Friday, January 2, 2015

नौ ग्यारह के बाद सी आई ए ने मानवता को बार बार अपमानित किया



शेष नारायण सिंह  

 अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी ,सी आई ए को हमेशा से ही गैरकानूनी तरीके से अमरीकी मनमानी को लागू करने का हथियार माना जाता रहा है . तरह तरह की आपराधिक गतिविधियों में सी आई ए  को अक्सर शामिल पाया जाता है . दुनिया भर में कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की हत्या के आरोप भी इस संगठन पर लगते रहे हैं . इसी क्रम में अमरीकी सेनेट की एक रिपोर्ट को देखा जा सकता है जिसमें लिखा है कि छब्बीस ग्यारह के आतंकी हमले के बाद अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने अपनी हिरासत में लिए गए लोगों से जिस तरह से पूछताछ की उस से लगता है की मानवता को हर क़दम पर अपमानित किया गया था. इसी हमले के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद को धार्मिक  आधार देने के अपने प्रयास को अमली जामा पहनाने की कोशिश शुरू कर दी थी. इस्लामिक  आतंकवाद , जेहादी आतंक आदि शब्द उसी दौर में ख़बरों की भाषा में घुस गए थे जो अब तक मौजूद हैं .इसी दौर में  अल कायदा के खिलाफ काम कारने के लिए सी आई ए को इतने अधिकार दे दिए गए की उसने पूरी दुनिया में अमरीकी विदेश विभाग के काम को रौंदना शुरू कर दिया और कई बार तो विदेश विभाग की मर्जी के खिलाफ भी सी आई ए ने काम किया है . यह सारी बात सी आई ए के बारे में अमरीकी सेनेट की ताज़ा रिपोर्ट में दर्ज है .
अमरीकी सेनेट की एक कमेटी की जांच रिपोर्ट आई है .करीब ६००० पृष्ठों की रिपोर्ट के केवल ६०० पृष्ठ ही जारी किये गए हैं लेकिन उनके आधार पर ही कहा जा सकता है कि सी आई ए ने मानवता के प्रति अपराध की  सारी सीमाएं पार कर ली थीं. रिपोर्ट में कैदियों से पूछ ताछ के अमानवीय तरीकों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि  किस तरह से डाक्टरों की मर्जी के खिलाफ इस तरह की कारगुजारी की जाती थी. पूछ ताछ का सबसे खतरनाक तरीका वाटरबोर्डिंग का है . इसमें कैदी के मुंह पर कपड़ा लपेट कर उसे पीठ के बल लेटा दिया जाता है . मुंह पर पड़े कपडे पर पानी की बौछार डाली जाती है . उस व्यक्ति को लगता है कि वह पानी में डूब रहा है . नाक और मुंह से साँस लेना दूभर हो जाता है  और वह कई बार तो बेहोश भी हो जाता है . अगर सांस लेने में लगातार मुश्किल आती रही तो व्यक्ति के मर जाने का भी ख़तरा रहता है .संदिग्ध व्यक्तियों से पूछ ताछ का  जो दूसरा सबसे अमानवीय तरीका अपनाया गया वह उनको खाना खिलाने का था. गुदा के रास्ते खाना खिलाने का यह पैशाचिक काम भी पूरी तरह से राक्षसी प्रवृत्ति का नमूना है .सी आई ए ने जांच और प्रताड़ना के यह केंद्र पूरी दुनिया में अपने केन्द्रों पर बना रखा था. अमरीकी प्रभाव वाले जिन देशों में सी आई ए के औपचारिक दफ्तर हैंवहां इस तरह के जांच केंद्र बने हिये हैं . अफगानिस्तानथाईलैंड ,,रोमानिया ,लिथुआनिया और पोलैंड में  सी आई ए के आतंक के केंद्र बने हुए हैं .जिनको सरकारी भाषा में पूछताछ के केंद्र बताया जाता है .
छब्बीस ग्यारह के आतंकी हमले के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश जूनियर लगभग बौखला गए थे . उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अमरीका की सरकार आतंकवाद को ख़त्म कर देगी चाहे जो करना पड़े . सेनेट की कमेटी की रिपोर्ट से बाहर आयीं  सी आई ए की जांच की  यह तरकीबें उसी में से एक हैं .  सी आई  ए का यह तामझाम बुश जूनियर के राज में ही रहा सत्ता में आने पर ओबामा ने इसे ख़त्म कर दिया था. अमरीकी सेनेट की कमेटी की जो रिपोर्ट आयी है वह अमरीकी राष्ट्रपति भवन को आतंकवाद की मशीनरी के रूप में पेश करता है . अम्रीकी सरकार में जिम्मेवार पदों पर तैनात लोगों को भी व्हाईट हाउस के लोग अन्धकार में रख रहे थे . एक आतंरिक मेमो में अमरीकी राष्ट्रपति  भवन के एक आदेश का ज़िक्र किया गया है जिसमें लिखा है कि तत्कालीन विदेश मंत्री कालिन पावेल को इसके बारे में कुछ न बताया जाए क्योंकि अगर उनको पता चल गया तो हल्ला मचाएगें .
इस रिपोर्ट से इसी तरह की और भी बहुत सारी अजीबोगरीब जानकारी मिली है . एक जेल में सी आई ए के करीब ११९  कैदी  हिरासत में थे जिनमें से २६ ऐसे कैदी थे जिनको गलती से उठा लिया गया था लेकिन जब उठा लिया तो उनको बंद रखा गया क्योंकि बाहर जाकर वे सी आई ए की पोल न खोल दें .इस रिपोर्ट की ख़ास बात यह है कि मानवीय मूल्यों को पूरी तरह से दरकिनार कर देने के बाद भी सी आई ए को वह नतीजे नहीं मिले जिसकी उनको उम्मीद  थी. ओसामा बिन लादेन की खोज के  बारे में भी इस रिपोर्ट में दावे किये गए हैं लेकिन वहां भी सी आई ए के दावे पूरी तरह से गलत हैं . जांच के इन तरीकों से ओसामा बिन लादेन को तलाशने में कोई मदद नहीं मिली. हालांकि कमेटी की इस जांच को रिपब्लिकन पार्टी के सेनेट सदस्यों ने गलत बताया है लेकिन जानकार बताते हैं कि बुश जूनियर के राज की खामियों को उनकी पार्टी वाले आसानी से स्वीकार नहीं करते .
जबकि वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा ने इस रिपोर्ट की तारीफ़ की है और कहा है कि अल कायदा को तबाह करने के अपने कार्यक्रम में सी आई ए को बड़ी सफलता मिली है लेकिन कैदियों के साथ हुए आचरण से अमरीकी मूल्यों की अनदेखी की है और उनके कारण अमरीका को दुनिया के  सामने शर्मिंदा होना पडेगा . इस  रिपोर्ट के आने के बाद सी आई ए ने भी एक जवाब दिया है . सी आई ए ने स्वीकार किया है कि उनसे गलती तो हुयी है लेकिन उनका इरादा सरकार को अँधेरे में रखने का नहीं है . अमरीकी प्रबुद्ध वार्ग इस बात का विश्वास नहीं कर रहा है क्योंकि पकडे जाने पर हर अपराधी अपने इरादों को पाक साफ़ बताता है . सी आई ए ने यह भी दावा किया है कि इस तरह से को जानकारी इकात्था की गयी ,सी आई ए को तबाह करने में उससे बहुत मदद मिली है . सी आई ए ने यह भी दावा किया कि तथाकथित इस्लामी आतंकवाद को ख़त्म करने में जांच के इन तरीकों से बहुत फ़ायदा मिला है  लेकिन सबको मालूम है कि यह बिलकुल गलत दावा है. पूरी दुनिया में सभ्य समाजों में किसी भी आतंकवाद को इस्लामी आतंकवाद का नाम देने की घोर निंदा हुयी है और सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट के  संगठन के तहत जो आतंक चल रहा है वह अल कायदा की ही पैदावार है . यहाँ यह नोट करना भी दिलचस्प होगा कि अल कायदा और ओसामा बिन लादेन शुरुआती दौर में अमरीका की मदद से ही फलते फूलते रहे थे . मौजूदा रिपोर्ट में जो कुछ भी लिखा गया है उसमें से ज़्यादातर सी आई ए के अपने कर्मचारियों को लिखे गए पत्रों या आदेशों का उद्धरण है ,इसलिए याह नामुमकिन है की कोई भी इस रिपोर्ट पर गलत बयानी का आरोप लगा सके. मिसाल के तौर पर थाईलैंड के सी आई ए ठिकाने में कैद अल कायदा के अबू जुबैदा पर जब पूछ ताछ के दौरान अत्याचार शुरू हुआ तो वहां तैनात सी आई ए कर्मचारी रो पडा और यह बात उसने अपने बड़े अफसरों के पास लिख भेजा. उसकी बात को ज्यों का अत्यों रिपोर्ट में नक़ल कर दिया गया है .
इस रिपोर्ट से साफ़ हो गया है कि जो सी आई ए घोषित रूप से केवल इंटेलिजेंस इकठ्ठा करने की संस्था थी ,वह अब कैसे एक पुलिस संगठन के रूप में बदल चुकी है . इसके पहले  आन्या देशों के मामलों में जो भी दखलन्दाजी की जाती थी वह शुद्ध रूप से गुपचुप तरीकों से की जाती थी लेकिन अब अल कायदा के नाम पर वह खुले आम धर पकड़ करना ड्रोन हमले करना , लोगों को गिरफ्तार करना आदि कर रही है . छब्बीस ग्यारह के तुरंत बाद से ही राष्ट्रपति बुश जूनियर ने एक सेक्रेट आदेश पर दस्तखत कर दिया था जिसके अनुसार सी आई ए को " उन लोगों को पकड़ने और हिरासत में लेने का अधिकार दे दिया गया था अजो अमरीकी अवाम और उसके हितों के लिए ख़तरा बने हुए हों ." इस आदेश में पूछताछ करने का अधिकार नहीं दिया गया था .लगता है कि हस्बे मामूल सी आई ए ने बहुत सारे अधिकार लपक लिए  हैं .

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