शेष नारायण सिंह
मैं जब भी मुंबई के पृथ्वी थियेटर जाता हूँ मुझे
महान बुद्धिजीवी जी पी देशपांडे की याद
ज़रूर आ जाती है . शायद ऐसा इसलिए कि मुझे मालूम है कि इस थियेटर का उदघाटन उनके
नाटक “उद्ध्वस्त धर्मशाला “ के मंचन से हुआ था . और जब वे इस नाटक के बाद दिल्ली
वापस आये थे तो इसके बारे में बात की थी . विश्वविद्यालय की सड़क पर चलते हुए
उन्होंने बताया था कि उन्हें कितनी खुशी हुई थी
. पी पी एच से निकल कर आते हुए उनसे मुलाक़ात हुई थी . याद इसलिए अब तक बनी हुई है कि शब्द
‘उद्ध्वस्त धर्मशाला ‘ मुझे कहीं चिपक सा गया है . कभी इस अभिव्यक्ति को सुना नहीं
था .कुछ लोग थे और उनके बीच जी पी देशपांडे . इस बार उनकी याद बहुत शिद्दत से आयी
क्योंकि अभी कुछ दिन पहले उनका देहांत हो गया है . हो सकता है कि लोग पृथ्वी थियेटर
को पृथ्वीराज कपूर की याद में जानते हों
लेकिन मेरे लिए यह एक निजी यादगार है . हालांकि पृथ्वीराज कपूर को भी मैं बहुत ही
सम्मान से याद करता हूँ लेकिन पृथ्वी पर
आते ही मुझे जी पी डी की याद आ जाती है तो
क्या करूं ?
महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में लोग औरंगजेब को नहीं जानते थे लेकिन जब मराठी
थियेटर के सबसे ताक़तवर अभिनेता प्राभाकर पंशीकर ने औरंगजेब की भूमिका में गाँव गाँव में घूमकर
नाटक प्रस्तुत करना शुरू किया तो लोग उनकी शख्सियत से जोड़कर औरंगजेब का तसव्वुर
करने लगे. लगभग ऐसा ही आलम मुग़ल बादशाह
अकबर का है . हमारी और हमारी पहले की पीढ़ी
के ज़्यादातर लोग अकबर का वही तसव्वुर करते हैं जो के. आसिफ की फिल्म ‘मुगले-आज़म ‘
में दिखाया गया है . बहुत ही भारी भरकम आवाज़ में भारत के शहंशाह मुहम्मद
जलालुद्दीन अकबर के डायलाग हमने सुने हैं . अकबर का नाम आते ही उन लोगों के सामने
तस्वीर घूम जाती है जिसमें मुगले आज़म की
भूमिका में पृथ्वीराज कपूर को देखा गया है
.
पृथ्वीराज कपूर अपने ज़माने के बहुत बड़े अभिनेता थे. उन्हीं की याद में उनके बच्चों ने
पृथ्वी थियेटर की इमारत स्थापना की . उनकी इच्छा थी कि पृथ्वी थियेटर को एक स्थायी
पता दिया जा सके. इस उद्देश्य से उन्होंने १९६२ में ही ज़मीन का इंतज़ाम कर लिया था
लेकिन बिल्डिंग बनवा नहीं पाए. १९७२ में उनकी मृत्यु हो गयी .ज़मीन की लीज़ खत्म हो गयी .उनके बेटे शशि कपूर और
जेनिफर केंडल ने से लीज़ का नवीकरण करवाया और आज पृथ्वी थियेटर पृथ्वीराज कपूर के
सम्मान के हिसाब से ही जाना जाता है . श्री पृथ्वीराज कपूर मेमोरियल ट्रस्ट एंड
रिसर्च फाउन्डेशन नाम की संस्था इसका संचालन करती है . इसके मुख्य ट्रस्ट्री शशि
कपूर हैं और उनके बच्चे इसका संचालन करते हैं. आज मुंबई के सांस्कृतिक कैलेण्डर
में पृथ्वी थियेटर का स्थान बहुत बड़ा है .
जब १९७८ में जेनिफर केंडल और उनके पति , हिंदी
फिल्मों के नामी अभिनेता शशि कपूर ने इस जगह पर पृथ्वी का काम शुरू किया तो इसका
घोषित उद्देश्य हिंदी नाटकों को एक मुकाम देना था .लेकिन अब अंग्रेज़ी नाटक भी यहाँ
होते हैं .जेनिफर केंडल खुद एक बहुत बड़ी अदाकारा थीं और अपने पिता की नाटक कंपनी
शेक्स्पीयाराना में काम करती थीं. पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थियेटर की स्थापना १९४४ में कर ली थी. सिनेमा की अपनी कमाई को वे
पृथ्वी थियेटर के नाटकों में लगाते थे . अपने ज़माने में उन्होंने बहुत ही नामी
नाटकों की प्रस्तुति की .शकुंतला ,गद्दार, आहुति, किसान, कलाकार कुछ ऐसे नाटक हैं
जिनका हिंदी/उर्दू नाटकों के विकास में इतिहास में अहम योगदान है और इन सबको
पृथ्वीराज कपूर ने ही प्रस्तुत किया था .थियेटर के प्रति उनके प्रेम को ध्यान में
रख कर ही उनके बेटे और पुत्रवधू ने इस संस्थान को स्थापित किया था . मौजूदा पृथ्वी
थियेटर का उदघाटन १९७८ में किया गया . पृथ्वी के मंच पर पहला नाटक “ उध्वस्त
धर्मशाला “ खेला गया जिसको महान नाटककार
,शिक्षक और बुद्दिजीवी जी पी देशपांडे ने लिखा था . नाटक की दुनिया के बहुत बड़े
अभिनेताओं , नसीरुद्दीन शाह और ओम पूरी ने
इसमें अभिनय किया था . पृथ्वी से मेरे निजी लगाव का भी यही कारण है .अब तो खैर जब
भी मुंबई आता हूँ यहाँ टहलते हुए ही चला आता हूँ क्योंकि यह मेरे बच्चों के घर के
बहुत पास है .पृथ्वी का दूसरा नाटक था बकरी , सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के इस नाटक
को इप्टा की ओर से एम एस सथ्यू ने निर्देशित किया था . यह वह समय है जबकि मुंबई की
नाटक की दुनिया में हिंदी नाटकों की कोई औकात नहीं थी लेकिन पृथ्वी ने एक मुकाम दे
दिया और आज अपने सपनों को एक शक्ल देने के लिए मुंबई आने वाले बहुत सारे संघर्षशील
कलाकार यहाँ दिख जाते हैं .पृथ्वी के पहले मुंबई में अंग्रेज़ी, मराठी और गुजराती
नाटकों का बोलबाला हुआ करता था लेकिन पृथ्वी थियेटर की स्थापना के ३५ वर्षों में
बहुत कुछ बदल गया है . अब हिंदी के नाटकों की अपनी एक पहचान है और मुंबई के हर
इलाके में आयोजित होते है .
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