शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ फरवरी. अपराध की जांच और अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाने की प्रक्रिया में बहुत बड़े परिवर्तन की संभावना है . केंद्र सरकार ने तय किया है कि अब अपराध की जांच करने वाले लोग जांच करके मामले को मुक़दमा चलाने वाले विभाग को सौंप देगें. अब पुलिस वाले केवल कानून वयवस्था देखेगें और अपराध की जांच और अभियोजन के लिए अलग विभाग बनाया जायेगा . राज्य सकारों से केंद्र सरकार इस सम्बन्ध में लगातार संपर्क में है .गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस सुधार के लिए विधि आयोग से अनुरोध किया किया गया है क वह जल्द से जल्द प्रक्रिया को दुरुस्त करने के लिए अपने सुझाव दे. सरकार का दावा है कि ऐसा होने के बाद इंसाफ़ मिलने में होने वाली देरी को बहुत ही कम किया जा सकेगा.
केंद्र सरकार क्रिनिनल प्रोसीजर कोड में परिवर्तन की बात बहुत दिनों से कर रही है . इस सन्दर्भ में २०१० में एक बिल भी संसद में लाया गया था जिसे गृह मंत्रालय का काम देखने वाली संसद की स्थायी समिति को विचार करने के लिए भेज दिया गया था, स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है .रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराधिक न्याय की प्रक्रिया की बड़े पैमाने पर समीक्षा की जानी चाहिए और उस बात को ध्यान में रखते हुए संसद में एक नया बिल लाना चाहिए .केंद्र सरकार की मंशा है कि आपराधिक न्याय से सम्बंधित सभी कानूनों की समीक्षा की जानी चाहिए . भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य अधिनियम , क्रिमिनल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानूनों में बदलाव की ज़रूरत है . अपराध और न्याय के प्रशासन के बारे में विधि आयोग की सिफारिशें अभी नहीं मिली हैं
अपने मंत्रालय से सम्बद्ध संसद सदस्यों की सलाहकार समिति के बैठक के बाद गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बताया कि केंद्र सरकार की इच्छा है कि समय के साथ साथ तकनीक की प्रगति के सन्दर्भ में भी साक्ष्य अधिनियम में बद्लाव की ज़रुरत है . इस ज़रुरत को ध्यान में रख कर ही अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व काल में सन २००० में गृह मंत्रालय ने आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया . इस कमेटी से केंद्र सरकार ने सुझाव मांगे थे. कमेटी ने मार्च २००३ में रिपोर्ट दे दिया था . अपराध की जांच और उस से समबन्धित विषय राज्य सरकारों के अधीन होते हैं इसलिए इन सिफारिशों पर राज्य सरकारों की मर्जी के बिना कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता था . इसीलिए कमेटी की रिपोर्ट को राज्य सरकारों के पास भेज दिया गया था.विधि आयोग की १९७वी रिपोर्ट भी मिल चुकी है . केंद्र सरकार ने इस रिपर्ट पर भी राज्यों से उनकी राय माँगी है . .
विधि आयोग ने अपराध के प्रशासन की दिशा में बड़े बदलाव की बात की है . सुझाव दिया है कि अपराध की जांच के काम को पुलिस के मौजूदा ढाँचे से बिकुल अलग कर दिया जाना चाहिए . कानून व्यवस्था संभालने में ही पुलिस का सारा समय लग जाता है इसलिए अपराध की जांच का काम एक अलग विभाग को दे दिया जाना चाहिए . यह भी पुलिस की तरह का विभाग होगा लेकिन इस विभाग के काम का दायरा तब शुरू होगा जब अपराध हो चुका होगा.अपराध को होने से रोकना और चौकसी रखना शुद्ध रूप से पुलिस के हाथ में होना चाहिए . जांच के काम में सुधार के लिए भी बहुत सारे तरीके सुझाए गए हैं .इन सुझावों में यह भी बताया गया है कि फर्जी मुक़दमे दर्ज करवाने वालों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए
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