शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,२८ सितम्बर.बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार को घेरने के लिए सारी ताक़तों को आगे कर दीया है . आज संसद में दोनों सदनों के नेताओं, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने प्रेस को संबोधित किया और कहा कि कांग्रेस की सरकार के सामने विश्वसनीयता का संकट है और वह अपने ही विरोधाभासों के नीचे बुरी तरह से दब चुकी है . बीजेपी ने प्रधान मंत्री के उस बयान को गलत बताया जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी समेत विपक्ष की कुछ पार्टियां सरकार क स्थिर करने की कोशिश कर रही हैं . प्रधान मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा से लौटते समय यह आरोप लगाया था कि विपक्ष की कोशिश है कि देश में जल्दी ही चुनाव हो जाएँ जबकि अभी सरकार का कार्यकाल पूरा होने में करीब ढाई साल बाकी हैं . बीजेपी ने पी चिदंबरम को बचाने के मामले में प्रधान मंत्री को दोषी ठहराया लेकिन प्रधान मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं की जबकि अरुण जेटली ने साफ़ कहा कि प्रधान मंत्री को मालूम था कि २००८ में वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम और ए राजा मिलकर २ जी घोटाला कर रहे थे.
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लोक सभा में विपक्ष की नेता,सुषमा स्वराज ने कहा कि बीजेपी अभी चुनाव के लिए दबाव नहीं डाल रही है . अगर मध्यावधि चुनाव होता है तो उसके लिए कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाली सरकार का गलत काम ही ज़िम्मेदार होंगें . दोनों नेताओं ने गृह मंत्री पी चिदंबरम को भ्रष्ट बाताया और मांग की कि उनकी जांच की जानी चाहिए. बीजेपी ने दावा किया है कि जब यू पी ए सरकार में शामिल गैर कांग्रेस पार्टियों के नेता किसी गलती में पकडे जाते हैं तो कांग्रेस नेतृत्व और प्रधान मंत्री उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं ./ उन्होंने २ जी मामले में ए राजा को जेल में भेजने का ज़िक्र किया . सुषमा स्वराज ने कहा कि जब मंहगाई के बढ़ने की बात आती है तो एन सी पी के शरद पवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया जाता है . इसी तरह जब एयर इंडिया में भ्रष्टाचार की बात आती है तो एन सी पी के प्रफुल पटेल का नाम ले लिया जाता है लेकिन जब कांग्रेस के पी चिदंबरम पर बात आती है तो कांग्रेस उनके बचाव में आ जाती है . अरुण जेटली ने प्रधान मंत्री पर आरोप लगाया कि वे पी चिदंबरम का बचाव करके भ्रष्टाचार को शह दे रहे हैं ..उन्होंने कहा कि पी चिदंबरम दागी हैं और उन पर अगर भरोसा करते रहे तो प्रधान मंत्री देश का भरोसा बहुत जल्द खो देगें.बीजेपी ने अब कैश फार वोट मामले में फंसे अपने सदस्यों का बचाव करने का फैसला कर लिया है . कल सुषमा स्वराज जेल में बंद अपनी पार्टी के कैश फार वोट के अभियुक्तों से मिल कर आई हैं और आज अरुण जेटली और आडवानी से सुधीन्द्र कुलकर्णी और अन्य दो पूर्व सांसदों से मिलने जा रहे हैं . जब पूछा गया कि अब कैश फार वोट के केस से आप लोग अपनी पार्टी को कैसे बचायेगें तो अरुण जेटली ने कहा कि उनकी पार्टी के लोग तो भ्रष्टाचार को एक्सपोज कर रहे थे . वे अपराधी नहीं हैं .
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Thursday, September 29, 2011
Wednesday, August 31, 2011
अरुण जेटली की प्रतिभा के सामने नतमस्तक हुई सरकार
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,३० अगस्त . अन्ना हजारे के अनशन से पैदा हुए संकट को हल करने में जब सरकार पूरी तरह से फेल हो गयी तो राज्य सभा में विपक्ष के नेता , अरुण जेटली ने संसद और देश की राजनीतिक व्यवस्था के सामने मौजूद संकट का हल निकालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई. पता चला है कि सत्ता पक्ष की ओर से कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अरुण जेटली की हर सलाह को माना और आखिर में संकट का समाधान निकल सका और अन्ना हजारे के जीवन की रक्षा करने की कोशिश को गति मिली.सूत्र बताते हैं कि अरुण जेटली की प्रतिभा की ही ताक़त थी कि अन्ना हजारे से सीधा संपर्क करने का फैसला किया गया और केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख को प्रधान मंत्री के दूत के रूप में सक्रिय किया गया.
जब सरकार के केस को कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी जैसे लोगों ने बहुत ही कठिन मुकाम पर लाकर छोड़ दिया तो प्रधानमंत्री की सलाह पर सलमान खुर्शीद ने समस्या का हल निकालने की कोशिश शुरू की. मुश्किल वक़्त में उन्होंने अपने सुप्रीम कोर्ट के वकील दोस्त दोस्त अरुण जेटली के मदद माँगी.दोनों सुप्रीम कोर्ट में साथ साथ वकालत कर चुके हैं और अच्छे मित्र के रूप में जाने जाते हैं . अरुण जेटली की सलाह पर ही अन्ना हजारे से डायरेक्ट संवाद स्थापित किया गया. जब अन्ना के टीम के लोग बात चीत से अलग कर दिए गए तो काम बहुत ही आसान हो गया . सूत्र बताते हैं कि उसके बाद अरुण जेटली की प्रतिभा ही हर मोड़ पर सरकार के काम आई. . योजना के अनुसार काम हुआ और प्रधान मंत्री, प्रणब मुखर्जी, विलासराव देशमुख,संदीप दीक्षित और राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस में किसी को भे योजना के भनक नहीं थी. बताया गया है कि अरुण जेटली ने अपने नेताओं को सब कुछ बता रखा था. अन्ना हजारे से लोकसभा में पेश किये जाने वाले सरकार के बयान के बारे में चर्चा हो चुकी थी लेकिन उनकी टीम के किसी व्यक्ति को कुछ नहीं मालूम था. संसद में चल रहे बहस के दिन का घटनाक्रम देखने से पता लगता है कि जब अन्ना हजारे की टीम के सदस्य अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण सलमान खुर्शीद से मिलने गए तो उन्होंने लोकसभा में प्रस्तावित चर्चा की रूपरेखा उनको बता दी. सूत्रों का दावा है कि कानूनमंत्री को शायद यह पता नहीं था कि अन्ना हजारे ने सर्वोच्च स्तर पर हुई बातचीत को अपने सहायकों को नहीं बताया था. शायद इसीलिए प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल ने मीडिया में बहुत ही गुस्से में बयान दे दिया था. बहरहाल बाद में लोक सभा में सुषमा स्वराज और संदीप दीक्षित और राज्य सभा में अरुण जेटली ने बात को संभाल लिया . अन्ना के अनशन से उत्पन्न संकट का हल निकालने में राजनीतिक बिरादरी ने जो परिपक्वता दिखाई है उसे समकालीन भारतीय राजनीति में समझदारी का एक अहम मुकाम माना जाएगा.
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Monday, March 28, 2011
बीजेपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद को इस्तेमाल किया है अब तक
शेष नारायण सिंह
विकीलीक्स ने अमरीकी दूतावास के संदेशों को पब्लिक डोमेन में लाकर भारतीय राजनीति का बहुत उपकार किया है . विकीलीक्स की कृपा से ही हम जानते हैं कि बीजेपी की नज़र में हिंदुत्व एक अवसरवादी राजनीति है. बीजेपी के बड़े नेता और टाप पद के प्रमुख दावेदार अरुण जेटली ने यह बात अमरीकी अफसर राबर्ट ब्लेक को एक अन्तरंग बातचीत में बतायी थी .श्री जेटली ने उसको भरोसे के साथ बताया था कि हिन्दू राष्ट्रवाद एक अवसरवादी मुद्दा है . उन्होंने समझाया कि बातचीत शुरू करने के लिए यह ठीक तरीका है .इस से ज्यादा कुछ नहीं . आज से करीब छः साल पहले हुई इस बातचीत में अरुण जेटली ने अमरीका को बता दिया था कि लाल कृष्ण आडवानी कुछ वर्षों के बाद बीजेपी की राजनीति के हाशिये पर आ जायेगें और अगली पीढी के लोग काम संभाल लेगें. अगर आडवाणी को उस वक़्त मालूम होता कि अरुण जेटली उनके बारे में इस तरह की बात करते हैं तो आज अरुण जेटली का राजनीतिक जीवन बिलकुल अलग होता .यह जिस दौर की बात चीत है उसके बारे में सबको मालूम है अरुण जेटली को बीजेपी के आडवाणी गुट ख़ास नेता माना जाता था . आडवाणी से पिछले पांच वर्षों में अरुण जेटली को बहुत समर्थन मिला है . जानकार बताते हैं कि अरुण जेटली को राज्यसभा का सदस्य बनवाने में भी आडवानी की प्रमुख भूमिका रही है . उनको राज्यसभा में बीजेपी का नेता भी आडवाणी ने ही बनवाया था. २००९ में लाल कृष्णा आडवाणी पूरे देश में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन कर घूमते फिर रहे थे और अरुण जेटली उनको उसके चार साल पहले ही रिटायर करवाने की तैयारी में थे . . बाद में मीडिया को अरुण जेटली ने बताया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था . यहाँ उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब पहले दिन विकीलीक्स के संदेशों को द हिन्दू अखबार ने छापा था और पता चला था कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार को बचाने के लिए २००८ में पैसे चले थे ,तो क्यों उसको अंतिम सत्य मानकर संसद नहीं चलने दिया था . सच्चाई यह है सारा देश जानता है कि २००८ में परमाणु बिल के मुद्दे पर पैसे चले थे और उस काण्ड में लाल कृष्ण आडवाणी सहित बीजेपी के कई नेता किसी न किसी रूप में शामिल थे . लेकिन बीजेपी का यह आग्रह कि मनमोहन सिंह इस्तीफ़ा दें बिलकुल तर्कसंगत नहीं लगा था . अब नए खुलासे के बाद तो बीजेपी को उन सभी लोगों से माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर पार्टी के रूप में बीजेपी को सम्मान दिया है और अपनाया है . बीजेपी की वैचारिक सोच की नियंता पार्टी आर एस एस है . आर एस एस की राजनीति का मकसद घोषित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद है . १९८० में आर एस एस ने तत्कालीन जनता पार्टी को इसीलिये तोडा था कि पार्टी के बड़े नेता और समाजवादी चिन्तक मधु लिमये ने मांग कर दी थी कि जनता पार्टी में जो लोग भी शामिल थे, वे किसी अन्य राजनीतिक संगठन में न रहें . मधु लिमये ने हमेशा यही माना कि आर एस एस एक राजनीतिक संगठन है और हिन्दू राष्ट्रवाद उसकी मूल राजनीतिक अवधारणा है . आर एस एस ने अपने लोगों को पार्टी से अलग कर लिया और भारतीय जनता पार्टी का गठन कर दिया .शुरू में इस नई पार्टी ने उदारतावादी राजनीतिक सोच को अपनाने की कोशिश की . दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और गांधीवादी समाजवाद जैसे राजनीतिक दर्शन को अपनी बुनियादी सोच का आधार बनाने की कोशिश की . लेकिन जब १९८४ के लोकसभा चुनाव में ५४२ सीटों वाली लोकसभा में बीजेपी को दो सीटें मिलीं तो उदार राजनीतिक संगठन बनने का विचार हमेशा के लिए दफन कर दिया गया . जनवरी १९८५ में कलकत्ता में आर एस एस के टाप नेताओं की बैठक हुई जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी बुलाया गया और साफ़ बता दिया गया कि अब हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को चलाया जाएगा . वहीं तय कर लिया गया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद को रामजन्मभूमि बता कर राजनीतिक मोबिलाइज़ेशन किया जाएगा . आर एस एस के दो संगठनों, विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल को इस प्रोजेक्ट को चलाने का जिम्मा दिया गया. विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना १९६६ में हो चुकी थी लेकिन वह सक्रिय नहीं था. १९८५ के बाद उसे सक्रिय किया गया और कई बार तो यह भी लगने लगा कि आर एस एस वाले बीजेपी को पीछे धकेल कर वी एच पी से ही राजनीतिक काम करवाने की सोच रहे थे . लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चुनाव लड़ने का काम बीजेपी के जिम्मे ही रहा . १९८५ से अब तक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को ही अपना स्थायी भाव मानकर चल रही है ..कांग्रेस और अन्य सेकुलर पार्टियों ने अपना राजनीतिक काम ठीक से नहीं किया है इसलिए देश में हिन्दू राष्ट्रवाद का खूब प्रचार प्रसार हो गया है . जब बीजेपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक दर्शन के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया तो उस विचारधारा को मानने वाले बड़ी संख्या में उसके साथ जुड़ गए .वही लोग १९९१ में अयोध्या आये थे जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी . बाबरी मस्जिद को तबाह करने पर आमादा इन लोगों के ऊपर गोलियां भी चली थीं .वही लोग १९९२ में अयोध्या आये थे जिनकी मौजूदगी में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ , वही लोग साबरमती एक्सप्रेस में सवार थे जब गोधरा रेलवे स्टेशन पर उन्हें जिंदा जला दिया गया . . अब जब निजी बातचीत के आधार पर दुनिया को मालूम चल गया है कि बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद को केवल बातचीत का प्वाइंट मानती है तो उनके परिवार वालों पर क्या गुज़र रही होगी जो हिन्दू राष्ट्रवाद के चक्कर में मारे जा चुके हैं . . सबको मालूम है हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति के बल पर देश का नेतृत्व नहीं किया जा सकता . इसलिए बीजेपी के राष्ट्र को नेतृत्व देने की इच्छा रखने वाले नेताओं में अपने आपको हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति से दूर रखने की प्रवृत्ति पायी जाने लगी है . इसी सोच के तहत लाल कृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ़ की थी और अब अरुण जेटली इसको बोगस विचारधारा के रूप में पेश कर रहे हैं . लेकिन विकीलीक्स के खुलासों ने इस अहम जानकारी को पब्लिक डोमेन में डालकर भारतीय राजनीति के टाप नेताओं की सोच को उजागर किया है जिसकी सराहना के जानी चाहिए
विकीलीक्स ने अमरीकी दूतावास के संदेशों को पब्लिक डोमेन में लाकर भारतीय राजनीति का बहुत उपकार किया है . विकीलीक्स की कृपा से ही हम जानते हैं कि बीजेपी की नज़र में हिंदुत्व एक अवसरवादी राजनीति है. बीजेपी के बड़े नेता और टाप पद के प्रमुख दावेदार अरुण जेटली ने यह बात अमरीकी अफसर राबर्ट ब्लेक को एक अन्तरंग बातचीत में बतायी थी .श्री जेटली ने उसको भरोसे के साथ बताया था कि हिन्दू राष्ट्रवाद एक अवसरवादी मुद्दा है . उन्होंने समझाया कि बातचीत शुरू करने के लिए यह ठीक तरीका है .इस से ज्यादा कुछ नहीं . आज से करीब छः साल पहले हुई इस बातचीत में अरुण जेटली ने अमरीका को बता दिया था कि लाल कृष्ण आडवानी कुछ वर्षों के बाद बीजेपी की राजनीति के हाशिये पर आ जायेगें और अगली पीढी के लोग काम संभाल लेगें. अगर आडवाणी को उस वक़्त मालूम होता कि अरुण जेटली उनके बारे में इस तरह की बात करते हैं तो आज अरुण जेटली का राजनीतिक जीवन बिलकुल अलग होता .यह जिस दौर की बात चीत है उसके बारे में सबको मालूम है अरुण जेटली को बीजेपी के आडवाणी गुट ख़ास नेता माना जाता था . आडवाणी से पिछले पांच वर्षों में अरुण जेटली को बहुत समर्थन मिला है . जानकार बताते हैं कि अरुण जेटली को राज्यसभा का सदस्य बनवाने में भी आडवानी की प्रमुख भूमिका रही है . उनको राज्यसभा में बीजेपी का नेता भी आडवाणी ने ही बनवाया था. २००९ में लाल कृष्णा आडवाणी पूरे देश में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बन कर घूमते फिर रहे थे और अरुण जेटली उनको उसके चार साल पहले ही रिटायर करवाने की तैयारी में थे . . बाद में मीडिया को अरुण जेटली ने बताया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा था . यहाँ उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब पहले दिन विकीलीक्स के संदेशों को द हिन्दू अखबार ने छापा था और पता चला था कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार को बचाने के लिए २००८ में पैसे चले थे ,तो क्यों उसको अंतिम सत्य मानकर संसद नहीं चलने दिया था . सच्चाई यह है सारा देश जानता है कि २००८ में परमाणु बिल के मुद्दे पर पैसे चले थे और उस काण्ड में लाल कृष्ण आडवाणी सहित बीजेपी के कई नेता किसी न किसी रूप में शामिल थे . लेकिन बीजेपी का यह आग्रह कि मनमोहन सिंह इस्तीफ़ा दें बिलकुल तर्कसंगत नहीं लगा था . अब नए खुलासे के बाद तो बीजेपी को उन सभी लोगों से माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर पार्टी के रूप में बीजेपी को सम्मान दिया है और अपनाया है . बीजेपी की वैचारिक सोच की नियंता पार्टी आर एस एस है . आर एस एस की राजनीति का मकसद घोषित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद है . १९८० में आर एस एस ने तत्कालीन जनता पार्टी को इसीलिये तोडा था कि पार्टी के बड़े नेता और समाजवादी चिन्तक मधु लिमये ने मांग कर दी थी कि जनता पार्टी में जो लोग भी शामिल थे, वे किसी अन्य राजनीतिक संगठन में न रहें . मधु लिमये ने हमेशा यही माना कि आर एस एस एक राजनीतिक संगठन है और हिन्दू राष्ट्रवाद उसकी मूल राजनीतिक अवधारणा है . आर एस एस ने अपने लोगों को पार्टी से अलग कर लिया और भारतीय जनता पार्टी का गठन कर दिया .शुरू में इस नई पार्टी ने उदारतावादी राजनीतिक सोच को अपनाने की कोशिश की . दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और गांधीवादी समाजवाद जैसे राजनीतिक दर्शन को अपनी बुनियादी सोच का आधार बनाने की कोशिश की . लेकिन जब १९८४ के लोकसभा चुनाव में ५४२ सीटों वाली लोकसभा में बीजेपी को दो सीटें मिलीं तो उदार राजनीतिक संगठन बनने का विचार हमेशा के लिए दफन कर दिया गया . जनवरी १९८५ में कलकत्ता में आर एस एस के टाप नेताओं की बैठक हुई जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी बुलाया गया और साफ़ बता दिया गया कि अब हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को चलाया जाएगा . वहीं तय कर लिया गया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद को रामजन्मभूमि बता कर राजनीतिक मोबिलाइज़ेशन किया जाएगा . आर एस एस के दो संगठनों, विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल को इस प्रोजेक्ट को चलाने का जिम्मा दिया गया. विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना १९६६ में हो चुकी थी लेकिन वह सक्रिय नहीं था. १९८५ के बाद उसे सक्रिय किया गया और कई बार तो यह भी लगने लगा कि आर एस एस वाले बीजेपी को पीछे धकेल कर वी एच पी से ही राजनीतिक काम करवाने की सोच रहे थे . लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चुनाव लड़ने का काम बीजेपी के जिम्मे ही रहा . १९८५ से अब तक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति को ही अपना स्थायी भाव मानकर चल रही है ..कांग्रेस और अन्य सेकुलर पार्टियों ने अपना राजनीतिक काम ठीक से नहीं किया है इसलिए देश में हिन्दू राष्ट्रवाद का खूब प्रचार प्रसार हो गया है . जब बीजेपी ने हिन्दू राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक दर्शन के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया तो उस विचारधारा को मानने वाले बड़ी संख्या में उसके साथ जुड़ गए .वही लोग १९९१ में अयोध्या आये थे जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी . बाबरी मस्जिद को तबाह करने पर आमादा इन लोगों के ऊपर गोलियां भी चली थीं .वही लोग १९९२ में अयोध्या आये थे जिनकी मौजूदगी में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ , वही लोग साबरमती एक्सप्रेस में सवार थे जब गोधरा रेलवे स्टेशन पर उन्हें जिंदा जला दिया गया . . अब जब निजी बातचीत के आधार पर दुनिया को मालूम चल गया है कि बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद को केवल बातचीत का प्वाइंट मानती है तो उनके परिवार वालों पर क्या गुज़र रही होगी जो हिन्दू राष्ट्रवाद के चक्कर में मारे जा चुके हैं . . सबको मालूम है हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति के बल पर देश का नेतृत्व नहीं किया जा सकता . इसलिए बीजेपी के राष्ट्र को नेतृत्व देने की इच्छा रखने वाले नेताओं में अपने आपको हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति से दूर रखने की प्रवृत्ति पायी जाने लगी है . इसी सोच के तहत लाल कृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ़ की थी और अब अरुण जेटली इसको बोगस विचारधारा के रूप में पेश कर रहे हैं . लेकिन विकीलीक्स के खुलासों ने इस अहम जानकारी को पब्लिक डोमेन में डालकर भारतीय राजनीति के टाप नेताओं की सोच को उजागर किया है जिसकी सराहना के जानी चाहिए
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हिन्दू राष्ट्रवाद
Friday, June 25, 2010
प्रतिष्ठित अखबार द हिन्दू और जन पक्षधरता की पत्रकारिता
शेष नारायण सिंह
अंग्रेज़ी के अखबार द हिन्दू ने खोजी और जन पक्षधरता की पत्रकारिता का एक नया कारनामा अंजाम दिया है . अखबार ने छाप दिया है कि भोपाल के गैस पीड़ितों के साथ जो अन्याय हुआ है उसके लिए कांग्रेस और भी जे पी के नेता बराबर के ज़िम्मेदार हैं .भोपाल काण्ड के वक़्त यूनियन कार्बाइड कंपनी के अध्यक्ष , वारेन एंडरसन के मामले में एक नया आयाम सामने आ गया है . बी जे पी वाले भोपाल के बहाने एक और बोफोर्स की तलाश में हैं. सारी ज़िम्मेदारी राजीव गाँधी के मत्थे मढ़ देने के चक्कर में हैं जिस से सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को रक्षात्मक मुद्रा में लाया जा सके . लेकिन अब खेल बदल गया है . अब पता चाल है कि पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता, अरुण जेटली जब कानून मंत्री थे तो उन्होंने भी एंडरसन के बारे में वही कहा था जो कहने के आरोप में बी जे पी वाले कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं . आज देश के सबसे प्रतिष्ठित अखबार में छप गया है कि २५ सितम्बर को २००१ को कानून मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने फ़ाइल में लिखा था कि एंडरसन को वापस बुला कर उन पर मुक़दमा चलाने का केस बहुत कमज़ोर है . जब यह नोट अरुण जेटली ने लिखा उस वक़्त उनके ऊपर कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री पद की ज़िम्मेदारी थी . यही नहीं उस वक़्त देश के अटार्नी जनरल के पद पर देश के सर्वोच्च योग्यता वाले एक वकील, सोली सोराबजी विद्यमान थे. सोराबजी ने अपनी राय में लिखा था कि अब तक जुटाया गया साक्ष्य ऐसा नहीं है जिसके बल पर अमरीकी अदालतों में मामला जीता जा सके. अरुण जेटली के नोट में जो लिखा है उससे एंडरसन बिलकुल पाक साफ़ इंसान के रूप में सामने आता है . ज़ाहिर है आज बी जे पी राजीव गांधी के खिलाफ जो केस बना रही है , उसकी वह राय तब नहीं थी जब वह सरकार में थी. अरुण जेटली ने सरकारी फ़ाइल में लिखा है कि यह कोई मामला ही नहीं है कि मिस्टर एंडरसन ने कोई ऐसा काम किया जिस से गैस लीक हुई और जान माल की भारी क्षति हुई . श्री जेटली ने लिखा है कि कहीं भी कोई सबूत नहीं है कि मिस्टर एंडरसन को मालूम था कि प्लांट की डिजाइन में कहीं कोई दोष है या कहीं भी सुरक्षा की बुनियादी ज़रूरतों से समझौता किया गया है. कानून मंत्री, अरुण जेटली कहते हैं कि सारा मामला इस अवधारणा पर आधारित है कि कंपनी के अध्यक्ष होने के नाते एंडरसन को मालूम होना चाहिए कि उनकी भोपाल यूनिट में क्या गड़बड़ियां हैं . श्री जेटली के नोट में साफ़ लिखा है कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि अमरीका में मौजूद मुख्य कंपनी के अध्यक्ष ने भोपाल की फैक्टरी के रोज़ के काम काज में दखल दिया. उन्होंने कहा कि हालांकि केस बहुत कमज़ोर है लेकिन अगर मामले को आगे तक ले जाने की पालिसी बनायी जाती है तो केस दायर किया जा सकता है . ज़ाहिर हैं उस वक़्त की सरकार ने कानून के विद्वान् अपने मंत्री, अरुण जेटली की राय को जान लेने के बाद मामले को आगे नहीं बढ़ाया .
मौजूदा सरकार की भी यही राय है . उन्हें भी मालूम है कि केस बहुत कमज़ोर है लेकिन बी जे पी की ओर से मीडिया के ज़रिये शुरू किये गए अभियान से संभावित राजनीतिक नुकसान के डर से यू पी ए सरकार भी मामले चलाने का स्वांग करने के पक्ष में लगते हैं .वैसे भी बी जे पी ने इस मामले को अपनी टाप प्रायरिटी पर डाल दिया है . पता चला है कि संसद के मानसून सत्र में वे इस मामले पर भारी ताक़त के साथ जुटने वाले हैं . अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एंडरसन के केस में राजीव गाँधी, अर्जुन सिंह वगैरह के साथ क्या अरुण जेटली को भी कटघरे में रखने की कोशिश की जायेगी क्योंकि अगर कांग्रेस ज़िम्मेदार है तो ठीक वही ज़िम्मेदारी अरुण जेटली पर भी बनती है .सरकार में मंत्री के रूप में तो अरुण जेटली ने बयान दिया ही था, निजी हैसियत में भी उन्होंने यूनियन कार्बाइड खरीदने वाली वाली कंपनी डाव केमिकल्स को कानूनी सलाह दी थी कि डाव को भोपाल गैस लीक मामले के किसी भी सिविल या क्रिमनल मुक़दमे में ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता..यह सलाह अरुण जेटली ने २००६ में दी थी जाब वे डाव केमिकल्स के एडवोकेट थे.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक फायदे के लिए बी जे पी वाले भोपाल के पीड़ितों को राहत देने के काम में हाथ डालते हैं कि नहीं . इस में दो राय नहीं है कि १९८४ से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें दिल्ली और भोपाल में आई हैं वे सब भोपाल के गैस पीड़ितों के गुनहगार हैं . लेकिन सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी कांगेस की है . अब यह साफ़ हो गया है कि बी जेपी का सबसे मज़बूत नेता भी उसमें शामिल था. अब यह भी पता है कि अमरीका परस्ती की अपनी नीति के कारण न तो , बी जे पी और न ही कांग्रेस भोपाल के पीड़ितों का पक्ष लेगी . ऐसी हालत में मीडिया की ज़िम्मेदारी है कि वह दोषियों को सामने लाये और सार्वजनिक रूप से कायल करे. प्रतिष्ठित अखबार हिन्दू ने बिगुल बजा दिया है , बाकी मीडिया संगठनों को भी कांग्रेस और बी जे पी के दोषी नेताओं के एकार्तूतों को सार्वजनिक डोमेन में लाने में मदद करनी चाहिये .
अंग्रेज़ी के अखबार द हिन्दू ने खोजी और जन पक्षधरता की पत्रकारिता का एक नया कारनामा अंजाम दिया है . अखबार ने छाप दिया है कि भोपाल के गैस पीड़ितों के साथ जो अन्याय हुआ है उसके लिए कांग्रेस और भी जे पी के नेता बराबर के ज़िम्मेदार हैं .भोपाल काण्ड के वक़्त यूनियन कार्बाइड कंपनी के अध्यक्ष , वारेन एंडरसन के मामले में एक नया आयाम सामने आ गया है . बी जे पी वाले भोपाल के बहाने एक और बोफोर्स की तलाश में हैं. सारी ज़िम्मेदारी राजीव गाँधी के मत्थे मढ़ देने के चक्कर में हैं जिस से सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को रक्षात्मक मुद्रा में लाया जा सके . लेकिन अब खेल बदल गया है . अब पता चाल है कि पार्टी के सबसे प्रभावशाली नेता, अरुण जेटली जब कानून मंत्री थे तो उन्होंने भी एंडरसन के बारे में वही कहा था जो कहने के आरोप में बी जे पी वाले कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं . आज देश के सबसे प्रतिष्ठित अखबार में छप गया है कि २५ सितम्बर को २००१ को कानून मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने फ़ाइल में लिखा था कि एंडरसन को वापस बुला कर उन पर मुक़दमा चलाने का केस बहुत कमज़ोर है . जब यह नोट अरुण जेटली ने लिखा उस वक़्त उनके ऊपर कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री पद की ज़िम्मेदारी थी . यही नहीं उस वक़्त देश के अटार्नी जनरल के पद पर देश के सर्वोच्च योग्यता वाले एक वकील, सोली सोराबजी विद्यमान थे. सोराबजी ने अपनी राय में लिखा था कि अब तक जुटाया गया साक्ष्य ऐसा नहीं है जिसके बल पर अमरीकी अदालतों में मामला जीता जा सके. अरुण जेटली के नोट में जो लिखा है उससे एंडरसन बिलकुल पाक साफ़ इंसान के रूप में सामने आता है . ज़ाहिर है आज बी जे पी राजीव गांधी के खिलाफ जो केस बना रही है , उसकी वह राय तब नहीं थी जब वह सरकार में थी. अरुण जेटली ने सरकारी फ़ाइल में लिखा है कि यह कोई मामला ही नहीं है कि मिस्टर एंडरसन ने कोई ऐसा काम किया जिस से गैस लीक हुई और जान माल की भारी क्षति हुई . श्री जेटली ने लिखा है कि कहीं भी कोई सबूत नहीं है कि मिस्टर एंडरसन को मालूम था कि प्लांट की डिजाइन में कहीं कोई दोष है या कहीं भी सुरक्षा की बुनियादी ज़रूरतों से समझौता किया गया है. कानून मंत्री, अरुण जेटली कहते हैं कि सारा मामला इस अवधारणा पर आधारित है कि कंपनी के अध्यक्ष होने के नाते एंडरसन को मालूम होना चाहिए कि उनकी भोपाल यूनिट में क्या गड़बड़ियां हैं . श्री जेटली के नोट में साफ़ लिखा है कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि अमरीका में मौजूद मुख्य कंपनी के अध्यक्ष ने भोपाल की फैक्टरी के रोज़ के काम काज में दखल दिया. उन्होंने कहा कि हालांकि केस बहुत कमज़ोर है लेकिन अगर मामले को आगे तक ले जाने की पालिसी बनायी जाती है तो केस दायर किया जा सकता है . ज़ाहिर हैं उस वक़्त की सरकार ने कानून के विद्वान् अपने मंत्री, अरुण जेटली की राय को जान लेने के बाद मामले को आगे नहीं बढ़ाया .
मौजूदा सरकार की भी यही राय है . उन्हें भी मालूम है कि केस बहुत कमज़ोर है लेकिन बी जे पी की ओर से मीडिया के ज़रिये शुरू किये गए अभियान से संभावित राजनीतिक नुकसान के डर से यू पी ए सरकार भी मामले चलाने का स्वांग करने के पक्ष में लगते हैं .वैसे भी बी जे पी ने इस मामले को अपनी टाप प्रायरिटी पर डाल दिया है . पता चला है कि संसद के मानसून सत्र में वे इस मामले पर भारी ताक़त के साथ जुटने वाले हैं . अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एंडरसन के केस में राजीव गाँधी, अर्जुन सिंह वगैरह के साथ क्या अरुण जेटली को भी कटघरे में रखने की कोशिश की जायेगी क्योंकि अगर कांग्रेस ज़िम्मेदार है तो ठीक वही ज़िम्मेदारी अरुण जेटली पर भी बनती है .सरकार में मंत्री के रूप में तो अरुण जेटली ने बयान दिया ही था, निजी हैसियत में भी उन्होंने यूनियन कार्बाइड खरीदने वाली वाली कंपनी डाव केमिकल्स को कानूनी सलाह दी थी कि डाव को भोपाल गैस लीक मामले के किसी भी सिविल या क्रिमनल मुक़दमे में ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता..यह सलाह अरुण जेटली ने २००६ में दी थी जाब वे डाव केमिकल्स के एडवोकेट थे.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक फायदे के लिए बी जे पी वाले भोपाल के पीड़ितों को राहत देने के काम में हाथ डालते हैं कि नहीं . इस में दो राय नहीं है कि १९८४ से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें दिल्ली और भोपाल में आई हैं वे सब भोपाल के गैस पीड़ितों के गुनहगार हैं . लेकिन सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी कांगेस की है . अब यह साफ़ हो गया है कि बी जेपी का सबसे मज़बूत नेता भी उसमें शामिल था. अब यह भी पता है कि अमरीका परस्ती की अपनी नीति के कारण न तो , बी जे पी और न ही कांग्रेस भोपाल के पीड़ितों का पक्ष लेगी . ऐसी हालत में मीडिया की ज़िम्मेदारी है कि वह दोषियों को सामने लाये और सार्वजनिक रूप से कायल करे. प्रतिष्ठित अखबार हिन्दू ने बिगुल बजा दिया है , बाकी मीडिया संगठनों को भी कांग्रेस और बी जे पी के दोषी नेताओं के एकार्तूतों को सार्वजनिक डोमेन में लाने में मदद करनी चाहिये .
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शेष नारायण सिंह,
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Wednesday, November 18, 2009
बी जे पी में किसी भी गुट की मनमानी नहीं चलेगी
शेष नारायण सिंह
बी जे पी को एक बँटा हुआ घर कहकर नए संघ प्रमुख ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि बी जे पी में किसी भी गुट की मनमानी नहीं चलेगी आर एस एस ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि देश में हिंदुत्व की राजनीति पर केवल उस का कण्ट्रोल है. दिल्ली में बैठे कॉकटेल सर्किट वालों की किसी भी राय का संघ के फैसलों पर कोई असर नहीं पड़ता.पिछले कई महीनों से चल रहे आतंरिक विवाद का जब कोई हल नहीं निकला तो , संघ के मुखिया , मोहन भागवत ने बाकायदा एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में जो कुछ उन्होंने कहा , उसका भावार्थ यह है कि बी जे पी में अब तक सक्रिय अडवाणी और राजनाथ गुटों को किनारे करने का फैसला हो चुका है. दिल्ली में सक्रिय मौजूदा बी जे पी नेताओं की ऐसी ताक़त है कि वे किसी भी नेता के सांकेतिक भाषा में दिए गए बयान को अपने हिसाब से मीडिया में व्याख्या करवा देते हैं . लगता है कि नागपुर वालों को भी इस ताक़त का अंदाज़ लग गया है. इसीलिये अबकी बार , मोहन भागवत ने हिन्दी के सबसे बड़े टी वी न्यूज़ चैनल को अपनी बात कहने के लिए चुना.. कहीं कोई शक न रह जाए इस लिए उन्होंने अडवाणी के करीबी चार बड़े नेताओं का नाम लेकर उन्हें अध्यक्ष पद की दावेदारी से बाहर कर दिया. जब अरुण जेटली,सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू बी जे पी संगठन से बाहर हो जायेंगें , तो एक तरह से अडवाणी की ताक़त ख़त्म हो जायेगी क्योंकि लोकसभा में पार्टी के नेता पद से अडवाणी को हटाने का फैसला पहले ही किया जा चुका है. उस फैसले को लागू करने में थोड़ी मोहलत दे दी गयी है लेकिन हिंदुत्व की राजनीति की बारीकियां समझने वाले जानते हैं कि अडवाणी के लिए अब लोकसभा में नेता बने रहना असंभव है . इसी तरह तो उनके जिन्नाह वाले भाषण के बाद अडवाणी को अध्यक्ष पद से हटाया गया था. उस वक़्त भी कुछ दिन तक दिल्ली के सत्ता के गलियारों में और मीडिया में प्लांट की गयी ख़बरों के ज़रिये फैसले को टालने की कोशिश की गयी थी लेकिन आखिर में जाना ही पड़ा था. इस बार भी मामला लेट लतीफ़ तो हो सकता है लेकिन अडवाणी और राजनाथ के ख़ास बन्दों के कब्जे से संघ के आला नेता अपनी पार्टी को निकाल लेने का मन बना चुके हैं . यह भी एक सच है कि दिल्ली में जमे हुए अमीर-उमरा आसानी से सत्ता नहीं छोड़ते लेकिन नागपुर की ताक़त को भी कम करके नहीं आँका जा सकता . नागपुर को भी मालूम है कि दिल्ली वाले पूरी कोशिश करेंगें लेकिन आर एस एस का काम भी पूरी प्लानिंग के साथ होता है . १९९८ में सत्ता में आने के बाद जिस तरह से बी जे पी के नेताओं और मंत्रियों ने कांग्रेसियों की तरह घूस और बे-ईमान्री का आचरण शुरू किया था , उस से आर एस एस के नेताओं को बहुत निराशा हुई थी. उसी दौर में उन्होंने अपने सबसे काबिल संगठनकर्ता , गोविन्दाचार्य को बी जे पी से अलग कर दिया था और उन्हें बी जे पी का विकल्प तलाशने और राजनीतिक हस्तक्षेप की अन्य संभावनाओं को तलाशने का काम सौंप दिया था.. राष्ट्र निर्माण जैसे नारों के साथ गोविन्दाचार्य तभी से इस काम में जुटे हुए हैं. उनकी कोशिश है कि आर एस एस के बाहर से भी लोगों को लाकर जोड़ा जाए. देश के ज़्यादातर गांधीवादी संगठनों पर आर एस एस का कब्जा हो ही चुका है . कोशिश की जा रही है कि हिंद स्वराज जैसी गाँधी की विरासत की निशानियों की भी हिन्दुत्ववादी व्याख्या कर ली जाये और जल्द से जल्द बी जे पी का विकल्प तैयार कर लिया जाए. अभी तक के एप्रगति को देखन इसे लगता है कि उसमें अभी कुछ और टाइम लगेगा. शायद इसीलिये संघ ने फैसला किया है कि तब तक दिल्ली में जमे हुए नेताओं के कब्जे से बाहर लाकर अपनी राजनीतिक शाखा को अपने ख़ास बन्दों के हवाले कर दिया आये. जिस से अगर बहुत ज़रूरी न हो तो नयी पार्टी बनाने की झंझट से बचा जा सके.
महाराष्ट्र के बी जे पी अध्यक्ष , नितिन गडकरी की ताजपोशी की तैयारी, शायद इसी योजना का हिस्सा है . नितिन गडकरी एक कुशाग्रबुद्धि इंसान हैं . पेशे से इंजीनियर , नितिन गडकरी ने मुंबई वालों को बहुत ही राहत दी थी जब पी डब्ल्यू डी मंत्री के रूप में शहर में बहुत सारे काम किये थे. वे नागपुर के हैं और वर्तमान संघ प्रमुख के ख़ास बन्दे के रूप में उनकी पहचान होती. है.उनके खिलाफ स्थापित सत्ता वालों का जो अभियान चल रहा है उसमें यह कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कोई काम नहीं किया है. जो लोग यह कुतर्क चला रहे हैं उनको भी मालूम है कि यह बात चलने वाली नहीं है. मुंबई जैसे नगर में जहां दुनिया भर की गतिविधियाँ चलती रहती हैं , वहां नितिन गडकरी की इज्ज़त है, वे राज्य में मंत्री रह चुके हैं , उनके पीछे आर एस एस का पूरा संगठन खडा है तो उनकी सफलता की संभावनाएं अपने आप बढ़ जाती हैं . और इस बात को तो हमेशा के लिए दफन कर दिया जाना चाहिए कि दिल्ली में ही राष्ट्रीय अनुभव होते हैं . मुंबई, बेंगलुरु , हैदराबाद आदि शहरों में भी राष्ट्रीय अनुभव हो सकते हैं . बहरहाल अब लग रहा है कि नितिन गडकरी ही बी जे पी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जायेंगें और दिल्ली में रहने वाले नेताओं को एक बार फिर एक प्रादेशिक नेता के मातहत काम करने को मजबूर होना पड़ेगा . राजंथ सिंह की तैनाती के बाद भी दिल्ली वाली जमात को इसी दौर से गुज़रना पड़ा था. .. यह बात भी सच है कि दिल्ली वाले नेता नागपुर की मनमानी को आसानी से मानने वाले नहीं है ..अडवाणी गुट की एक प्रमुख नेता, सुषमा स्वराज ने बयान दिया है कि अडवाणी से पांच साल के लिए लोक सभा में बी जे पी के नेता चुने गए हैं और वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगें . राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इस बयान में बगावत की बू आ रही है . हो सकता है सच भी हो लेकिन हिंदुत्व की राजनीति में बड़े बड़े लोगों की बगावत को कुचल दिया गया है. सुषमा स्वराज की बी जे पी में रहते हुए, संघ के खिलाफ झंडा बुलंद करने की वैसे भी हैसियत नहीं है क्योंकि वे मूल रूप से समाजवादी राजनीति के रास्ते सत्ता की राजनीति में आई हैं . जिस उम्र में लोग संघ की राजनीति में शामिल होते हैं उस दौर में वे अम्बाला में रह कर आर एस एस को एक फासिस्ट संगठन कहती थीं. बाद में जनता पार्टी बनने पर मंत्री बनीं और जब बी जे पी वाले जनता पार्टी से अलग हुए तो हिन्दुत्ववादी बनीं. इसलिए संघ की राजनीति में उनकी पोजीशन दूसरे स्तर की है. इस लिए अब इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दुत्व की राजनीति इस देश में करवट ले रही है और आने वाले कुछ महीनों में हिन्दुत्ववादी ताक़तें रिग्रुप होने जा रही हैं .
बी जे पी को एक बँटा हुआ घर कहकर नए संघ प्रमुख ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि बी जे पी में किसी भी गुट की मनमानी नहीं चलेगी आर एस एस ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि देश में हिंदुत्व की राजनीति पर केवल उस का कण्ट्रोल है. दिल्ली में बैठे कॉकटेल सर्किट वालों की किसी भी राय का संघ के फैसलों पर कोई असर नहीं पड़ता.पिछले कई महीनों से चल रहे आतंरिक विवाद का जब कोई हल नहीं निकला तो , संघ के मुखिया , मोहन भागवत ने बाकायदा एक न्यूज़ चैनल को इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में जो कुछ उन्होंने कहा , उसका भावार्थ यह है कि बी जे पी में अब तक सक्रिय अडवाणी और राजनाथ गुटों को किनारे करने का फैसला हो चुका है. दिल्ली में सक्रिय मौजूदा बी जे पी नेताओं की ऐसी ताक़त है कि वे किसी भी नेता के सांकेतिक भाषा में दिए गए बयान को अपने हिसाब से मीडिया में व्याख्या करवा देते हैं . लगता है कि नागपुर वालों को भी इस ताक़त का अंदाज़ लग गया है. इसीलिये अबकी बार , मोहन भागवत ने हिन्दी के सबसे बड़े टी वी न्यूज़ चैनल को अपनी बात कहने के लिए चुना.. कहीं कोई शक न रह जाए इस लिए उन्होंने अडवाणी के करीबी चार बड़े नेताओं का नाम लेकर उन्हें अध्यक्ष पद की दावेदारी से बाहर कर दिया. जब अरुण जेटली,सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू बी जे पी संगठन से बाहर हो जायेंगें , तो एक तरह से अडवाणी की ताक़त ख़त्म हो जायेगी क्योंकि लोकसभा में पार्टी के नेता पद से अडवाणी को हटाने का फैसला पहले ही किया जा चुका है. उस फैसले को लागू करने में थोड़ी मोहलत दे दी गयी है लेकिन हिंदुत्व की राजनीति की बारीकियां समझने वाले जानते हैं कि अडवाणी के लिए अब लोकसभा में नेता बने रहना असंभव है . इसी तरह तो उनके जिन्नाह वाले भाषण के बाद अडवाणी को अध्यक्ष पद से हटाया गया था. उस वक़्त भी कुछ दिन तक दिल्ली के सत्ता के गलियारों में और मीडिया में प्लांट की गयी ख़बरों के ज़रिये फैसले को टालने की कोशिश की गयी थी लेकिन आखिर में जाना ही पड़ा था. इस बार भी मामला लेट लतीफ़ तो हो सकता है लेकिन अडवाणी और राजनाथ के ख़ास बन्दों के कब्जे से संघ के आला नेता अपनी पार्टी को निकाल लेने का मन बना चुके हैं . यह भी एक सच है कि दिल्ली में जमे हुए अमीर-उमरा आसानी से सत्ता नहीं छोड़ते लेकिन नागपुर की ताक़त को भी कम करके नहीं आँका जा सकता . नागपुर को भी मालूम है कि दिल्ली वाले पूरी कोशिश करेंगें लेकिन आर एस एस का काम भी पूरी प्लानिंग के साथ होता है . १९९८ में सत्ता में आने के बाद जिस तरह से बी जे पी के नेताओं और मंत्रियों ने कांग्रेसियों की तरह घूस और बे-ईमान्री का आचरण शुरू किया था , उस से आर एस एस के नेताओं को बहुत निराशा हुई थी. उसी दौर में उन्होंने अपने सबसे काबिल संगठनकर्ता , गोविन्दाचार्य को बी जे पी से अलग कर दिया था और उन्हें बी जे पी का विकल्प तलाशने और राजनीतिक हस्तक्षेप की अन्य संभावनाओं को तलाशने का काम सौंप दिया था.. राष्ट्र निर्माण जैसे नारों के साथ गोविन्दाचार्य तभी से इस काम में जुटे हुए हैं. उनकी कोशिश है कि आर एस एस के बाहर से भी लोगों को लाकर जोड़ा जाए. देश के ज़्यादातर गांधीवादी संगठनों पर आर एस एस का कब्जा हो ही चुका है . कोशिश की जा रही है कि हिंद स्वराज जैसी गाँधी की विरासत की निशानियों की भी हिन्दुत्ववादी व्याख्या कर ली जाये और जल्द से जल्द बी जे पी का विकल्प तैयार कर लिया जाए. अभी तक के एप्रगति को देखन इसे लगता है कि उसमें अभी कुछ और टाइम लगेगा. शायद इसीलिये संघ ने फैसला किया है कि तब तक दिल्ली में जमे हुए नेताओं के कब्जे से बाहर लाकर अपनी राजनीतिक शाखा को अपने ख़ास बन्दों के हवाले कर दिया आये. जिस से अगर बहुत ज़रूरी न हो तो नयी पार्टी बनाने की झंझट से बचा जा सके.
महाराष्ट्र के बी जे पी अध्यक्ष , नितिन गडकरी की ताजपोशी की तैयारी, शायद इसी योजना का हिस्सा है . नितिन गडकरी एक कुशाग्रबुद्धि इंसान हैं . पेशे से इंजीनियर , नितिन गडकरी ने मुंबई वालों को बहुत ही राहत दी थी जब पी डब्ल्यू डी मंत्री के रूप में शहर में बहुत सारे काम किये थे. वे नागपुर के हैं और वर्तमान संघ प्रमुख के ख़ास बन्दे के रूप में उनकी पहचान होती. है.उनके खिलाफ स्थापित सत्ता वालों का जो अभियान चल रहा है उसमें यह कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कोई काम नहीं किया है. जो लोग यह कुतर्क चला रहे हैं उनको भी मालूम है कि यह बात चलने वाली नहीं है. मुंबई जैसे नगर में जहां दुनिया भर की गतिविधियाँ चलती रहती हैं , वहां नितिन गडकरी की इज्ज़त है, वे राज्य में मंत्री रह चुके हैं , उनके पीछे आर एस एस का पूरा संगठन खडा है तो उनकी सफलता की संभावनाएं अपने आप बढ़ जाती हैं . और इस बात को तो हमेशा के लिए दफन कर दिया जाना चाहिए कि दिल्ली में ही राष्ट्रीय अनुभव होते हैं . मुंबई, बेंगलुरु , हैदराबाद आदि शहरों में भी राष्ट्रीय अनुभव हो सकते हैं . बहरहाल अब लग रहा है कि नितिन गडकरी ही बी जे पी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जायेंगें और दिल्ली में रहने वाले नेताओं को एक बार फिर एक प्रादेशिक नेता के मातहत काम करने को मजबूर होना पड़ेगा . राजंथ सिंह की तैनाती के बाद भी दिल्ली वाली जमात को इसी दौर से गुज़रना पड़ा था. .. यह बात भी सच है कि दिल्ली वाले नेता नागपुर की मनमानी को आसानी से मानने वाले नहीं है ..अडवाणी गुट की एक प्रमुख नेता, सुषमा स्वराज ने बयान दिया है कि अडवाणी से पांच साल के लिए लोक सभा में बी जे पी के नेता चुने गए हैं और वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगें . राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि इस बयान में बगावत की बू आ रही है . हो सकता है सच भी हो लेकिन हिंदुत्व की राजनीति में बड़े बड़े लोगों की बगावत को कुचल दिया गया है. सुषमा स्वराज की बी जे पी में रहते हुए, संघ के खिलाफ झंडा बुलंद करने की वैसे भी हैसियत नहीं है क्योंकि वे मूल रूप से समाजवादी राजनीति के रास्ते सत्ता की राजनीति में आई हैं . जिस उम्र में लोग संघ की राजनीति में शामिल होते हैं उस दौर में वे अम्बाला में रह कर आर एस एस को एक फासिस्ट संगठन कहती थीं. बाद में जनता पार्टी बनने पर मंत्री बनीं और जब बी जे पी वाले जनता पार्टी से अलग हुए तो हिन्दुत्ववादी बनीं. इसलिए संघ की राजनीति में उनकी पोजीशन दूसरे स्तर की है. इस लिए अब इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दुत्व की राजनीति इस देश में करवट ले रही है और आने वाले कुछ महीनों में हिन्दुत्ववादी ताक़तें रिग्रुप होने जा रही हैं .
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