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Thursday, April 28, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ वैसा ही माहौल है जैसा सन बयालीस में अंग्रेजों के खिलाफ था .

शेष नारायण सिंह

भ्रष्टाचार की चर्चाओं से घिरे देश में विकीलीक्स के संपादक जुलियन असांज ने एक और आयाम जोड़ दिया है . फरमाते हैं कि स्विस बैंकों में जमा काले धन के खातेदारों में बहुत सारे नाम भारतीयों के हैं . इस देश का मध्य वर्ग लगातार भ्रष्टाचार की कहानियां सुन रहा है. टू जी ,कामनवेल्थ ,और येदुरप्पा के घोटालों के माहौल में जब अन्ना हजारे का आन्दोलन आया तो वे सारे लोग मैंदान में आ गए जिनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है . ज़ाहिर है यह किसी भी सत्ताधारी पार्टी के लिए बहुत बड़ी खतरे की घंटी है . भ्रष्टाचार के खिलाफ इस सारे मामले में जो सबसे दिलचस्प बात रही, वह यह कि राजनीतिक पार्टियों के सदस्य अपने हिसाब से भ्रष्टाचार की व्याख्या करते रहे , अपने विरोधी को ज्यादा भ्रष्ट बताते रहे लेकिन अखबार पढने वाले देश के उस जागरूक वर्ग ने नेताओं की बातों को गंभीरता से नहीं लिया .ऐसे ही हालात थे जब वजह से १९४२ और १९७७ में परिवर्तन आया था. भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए इस आन्दोलन में आम आदमी नेताओं को आवश्यक तिरस्कार की नज़र से ही देखता रहा . जुलियन असांज का नया खुलासा तस्वीर को बिलकुल नया रंग दे देता है. उसने साफ़ कहा है कि जिन दस्तावेजों को वे लीक कर रहे हैं वे सबूत नहीं हैं लेकिन उनमें बहुत अहम सूचनाएं हैं जिनका इस्तेमाल आगे की जांच में किया जा सकता है . एक निजी टी वी चैनल से बात करते हुए जुलियन असांज ने कहा कि भारत सरकार का यह कहना कि कुछ देशों के साथ दोहरा टैक्स समझौता न होने की वजह से काले धन को निकालना मुश्किल हो रहा है . असांज ने कहा कि यह तर्क बिलकुल बेतुका है . उन्होंने कहा कि काले धन को निकालना टैक्स से सम्बंधित मामला नहीं है . वह वास्तव में बिलकुल अलग, काले धन का मामला है . उसने एक और बात कही जो अर्थशास्त्र का कोई भी विद्यार्थी जानता है . उसने कहा कि देश के अंदर की रिश्वत खोरी हालांकि राष्ट्रीय संसाधनों पर डाका डालती है लेकिन वह विदेशी बैंकों में धन रखने से कम खतरनाक है . उसमें पैसा देश में रहता है और उस रक़म को खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा ज़ाया नहीं होती . जबकि किसी ने किसी रूप में वह पैसा देश के अंदर की इस्तेमाल होता है . यहाँ रिश्वतखोरी को सही ठहराने का कोई इरादा नहीं है . विदेशी बैंकों में पैसा जमा करने वालों के देशद्रोह को रेखांकित करने के उद्देश्य से यह तर्क दिया जा रहा है . चोरी से देश के बाहर पैसा जमा करने वाले देश की अर्थव्यवस्था पर दोहरा वार करते हैं .एक तो देश का पैसा रिश्वत के रास्ते चुराते हैं और दूसरा यह कि दुर्लभ विदेशी मुद्रा खर्च करके भारतीय रूपयों को स्विस बैंकों में जमा करने लायक बनाते हैं . इस तरह अर्थ व्यवस्था पर दोहरी मार करते हैं . देश में बन रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल में जुलियन असांज का यह खुलासा बहुत बड़ी उम्मीद लेकर आया है . यहाँ यह भी समझ लेना ज़रूरी है कि पिछले कुछ वर्षों से बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी इस कोशिश में लगे हुए हैं कि कांग्रेस को ही स्विस बैंको में जमा काले धन के खलनायक के रूप में पेश किया जाय. आम तौर पर माना भी यही जाता है कि कांग्रेसियों ने सबसे ज्यादा खेल किया है . ऐसा शायद इसलिए कि यह काम १९७० के दशक से ही चल रहा है . लेकिन इस बात में भी कोई शक़ नहीं है कि बीजेपी के बड़े नेता भी इस लपेट में आयेगें .दुनिया जानती है कि बीजेपी के कई मंत्रियों और टाप नेताओं के बच्चों ने वाजपेयी सरकार के दौरान खुलकर घूस बटोरा था. कर्नाटक में मौजूदा सरकार भी घूस के खेल में किसी कांग्रेसी से कम नहीं है . बाकी पार्टियों के नेता भी विदेशी बैंकों की शरण में जाते रहे हैं .ज़ाहिर है जब खुलासा होगा तो सबका नाम आयेगा और अगर बीजेपी वाले यह सोचते हैं कि वाजपेयी जी की सरकार के दौरान जो लाखों करोड़ के वारे न्यारे हुए थे , वह रक़म भारतीय बैंकों में जमा कर दी गयी होगी ,तो इसे मुगालता ही कहा जाएगा . यानी अगर स्विस बैंकों में जमा रक़म के बारे में पूरी जानकारी मिलती है तो हालात बहुत बदल जायेगें. यह देशहित में है . खुशी इस बात की है कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय जनमत तैयार हो रहा है और जनता किसी भी भरोसेमंद सूचना पर भरोसा करने को तैयार है . वह किसी भी भ्रष्ट नेता, अफसर या पत्रकार को माफ़ करने को तैयार नहीं है . कोर्ट जाते हुए सुरेश कलमाड़ी के ऊपर चप्पल फेंकने वाला नौजवान दश के सामूहिक गुस्से को ही व्यक्त कर रहा था. राडिया टेप के पहले की एक बहुत ही नामी पत्रकार जब इण्डिया गेट से विशेष कार्यक्रम पंहुची तो जनता ने उन्हें दौड़ा लिया क्योंकि राडिया टेप के बाद की उनकी सच्चाई पत्रकारिता के लिए शुभ लक्षण नहीं है . इसी तरह से लोग बड़े से बड़े लोगों को लोग भ्रष्टाचारी मानने के लिए तैयार बैठे हैं . ऐसी हालत में देश में भ्रष्टाचार के विरोध करने का व्याकरण बदल रहा है . दिलचस्प बात यह है कि राजनीतिक नेताओं को अभी भनक तक नहीं है . वे अभी इसी मुगालते में हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन का नेतृत्व किसी पार्टी के हाथ आ जाएगा . पूरी संभावना है कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है . अन्ना हजारे के आन्दोलन को जनता ने पूरी तरह नेताओं से मुक्त रखा . आने वाले वक़्त में भी ऐसा ही होने वाला है क्योंकि पूरे देश के जागरूक वर्ग में यह अवधारणा घर कर चुकी है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ राजनीतिक नेता ही हैं . इस बात में भी दो राय नहीं है कि बहुत सारे नेता ऐसे भी हैं जो भ्रष्ट नहीं हैं . लेकिन उनकी अधिसंख्य भ्रष्ट बिरादरी की कारस्तानियों का नतीजा उन्हें भोगना पड़ सकता है .आम आदमी को अभी तक मीडिया पर भरोसा है और यह खुशी की बात है .जो भी हो भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में वैसा ही माहौल बन रहा है जैसा अंग्रेजों के खिलाफ १९४२ में माहौल बना था. उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात हर हाल में बेहतर होंगें

Sunday, August 8, 2010

९ अगस्त सन बयालीस को जिन्ना और सावरकर गाँधी के खिलाफ थे

शेष नारायण सिंह

ठीक ६८ साल पहले महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के कह दिया था कि बहुत हुआ अब आप लोगों की किसी बात का विश्वास नहीं है . आप लोग अपना झोला झंडी उठाइये और भारत का पिंड छोडिये. पूरे देश में आजादी का बिगुल बज गया था. एक ख़ास वर्ग के लोगों के बीच आज जिन नेताओं का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है उनमें से बहुत सारे लोग उन दिनों अंग्रेजों के झंडाबरदार थे लेकिन महात्मा गाँधी की समझ में बात आ गयी थी कि अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए अब किसी मुरव्वत की गुंजाइश नहीं थी, उन्हें भगाने के लिए साफ़ साफ़ कहना पड़ेगा. और उन्होंने ८ अगस्त १९४२ के दिन बम्बई में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में फैसल ले लिया. उसी रात कांग्रेस कमेटी के सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए. भारत छोडो आन्दोलन की याद में उन महान नेताओं को याद कर लेना ज़रूरी है जो आज़ादी के इस महायज्ञ में महात्मा जी के साथ खड़े थे. अंग्रेजों ने आज़ादी के लिए कर रही पार्टी के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था. . आज ६८ साल बाद की बात अलग है लेकिन १९४२ में अंग्रेजों ने हर उस आदमी को सबक सिखाने का फैसला कर लिया था जो भारत की आज़ादी के पक्ष में था. ब्रिटेन की वार कैबिनेट ने जून में ही वायसरॉय को अधिकार दे दिया था कि वह जैसा भी चाहे , कांग्रेसी नेताओं के साथ वैसा व्यवहार कर सकते हैं .. वायसरॉय इस चक्कर में था कि वह भारत छोडो आन्दोलन के प्रस्ताव के पास होते ही महात्मा जी और पूरी कांग्रेस कार्यसमिति को गिरफ्तार कर ले. लेकिन तय यह हुआ कि जब आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी इस प्रातव को मंजूरी दे तब सभी नेताओं को पकड़ा जाए . उनकी मूल योजना थी कि गाँधी जी को देश से बाहर ले जाकर को अदन में नज़रबंद किया जाए और बाकी नेताओं को न्यासालैंड में रखा जाए . लेकिन बाद में मन बदल दिया गया और महात्मा गाँधी को पुणे के आगा खां पैलेस में और कांग्रेस के बाकी नेताओं को अहमदनगर जेल में रखा गया. ९ अगस्त की सुबह पांच बजे सभी नेताओं को सोते से जगाकर पकड़ लिया गया. एक विशेष ट्रेन से सबको पूना ले जाया गया ,जहां महात्मा जी और उनके साथियों को उतार दिया गया. बाकी नेता अहमदनगर जेल ले जाए गए. सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद, पट्टाभि सीतारामैय्या और हरेकृष्ण महताब को अलग कमरे मिले थे. जवाहरलाल नेहरू के कमरे में डॉ सैयाद महमूद थे. शंकर राव देव और प्रफुल्ल चन्द्र घोष एक कमरे में थे. आचार्य कृपलानी , गोविन्द बल्लभ पन्त, आचार्य नरेंद्र देव और आसफ अली को एक साथ रखा गया था. डॉ राजेन्द्र प्रसाद बीमार थे इसलिए आ नहीं सके थे . उन्हें गिरफ्तार करके बिहार में ही रखा गया था. भूलाभाई देसाई और चितरंजन दस को गिरफ्तार नहीं किया गया था क्योंकि इन लोगों ने अपने आपको भारत छोडो आन्दोलन से अलग कर लिया था. तो यह है फेहरिस्त उन महानायकों की जिन्होंने हमें आज़ादी दिलवाई. और अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया.

यह सब हुआ इसलिए कि कांग्रेस ने १४ जुलाई १९४२ के दिन एक प्रस्ताव पास किया था कि अगर अँगरेज़ भारत नहीं छोड़ते तो पूरे देश में आन्दोलन चलेगा . कांग्रेस के इस प्रस्ताव से अंग्रेजों के वफादार लोगों के बीच हडकंप मच गया. मुहम्मद अली जिन्ना ने बयान दिया कि आन्दोलन शुरू करने का कांग्रेस का ताज़ा फैसला सही नहीं है . यह मुसलमानों के हितों की अनदेखी करता है . हिन्दू महासभा के नेता, वी डी सावरकर ने अपने समर्थकों से कहा कि कांग्रेस के आन्दोलन का विरोध करें. उधर अँगरेज़ सरकार ने भी पूरी तैयारी कर ली थी . ८ अगस्त को सभी सरकारी विभागों के नाम आदेश जारी कर दिया कि कांग्रेस का आन्दोलन गैरकानूनी है . सरकारी विभागों को चाहिए कि आन्दोलन को हर हाल में कुचल दें. आल इण्डिया कांगेस कमेटी की बैठक ७ अगस्त को मुंबई में हुई जहां तय किया गया कि अहिंसक तरीके से पूरे देश में आन्दोलन चलाया जाएगा. आन्दोलन के नेतृत्व का ज़िम्मा गाँधी जी को सौंपा गया. लेकिन यह भी अनुमान था कि गाँधी जी तो गिरफ्तार हो जायेगें ,. ऐसी सूरत में यह तय किया गया कि हो सकता है कि सभी नेता गिरफ्तार हो जाएँ तो हर व्यक्ति जो इस आन्दोलन के साथ है , वह अहिंसक तरीके से अपना काम करता रहेगा. महत्मा गाँधी ने अपील की कि हिन्दू और मुसलमान के बीच जो नफरत पैदा करने की कोशिश की गयी है उसे भूल जाओ और सभी लोग भारतीय बन कर संघर्ष करो. हमारा झगडा अँगरेज़ जनता से नहीं है . हम तो अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद का विरोध कर रहे हैं.. सत्याग्रह में किसी तरह की धोखेबाजी या असत्य के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने सब को बताया कि आज से अपने आप को आज़ाद समझो. आबादी के एक हिस्से को अँगरेज़ भरमाने में सफल हो गए थे लेकिन गाँधी की आंधी के सामने कोई नहीं टिक सका और देश आज़ाद हो गया