Monday, August 22, 2011
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की टिकटों के संकेत
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, २२ अगस्त . कांग्रेस ने फर्रुखाबाद विधानसभा सीट से सलमान खुर्शीद की पत्नी को टिकट देकर जहां एक बार केंद्रीय कानून मंत्री की ज़मीनी राजनीतिक हैसियत नापने का काम किया है वहीं समाजवादी पार्टी को भी सन्देश दे दिया है कि उनके अपने प्रभाव वाले इलाके में भी कांग्रेस चुनावों को बहुत ही गंभीर तरीके से लड़ने के मूड में है. हालांकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को पिछली बार भी यहाँ बसपा ने हरा दिया था लेकिन यह इलाका मुलायम सिंह के व्यक्तिगत प्रभाव वाला माना जाता है . अपनी पहली सूची जारी करके उत्तरप्रदेश में कांग्रेस अपनी राजनीतिक मंशा का ऐलान कर दिया है . पहली सूची के संकेत साफ़ हैं . कांग्रेस अपने सांसदों को सीट की हारजीत के लिए ज़िम्मेदार ठहराना चाहती है.शायद इसीलिये पार्टी के सांसदों के परिवार वालों को विधानसभा का टिकट देकर यह बता दिया है कि अगर अपने परिवार के लोगों को नहीं जितवा सकते तो २०१४ में अपने टिकट की भी बहुत पक्की उम्मीद मत कीजिये. मसलन राहुल गाँधी की सीट के पांच टिकटों में आज उन्हीं लोगों के नाम हैं जिनका जीतना आम तौर पर पक्का माना जाता है . सलमान खुर्शीद की पत्नी और बरेली के प्रवीण ऐरन की पत्नी का टिकट भी इसलिए दिया गया है कि जहां से आप जीत कर आये हैं वहां अपने घर वालों को जिताइये.
हालांकि अगर ध्रुवीकरण हुआ तो लड़ाई में बीजेपी के शामिल होने की भी पूरी संभावना है .इसके लिए मुरादाबाद में कोशिश भी की जा चुकी है . लेकिन अगर मामला हर बार की तरह जातिगत आंकड़ों के इर्द गिर्द ही रहा तो समाजवादी पार्टी की बहुजन समाज पार्टी को हर क्षेत्र में घेरने के चक्कर में है. दिल्ली समाजवादी पार्टी के अंदर तक की हाल जानने वाले एक भरोसेमंद सूत्र का दावा है कि अभी भी अजीत सिंह संपर्क में हैं और पश्चिम में मुलायम सिंह के साथ मिलने की सोच रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के कई नेताओं से बात चीत हुई तो पता चला कि ऐसा कुछ नहीं है . समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी जिलों से जिन उम्मीदवारों को उतारा है उनमें से कई अजीत सिंह की टिकट के लिए प्रयास कर रहे हैं . उनके एक बहुत ही करीबी सूत्र ने बताया कि मुलायम सिंह को भी पश्चिम से बहुत उम्मीद नहीं है इसलिए वे अपना ध्यान मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश पर लगा रहे हैं . इसके लिए उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों की राजनीतिक महत्वाकाक्षाओं पर लगाम देने की कोशिश भी की है.रामपुर के आज़म खां को भी लाये हैं लेकिन आज़म खां के आने से कोई राजनीतिक लाभ नहीं हो रहा है. इसका कारण शायद यह है कि पिछले लोक सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने आज़म खां की ताकत को इतना कम कर दिया था कि उनके फिर से किसी काम का होने में वक़्त लगेगा. समाजवादी पार्टी की ताक़त इटावा के आस पास के जिलों में ही सबसे ज्यादा है , वहां भे एहर सीट पर उसे बहुजन समाज पार्टी की चुनौती मिल रही है. . जहां तक पूरब का सवाल है वहां बहुजन समाज पार्टी तो ताक़तवर है ही , पीस पार्टी नाम का एक संगठन भी समाजवादी पार्टी के बुनियादी वोटों को हर क्षेत्र में काट रहा है . इस बीच मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे को उत्तराधिकारी घोषित करने की अपनी योजना को भी थोडा ढील दी है . बताया गया है कि उन्होंने कई लोगों से कहा कि जब उत्तराधिकार में कुछ होगा तभी तो देने का सवाल पैदा होगा . इस बीच खराब स्वास्थ्य के बावजूद वे खुद ही रोज़ की राजनीतिक गतिविधियों पर नज़र रख रहे हैं और इलाके के ताक़तवर लोगों को साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं .साथ ही मुसलमान वोटों के मुख्य दावेदार के रूप में भी उनकी छवि ध्वस्त हो चुकी है . उस वोट पर कांग्रेस ने अपनी मज़बूत पकड़ बना ली है हालांकि पश्चिम का प्रभावशाली मुस्लिम वोट अभी भी बसपा के पास ही है .
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aapke post padhna mujhe behad pasand hai , aap boht gambhir muddo pe vichar karte hai or hume un situations ke bare mei batate hai. thanks
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