शेष नारायण सिंह
इसी भाषण के बाद से बीजेपी ,कांग्रेस या कांग्रेस से अलग होकर आये लोगों की अपने आपको आम आदमी का पक्षधर बताने की हिम्मत नहीं पडी .बाद में जब १९९६ में गैर कांग्रेस गैर बीजेपी सरकार की बात चली तो एच डी देवे गौड़ा को प्रधान मंत्री बनाने वाली पार्टियों के गठबंधन को तीसरा मोर्चा नाम दे दिया गया था.लेकिन कोई ऐसी राजनीतिक शक्ति नहीं बनी थी जिसे तीसरे मोर्चे के रूप में पहचाना जा सके. आजकल तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लोग एक राग में तीसरे मोर्चे के खिलाफ बात करते पाए जाते हैं . ज़ाहिर है कि तीसरे मोर्चे की बात करने वाले भी गंभीर बात नहीं करते . इसलिए यह आइडिया भी कोई आकार नहीं ले पा रहा था. बदलते राजनीतिक परिदृश्य में माहौल बदल रहा है. स्व मधु लिमये के करीबी सहयोगी रह चुके राजनीतिक चिन्तक और लोहिया की राजनीति के मर्मज्ञ ,मस्तराम कपूर के प्रयास से अक्टूबर की २७ तारीख को दिल्ली में गैर कांग्रेस गैर बीजेपी राजनेताओं और जन आंदोलन के कुछ बड़े नेताओं का जमावड़ा होने वाला है जिसमें समाजवादी राजनीति की लोहिया की समझ को बुनियाद बनाकर एक कार्यक्रम पेश किया जाएगा . इस कार्यक्रम में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अतुल कुमार अनजान का बड़ा सहयोग है . जब अतुल कुमार अंजान से लोहियावादियों के सम्मेलन उनके सहयोग की बात की गयी तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी के पूंजीवादी वर्गचरित्र को बेनकाब करने के लिए हर तरह के समाजवादियों को एक रणनीति के तहत लामबंद होने की ज़रूरत है अतुल अनजान ने कहा कि नव उदारवाद की आर्थिक नीतियों ने देश के आमजन के लिए आर्थिक तबाही तो लाई ही,साथ साथ भ्रष्टाचार ,असंवेदनशील राजनीतिक नेता और आवारा पूंजी के साथ साथ आवारा नौकरशाह और राजनेता पैदा कर दिए . कांग्रेस और भाजपा में इस बात की टक्कर चल रही है कि कौन बड़ा भ्रष्टाचारी है. ऐसी स्थिति में जनता संघर्ष के मैदान में अपने अपने स्तर पर उतर रही है .भाजपा और कांग्रेस दोनों से उसका मोहभंग हो चुका है . ऐसी स्थिति में जन पक्षधर समाजवादी नीतियों के आधार पर राजनीतिक बिरादरी को एकजुट होने की ज़रूरत है. मस्त राम कपूर जी ने जो कार्यक्रम तैयार किया है उसमें वामपंथी पार्टियों के समाजवादी विचारों को समाविष्ट किया गया है . ज़ाहिर है कि जनपक्षधरता के बुनियादी राजनीतिक विचारों के आधार पर आवारा पूंजी और और उसके प्रतिनिधि राजनीतिक दलों को बेदखल करने की तैयारी शुरू हो चुकी है . २७ अक्टूबर का सम्मलेन उसी दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण क़दम होगा.
मस्त राम कपूर ने बताया कि ' कांग्रेस और बीजेपी की शासक वर्गों की राजनीति के विकल्प की ज़रूरत आज बहुत ही शिद्दत से महसूस की जा रही है.इस विचार को लेकर ही बुद्धिजीवियों, जनांदोलनों तथा गैर कांग्रेस ,गैर भाजपा पार्टियों की एक बैठक वैकल्पिक राजनीति के एजेंडे पर विचार करने के लिए बुलाया है .यह एजेंडा पिछले दो दशकों में विभिन्न जनांदोलनों और सक्रिय बुद्धिजीवियों में चले विचार-विमर्श के आधार पर तैयार किया गया है .. बैठक महात्मा गांधी ,जयप्रकाश नारायण .राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव की स्मृतियों से जुड़े अक्टूबर माह में बुलायी गयी है . महान अक्टूबर क्रान्ति की याद भी इस समेलन में जुडी हुयी है . इसीलिये समाजवादी नेताओं के साथ साथ कम्युनिस्ट नेता भी सम्मलेन में शामिल हो रहे हैं . २७ तारीख की सभा की अध्यक्षता लोहिया की राजनीति के सबसे प्रमुख उत्तराधिकारी मुलायम सिंह यादव करेगें . मस्त राम कपूर ने बताया कि इस सम्मलेन में ए बी बर्धन, शरद यादव, लालूप्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह और राम विलास पासवान के शामिल होने की संभावना है.मेधा पाटकर और उनकी तरह के जनांदोलनों के कुछ आदरणीय नेताओं को भी बुलाया गया है . मेधा पाटकर को राजी करना बहुत मुश्किल था . उनका तर्क था कि मौजूदा राजनीति में सक्रिय लोगों की बड़ी संख्या रास्ते से भटक गए लोगों की है . इनके साथ बैठकर कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है ;लेकिन जब मस्त राम कपूर ने उनको समझाया कि आप लोगों के आन्दोलनों की जो भी उम्मीदें हैं उन्हें आम आदमी के हित में लागू करने के लिए राजनीतिक संगठन की ज़रूरत से इनकार नहीं किया जा सकता . आज जब बीजेपी और कांग्रेस खुल्लम खुल्ला पूंजीवादी साम्राज्यवादी ताक़तों के हित साधन का काम कर रहे हैं तो तीसरे मोर्चे को ही अपनी बातें मनवाने के लिए साथ लेना पडेगा. वे राजी हुईं और अब जनांदोलनों से जुड़े कुछ अन्य लोग भी सम्मेलन में शामिल होंगें .
इस बैठक में ही तीसरे मोर्चे का एजेंडा भी पेश कर दिया जाएगा और शामिल राजनीतिक नेताओं से अपील की जायेगी कि उस पर विचार करें और अपने चुनाव घोषणा पत्रों में इन मुद्दों को प्राथमिकता दें . . आर्थिक कार्यक्रमों में एफ डी आई में विदेशी पूंजी का विरोध, बिजली ,पानी, ईंधन और ज़रूरी खाद्य पदार्थों के निजीकरण का विरोध, खेती की ज़मीन के अधिग्रहण का विरोध , अनिवार्य वस्तुओं की कीमतों के निर्धारण पर सामाजिक नियंत्रण ,कम से कम और अधिक से अधिक आमदनी में अनुपात का निर्धारण आदि शामिल हैं . राजनीतिक सुधार के कार्यक्रम भी एजेंडे में शामिल किये गए हैं . वर्तमान मुख्य सतर्कता आयुक्त को लोकपाल की शक्तियां देकर भ्रष्टाचार नियंत्रण में सक्षम बनाना,साम्प्रदायिक दंगों और अल्पसंख्यकों के ऊपर होने वाले अपराधों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन ,सरकारी फिजूलखर्ची पर पाबंदी , विधायक और सांसद निधि का खात्मा,दल बदल विरोधी कानून में परिवर्तन जिस से असहमति के आधिकार की रक्षा की जा सके,ग्राम सभाओं के ज़रिये सविधान के ७३वे और ७४वे संशोधन के रास्ते पंचायती राज को मज़बूत करना ,सरकारी काम में भारतीय भाषाओं के प्रयोग जैसे अहम मुद्दे शामिल हैं .इसके अलावा चुनाव प्रणाली में सुधार ,शिक्षा और संस्कृति संबंधी कार्यक्रम और राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को मज़बूत करने वाले कार्यक्रम शामिल किये गए हैं .
सम्मलेन की आयोजकों को लगता है कि तीसरे मोर्चे को एक शक्ल देने की ऐतिहासिक ज़रूरत को यह सम्मलेन एक दिशा अवश्य देगा . लेकिन अगर कोई बहुत ठोस बात नहीं भी निकल कर आती तो इतना तो पक्का है कि साम्प्रदायिक और पूंजी की चाकर राजनीति की पार्टियों ,बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति के एक ऐसे विकल्प की तलाश शुरू हो जायेगी जो समाजवाद के जनपक्षधर आदर्शों को लागू करने की नीति पर काम करेगी.
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