शेष नारायण सिंह
पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरेशी ने एक बार फिर कश्मीर की बात अंतर राष्ट्रीय मंच पर की है . पुरानी कहावत है कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है .इस बार यह कहावत पाकिस्तान की विदेश नीति के बारे में फिट बैठ रही है . पाकिस्तान आजकल तबाही के दौर से गुज़र रहा है.अमरीका और सउदी अरब से मदद न मिले तो वहां रोटी तक के लाले हैं लेकिन पाकिस्तानी फौज है कि भारत को गालियाँ देने से बाज़ नहीं आ रही है .अमरीका के राष्ट्रपति ने भी पाकिस्तान को बता दिया है कि अगर अफगान तालिबान को अपने देश में छुपने का मौक़ा दते रहे तो पाकिस्तान को अमरीकी मदद मिलना तो बंद ही हो जायेगी , उस के खिलाफ और भी सख्ती की जा सकती है .लेकिन पाकिस्तानी फौज की समस्या दूसरी है . पाकिस्तान की फौज के मौजूदा नेता वे लोग हैं जिन्होंने १९७१ में पाकिस्तानी सेना को भारत के सामने घुटने टेकते देखा था. वे बदले की आग में जल रहे हैं . उनको लगता है कि १९७१ में जिस तरह से भारत की मदद से पाकिस्तान को तोड़कर एक अलग देश बना दिया गया था, उसी तरह से पाकिस्तानी फौज कश्मीर को भी भारत से अलग कर सकती है . कल्पना की उड़ान पर रोक लगाने की किसी तरकीब का अब तक आविष्कार नहीं हुआ है ,इसलिए पाकिस्तानी फौज़ के मुखिया , अशफाक परवेज़ कयानी सोचते रहते हैं कि वे अपने देश की फौज के उस अपमान का बदला कैसे लें जो भारत ने उसे १९७१ में बुरी तरह से हराकर दिया था . हालांकि ऐशो आराम की ज़िंदगी जी रही ,पाकिस्तानी फौज़ के लिए यह बिलकुल असंभव है लेकिन किसी को अपने मन में कुछ सोचने से कौन रोक सकता है. अब पाकिस्तान को अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बहुत ही सकारात्मक सोच का परिचय देना होगा क्योंकि अगर भारत के धीरज का बाँध कहीं टूट गया तो पाकिस्तानी फौज के लिए बहुत ज्यादा परेशानी खडी हो सकती है .क्योंकि अमरीका की कृपा पर पल रही पाकिस्तानी फौज को सी आई ए के निदेशक पनेटा ने साफ़ बता दिया है कि आफर उत्तर पाकिस्तान में छुपे हुए तालिबान और अल-कायदा के आतंकियों को फ़ौरन काबू न किया गया तो उनके काम में पाकिस्तानी हुकूमत की साझेदारी पक्की मान ली जायेगी. यह धमकी बहुत ही सख्त है . अफगानिस्तान में बुरी तरह फंस गए अमरीका के लिए वहां से जल्द से जल्द निकला भागना सबसे बड़ी प्राथमिकता है लेकिन पाकिस्तान की मिलीभगत की वजह से सब गड़बड़ हो रहा है .पाकिस्तान के उत्तरी इलाकों में अमरीकी सेना का काम पूरी तरह से सी आई ए के हाथ में है.इस काम के लिए वहां अमरीकी सैनिक नहीं लगाए गए हैं . पाकिस्तान और अफगानिस्तान के वे नागरिक काम कर रहे हैं जिन्होंने सी आई ए की नौकरी स्वीकार कर ली है .इस में अमरीकी नागरिकों के मारे जाने का ख़तरा पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया है . दूसरी अहम बात यह है कि सी आई ए की तरफ से काम करने वाले यह लड़ाके जो हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं वह अमरीकी फौज़ ने ही दिया है. इन हथियारों में ड्रोन भी शामिल हैं जो बिना किसी सैनिक की जान को ख़तरा बने ,अन्दर तक घुस कर मार करते हैं. पाकिस्तानी फौज को यह सब पसंद नहीं आ रहा है क्योंकि वह तो तालिबान आतंकियों की सरपरस्त है और उसे अमरीका को डराने के लिए तालिबान को हमेशा सुरक्षित रखना चाहती है . शायद इसीलिए भारत और अमरीका की नयी दोस्ती को पंचर करने के उद्देश्य से पाकिस्तानी फौज़ ने शाह महमूद कुरेशी को डांट कर संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दा उठवाया है . लेकिन अब इस बन्दरघुडकी को न तो अमरीका गंभीरता से लेता है और न ही भारत . अब सारी दुनिया को मालूम है कि भारत एक उभरती हुई महाशक्ति है जबकि पाकिस्तान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है . इसीलिए पिछले २ महीने में सी आई ए ने पाकिस्तानी सेना के एतराज़ की परवाह न करते हुए करीब २४ ड्रोन हमले किये हैं और खासी बड़ी संख्या में अल कायदा और तालिबान के आतंकवादियों को घेर घेर कर मारा है . जाहिर है कि यह सारे आतंकी आई एस आई के ख़ास बन्दे हैं और इनके मारे जाने का अफ़सोस सेना प्रमुख जनरल कयानी को बहुत ज्यादा होगा.
पाकिस्तान में भयानक बाढ़ के बाद बहुत कुछ तबाह हो गया है . गरीब आदमी दाने दाने को मुहताज है . राजनीतिक और धार्मिक नेता, जो भी विदेशी मदद मिलती है ,उसकी लूट मचाये हुए हैं . पाकिस्तानी फौज द्वारा सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लेने की आशंका हमेशा बनी रहती है . इस बीच पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष और फौजी तानाशाह , जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भी वापस आकर राजनीति राजनीति खेलने की धमकी दे दी है . जनरल मुशर्रफ की धमकी को अगर पाकिस्तान गंभीरता से नहीं लेगा तो उसके सामने बड़ी मुश्किल पेश आयेगी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि परवेज़ मुशर्रफ के चाहने वाले पाकिस्तानी फौज़ में बड़ी संख्या में मौजूद हैं. हालांकि मौजूदा जनरल उन्हें आसानी से सत्ता हथियाने नहीं देगा लेकिन उनकी कोशिश भी पाकिस्तान में अस्थिरता का माहौल बना सकती है . ऐसी हालत में पाकिस्तानी सरकार कई मोर्चों पर एक साथ लड़ती नज़र आ रही है . यह पाकिस्तानी जनता और हुकूमत के हित में होगा कि वह भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढाए और उसे दुश्मन की तरह पेश करना बंद कर दे. सरकार के इस एक क़दम से पाकिस्तान की बहुत सारी मुसीबतें कम हो जायेगी. पाकिस्तान में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो मानते हैं कि अगर भारत का सक्रिय सहयोग मिल जाए तो बाढ़ के नरक से जूझ रहे पाकिस्तानी लोगों को बहुत बड़ी राहत मिल जायगी. लेकिन फौज का भारत के प्रति नफरत का रवैया इस मामले में आड़े आ रहा है . उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात की गंभीरता के मद्दे-नज़र पाकिस्तानी शासकों को सद्बुद्धि मिलेगी और वे अपने देश को बचाने में भारत का सहयोग लें .
Monday, October 4, 2010
तबाही की कगार पर खड़े पाकिस्तान के हुक्मरान शेखचिल्ली के वारिस हैं .
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