Saturday, September 22, 2012

उत्तरप्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वालों की नज़र कहीं चुनाव पर तो नहीं



 शेष नारायण सिंह 

ममता बनर्जी ने  यू पी ए की सरकार से समर्थन वापस लेकर लोकसभा चुनाव की तारीख को निश्चित रूप से २०१३ में डाल दिया है .आम तौर पर  जनता जल्दी चुनावों के पक्ष में नहीं रहती. राजनीतिक पार्टियों में भी चुनाव के लिए बहुत उतावलापन नहीं देखा जाता  लेकिन जब से कामनवेल्थ ,२ जी और कोयला घोटाला में कांग्रेस सरकार बुरी तरह से घिरी है ,लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल को सत्ता करीब नज़र आने लगी है . लोकतंत्र में यह सभी पार्टियों का अधिकार है कि वे चुनाव के ज़रिये सत्ता में आने की कोशिश करें.लेकिन इस कोशिश में यह ध्यान रखना चाहिए कि राजनीतिक नियमों का विधिवत पालन हो और लोकतंत्र की संस्थाओं का सम्मान हो .उत्तर प्रदेश के सत्ताधारी दल को भी चुनावों के समय से पहले होने में बहुत लाभ की उम्मीद है . समाजवादी पार्टी ने अभी ६ महीने पहले स्पष्ट  बहुमत हासिल करके सरकार बनायी है . जिसके बाद लोक सभा क्षेत्रों के चुनावी आकलन के बाद साफ़ हो गया है कि लोकसभा की कम से कम ५० सीटों पर उनको बहुमत मिल सकता है . पिछले चुनाव के बाद एक और राजनीतिक घटना हुई है  जिसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की स्वीकार्यता राज्य की अगड़ी जातियों में भी बढ़ी है . सरकारी नौकरियों में आरक्षण के सवाल पर समाजवादी पार्टी के रुख से राज्य की राजनीति के संतुलन में भारी बदलाव के संकेत नज़र आ रहे हैं. मुलायम सिंह यादव राज्य की गैर दलित जातियों के सबसे बड़े शुभचिंतक के रूप में देखे जा रहे हैं . ज़ाहिर है कि अगर जल्दी चुनाव हुआ तो उनको चुनावी फायदा निश्चित रूप से होगा .

इसके साथ साथ ही एक और कोशिश चल रही है . राज्य की एक राजनीतिक पार्टी की कोशिश है कि वह मुलायम सिंह यादव के खिलाफ ऐसा माहौल  बनाए कि वे शुद्ध रूप से मुसलमानों के शुभचिंतक के रूप में  देखे जाएँ और धार्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो जाए . पिछले ६ महीनों में उत्तर प्रदेश में एक अजीब ट्रेंड नज़र आ रहा है .  राज्य में साम्प्रदायिक तनाव की कई घटनाएं हो चुकी हैं . मथुरा, बरेली और अब गाज़ियाबाद जिले की घटनाओं में अजीब तरह की समानता है . इन घटनाओं के साथ साथ ही यह प्रचार भी चलता रहता है कि मायावती के राज में इस तरह की कोई घटना नहीं हुई .  यानी यह साबित करने की कोशिश होती है कि मायावती के कार्यकाल में कानून  व्यवस्था की हालत  बेहतर थी . उसके साथ की एक नया राजनीतिक सोच के अलंबरदार कहने लगते हैं कि मुलायम सिंह की पार्टी की सत्ता आने के बाद मुसलमान बहुत ही मनबढ़ हो जाते हैं और वे  मौक़ा पाते ही तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं . बीजेपी के राज्य स्तर के नेता मुस्लिम तुष्टीकरण की बात करना शुरू कर चुके हैं . उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी की सत्ता आने के बाद मुसलमानों में अराजकता बढ़ गयी है .यह बातें आंशिक रूप से सच हो सकती हैं .लेकिन पूरी सच्चाई कुछ और है . गाज़ियाबाद  जिले के मसूरी -डासना इलाके में पिछले दिनों हुई साम्प्रदायिक तनाव की घटना के बाद कुछ नौजवानों की जान  गयी जिसको कि बचाया जा सकता था. कहीं से अफवाह फैलाई गयी कि मुसलमानों के पवित्र ग्रन्थ ,कलामे-पाक का अपमान हुआ है . ज़ाहिर है इस तरह की घटना के बाद लोगों में नाराज़गी होगी . जिन लोगों ने गाज़ियाबाद जिले के इस इलाके का दौरा वारदात के बाद किया है  उनको पता है कि इस घटना में कई तरह की  गड़बड़ियां हुई हैं सबसे बड़ी गलती तो  उस इलाके के थानेदार की है जिसने घटना की जानकारी मिलने के कई घंटे बाद कोई कार्रवाई की. इस बीच शरारती तत्व और राजनीतिक लाभ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को बदनाम करने वाली राजनीतिक पार्टियों के लोग सक्रिय रहे . कुछ लड़कों को ललकार कर निहित स्वार्थ के लोगों ने पुलिस पर हमले करवाए . आत्म रक्षा  के नाम पर पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की लेकिन सबको मालूम है कि पुलिस ने जवाबी कार्रवाई के नाम पर मुसलमानों को घेरकर मारा और इलाके में आतंक फैलाने की कोशिश की. इस बीच राजनीतिक लाभ लेने वाले भी सक्रिय हो गए. मौजूदा सरकार को सत्ता दिलवाने का दावा करने वाले एक नेता ने तो  यहाँ तक कह दिया कि  समाजवादियों को देना होगा मुसलमानों के खून का हिसाब . इसी शीर्षक से यह खबर उर्दू अख्बारों में भी छपवाई गयी. उधर बीजेपी ने भी मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी को घेरना शुरू कर दिया . लेकिन गाज़ियाबाद और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सम्मानित  रिपोर्टर,अशोक निर्वाण ने जब इलाके का दौरा किया तो बिलकुल अलग तस्वीर सामने आई  . वहां से लौटकर उन्होंने जो रिपोर्ट दी उसके मुताबिक मसूरी -डासना  की वारदात में इस इलाके में चल रहे कमेलों के मालिकों का हाथ है . मेरठ में इस तरह के कमेले  बहुत हैं लेकिन वहां इनका विरोध हो रहा है जिसके बाद अन्य इलाकों भी इस तरह का काम शुरू हो गया है . मसूरी-डासना के आस पास इस तरह के कमेले बहुत बड़े संख्या में बन गए हैं . गैर कानूनी तरीके से बूचडखाना चलाया जाता  है तो उसे यहाँ की स्थानीय भाषा में कमेला कहते हैं . पता चला है कि बहुजन समाज पार्टी के एक पुराने नेता और उनके  रिश्तेदारों  के बहुत सारे कमेले मेरठ में हैं .  

सवाल यह  है कि मसूरी थाने के इलाके में हुई घटना जिसमें पुलिस की गोली लगभग आधा दर्जन लोगों की मौत हो गयी ,उसके पीछे किसका हाथ है . वहां जो सवाल सबकी ज़बान पर है  वह यह कि क्या इसमें अवैध रूप से मीट व मांस का व्यापार करने वाले वधशाला माफिया का हाथ है। इस सवाल का जबाब ढूंढने के लिए प्रशासन तथा खुफिया विभाग के आला अधिकारी लगे हुए हैं। मसूरी में इस समय जानवरों के  मीट व मांस का अवैध कारोबार करने वाले मीट माफिया ने बड़े पैमाने पर कमेले खोले हुए हैं। इस इलाके से रोजाना करोड़ों का डिब्बाबंद मीट सप्लाई होता है. इस इलाके के लोग यहां होने वाले प्रदूषण का विरोध करने के लिए आन्दोलन की राह पर चल चुके हैं . लोगों ने गाज़ियाबाद के कलेक्टर के दफ्तर के सामने  धरना भी दिया था। पता चला है कि जिला प्रशासन ने मीट का अवैध कारोबार करने वालों पर  कार्रवाई करने की योजना बना ली थी जिसकी भनक  मीट माफिया को लग गई थी। प्रशासन का ध्यान अपनी तरफ से हटाने के लिए मीट माफिया ने सुनियोजित तरीके से साज़िश  करके  मसूरी में धर्म के नाम पर दंगे का रूप दे दिया। उधर प्रशासन ने इस मामले में लगभग पांच हजार अज्ञात लोगों के खिलाफ  रिर्पोट दर्ज कराई है। पुलिस ने बड़ी संख्या में  संदिग्ध लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है।  आरोप यह भी है कि पुलिस लगातार मुसलमानों के घरों पर छापे मार रही है और लोगों को उठा कर अज्ञात स्थान पर ले जा रही है.हिंसा भड़कने के कारणों की व्यापक छानबीन के बाद पता चला है कि वारदात के दिन  दोपहर 12 बजे थाना मसूरी के  थानेदार पी के सिंह को कुछ लोगों ने बताया था कि रेलवे लाइन के पास पवित्र कुरान के कुछ पन्ने पड़े हुए है। इस पर थानेदार ने कुछ ध्यान नहीं दिया और देखते ही देखते इलाके में शाम 7 बजे हिंसा शुरू हो गयी .अगर मसूरी का यह थानेदार सजग हो जाता तो यह हादसा न होता। मसूरी के नागरिकों का कहना है मसूरी में जो भी थानेदार आता है उसे कमेले चलाने वाले रिश्वत देते  हैं. और इसी रिश्वत की लालच में वहां का थानेदार इस तरह के काम में शामिल हो जाता है 

इस इलाके में चल रहे कमेलों के प्रदूषण से बहुत परेशानियां पैदा हो गयी हैं .अवैध वधशाला से निकलने वाले खून को बोरिंग के ज़रिये सीधे जमीन में डाला जा रहा है जिसके चलते पानी बदबूदार तथा लाल हो गया है। यह मामला बहुत दिनों से उठाया जा रहा था लेकिन जिले के अधिकारी कुछ नहीं कर रहे थे . मामला जब मीडिया में आया तो प्रशासन ने कार्रवाई करने के मन बना लिया और कमेला माफिया की उल्टी गिनती शुरू हो गई .सरकारी  कार्रवाई की भनक लगते ही माफिया ने साज़िश के तहत धार्मिक भावनाएं भड़काकर हिंसा करा दी ताकि उसके खिलाफ  कार्रवाई न हो सके तथा प्रशासन अपना ध्यान उसकी तरफ  से हटा ले।  इस इलाके में कभी भी हिंदू - मुस्लिम फसाद नहीं हुआ। मसूरी के गांव देहरा में मंदिर-मस्जिद की दीवारे मिली हुई है।  हिंदू-मुस्लिम मिलकर एक साथ इबादत करते है। मीडिया के कैमरों में जिन असामाजिक तत्वों के चेहरे सामने आए हैं वे बाहरी लोग हैं । जाहिर है कि कुछ लोगों की मंशा इस इलाके की  फिजा को खराब करना था, जिसमें वो एक हद तक कामयाब भी हो गए.

बहर हाल अब यह राज्य सरकार की ड्यूटी है कि वह साम्प्रदायिक आधार पर समाज में बंटवारा करने वालों की शिनाख्त करे और उनके साथ सख्ती से पेश आये. इस तरह के लोग हिन्दू भी हैं और मुसलमान भी . सरकार को इस तरह  के लोगों को इतनी सज़ा देनी चाहिए कि  भविष्य में किसी की हिम्मत भी न पड़े कि वह साम्प्रदायिक माहौल को खराब करने के बारे में सोचे. इस बात की संभावना भी है कि मौजूदा मुख्यमंत्री की पार्टी के कुछ शुभचिंतक या उनकी पार्टी के सदस्य भी इस घिनौने खेल में शामिल हों . यह हुकूमत का फ़र्ज़ है कि इस तरह के लोगों को कानून की ताक़त से वाकिफ कराये और इलाके में शान्ति का निजाम कायम करे . 

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