Saturday, March 23, 2013

कर्नाटक से उत्तर प्रदेश तक, राजनीति की नज़र २०१४ पर है .



शेष नारायण सिंह

कर्नाटक में हुए शहरी निकायों के चुनावों के बाद देश की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है . वहाँ कांग्रेस ने जीत दर्ज की है और  विधानसभा चुनावों के पूर्व एक सन्देश देने में सफलता हासिल कर ली है कि वह कर्नाटक में सबसे मज़बूत राजनीतिक शक्ति है .कई राज्यों में विधानसभा चुनावों के लगभग तुरंत बाद  ही  लोकसभा के चुनाव होने हैं जिनके ऊपर बहुत सारे  राजनेताओं के सपने निर्भर कर रहे हैं . प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए बीजेपी में उठापटक चल रही है . कांग्रेस में  भी दरबारी संस्कृति से आये लोग राहुल गांधी का नाम लेकर अपने नंबर बढवाने के लिए सक्रिय थे लेकिन एक राज्य के मुख्यमंत्री को फटकार लगाकर राहुल गांधी ने इन चर्चाओं पर फिलहाल विराम लगा दिया है .लेकिन इस बात में दो राय नहीं है कि हर राजनीतिक पार्टी अब  लोकसभा २०१४ के चुनाव की तैयारी कर रही है .सत्ता की मुख्य दावेदार यू पी ए और एन डी ए है . यू पी ए का २००४ से ही राज है . उसके पहले एन डी ए वालों ने भी करीब छः साल राज किया था. जब २००४ में चुनाव हुआ तो उस वक़्त की सरकार ने देश में मीडिया के ज़रिये ऐसा माहौल बनाया कि जनता इण्डिया शाइनिंग के उनके नारे पर भरोसा कर रही है और सत्ता उनको ही दे देगी . लेकिन ऐसा नहीं हुआ. २४ पार्टियों के गठबंधन से बना एन डी ए टूट गया . अब तो एन डी ए में मुख्य पार्टी  बीजेपी है और पूरी मजबूती के साथ  उसको शिवसेना और अकाली दल का समर्थन मिल रहा है . एन  डी ऐ के एक अन्य समर्थक नीतीश कुमार की पार्टी है , लेकिन नरेंद्र मोदी  को प्रधान मंत्री पद का दावेदार बनाने की कोशिश करके बीजेपी ने नीतीश कुमार को निराश किया है और अब लगभग पक्का  माना जा रहा  है कि नीतीश कुमार २०१४ के चुनावों के पहले या बाद में बीजेपी के खिलाफ खड़े होंगें . इसी हफ्ते नई दिल्ली में नीतीश कुमार की रैली होने वाली है और उसमें बिहार के अधिकार की बात की जायेगी. अब तक केन्द्र सरकार से जो भी नीतीश कुमार की अपेक्षा रही है ,उसे मौजूदा सरकार पूरी कर रही है. जानकार बताते हैं कि अब नीतीश कुमार बीजेपी से दूरी बनाने के लिए कमर कस चुके हैं . अपने किसी नेता को अगली बार प्रधानमंत्री बनाने के अपने अभियान में बीजेपी को नीतीश कुमार पर भरोसा नहीं करना चाहिए .अभी चार महीने पहले तक बीजेपी के बड़े नेता कहते पाए जाते थे कि आठ राज्यो में उनकी  सरकारें थीं ,  लेकिन अब चार राज्यों में ही हैं . उन चार में एक कर्नाटक भी है . यानी अब बीजेपी की मजबूती का दावा केवल मध्य प्रदेश , छत्तीस गढ़ और गुजरात में है . अगर यह  मान भी लिया जाये कि इन तीनों राज्यों में बीजेपी  को सभी सीटें मिल जायेगीं तो क्या बीजेपी के किसी नेता को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिल जाएगा. सबको मालूम है कि बीजेपी का वही नेता प्रधान मंत्री बन सकता है जो अन्य पार्टियों को स्वीकार्य हो . अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बीजेपी ने ऐसी पार्टियों का समर्थन ले लिया था जो मूल रूप से बीजेपी की राजनीति की विरोधी मानी जाती हैं. क्या बीजेपी का कोई नेता आज अटल जी की तरह राजनीतिक मतभेदों की बाधा पार करने की क्षमता रखता है? बीजेपी की सरकार बनेगी ऐसा सोचना एक काल्पनिक स्थिति है क्योंकि देश की राजनीति का मौजूदा माहौल ऐसा  नहीं नज़र आता कि बीजेपी को सरकार बनाने का दावा करने भर को बहुमत मिल जाएगा. पिछले एक  वर्ष में बीजेपी ने कई राज्यों में अपने को  कमज़ोर साबित किया है . गुजरात के अलावा उसको कहीं भी एक ताक़तवर पार्टी के रूप में  नहीं माना जा रहा है .

जहां तक कांग्रेस का सवाल है वह आश्वस्त है कि देश में बहुत सारी पार्टियां ऐसी हैं जो बीजेपी और आर एस एस को सत्ता से दूर रखने के लिए उसे समर्थन दे सकती हैं . कांग्रेस इस मामले में भाग्यशाली भी है कि बीजेपी ने लोक सभा में उसकी गलतियों को उजागर करने में वह कुशलता नहीं दिखाई जो १९७१ के बाद के विपक्ष ने कांग्रेस को बेनकाब करने के लिए दिखाई थी. अब तो बीजेपी वाले संसद में बहस बहुत कम करते हैं अक्सर तो हल्ला गुल्ला करके ही काम चला  लेते हैं . नतीजा यह हो रहा है कि कांग्रेस की गलतियाँ पब्लिक डोमेन में  नहीं आ रही हैं. सी ए जी की रिपोर्टों के सहारे कांग्रेस की सरकार को भ्रष्ट साबित करने की कोशिश चल रही है .चारों तरफ फ़ैली हुई महंगाई पर बीजेपी ने कांग्रेस पर कोई कारगर हमला नहीं किया है . ऐसा शायद इसलिए कांग्रेस की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों का विरोध बीजेपी नहीं करना चाहती क्योंकि आर्थिक उदारीकरण की डॉ मनमोहन सिंह की अर्थनीति को बीजेपी का पूरा समर्थन मिलता है . राजनीति का मामूली जानकार भी बता देगा कि अपने देश में मंहगाई का कारण आर्थिक उदारीकरण और उस से पैदा हुआ भ्रष्टाचार ही है . दोनों  ही बड़ी पार्टियां आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण की समर्थक हैं . इसलिए नीति के आधार पर बीजेपी के लिए कांग्रेस का विरोध कर पाना संभव नहीं है. हाँ  यू पी ए के कुछ मंत्रियों और सोनिया गांधी के परिवार के खिलाफ अभियान चलाकर बीजेपी जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है . वक़्त ही बताएगा कि उसे कितनी सफलता मिलती है .

 कांग्रेस और बीजेपी के अलावा भी कई ऐसी पार्टियां हैं जो अगला प्रधानमंत्री बनवाने में मदद करेगीं. पश्चिम बंगाल की दोनों ही पार्टियां . लेफ्ट फ्रंट और तृणमूल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं . आन्ध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी एक राजनीतिक ताक़त बन कर उभर रहे हैं . उन पर भी नज़र रहेगी . बिहार से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की सफलता पर भी सबकी नज़र रहेगी . उत्तर प्रदेश की अस्सी सीटों का भी ख़ासा योगदान रहेगा. मौजूदा सरकार भी उत्तर प्रदेश की तीन  पार्टियों के सहयोग से चल रही है . बहुजन समाज पार्टी , समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के एम पी , डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने में मदद कर रहे हैं .आने वाले समय में भी उतर प्रदेश के सांसदों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रहने वाली है .विधान सभा में स्पष्ट बहुमत लेने के बाद समाजवादी पार्टी के हौसले बहुत ही बुलंद हैं . अखिलेश सरकार के एक साल पूरे हो रहे हैं .  पिछले एक साल में समाजवादी पार्टी के अधिकतर नेताओं ने दावा किया है कि राज्य से ५० से ज़्यादा सीटें जीतकर वे मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनवाएगें . इस महत्वपूर्ण राजनीतिक पहेली को समझने के लिए संसद भवन के उनके कमरे में  आज मुलायम सिंह यादव से मुलाक़ात की गयी . मुलायम सिंह यादव का कहना है २०१४ का चुनाव बहुत ही गंभीरता से लड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि संसद का बजट सत्र खत्म होने के बाद वे निकल पड़ेगें और पूरे राज्य में  जनसंपर्क शुरू कर देगें . जब पूछा गया कि क्या उसी तरह का जनसंपर्क करने की योजना  है जो १९८६-८७ में थी तो उन्होंने बताया कि वह तो तब किया था जब एक बार भी मुख्यमंत्री नहीं बना था.राज्य में हर जिले में लोग उन्हें जानते तक नहीं थे . लेकिन उस यात्रा के बाद तो हर जिले में कई चक्कर लगाया , हर कस्बे तक पंहुचा और हर जिले में दो दो ,तीन तीन बार सोये भी . मुलायम सिंह ने बताया कि अपने बेटे अखिलेश यादव को दो साल पहले वहीं प्रेरणा दी थी और उन्होंने भी राज्य का  खूब दौरा किया और नतीजा सामने है . अपने भावी राजनीतिक कार्यक्रम के बारे में उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में १८ मंडल हैं . वे संसद का सत्र खत्म होते ही हर मंडल में पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलायेगें और उनसे व्यक्तिगत संपर्क करेगें . स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र ने उनको आगाह किया था कि अब हर कस्बे में जाने की ज़रूरत नहीं है . उनकी सलाह थी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनको वहीं जाना चाहिए जहां समाजवादी पार्टी की राज्य इकाई वाले जाने को कहें . इसलिए वे हर मंडल में बैठकें करने के बाद राज्य पार्टी के सुझाव पर ही काम करेगें . जब उनको याद दिलाया गया कि उनकी पार्टी की सरकार को आये एक साल हो गया है लेकिन सरकार ने कोई ऐसा कारनामा नहीं किया है जिसको उदाहरण के रूप में पेश किया जा सके. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है . राज्य सरकार ने अपने चुनाव घोषणापत्र में लिखी गयी हर बात को पूरा करने की योजना पर पहले दिन से काम करना शुरू कर दिया था. आज ही अखबारों में छपे हुए लैपटाप वितरण की तस्वीरों के हवाले से उन्होने बताया कि अभी सरकार के एक साल पूरे नहीं हुए हैं लेकिन सरकार ने इतने बड़े प्रोजेक्ट में सफलता हासिल कर ली है . देश की सबसे अच्छी कम्यूटर कंपनी से लैपटाप खरीद जा रहा है लेकिन थोक में खरीदे जाने के कारण उनका दाम आधा करवा लिया गया  है . बेरोजगारी भत्ता फिर से शुरू कर दिया गया है . हाई स्कूल के बाद से ही  मुस्लिम लड़कियों को आर्थिक सहायता दी जा रही है जबकि बाकी लड़कियों को इंटरमीडियेट के बाद  . उन्होंने कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि मुसलमानों  की हालत अनुसूचित जातियों से भी खराब है इसलिए उनकी  पार्टी की सरकार मुसलमानों के प्रति खास जिम्मेदारी का अनुभव करती है .उन्होंने  बताया कि राज्य में सरकारी ट्यूबवेल और नहरों का पानी किसानो को मुफ्त दिया जा रहा  है.राज्य सरकार ने आदेश कर दिया है कि किसी भी किसान की ज़मीन नीलाम नहीं की जायेगी . होता यह रहा है कि भूमि विकास बैंक से क़र्ज़ लेने वाले किसान जब भुगतान नहीं कर पाते  थे तो उनकी ज़मीन नीलाम कर दी जाती थी . अब सरकारी आदेश है कि नीलामी नहीं होगी. उसके ऊपर से ५० हज़ार रूपये तक के किसानों के क़र्ज़ माफ कर दिए गए हैं .उन्होंने बताया कि कैंसर , दिमाग और हार्ट की गरीब आदमियों की बीमारियों का  इलाज़ राज्य सरकार करवा रही है .उन्होंने  राज्य स्तर के अपने पार्टी के नेताओं खासी नाराजगी जताई और कहा कि जो विधायक बन गए हैं वे अब अपने क्षेत्रों में नहीं जा रहे हैं .जो लोग मंत्री बन गए हैं .वे भी तो विधायक ही  हैं लेकिन सब लोग लखनऊ में जमे रहते हैं और जनता से संपर्क नहीं रख रहे हैं . इस कारण से पार्टी का बहुत नुक्सान हो रहा है .  पार्टी के विधायकों को अपने क्षेत्र में ज़्यादा सक्रिय रहना चाहिए . वे इस बात से भी बहुत नाराज़ हैं कि पार्टी के कुछ नेता दिल्ली के चक्कर काटते रहते हैं . उन्होने उन संसद सदस्यों के प्रति भी नाराजगी जताई जो कार्यकर्ताओं को दिल्ली बुला लेते हैं और उनको संसद के अंदर आने  का पास बनवा देते हैं . नतीजा यह होता है कि वे लोग संसद भवन के मुलायम सिंह यादव के कार्यालय के  बाहर आकर खड़े हो जाते हैं . यह ठीक नहीं है. वे चाहते हैं  कि पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें लखनऊ में ही मिलें .कानून व्यवस्था के बारे में बात करने पर उन्होने कहा कि  उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था  की हालत दिल्ली से ठीक है . उत्तर प्रदेश की आबादी दिल्ली से दस गुना ज्यादा है जबकि अपराध दिल्ली में उत्तर प्रदेश से दस गुना ज़्यादा है . प्रतापगढ़ के  पुलिस अफसर  हत्याकांड के बारे में कोई बात करने से उन्होने यह कहकर इनकार कर दिया कि मामले की सी बी आई जाँच हो रही है ,उनका कुछ भी कहना ठीक नहीं है .लेकिन पूरी बातचीत में मुलायम सिंह यादव इस बात से तो आश्वस्त दिखे कि उनकी पार्टी अच्छा काम कर रही  है लेकिन उनको अपनी पार्टी के नेताओं में अनुशासन लाना बहुत ज़रूरी है .अब यह देखना दिलचस्प होगा कि  मुलायम सिंह यादव की यह इच्छा कितनी पूरी होती है क्योंकि राज्य में सत्ता के जितने केंद्र बन गए हैं उनके बीच सुशासन की उम्मीद करना बहुत ही बड़ी बात है ,बहुत ही मुश्किल बात है .
नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की बात को समाजवादी पार्टी एक प्रहसन से ज्यादा कुछ नहीं मानती लेकिन उन्होने साफ़ कहा मोदी  के बारे में चर्चा करना ठीक नहीं होगा  क्योंकि उनके विरोध में भी बोलने पर उनका प्रचार होगा जो ठीक नहीं है .कुल मिलाकर   की  में  तो समाजवादी पार्टी भारी पड़  रही है लेकिन बीजेपी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के  भी इस इंतज़ार में  हैं की समाजवादी पार्टी वाले कोई गलती करें और वे उनको  पीछे धकेलने में कामयाब हों .

No comments:

Post a Comment