देश के हर क्षेत्र में तेजी से बदलाव की बयार बह रही है। लोकसभा चुनाव के बाद जो राजनीतिक संकेत आ रहे हैं उससे लगता है कि नई सरकार वह सब कुछ कर डालेगी, जो पिछली बार वाममोर्चा की वजह से नहीं हो पाया था। वाममोर्चे की पिछली पांच साल की राजनीति के चलते केंद्र सरकार को कुछ ऐसे फैसले करने से रोका जा सका जो अर्थ व्यवस्था की तबाह करने की क्षमता रखते थे। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य सक्षम अर्थशास्त्रियों के कारण ऐसा संभव हो सका।
पार्टी के बड़े नेता सीताराम येचुरी खुद एक अर्थशास्त्री हैं और उन्होंने अर्थशास्त्रियों की एक टीम जोड़ी है जिसमें अर्थशास्त्र के विद्वान शामिल हैं। इस बार मनमोहन-मांटेक की जोड़ी लगता है वे सारे फैसले कर लेगी जो सीताराम की टीम ने नहीं होने दिया था। कुछ लोग कह सकते हैं कि अगर इतने बढिय़ा लोग थे तो चुनाव मैदान में क्यों पिछड़ गए। इसका सीधा सा जवाब है कि वाममोर्चे का राजनीति विंग की कमान बहुत ही जिद्दी टाइप लोगों के हाथ में है जो अपनी बात को सही साबित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
इसीलिए पार्टी को चुनाव में सफलता नहीं मिली और राजनीतिक हैसियत भी कम हुई है। इस स्थिति का फायदा नई सरकार के लोग इस बार उठाएंगे। इमकान है कि बजट में पूंजीपति वर्ग की वे मांगे पूरी कर दी जाएंगी जिन पर साढ़े चार साल तक वामपंथी लगाम लगी थी। मजदूरों की छंटनी वाला तथाकथित श्रमसुधार कानून भी पास कराया जा सकता है। वामपंथी नेताओं की समझ में शायद यह बात आने लगी है कि सरकार को गिराने की कोशिश में पार्टी के शीर्ष नेता की जिद को मानकर राजनीतिक गलती हुई थी। देखना यह है कि यह गलती ऐतिहासिक भूल का ओहदा हासिल करने में कितना वक्त लेती है।
कम्युनिस्टों के कंट्रोल से आजाद होकर नई सरकार ने कुछ अच्छे काम करने की योजना भी बनाई है। देश भर में सभी नागरिकों को पहचान-पत्र जारी करने की योजना ऐसी ही एक योजना है। इस काम के लिए निजी क्षेत्र की सबसे सफल कंपनी के उच्च अधिकारी नंदन नीलेकणी को बुलाकर प्रधानमंत्री ने साफ ऐलान कर दिया है कि जो भी नए पद सृजित किए जाएंगे वे सभी आई.ए.एस. बिरादरी की पिकनिक के लिए ही नहीं आरक्षित रहेंगे।
अब महत्वपूर्ण पदों पर गैर आई.ए.एस. लोगों को भी रखा जाएगा। आई.ए.एस. अफसरों को और भी चेतावनी दी जा रही है। मसूरी की लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने साफ घोषणा कर दी कि आई.ए.एस. अधिकारियों को शासक नहीं, सेवक के रूप में काम करना पड़ेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि मूल रूप से रिश्वत के प्रायोजक के रूप में कुख्यात नौकरशाही को अब भ्रष्टाचार के कैंसर से निजात पाना होगा। मसूरी में आई.ए.एस. अफसरों को राष्ट्रपति जी ने बताया कि लीक पर चलते हुए सांचाबद्घ सोच वाले अफसरों के लिए अब सिस्टम में जगह कम पड़ती जायेगी।
नौकरशाही को अब विकास के प्रेरक और प्रायोजक के रूप में काम करना पड़ेगा। श्रीमती पाटिल ने जब यह कहा कि सूचना का अधिकार कानून आ जाने के बाद हालात बदल गए हैं तो वे सूचना को दबाकर मनमानी करने वाली नौकरशाही के आइना दिखा रही थीं। अब जनता को सब कुछ पता चल जाता है लिहाजा आई.ए.एस. अफसरों की भलाई इसी में है कि भ्रष्टाचार का तंत्र खत्म करें। उन्होंने कहा कि सरकार ने फैसला किया है कि आम आदमी की जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाया जाएगा और सबको विकास के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे।
सरकार ने आर्थिक और सामाजिक विकास का एक लक्ष्य निर्धारित किया है जो इंसाफ की बुनियाद पर हासिल किया जायेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन अधिकारियों की जरूरत नहीं है जो लाल फीताशाही वाली सोच के अधीन रहकर काम करते हैं। हमें ऐसे अफसर चाहिए जो सीमा में रहकर आम आदमी के विकास के लिए नई नई तरकीबें ढूंढ सकें। अफसरों को अब लोगों के सेवक के रूप में काम करना पड़ेगा, शासक के रूप में नहीं है। इसके लिए मित्रता के माहौल में सबको साथ लेकर चलने की आदत डालना पड़ेगा।
राष्ट्रपति ने चेतावनी दी कि सबको पता है कि विकास कार्यों के लिए निर्धारित पैसा उन तक नहीं पहुंचता और वह सिस्टम से ही चोरी हो जाता है। यह बहुत ही गंभीर बात है। अफसरों को इस पर नियंत्रण रखना चाहिए। ज़ाहिर है राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल अपना लिखा हुआ भाषण पढ़ रही थीं जो किसी नौकरशाह के परिश्रम का फल था, वरना यह कहना कि सिस्टम से चोरी हो रहे पैसे को बचाना आपका जिम्मा है, बिलकुल अजीब बात है। जब सारे देश को मालूम है कि सिस्टम से पैसा किस तरह से चोरी होता है तो क्या राष्ट्रपति महोदया को यह सच्चाई नहीं मालूम है।
जरूरत इस बात की है कि घूस के राक्षस को काबू में करने के लिए अब घुमाफिरा कर बात करने की जरूरत नहीं है, उस पर सामने से हमला करना होगा। इस बार सरकार यह भी नहीं कह सकती कि वामपंथियों का सहयोग नहीं मिल रहा है क्योंकि अब तो सरकार को समर्थन दे रही हर पार्टी कांग्रेस की हां में हां मिला रही है। और जब पश्चिमी पूंजीपति देशों की पसंद की आर्थिक नीतियां बनाई जा सकती हैं तो भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान क्यों नहीं चलाया जा सकता। यह किसी भी जिम्मेदार प्रशासन के अस्तित्व की जरूरी शर्त भी है।
पिछली सरकार में कम्युनिस्टों के अड़ंगे की बात करके बहुत कुछ बचत कर ली गई थी लेकिन इस बार कम्युनिस्ट नहीं हैं और अगर अफसरों के भ्रष्टाचार पर काबू पाने में आंशिक सफलता भी मिल गई तो सरकार अपना मकसद हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ सकेगी। यह अलग बात है कि सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों की विचारधारा ही ऐसी है कि विकास का पैमाना पूंजीपति वर्ग का विकास ही माना जाएगा। इस सिद्घांत के अनुसार जब औद्योगिक विकास से पूंजीपति वर्ग की सम्पन्ना बढ़ती हैं तो गरीब आदमी को कुछ न कुछ फायदा हो हो ही जाता है।
ज़ाहिर है कि शासक वर्ग की आर्थिक विचारधारा को तो बदला नहीं जा सकता लेकिन जो भी विचारधारा है उसके हिसाब से भी सफलता मिले तो राष्ट्रहित तो होगा ही। लेकिन अगर भ्रष्टाचार को कम करने में सफलता नहीं मिली तो केंद्र सरकार की भी वही दुर्दशा होगी जो उत्तरप्रदेश की मौजूदा सरकार की हो रही है।
Monday, July 27, 2009
भ्रष्टाचार खत्म किए बिना तरक्की नहीं
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