शेष नारायण सिंह
अपने आप को मज़बूत करने के लिए भी सरकार ने कोई बहुत अच्छे काम नहीं किये हैं .संसद की ज़्यादातर स्थायी समितियों की रिपोर्टों में सरकार की छीछालेदर हो रही है . यह अलग बात है कि वह बातें मीडिया के ज़रिये आम जनता तक नहीं पंहुच रही हैं . शायद इसका मुख्य कारण यह है कि हमारी पत्रकार बिरादरी राजनीतिक रिपोर्टिंग करने के लिए अब संसद को राजनीति का केंद्र नहीं मानती. वह पार्टियों के दफ्तरों से ही राजनीतिक रिपोर्टिंग करने में आपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ लेती है . टेलिविज़न की खबरों के दबदबे के बाद देखा गया है कि बड़े नेताओं ,राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों और खबरें प्लांट करने वाले लोगों के सहारे ही आजकल राजनीतिक रिपोर्टिंग हो रही है . संसद की रिपोर्टिंग ज़्यादातर सदन में हो रही कार्यवाही तक सीमित है . इसके अलावा संसद से जो रिपोर्टिंग हो रही है वह राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की बाईट लेने में होती है और अकसर उनसे उन मुद्दों पर बात की जाती है जो बाहर राजनीतिक विवाद का विषय बन चुके होते हैं . जब से संसद की कार्यवाही में बाधा डालने का रिवाज़ शुरू हुआ है तब से संसद के दोनों सदनों में हुए हल्ले गुल्ले को ही संसद का काम मान लिया जा रहा है . यह एक बड़ी गलती हो रही है .जब से कमेटी सिस्टम लागू हुआ है ,संसद के काम का एक बड़ा हिस्सा कमेटियों की बैठक में अंजाम दिया जाता है . जो सांसद लोकसभा या राज्यसभा में लगे टी वी कैमरों के सामने शोरगुल कर रहे होते हैं वे ही संसदीय समितियों में गंभीर चर्चा कर रहे होते हैं . . ज़्यादातर समितियों में सरकार के कामकाज के तरीकों की समीक्षा की जाती है और सरकार को आड़े हाथों लिया जाता है . इन कमेटियों में सभी पार्टियों के सदस्य होते हैं . और यहाँ बहुमत की मनमानी नहीं चलती. संसद की स्थायी समितियों में तो लगभग सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं. कुछ फैसले जो सर्वसम्मति से नहीं लिए जाते ,उनमें सदस्य अपनी अलग राय दे सकते हैं . उनकी राय भी रिपोर्ट का हिस्सा होती है .
ऐसी ही एक रिपोर्ट हाथ लगी है जिसमें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के काम काज की धज्ज़ियाँ उडाई गयी हैं . सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता से सम्बंधित कमेटी ने अल्पसंख्यकों के लिए किये जा रहे काम में सम्बंधित मंत्रालय को गाफिल पाया है . बी एस पी के सांसद दारा सिंह चौहान की अध्यक्षता वाली समिति की बीसवीं रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए बजट में मिली हुई रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया और पैसे वापस भी करने पड़े. कमेटी की रिपोर्ट में लिखा गया है कि कमेटी इस बात से बहुत नाराज़ है कि २०१०-११ के साल में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ५८७ करोड़ सत्तर लाख की वह रक़म लौटा दी जो घनी अल्पसंख्यक आबादी के विकास के लिए मिले थे. हद तो तब हो गयी जब मुस्लिम बच्चों के वजीफे के लिए मिली हुई रक़म वापस कर दी गयी. यह रक़म संसद ने दी थी और सरकार ने इसे इसलिए वापस कर दिया कि वह इन स्कीमों में ज़रूरी काम नहीं तलाश पायी. यह सरकारी बाबूतंत्र के नाकारापन का नतीजा है ., प्री मैट्रिक वजीफों के मद में मिले हुए धन में से ३३ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए , मेरिट वजीफों के लिए मिली हुई रक़म में से २४ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए और पोस्ट मैट्रिक वजीफों के लिए मिली हुयेर रक़म में से २४ करोड़ रूपये वापस कर दिए गए . इसका मतलब यह हुआ कि सभी पार्टियों के प्रतिनिधित्व वाली संसद ने तो सरकार को मुसलमानों के विकास के लिए पैसा दिया था लेकिन सरकार ने उसका सही इस्तेमाल नहीं किया . इस के बारे में सरकार का कहना है कि उनके पास अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों से प्रस्ताव नहीं आये इसलिए उन्होंने संसद से मिली रक़म का सही इस्तेमाल नहीं किया . संसद की स्थायी समिति ने इस बात पर सख्त नाराज़गी जताई है और कहा है कि वजीफों वाली गलती बहुत बड़ी है और उसको दुरुस्त करने के लिए सरकार को काम करना चाहिए . बजट में वजीफों की घोषणा हो जाने के बाद सरकार को चाहिए कि उसके लिए ज़रूरी प्रचार प्रसार आदि करे जिससे जनता भी अपने जिले या राज्य के अधिकारियों पर दबाव बना सके और अल्पसंख्यकों के विकास के लिए मिली हुई रक़म सही तरीके से इस्तेमाल हो सके.
कमेटी के सदस्य इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे कि अल्पसंख्यक मंत्रालय में काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं . खाली पड़े पदों के बारे में सरकार के जवाब से कमेटी को सख्त नाराज़गी है .जहाँ उर्दू पढ़े लोगों को कहीं नौकरियाँ नहीं मिल रही हैं , वहीं केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने कमेटी को बताया है कि सहायक निदेशक ( उर्दू ) ,अनुवादक ( उर्दू) और टाइपिस्ट ( उर्दू ) की खाली जगहें नहीं भरी जा सकीं. सरकार की तरफ से बताया गया कि वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि यह खाली जगह भर दिए जाएँ लेकिन सफल नहीं हो रहे हैं . यह बात कमेटी के सदस्यों के गले नहीं उतरी , सही बात यह है कि सरकार के इस तर्क पर कोई भी विश्वास नहीं करेगा. कमेटी ने सख्ती से कहा है कि जो पद खाली पड़े हैं उनको मीडिया के ज़रिये प्रचारित किया जाए तो देश में उर्दू जानने वालों की इतनी कमी नहीं है कि लोग केंद्र सरकार में नौकरी के लिए मना कर देगें.
कमेटी की रिपोर्ट में लिखा है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने का फैसला तो सरकार ने कर लिया है लेकिन उसको लागू करने की दिशा में गंभीरता से काम नहीं हो रहा है .वजीफों के बारे में तो कुछ काम हुआ भी है लेकिन सच्चर कमेटी की बाकी सिफारिशों को टाला जा रहा है.सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को अगर सही तरीके से लागू कर दिया जाए तो अल्पसंख्यक समुदाय का बहुत फायदा होगा. कमेटी ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को सख्त हिदायत दी है कि सच्चर कमेटी को गंभीरता से लें और उसको लागू करने के लिए सार्थक प्रयास करें.
मुसलमानों के कल्याण के लिए प्रधान मंत्री ने १५ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी. इसको लागू करने में भी सरकार का रवैया गैरजिम्मेदार रहा है . १५ सूत्री कार्यक्रम पर नज़र रखने के लिए कुछ कमेटियां बनी है जिनकी बैठक ही समय समय पर नहीं होती . शिकायत मिली है कि जब बैठक होती भी है तो लोकसभा और राज्यसभा के वे सदस्य जो इन कमेटियों के मेंबर हैं , उन्हें इत्तिला ही नहीं की जाती . मंत्रालय के सेक्रेटरी ने अपनी पेशी के दौरान यह बात स्वीकार किया कि उनको इस सम्बन्ध में सदस्यों से मिली शिकायत की जानकारी है .
संसद की स्थायी समिति ने पाया कि २७ जनवरी २०१० के दिन एक योजना शुरू की गयी थी जिसके तहत अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास किया जाना था . जिस से उन महिलाओं का आत्म विश्वास बढे और वे सरकार के विभागों , बैंकों आदि में जाकर बात चीत कर सकें.यह काम गैर सरकारी संगठनों के ज़रिये होना था .इस मद में २००९-१० में ८ करोड़ और १०१०-११ में १५ करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया था . कमेटी को इस बात पर बहुत ही रंज है कि दो साल पहले शुरू हुई योजना पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया . जब सरकार से जवाब माँगा गया तो उनका जवाब बिलकुल टालू था . उनका कहना था कि उनको ऐसे संगठन ही नहीं मिले जिनके ज़रिये यह काम करवाया जा सके. कमेटी के सदस्यों और अन्य सांसदों ने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि अल्पसंख्यक मंत्रालय काम काम एक बहुत ही काबिल मंत्री को दिया गया है लेकिन फिर भी सरकारी बाबूतंत्र ने अपना काम सही ढंग से नहीं किया .
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