Saturday, June 12, 2010

इरान पर सुरक्षा परिषद् की नयी पाबंदी से भारत पर भी असर पडेगा

शेष नारायण सिंह

किसी और मुल्क को अपनी बराबरी न करने देने की अमरीकी जिद का एक और नमूना सामने है . अमरीका ने इरान की सरकार के ऊपर फिर से पाबंदी लगा दी है .और पश्चिम एशिया में अमरीकी दादागीरी का एक और कारनामा अंजाम दे दिया है . अमरीका को इरान का परमाणु कार्यक्रम रास नहीं आ रहा है . हर बार की तरह इस बार भी इरान पर पाबंदी लगाने के लिए अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का इस्तेमाल किया . अजीब बात यह है कि पांच स्थायी सदस्यों, ब्रिटेन,फ्रांस,चीन और रूस में किसी ने भी किसी तरह का विरोध नहीं किया. बाकी १० अ-स्थायी सदस्यों में ७ ने अमरीका का साथ दिया , दो ने विरोध किया और एक ने वोते में हिस्सा नहीं लिया. अ-स्थायी सदस्यों के वोट का बहुत मतलब नहीं है लेकिन अमरीका ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह अब इकलौता सुपर पॉवर है और उसकी मनमानी के आगे किसी की नहीं चलने वाली है . सुरक्षा परिषद् मेंचर्चा के दौरान अमरीकी राजदूत, सूज़न राईस ने कहा कि इस बार की पाबंदियाँ निर्णायक साबित होंगीं.उन्हें शिकायत है कि इरान ने उन अवसरों का इस्तेमाल नहीं किया जब उसे अपने परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण साबित करने के अवसर दिए गए. ब्राज़ील और तुर्की ने पाबंदियों क अविरोध किया. इन दोनों ही देशों ने इरान के साथ परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण इस्तेमाल के लिए पिछले महीने ही समझौता किया है . दोनों ही मुल्कों ने कहा कि पाबंदी लगान इसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है . पाबंदी की धमकी, और किसी मुल्क को अलग थलग करने की कोशिश के नतीजे बहुत ही दुखदायी हो सकते हैं . अगर अमरीका को इरान के परमाणु कार्यक्रम से कोई शिकायत हा इतो उसे बातचीत के ज़रिये सुलझाने की कोशिश करना चाहिए. पाबंदियों की घोषणा के तुरंत बाद अमरीकी राष्ट्रपति , बराक ओबामा ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि इस बार इरान पर लगाई गयी पाबंदियां ज्यादा प्रभावी होंगीं और पिछले ३ बार की पाबंदियों से बेहतर नतीजे लायेंगीं . उन्होंने कहा कि पाबंदियों का मतलब यह नहीं है कि बातचीत के रास्ते बंद हो गए हैं . ओबामा ने दावा किया कि इरान से कूटनीतिक स्तर पर संवाद जारी रहेगा. लेकिन नयी पाबंदियां इरान को अलग थलग करने की गंभीर कोशिश हैं . इन पाबंदियों के तहत इरान कहीं से भी भारी हथियार नहीं खरीद सकता, उसके माल को किसी भी बन्दरगाह या हवाई अड्डे पर जांच के लिए रोका जा सकता है . उन बैंकों के लाइसेंस रद्द किये जायेंगें जिनके ऊपर शक़ होगा कि वे इरानी परमाणु कार्यक्रम में किसे एताढ़ से भी सहयोग कर रही हैं. इरान के साथियों के घेरने की कोशिश भी की जायेगी . क्योंकि रूस, फ्रांस और अमरीका ने पिछले महीने हुए ब्राजील, तुर्की और इरान के परमाणु समझौते की भी आलोचना की है . यह देश अपने आपको वियान ग्रुप कहते हैं और एक तरह से बाकी दुनिया के परमाणु कार्यक्रमों की चौकी दारी करने का ठेका ले रखा है .

अमरीकी कोशिश के बाद सुरक्षा परिषद् की तरफ से घोषित इन पाबंदियों का भारत पर भी असर पडेगा. इंदिरा गाँधी के युग में तो किसी अमरीकी राष्ट्रपति की हिम्मत नहीं थी कि वह भारत को यह समझाए कि कइसी तीसरे देश के साथ कैसा बर्ताव करना है लेकिन अब मामला बदल गया है . अभी पिछले दिनों ही संयुक्त राष्ट्र के एक मंच पर भारत के प्रतिनिधि ने अमरीका के दबाव में आकर इरान के खिलाफ वोट दिया था . लेकिन इस बार मामला बिलकुल अलग है.अमरीकी दबाव में सुरक्षा परिषद् ओर से आये इस प्रतिबन्ध पर इरान ने बिलकुल अलगर्ज़ रवैया अपनाया है . इरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र का यह प्रताव किसी काम का नईं है इसे इस्तेमाल किये गए रूमाल की तरह किसी कूड़े दान में फेंक देना चाहिए.इरान ने घोषणा की है इस पाबंडे एके प्रताव के बाद भी कुछ नहीं बदलेगा . इरान का इस्लामी गणराज्य यूरेनियम के संवर्धन के अपने कार्यक्रम को बदस्तूर जारी रखेगा . ज़ाहिर है कि अगर इरान सुरक्षा परिषद् और अमरीका की पाबंदी वाली धमकी को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है तो वह उम्मीद करेगा कि उस से अच्छा सम्बन्ध बनाने के इच्छुक देश भी इस पाबंदी की घोषणा के बाद इरान से अपन एरिष्टों में तबदीली न लायें . इरान के इस रुख से भारत के लिए परेशानी बढ़ सकती है . भारत का इरान से मज़बूत आर्थिक सम्बन्ध है . हालांकि अमरीका से भारत के आर्थिक सम्बन्ध आब जायद हो गए हैं लेकिन इरान से जो सम्बन्ध हैं उनके खराब होने पर भारत की ऊर्जा संबंधी ज़रूरतें प्रभावित होंगीं जिससे विकास की गति भी धीमी पड़ेगी और आम आदमी पर आर्थिक बोझ भी बढेगा यानी इरान को नाराज़ करके भारत महंगाई के दलदल में फंस सकता है . ज़ाहिर है कि नयी दिल्ली की कोई भी सरकार बैठे ठाले इस मुसीबत से बचना चाहेगी.इसका मतलब यह हुआ कि भारत के सामने सुरक्षा परिषद् की इरान संबंधी पाबंदी आने के बाद कठिन परिस्थितियाँ पैदा हो गयी हैं .सबसे बड़ी बात तो यह है कि इरान से भारत आने वाली गैस की पाईपलाइन की योजना ही प्रभावित होगी. दुनिया जानती है कि इस पाईपलाइन के बाद देश की ऊर्जा की ज़रूरतों पर बहुत ही सकारात्मक असर पडेगा.ऐसी हालत में अमरीका की इरान को घेरने की नयी कोशिश का बाकी दुनिया की कूटनीति पर उल्टा प्रभाव पड़ने की आशंका है .

1 comment:

  1. Hmara desh na jane kyo America ke taluve chatne me apna gourv samazta hai. Apne desh ke hito ko andeka kr hamare jimmedar log apne padousiyo se bhi bevajah sambhand bggad rhe hai. Bhavishya ke lie ye ahiktar hai.

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