Saturday, September 4, 2010

दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस की हार उसके लिए खतरे की घंटी है

शेष नारायण सिंह


दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव आम तौर पर दिल्ली राज्य की नब्ज़ माने जाते हैं . पिछले ४३ साल से यही होता रहा है , जिस पार्टी के छात्र संगठन को छात्र संघ चुनाव में जीत मिलती है उसकी हवा अच्छी मानी जाती है और अगर उसी साल दिल्ली की विधान सभा, या नगर निगम के चुनाव हों तो नतीजों पर छात्र संघ नतीजों की छाप देखी जा सकती है . इस बार भी छात्र संघ के चुनावों में बी जे पी की छात्र शाखा,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के चुनाव में प्रतिद्वंद्वी एनएसयूआई को झटका दिया है और छात्रसंघ के तीन पदों पर जीत रिकार्ड की है . इसका मतलब यह हुआ कि अगर अगले एकाध साल में दिल्ली विधान सभा या लोकसभा के चुनाव होते तो वहां भी कांग्रेस को झटका लग सकता था . लेकिन अभी यह चुनाव दूर हैं इसलिए कांग्रेसी नेता कुछ सुकून महसूस कर सकते हैं . लेकिन यह तय है कि बहुत ही अच्छे मतों से जीतकर आई शीला दीक्षित के लिए यह एक बेहतरीन मौक़ा है जब वे सोचें कि उनकी पार्टी की सरकार दिल्ली में थोक में गलतियाँ कर रही है .सबसे बड़ा घपला तो कामनवेल्थ खेलों की तैयारी में ही है . कामनवेल्थ खेलों में हर तरह का कांग्रेसी लूट मचाये हुए है . सुरेश कलमाडी की अपनी हेराफेरी की दुकान चल रही है, केंद्र के शहरी विकास मंत्रालय और सी पी डब्ल्यू डी के अधिकारी अलग लूट पाट में लगे हुए हैं .खेलों की तैयारी के काम का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली सरकार और एन डी एम सी के पास है .शीला दीक्षित ने इन महक़मों का काम अपनी सरकार के उन चुनिन्दा घूसखोर अफसरों के हवाले कर दिया है जिनका नाम घूस की विधा में पूरे देश में जाना जाता है . इस तरह के राष्ट्रीय मह्त्व के जो भी काम होते हैं उनमें इमरजेंसी में काम कराने की व्यवस्था घूसजीवी अफसर अपने हिसाब से कर लेता है . होता यह है कि कुछ काम पूरा नहीं किया जाता और जब समय सीमा का दबाव पड़ता है तो अफसर मनमाने रेट पर पहले से सेट ठेकेदार को काम दे देता है और जो भी लूट होती है उसमें अफसर और ठेकेदार मिल बाँट कर खा लेते हैं . यह काम बार बार किया जा चुका है और यह आजमाया हुआ नुस्खा है . घूस के बड़े बड़े ज्ञाता इस काम को जानते हैं .इसका कोई मैनुअल तो तैयार नहीं किया गया है लेकिन ज़्यादातर सरकारी महक़मों के कर्मचारी इसको अच्छी तरह जानते हैं . जिन लोगों ने १९८२ के एशियाई खेलों की तैयारी का काम देखा है, उन्हें मालूम है कि इमरजेंसी खरीद के नाम पर किस तरह से अफसरों ने खेल किया था . तत्कालीन प्रधान मंत्री के पुत्र , राजीव गाँधी खुद सारे काम पर नज़र रखे हुए थे लेकिन दाल में नमक के बराबर घूस का काम हुआ और खेलों के पहले सब कुछ तैयार हो गया. आडिटोरियम में कुछ काम रह गया था तो अरुण नेहरू और राजीव गाँधी खुद खड़े रहकर काम करवाते रहे और समय से काम पूरा हो गया. उस बार भी लगभग हर प्रोजेक्ट में इमरजेंसी खरीद हुई थी लेकिन वह कुल काम का एक मामूली हिस्सा थी . इस बार खेल दूसरा था . हर प्रोजेक्ट का बड़ा हिस्सा अभी पेंडिंग पड़ा है और अफसरों और नेताओं की भ्रष्टाचार टीम को उम्मीद थी कि इमरजेंसी खरीद के सहारे खूब माल काटा जायेगा . लेकिन सब काम गड़बड़ हो गया. कामनवेल्थ खेलों के उदघाटन में अब कुछ दिन रह गए हैं ,जबकि खेलों से सम्बंधित किसी भी काम को पूरा नहीं किया जा सका है . और हर केस में कारण भ्रष्टाचार ही है . दूसरी बात यह है कि खेलों की तैयारी के लिए काम शुरू करने के पहले इतने फालतू के काम ले लिए गए जिसको पूरा कर पाना अब असंभव लगता है . ज़ाहिर है कि गलत अफसरों और सलाहकारों की वजह से कांग्रेस और उसकी सरकार मुसीबत में है . मीडिया भी अपनी भूमिका सही तरीके से निभा रहा है . जहां गलती हुई है उसे पब्लिक डोमेन में ईमानदारी से डाला जा रहा है . जिसकी वजह से दिल्ली और केंद्र की कांग्रेस की सरकारों की छवि बहुत ही खराब हो गयी है . इस बात की पूरी संभावना है कि कामनवेल्थ खेलों में सरकार की असफलता का नतीजा ही है जिसकी वजह से कांग्रेसी दिल्ली विश्वविद्यालय में कहीं के नहीं रहे. यह एक खतरे की घंटी है जिसे सोनिया गाँधी और शीला दीक्षित को गंभीरता से लेना होगा वरना एक बार फिर कांग्रेस विपक्ष में होगी और ऐसे लोग राज कर रहे होंगें जिन्होंने देश को तोड़ने की बार बार कोशिश की है .