप लगाएगा उसे वे हडका लेगें और डांटने लगेंगें .ख्वाजा गरीब नवाज़ से उन्होंने पता नहीं क्यों दुआ मांगने का फैसला किया .

Tuesday, January 11, 2011

ज़ुल्मो सितम के कोहे गिरां, रूई की तरह उड़ जायेगें

शेष नारायण सिंह



कांग्रेस के महामंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीति रंग लाने लगी है . अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार में डूबे हुए सूरमाओं के ऊपर से मीडिया का ध्यान हटाने का जो प्रोजेक्ट उन्होंने शुरू किया था , वह अब चमकना शुरू हो गया है . जिन लोगों ने उनकी पार्टी के बड़े नेताओं को भ्रष्ट साबित करने का मंसूबा बनाया था,उनके हौसले पस्त हैं . नागपुर में विराजने वाले उन लोगों के मालिकों के ख़ास लोगों को ही दिग्विजय सिंह के खेल ने अपनी जान बचाने के लिए मजबूर कर दिया है. आर एस एस के बड़े पदों पर विराजमान लोग इस क़दर दहशत में हैं कि इनके सबसे बड़े अधिकारी ने सूरत की एक सभा में सफाई दी कि आर एस एस के जो लोग भी गलत काम करते हैं ,उन्हें संगठन से निकाल दिया जाता है . यानी वे यह कहना चाह रहे हैं कि असीमानंद और इन्द्रेश कुमार अब उनके साथ नहीं हैं . उनको भी मालूम है कि असीमानंद से तो शायद पिंड छूट भी जाए लेकिन इन्द्रेश कुमार से जान नहीं बचने वाली है क्योंकि वह आज तक उनके संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय पदाधिकारी है . अभी कुछ दिन पहले तक बीजेपी के लोग इन्द्रेश कुमार के पक्ष में बयान देते पाए जा चुके हैं . शुरू में तो आर एस एस ने दिग्विजय सिंह को यह कहकर धमकाने की कोशिश की थी कि वे हिन्दुओं के खिलाफ हैं इसलिए आतंकवाद को भगवा रंग दे रहे हैं . लेकिन दिग्विजय सिंह ने तुरंत जवाबी हमला बोल दिया और ऐलान कर दिया कि भगवा रंग तो बहुत ही पवित्र रंग है , वास्तव में उनका विरोध संघी आतंकवाद से है . लगता है कि भ्रष्टाचार के कांग्रेसी खेल से फिलहाल मीडिया का ध्यान बंटाने में दिग्विजय सिंह कामयाब हो गए हैं क्योंकि आतंकवाद की खबरें अगर बाज़ार में हो तो भ्रष्टाचार का नंबर दूसरे मुकाम पर अपने आप पंहुच जाता है .कांग्रेस के पक्ष में गुवाहाटी में संपन्न बीजेपी के राष्ट्रीय सम्मलेन में भी काम हो गया . सोनिया गाँधी को कटघरे में खड़ा करने की अपनी उतावली में बीजेपी आलाकमान ने सारे तीर सोनिया गाँधी के नाम कर दिए .नतीजा यह होगा कि अब बीजेपी के ज़्यादातर प्रवक्ता कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ ही बयान देते रहेगें और मीडिया में आर एस एस के प्रभाव के मद्दे नज़र इस बात में दो राय नहीं कि बीजेपी प्रवक्ताओं का बयान पहले पन्ने पर ही छपेगा.यही गलती चौधरी चरण सिंह ने १९७८ में की थी जब अपनी मामूली सोच के तहत इंदिरा गाँधी को पहले पन्ने की खबर बना दी थी . उसके बाद इंदिरा गाँधी कभी भी पहले पन्ने से नहीं हटीं और जनता पार्टी टूट गयी. दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर वही माहौल बना दिया है कि बीजेपी वाले अब सोनिया गाँधी को प्रचारित करते रहेगें और आर एस एस के लोग अपने आपको भला आदमी साबित करने में सारी ताक़त लगाते रहेगें. आर एस एस और उस से जुड़े हुए पत्रकार और बुद्धिजीवी आजकल यह बताने में लगे हुए हैं कि असीमानंद का बयान अदालत में नहीं टिकेगा . यह बात सभी जानते हैं . हम तो यह भी जानते हैं कि असीमानंद की हड्डियों का चूरमा बनाकर ही पुलिस ने बयान लिया है और वह बयान किसी भी हालत में बचाव पक्ष के वकीलों की बहस के सामने नहीं टिकेगा लेकिन उनके बयान के आधार पर जो जांच हो रही है वह आर एस एस और संघी आतंकवाद के पोषकों को बहुत नुकसान पंहुचाएगा . असीमानंद ने बताया है कि इन्द्रेश कुमार को कर्नल पुरोहित पाकिस्तानी जासूस मानता था . अगर यह साबित हो गया तो आर एस एस का हिन्दुओं का प्रतिनधि बनने का सपना हमेशा के लिए दफ़न हो जाएगा. देश को पूरी तरह से याद है कि अपने आपको पूरी दुनिया के सामने स्वीकार्य बनाने के लिए बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने किस तरह से पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का गुणगान किया था . उसके बाद पूरे देश में उनके खिलाफ माहौल बना. यहाँ तक कि उनकी अपनी पार्टी में भारी मतभेद पैदा हो गया था . अगर आर एस एस में टाप पोजीशन पर बैठा हुआ कोई पदाधिकारी पाकिस्तानी जासूस साबित हो गया तो उस संगठन के लिए बहुत मुश्किल होगा . जानकार बाते हैं कि यह झटका गाँधी जी की हत्या में अभियुक्त होने से भी ज्यादा नुकसानदेह होगा . दुनिया जानती है कि १९४८ में गांधी जी की हत्या के आरोप में आर एस एस के मुखिया गोलवलकर के गिरफ्तार होने के बाद उनके संगठन को दुबारा सम्भलने के लिए १९७५ तक जयप्रकाश नारायण के आशीर्वाद का इंतज़ार करना पड़ा था.इस सारे मामले में एक और दिलचस्प बात सामने आ रही है . आर एस एस के प्रवक्ता ने असीमानंद के इकबाले-जुर्म वाले बयान को गलत नहीं बताया . उनको केवल यह एतराज़ है कि संघ को बदनाम करने के लिए सरकारी जांच एजेंसी ने बयान को लीक किया . उन्हें अपने आदमी के आतंकवादी होने की बात से ज्यादा नाराज़गी इस बात पर है कि दुनिया को कैसे मालूम हो गया कि उनके संगठन के बड़े लोग आतंकवाद में लिप्त हैं . यह बयान उसी तर्ज पर है जिसके अनुसार रतन टाटा ने आरोप लगाया था कि राडिया और उनके बीच की बातचीत को सरकार ने टेप किया वह तो ठीक है लेकिन उसे पब्लिक क्यों किया गया .अभी तक के संकेतों से लगता है कि आर एस एस की मुसीबतें अभी शुरू ही हुई हैं . सूरत में उनके मुखिया , मोहन भागवत ने आर एस एस का गणवेश पहनकर ऐलान किया कि आर एस एस के जो लोग आतंकवादी धमाकों में पकडे गए हैं, उनमें से कुछ ने अपने आप संगठन छोड़ दिया था और कुछ लोगों को आर एस एस ने ही अलग कर दिया था. इसका भावार्थ यह हुआ कि संघ का जो भी बंदा आतंकवादी घटनाओं में पकड़ा जाये़या उसे मोहन भागवत और उनके लोग दूध की मक्खी की तरह निकाल कार फेंक देगें. ज़ाहिर है कि इसके बाद उनमें से कुछ लोग सरकारी गवाह बनकर आर एस एस की पोल खोलने का काम करेगें . जो भी हो अब आने वाले वक़्त में आर एस एस के और भी बहुत सारे कारनामों से पर्दा उठने वाला है .

Sunday, October 24, 2010

अजमेर धमाकों के लिए आर एस एस का बड़ा नेता जिम्मेदार ,चार्जशीट दाखिल

शेष नारायण सिंह

आर एस एस के एक बड़े नेता पर अजमेर के धमाकों में शामिल होने की साज़िश में मुक़दमा चलेगा. हालांकि इस बात में कीई को शक़ नहीं था कि आर एस एस हिंसा को राजनीतिक का हथियार बनाता रहता है लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि उनके बड़े नेता कभी भी सीधे तौर पर किसी भी हमले की साज़िश में शामिल नहीं होते. पूरे देश में आर एस एस के अधीन काम करने वाले करीब साढ़े तीन हज़ार ऐसे संगठन हैं जो सक्रिय रूप से संघी एजेंडे को लागू करने के लिए काम करते हैं . आम तौर जिन कामों में आपराधिक मुक़दमा चल सकता हो , उसमें आर एस एस के बदेनेता खुद शामिल नहीं होते. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि केंद्र में सरकार बना लेने के बाद आर एस एस वाले यह संकोच भी भूल गए हैं . गुजरात का नरसंहार, मालेगांव बम विस्फोट , हैदराबाद के धमाके कुछ ऐसे काम हैं जिनमें आर एस एस के वरिष्ठ नेता खुद ही शामिल पाए गए हैं .मालेगाँव की मस्जिद में बम विस्फोट करने की अपराधी ,साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और उनके गिरोह के बाकी आतंकवादियों के ऊपर महाराष्ट्र में संगठित अपराधों को कंट्रोल करने वाले कानून, मकोका के तहत मुक़दमा चलाया जायेगा. मालेगांव के धमाकों के गिरोह को उस वक़्त के महाराष्ट्र के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के प्रमुख, शहीद हेमंत करकरे ने पकड़ा था . जब करकरे ने हिंदुत्ववादी संगठनों के आंतंकवादी गिरोहों को पकड़ना शुरू किया तो आर एस एस और उस से सम्बद्ध लोगों में हडकंप मच गया था. गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी घबडा गए थे और हेमंत करकरे को हटाने की माग को लेकर बहुत सक्रिय हो गए थे. बाकी देश में भी संघी लोग खासे परेशान हो गए थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था और हेमंत करकरे को मुंबई हमलों के दौरान उनके दुश्मनों ने मार डाला. शहीद हेमंत करकरे की मौत के बाद हिन्दुत्ववादी आतंकवादियों को थोडा सांस लेने का मौक़ा मिल गया वरना स्वर्गीय करकरे के काम की रफ़्तार को देख कर तो लगता था कि बहुत जल्दी वे हिन्दुत्ववादी संगठनों के आतंक को काबू में कर लेगें.

साध्वी प्रज्ञा और उनके साथियों की गिरफ्तारी भारतीय न्याय प्रक्रिया के इतिहास में एक संगमील माना जाएगा . प्रज्ञा ठाकुर और ले कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित की मालेगांव धमाकों के मामले में गिरफ्तारी ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के मामले में एक अहम भूमिका निभाई थी. मुसलमानों के खिलाफ चल रही संघी ब्रिगेड की मुहिम के तहत संघी भाई कहते फिरते थे कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान होते हैं . जब इन संघी आतंकवादियों को पकड़ा गया तो संघ का मुसलमानों के खिलाफ जारी प्रचार रुक गया था. और एल के आडवाणी सहित सभी संघी जीव बैकफुट पर आ गए थे . दर असल संघी आतंकवाद से भी बड़े एक नए किस्म को भी शहीद हेमंत करकरे ने देश के सामने ला कर खड़ा कर दिया था . मालेगांव धमाकों के अभियुक्तों में ले कर्नल श्रीकांत पुरोहित के शामिल होने के बाद यह पता लग गया था कि संघी आतंकवाद ने मिलटरी इंटेलिजेंस को भी नहीं बख्शा है और अब आतंकवाद ने सेना में भी घुसपैठ कर ली है .. अब बम्बई हाई कोर्ट के आदेश के बाद उन सभी ग्यारह आतंकवादियों पर मकोका कोर्ट में मुक़दमा चलाया जाएगा जिन्हें स्व हेमंत करकरे ने पकड़ा था. इन ग्यारह आतंकवादियों में ए बी वी पी का एक नेता, अभिनव भारत का एक नेता, और सेना का एक अवकाश प्राप्त मेजर शामिल हैं . कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर तो मुख्य अभियुक्त हैं ही.

गिरफ्तार होने के बाद मीडिया में मौजूद अपने साथियों की मदद से इस गिरोह के मालिकों ने बहुत हल्ला गुल्ला मचाया लेकिन केस इन मज़बूत था कि किसी की एक नहीं चली. शुरू में तो यह लगा था कि यह अति उत्साही टाइप कुछ लोगों की साज़िश भर है लेकिन बाद में जब अजमेर के धमाकों में भी आर एस एस के फुल टाइम कार्यकर्ता और बड़े नेता ,इन्द्रेश कुमार पकडे गए तो साफ़ हो गया कि आर एस एस ने बाकायदा आतंकवाद के लिए एक विभाग बना रखा है. अब बहुत सारे आतंकी मामलों में आर एस और उस से जुड़े संगठनों के शामिल होने की बात के उजागर हो जाने के बाद आर एस एस के नेता लोग घबडाए हुए हैं . अब उन्होंने अपने लोगों को सख्त हिदायत दे दी है कि आतंकवादी गतिविधियों से दूर रहें .यह सख्ती पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कुछ ज़िम्मेदार संघ प्रचारकों से सी बी आई की पूछताछ के बाद अपनाई गयी है. कानपुर में अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय से दिनों सी बी आई ने कड़ाई से पूछ ताछ की थी. अशोक बेरी आर एस एस के क्षेत्रीय प्रचारक हैं और आधे उत्तर प्रदेश के इंचार्ज हैं . वे आर एस एस की केंदीय कमेटी के भी सदस्य हैं .अशोक वार्ष्णेय उनसे भी ऊंचे पद पर हैं . वे कानपुर में रहते हैं और प्रांत प्रचारक हैं .. उनके ठिकाने पर कुछ अरसा पहले एक भयानक धमाका हुआ था. बाद में पता चला कि उस धमाके में कुछ लोग घायल भी हुये थे. घायल होने वाले लोग बम बना रहे थे. सी बी आई के सूत्र बताते हैं कि उनके पास इन लोगों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के पक्के सबूत हैं और हैदराबाद की मक्का मस्जिद , अजमेर और मालेगांव में आतंकवादी धमाके करने में जिस गिरोह का हाथ था, उस से उत्तर प्रदेश के इन दोनों ही प्रचारकों के संबंधों की पुष्टि हो चुकी हैं . इसके पहले आर एस एस ने तय किया था कि अगर अपना कोई कार्यकर्ता आतंकवादी काम करते पकड़ा गया तो उस से पल्ला झाड़ लेगें . इसी योजना के तहत अजमेर में २००७ में हुए धमाके के लिए जब देवेन्द्र गुप्ता और लोकेश शर्मा पकडे गए थे तो संघ ने ऐलान कर दिया था कि उन लोगों की आतंकवादी गतिविधियों से आर एस एस को कोई लेना देना नहीं है . वह काम उन्होंने अपनी निजी हैसियत में किया था और नागपुर वालों ने उनके खिलाफ चल रही जांच में पुलिस को सहयोग देने का निर्णय ले लिया था. लेकिन अब वह संभव नहीं है . क्योंकि अशोक बेरी और अशोक वार्ष्णेय कोई मामूली कार्यकर्ता नहीं है , वे संगठन के आलाकमान के सदस्य हैं . वे उस कमेटी की बैठकों में शामिल होते हैं जो संगठन की नीति निर्धारित करती है . उनसे पल्ला झाड़ना संभव नहीं है . इसके कारण हैं . वह यह कि अगर इनके साथ आर एस एस की लीडरशिप धोखा करेगी तो कहीं यह लोग बाकी लोगों की पोल-पट्टी भी न खोल दें . इन्द्रेश कुमार से पल्ला झाड़ना आर एस एस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि वे उनकी संगठन के सर्वोच्च पदाधिकारियों में से एक हैं . उनके ऊपर लगी चार्जशीट से यह साबित हो गया है कि आर एस एस की टाप लीडरशिप आतंकवाद की राजनीति पर ही चलती है