शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,२२ दिसंबर . आज लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त बिल २०११ पेश कर दिया गया. सदन में ४ अगस्त को इसी विषय पर पेश किया गया बिल वापस ले लिया गया है. लोकपाल बिल को संसद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने पाइलट किया. अध्यक्ष के आसन पर फ्रांसिस्को सरदिन्हा मौजूद थे. बिल को पेश करने में ही जो दिक्क़तें आयीं उनसे साफ लगता है कि लोकपाल बिल पास होने में खासी मुश्किल होगी. बहस की शुरुआत सदन की नेता, सुषमा स्वराज ने किया. उन्होंने कुछ कारणों से बिल को आज पेश किये जाने का विरोध किया . उन्होंने कहा कि यह बिल भारत के संघीय ढांचे पर हमला करता है . सुषमा स्वराज ने कहा कि संविधान में यह व्यवस्था है और सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश हैं कि रिज़र्वेशन किसी भी हालत में ५० प्रतिशत से ज्यादा नहीं किया जा सकता है .लेकिन इस बिल में कहा गया है कि रिज़र्वेशन ५० प्रतिशत से कम नहीं होगा. यानी यह ९ सदस्यों के लोकपाल में कम से कम ५ सदस्यों को रिज़र्वेशन देने की बात कही गयी है . उनको इस बात पर भी एतराज़ था कि इसमें अल्पसंख्यकों को रिज़र्वेशन दिया गया है .उनका कहना था कि जब संविधान में धार्मिक आधार पर रिज़र्वेशन नहीं दिया गया है तो संविधान का विरोध करके क्यों ऐसा कानून बनाया जा रहा है जो सुप्रीम कोर्ट में जाकर फेल हो जाए. बहस के आखिर में सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है . और अगर ऐसा है भी तो उसे जब इस बिल पर २७ दिसम्बर से सिलसिलेवार बहस होगी तब ठीक कर लिया जाये़या.
आज दिन में सदन शुरू में स्थगित करना पड़ा लेकिन जब साढ़े तीन बजे सदन की बैठक दुबारा शुरू हुई तो बिल को पेश करने के स्तर पर ही खासी लम्बी बहस हो गयी. समाजवादी पार्टी के नेता, मुलायम सिंह यादव ने इस बात पर आपत्ति की लोकपाल की संस्था ऐसी बनने जा रही है जो किसी के प्रति ज़िम्मेदार नहीं होगा. उन्होंने कहा कि जो लोग अन्ना हजारे के साथ हैं वे दूध के धुले नहीं है . इस बात का डर है कि लोकपाल भी भ्रष्टाचार के एक नए केंद्र के रूप में स्थापित हो जाये़या . वह सब को ब्लैकमेल करेगा. इसके बाद राजद के नेता, लालू प्रसाद यादव ने बहुत ज़ोरदार तरीके से अपने बात रखी . उन्होंने इस बात पर सख्त एतराज़ किया किया कि कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयंभू नेता बन गए हैं और संसद सदस्यों को अपमानित कर रहे हैं .उन्होंने कहा कि किसी भी आन्दोलन की धमकी के बाद सरकार को कोई भी कानून नहीं बनाया जाना चाहिए. इसमें जल्दी मचाने के ज़रुरत नहीं है उन्होंने भी इस बात को जोर देकर कहा कि प्रधान मंत्री को इसके दायरे से बाहर रखा जाये .जनता दल यू के शरद यादव , आल इण्डिया अन्ना द्रमुक के थाम्बी दुराई , सी पी एम के बासुदेव आचार्य ने संघीय ढाँचे को तोड़ने के किसी भी कोशिश का विरोध किया . बीजेपी के यशवंत सिन्हा ने भी ज़ोरदार विरोध किया कि सरकार अल्पसंख्यकों को रिज़र्वेशन देने की कोशिश कर रही हैं .
शिवसेना ने लोकपाल का ज़बरस्त विरोध किया और अन्ना हजारे और उनकी टीम को गैरज़िम्मेदार बताया. पार्टी के सदस्य ने कहा कि उनकी पार्टी के नेता, बाल ठाकरे को इस बात की आशंका है कि इस लोकपाल को इतना ताक़तवर बना कर कहीं देश तानाशाही की तरफ तो नहीं बढ़ रहा है .सी पी आई के गुरुदास दासगुप्ता ने कहा कि कुछ लोगों को इस बात का हक नहीं है कि वे संसद को धमकाएं लेकिन उनकी इस बात पर सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने उन्हें याद दिलाया कि वे अपने पार्टी के नेता को समझाएं कि वे जन्तर मंतर के धरनामंच पर न जाएँ. कानून बनाने का काम संसद को ही करने दें . बहरहाल बिल लोकसभा में पेश हो गया और कांग्रेस इस बात पर बहुत खुश है कि उसने २७ अगस्त को सदन में पास हुए प्रस्ताव की रोशनी में वह बिल पेश कर दिया जिसका उन्होंने वायदा किया था.
बिल को पास करने या न करने के लिए लोकसभा की बैठक २७ से २९ दिसंबर तक होगी . अभी बिल के पास होने के बारे में कोई बात नहीं कही जा सकती है क्योंकि जो पार्टियां पहले अन्ना हजारे के साथ थीं वे भी आज पेश किये गए बिल को कमज़ोर बताकर उस से बच निकलने के चक्कर में हैं .
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Sunday, December 25, 2011
Saturday, December 10, 2011
संसद की स्थायी समिति ने लोकपाल बिल की सिफारिशें संसद के हवाले किया
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,९ दिसंबर. कार्मिक लोक शिकायत,कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने आज संसद के दोनों सदनों में लोक पाल विधेयक २०११ के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें पेश कर दीं. यह स्थायी समिति राज्यसभा के प्रशासनिंक कंट्रोल में है इसलिए इसके अध्यक्ष भी राज्यसभा के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी हैं. अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन से पैदा हुए राजनीतिक हालात के बाद लोकसभा में हुई बहस और लोकसभा की मंशा वाले प्रस्ताव के पारित होने के बाद लोकपाल बिल का ड्राफ्ट संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा गया था . संसद की स्थायी समिति एक ताक़तवर समिति होती है . उसके पास सरकार के पास से आये बिल को पूरी तरह से खारिज करने समेत उसे पूरी तरह से संशोधित करने का अधिकार तक होता है . कई बार ऐसा भी हुआ है कि स्थाई समिति ने सरकार की तरफ से पेश किये गए कानूनों के कुछ मसौदों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है .लोकपाल और राज्यों में नियुक्त होने वाले लोकायुक्तों को संवैधानिक दर्ज़ा दिया गया है जिससे उनेक काम काज में सरकारी या किसी अन्य किस्म का दबाव न पड़ सके.
लोकपाल बिल लोक सभा में ४ अगस्त २०११ को पेश किया गया था और इसे संसद की स्थायी समिति को ८ अगस्त को भेजा गया था . इस बिल का उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना है जो सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के बारे में जांच करेगा. इस कमेटी के सामने विचार के लिए दस हज़ार सुझाव आये . अन्ना हजारे की टीम ने भी समिति के सामने कई बार हाज़िर होकर अपनी बात रखी २३ सितम्बर २०११ के दिन पहली बैठक हुई और अंतिम बैठक ७ दिसंबर को हुई. इस बीच कमेटी के सामने कई न्यायविद, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश , गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनधि , टीम अन्ना के प्रतिनिधि , अन्ना हजारे खुद ,धार्मिक संगठन ,सी बी आई, सी वी सी आदि बहुत सारे लोग पेश हुए.
रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद समिति के अध्यक्ष , अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्राकारों से बात की और बताया कि सरकार के बहुत सारे सुझाव खारिज कर दिए गए हैं . जो ड्राफ्ट कमेटी के पास आया था उसको पूरी तरह से स्वीकार करने का कोई कारण नहीं था. करीब ढाई महीने की बैठकों के बाद जो सिफारिशें सरकार को दी गयी हैं उनमें टीम अन्ना समेत बहुत सारे लोगों के सुझाव हैं . किसी भी संगठन की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है.
अगर स्थायी समिति की सिफारिशों को मान लिया गया तो देश में भ्रष्टाचार की जांच की प्रक्रिया में बुनियादी बदलाव आ जायेगें . मसलन सी बी आई को अब केवल जांच करने का अधिकार रहेगा. मुक़दमा चलाने का अधिकार प्रस्तावित लोक पाल विधेयक के अभियोजन विभाग को सौंप दिया जाएगा .. सिफारिशों में प्रावधान है कि लोकपाक के अधीन एक अभियोजन विभाग बनाया जाए. और इस तरह से देश में पिछले साठ वर्षों से चल रही उस मांग को पूरा किया जा सकेगा जिसके तहत एक अभियोजन सर्विस शुरू करने की मांग होती रही है . अन्ना हजारे वालों को स्थायी समिति से निराशा इसलिए हुई है क्योंकि वे चाहते थे कि लोकपाल के अधीन ही देश के सभी सरकारी कर्मचारी आ जाएँ .लेकिन स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सभी अधिकारी लोकपाल के दायरे में आ जाएँ जबकि तीसरी श्रेणी के कर्मचारी मुख्य सतर्कता आयोग के जांच के दायरे में डाल दिए जाएँ . आने वाले समय में चतुर्थ श्रेणी का कोई कर्मचारी नहीं रह जाएगा क्योंकि ताज़ा वेतन आयोग की सिफारिशों में प्रावधान है कि चौथी श्रेणी को तीसरी श्रेणी में ही मिला दिया जाएगा.
अन्ना हजारे की टीम वालों को प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में न लाने पर भी परेशानी होगी क्योंकि समिति ने प्रधान मंत्री को लोक पाल में लाने के मामले को पूरी संसद के विवेक पर छोड़ दिया है . सी बी आई के कलेवर में भी पूरा बदलाव कर दिया गया है . सी बी आई अब प्रिलिमिनरी जाँच नहीं करेगी . वह कम लोकपाल का होगा . जिन मामलों में लोकपाल को लगेगा कि गंभीर जांच की ज़रुरत है, उन्हें सी बी आई के हवाले किया जाएगा. जांच के दौरान न तो लोकपाल और न ही सरकार सी बी आई के काम में दखल दे सकेंगें. जांच पूरी होने पर लोकपाल के अभियोजन विभाग का ज़िम्मा होगा कि वह विशेष अदालत में मुक़दमा चलाये और दोषी व्यक्ति को सज़ा दिलवाए. .समिति की सबसे अहम सिफारिश यह है कि अब किसी भी कर्मचारी के भ्रष्टाचार या किसी अन्य आपराधिक जांच करने के लिए जांच एजेंसी को किसी से परमिशन नहीं लेना पडेगा. अब तक होता यह था कि सम्बंधित उच्च अधिकारी मिलीभगत करके जांच की अनुमति ही नहीं देते थे . नतीजा यह होता था कि भ्रष्टाचारी कर्मचारी खुले आम घूमता रहता था.
. संसद सदस्यों के बारे में कमेटी ने साफ़ कहा है कि संविधान के अनुच्छेद १०५ में दिए गए अधिकार उनको मिलते रहेगें . संसद के अंदर के किसी भी काम पर उन्हें पहले की तरह के अधिकार हैं . लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनको अपराध करने के छूट है. संसद के ऐसे सदस्यों को दंड देने का अधिकार है जो संसद की मर्यादा को लांघते हैं .सरकारी कंपनियों , एन जी ओ और मीडिया को भी लोकपाल के दायरे में लिया गया है . जो बात अन्ना हजारे की टीम को बहुत बुरी लगेगी , वह यह है कि दस लाख से ज्यादा धन दान में लेने वाले एन जी ओ को भी लोक पाल के घेरे में ले लिया गया है . अन्ना हजारे की टीम कई सदस्यों के पास जो कई एन जी ओ हैं वे सभी लोकपाल के दायरे में अपने आप आ जायेगे,. विदेशों से धन लेने वालों को भी लोकपाल की जांच सीमा में डाल दिया गया है . अन्ना की टीम के सभी सदस्य और उनेक एन जी ओ इस प्रावधान के लपेटे इमं आ जायेगें .
गलत शिकायत करने वालों को अब तक पांच साल की सजा और कई लाख रूपये के दंड का प्रावधान था. अब कानून में ज़रूरी सुधार करके आर्थिक जुर्माना २५ हज़ार कर दिया जाएगा जबकि जेल की सजा घटा कर छः महीने कर दी जायेगी. लोकपाल की नियुक्ति के लिए भी बहुत ऊंचे आदर्श रखे गए हैं . प्रधान मंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष , लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति को चयन समिति में रखा जाएगा. इस सम्मानित व्यक्ति का चुनाव सी ए जी, सी वी सी और संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष करेगें . इस चयन समिति के विचार के लिए जो नाम भेजे जायेगें उनके लिए कम से कम सात सदस्यों की एक खोजबीन समिति बनायी जायेगी. इस खोजबीन समिति में कम से कम ५० प्रतिशत ऐसे लोग होंगें जो अनुसूचित जाति , महिला ,अल्पसंख्यक और ओ बी सी समुदाय से होंगें .सरकारी बिल में लिखा गया था कि भारत के वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश को या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को ही लोक पाल बनाया जाए .स्थायी समिति ने इस बात को खारिज कर दिया है . चयन समिति के सामने अब ऐसा कोई न बंधन नहीं होगा . किसी को भी लोकपाल बनाया जा सकता है.
लोक पाल के दायरे में न्याय पालिका को शामिल नहीं किया गया है . लेकिन उनके लिए एक विस्तृत न्यायिक मानक और जवाब देही विधेयक के सिफारिश की गयी है जिसका काम यह होगा कि जजों की शुरुआती भर्ती के स्टेज से सक्रिय रहकर न्याय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की सीमा से बाहर रखने का काम करे.
लोक पाल के साथ ही नागरिक चार्टर और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करने वाले कानून को भी बनाने की सिफारिश इस समिति ने किया है. जिसका उद्देश्य उन सरकारी अफसरों पर लगाम कसना है जो अपना काम नियम के अनुसार और सही वक़्त पर नहीं करते.
नई दिल्ली ,९ दिसंबर. कार्मिक लोक शिकायत,कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने आज संसद के दोनों सदनों में लोक पाल विधेयक २०११ के सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें पेश कर दीं. यह स्थायी समिति राज्यसभा के प्रशासनिंक कंट्रोल में है इसलिए इसके अध्यक्ष भी राज्यसभा के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी हैं. अगस्त में अन्ना हजारे के अनशन से पैदा हुए राजनीतिक हालात के बाद लोकसभा में हुई बहस और लोकसभा की मंशा वाले प्रस्ताव के पारित होने के बाद लोकपाल बिल का ड्राफ्ट संसद की स्थायी समिति के पास विचार के लिए भेजा गया था . संसद की स्थायी समिति एक ताक़तवर समिति होती है . उसके पास सरकार के पास से आये बिल को पूरी तरह से खारिज करने समेत उसे पूरी तरह से संशोधित करने का अधिकार तक होता है . कई बार ऐसा भी हुआ है कि स्थाई समिति ने सरकार की तरफ से पेश किये गए कानूनों के कुछ मसौदों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है .लोकपाल और राज्यों में नियुक्त होने वाले लोकायुक्तों को संवैधानिक दर्ज़ा दिया गया है जिससे उनेक काम काज में सरकारी या किसी अन्य किस्म का दबाव न पड़ सके.
लोकपाल बिल लोक सभा में ४ अगस्त २०११ को पेश किया गया था और इसे संसद की स्थायी समिति को ८ अगस्त को भेजा गया था . इस बिल का उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना है जो सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के बारे में जांच करेगा. इस कमेटी के सामने विचार के लिए दस हज़ार सुझाव आये . अन्ना हजारे की टीम ने भी समिति के सामने कई बार हाज़िर होकर अपनी बात रखी २३ सितम्बर २०११ के दिन पहली बैठक हुई और अंतिम बैठक ७ दिसंबर को हुई. इस बीच कमेटी के सामने कई न्यायविद, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश , गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनधि , टीम अन्ना के प्रतिनिधि , अन्ना हजारे खुद ,धार्मिक संगठन ,सी बी आई, सी वी सी आदि बहुत सारे लोग पेश हुए.
रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद समिति के अध्यक्ष , अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्राकारों से बात की और बताया कि सरकार के बहुत सारे सुझाव खारिज कर दिए गए हैं . जो ड्राफ्ट कमेटी के पास आया था उसको पूरी तरह से स्वीकार करने का कोई कारण नहीं था. करीब ढाई महीने की बैठकों के बाद जो सिफारिशें सरकार को दी गयी हैं उनमें टीम अन्ना समेत बहुत सारे लोगों के सुझाव हैं . किसी भी संगठन की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है.
अगर स्थायी समिति की सिफारिशों को मान लिया गया तो देश में भ्रष्टाचार की जांच की प्रक्रिया में बुनियादी बदलाव आ जायेगें . मसलन सी बी आई को अब केवल जांच करने का अधिकार रहेगा. मुक़दमा चलाने का अधिकार प्रस्तावित लोक पाल विधेयक के अभियोजन विभाग को सौंप दिया जाएगा .. सिफारिशों में प्रावधान है कि लोकपाक के अधीन एक अभियोजन विभाग बनाया जाए. और इस तरह से देश में पिछले साठ वर्षों से चल रही उस मांग को पूरा किया जा सकेगा जिसके तहत एक अभियोजन सर्विस शुरू करने की मांग होती रही है . अन्ना हजारे वालों को स्थायी समिति से निराशा इसलिए हुई है क्योंकि वे चाहते थे कि लोकपाल के अधीन ही देश के सभी सरकारी कर्मचारी आ जाएँ .लेकिन स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि प्रथम और द्वितीय श्रेणी के सभी अधिकारी लोकपाल के दायरे में आ जाएँ जबकि तीसरी श्रेणी के कर्मचारी मुख्य सतर्कता आयोग के जांच के दायरे में डाल दिए जाएँ . आने वाले समय में चतुर्थ श्रेणी का कोई कर्मचारी नहीं रह जाएगा क्योंकि ताज़ा वेतन आयोग की सिफारिशों में प्रावधान है कि चौथी श्रेणी को तीसरी श्रेणी में ही मिला दिया जाएगा.
अन्ना हजारे की टीम वालों को प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में न लाने पर भी परेशानी होगी क्योंकि समिति ने प्रधान मंत्री को लोक पाल में लाने के मामले को पूरी संसद के विवेक पर छोड़ दिया है . सी बी आई के कलेवर में भी पूरा बदलाव कर दिया गया है . सी बी आई अब प्रिलिमिनरी जाँच नहीं करेगी . वह कम लोकपाल का होगा . जिन मामलों में लोकपाल को लगेगा कि गंभीर जांच की ज़रुरत है, उन्हें सी बी आई के हवाले किया जाएगा. जांच के दौरान न तो लोकपाल और न ही सरकार सी बी आई के काम में दखल दे सकेंगें. जांच पूरी होने पर लोकपाल के अभियोजन विभाग का ज़िम्मा होगा कि वह विशेष अदालत में मुक़दमा चलाये और दोषी व्यक्ति को सज़ा दिलवाए. .समिति की सबसे अहम सिफारिश यह है कि अब किसी भी कर्मचारी के भ्रष्टाचार या किसी अन्य आपराधिक जांच करने के लिए जांच एजेंसी को किसी से परमिशन नहीं लेना पडेगा. अब तक होता यह था कि सम्बंधित उच्च अधिकारी मिलीभगत करके जांच की अनुमति ही नहीं देते थे . नतीजा यह होता था कि भ्रष्टाचारी कर्मचारी खुले आम घूमता रहता था.
. संसद सदस्यों के बारे में कमेटी ने साफ़ कहा है कि संविधान के अनुच्छेद १०५ में दिए गए अधिकार उनको मिलते रहेगें . संसद के अंदर के किसी भी काम पर उन्हें पहले की तरह के अधिकार हैं . लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनको अपराध करने के छूट है. संसद के ऐसे सदस्यों को दंड देने का अधिकार है जो संसद की मर्यादा को लांघते हैं .सरकारी कंपनियों , एन जी ओ और मीडिया को भी लोकपाल के दायरे में लिया गया है . जो बात अन्ना हजारे की टीम को बहुत बुरी लगेगी , वह यह है कि दस लाख से ज्यादा धन दान में लेने वाले एन जी ओ को भी लोक पाल के घेरे में ले लिया गया है . अन्ना हजारे की टीम कई सदस्यों के पास जो कई एन जी ओ हैं वे सभी लोकपाल के दायरे में अपने आप आ जायेगे,. विदेशों से धन लेने वालों को भी लोकपाल की जांच सीमा में डाल दिया गया है . अन्ना की टीम के सभी सदस्य और उनेक एन जी ओ इस प्रावधान के लपेटे इमं आ जायेगें .
गलत शिकायत करने वालों को अब तक पांच साल की सजा और कई लाख रूपये के दंड का प्रावधान था. अब कानून में ज़रूरी सुधार करके आर्थिक जुर्माना २५ हज़ार कर दिया जाएगा जबकि जेल की सजा घटा कर छः महीने कर दी जायेगी. लोकपाल की नियुक्ति के लिए भी बहुत ऊंचे आदर्श रखे गए हैं . प्रधान मंत्री, लोक सभा के अध्यक्ष , लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा एक बहुत ही सम्मानित व्यक्ति को चयन समिति में रखा जाएगा. इस सम्मानित व्यक्ति का चुनाव सी ए जी, सी वी सी और संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष करेगें . इस चयन समिति के विचार के लिए जो नाम भेजे जायेगें उनके लिए कम से कम सात सदस्यों की एक खोजबीन समिति बनायी जायेगी. इस खोजबीन समिति में कम से कम ५० प्रतिशत ऐसे लोग होंगें जो अनुसूचित जाति , महिला ,अल्पसंख्यक और ओ बी सी समुदाय से होंगें .सरकारी बिल में लिखा गया था कि भारत के वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश को या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को ही लोक पाल बनाया जाए .स्थायी समिति ने इस बात को खारिज कर दिया है . चयन समिति के सामने अब ऐसा कोई न बंधन नहीं होगा . किसी को भी लोकपाल बनाया जा सकता है.
लोक पाल के दायरे में न्याय पालिका को शामिल नहीं किया गया है . लेकिन उनके लिए एक विस्तृत न्यायिक मानक और जवाब देही विधेयक के सिफारिश की गयी है जिसका काम यह होगा कि जजों की शुरुआती भर्ती के स्टेज से सक्रिय रहकर न्याय व्यवस्था को भ्रष्टाचार की सीमा से बाहर रखने का काम करे.
लोक पाल के साथ ही नागरिक चार्टर और शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करने वाले कानून को भी बनाने की सिफारिश इस समिति ने किया है. जिसका उद्देश्य उन सरकारी अफसरों पर लगाम कसना है जो अपना काम नियम के अनुसार और सही वक़्त पर नहीं करते.
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