शेष नारायण सिंह
लद्दाख क्षेत्र में चीनी सेना भारत के इलाक में घुस गयी है और करीब बीस किलोमीटर अंदर आकर अपने टेंट लगा दिए हैं . गाफिल पड़े भारतीय मिलिटरी इंटेलिजेंस वालों की तरफ से तरह तरह की व्याख्याएं सुनने को मिल रही है लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय सीमा में चीनी सैनिक जम गए हैं और ताज़ा जानकारी के मुताबिक वे वहाँ से हटने को तैयार नहीं हैं .जम्मू-कश्मीर में लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में घुसे चीनी सैनिकों ने यहां अपना एक और तंबू गाड़ कर अस्थायी चौकी बना ली है.चीन के टेंट को हटाने की कूटनीतिक कोशिशें जारी हैं लेकिन चीनी सेना फिलहाल पीछे हटने को तैयार नहीं है। दोनों पक्षों के बीच तीन बार फ्लैग मीटिंग होने के बावजूद चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है। इस मसले को बातचीत से सुलझाने की बजाय चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में और भीतर तक बढ़ने की कोशिश में हैं। सूत्र बताते हैं कि घुसपैठ कर रहे चीनी सैनिकों के पास आधुनिक हथियार हैं और वे वापस जाने के लिए नहीं आये हैं . यू पी ए के मुख्य सहयोगी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने लोक सभा में लद्दाख क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के मुद्दे को बहुत जोर शोर से उठाया .उन्होंने कहा कि डॉ राम मनोहर लोहिया ने आज़ादी के बाद ही जवाहर लाल नेहरू को चेतावनी दे दी थी कि चीन के इरादों से चौकन्ना रहें लेकिन नेहरू ने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी . और चीन से दोस्ती का राग जारी रखा . जब तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाइ भारत आये थे तब भी डॉ लोहिया ने उनकी मंशा पर नज़र रखने को कहा था लेकिन जवाहरलाल नेहरू उन दिनों पंचशील की बात पर अड़े हुए थे . जब १९६२ में चीन ने हमला कर दिया तब नेहरू की आँखें खुलीं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और चीन ने भारत को पीछे हटने को मजबूर कर दिया था . मौजूदा चीनी कार्रवाई के बारे में मुलायम सिंह यादव ने कहा कि सरकार इस मामले में हाथ में हाथ धरे बैठी है.उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार घुसपैठ की समस्या से निपटने में कायरों की तरह काम कर रही है.उन्होंने चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया और कहा कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन नहीं है .उन्होंने कहा कि हम कई वर्षों से चेतावनी दे रहे हैं कि चीन ने हमारे क्षेत्र पर कब्जा करना शुरू कर दिया है. लेकिन सरकार है कि सुनने को तैयार नहीं है.”मुलायम सिंह यादव ने कहा सेना चीन को खदेड़ने के लिए तैयार है लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में भी ढिलाई बरती जा रही है . मुलायम सिंह ने दावा किया कि “ये सरकार कायर, अक्षम और बेकार है.” साथ ही उन्होंने खुर्शीद के चीन की यात्रा पर जाने के माले में भी सवाल उठाए. चीन के प्रधानमंत्री की अगले महीने होने वाली भारत यात्रा की तैयारियों के सिलसिले में खुर्शीद नौ मई को चीन जा रहे हैं.उन्होंने कहा कि जब चीन हमारे क्षेत्र में घुस रहा है क्या विदेश मंत्री चीन के दौरे पर भीख मांगने जा रहे हैं .मुलायम सिंह यादव ने सरकार से यह भी कहा कि जब सेना प्रमुख कह रहे हैं कि वे चीनियों को वापस खदेड़ने के लिए तैयार हैं तो सरकार क्यों नहीं क़दम उठाती . मुलायम सिंह को यह पता होना चाहिए कि अगर सरकार फौज के ज़रिये सीमा की समस्या का हल निकालने की कोशिश करेगी तो युद्ध होगा और डॉ राम मनोहर लोहिया कभी भी युद्ध के पक्ष में नहीं थे. वे हमेशा शान्ति पूर्ण तरीके से ही समस्या का हल निकालने के पक्ष धर रहे . क्योंकि जंग मगरिब में या कि मशरिक में ,खून गरीब इंसान का ही बहता है . सत्ताधीश तो खून बहाने के बाद शान्ति समझौते करते नज़र आते हैं . १९६२ की लड़ाई के बाद भारत और चीन के सम्बन्ध बहुत बिगड गए थे . दोनों देशों के बीच में कूटनीतिक सम्बन्ध भी खत्म हो गए तह लेकिन जब अमरीका ने हेनरी कीसिंजर के दौर में चीन से दोस्ती बढानी शुरू की तो बाकी दुनिया में भी माहौल बदला और भारत ने चीन के साथ दोबारा १९७६ में कूटनीतिक सम्बन्ध कायम कर लिया लेकिन दोनों देशों के बीच जो चार हज़ार किलोमीटर की सीमा है उसमें जगह जगह पर विवाद के मौके पैदा होते रहते हैं . चीन के १९६२ के हमले के पचास साल बाद भी आज दोनों देशों के बीच सीमा का विवाद कहीं से भी हल होता नज़र नहीं आता .सीमा के इलाकों में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां दोनों ही देश अपनी दावेदारी की बात करते हैं. लद्दाख में बहुत बड़े भारतीय भूभाग पर चीन का कब्जा है . वह उसको अपना बताता है और उसका दावा है कि बाकी लद्दाख भी उसी के पास होना चाहिए . अरुणाचल प्रदेश को भी चीन अपना बताता है और सारी दुनिया में कहता फिरता है कि भारत ने उसके इलाके पर कब्जा कर रखा है . अरुणाचल के विवाद की जड़ में पूर्वी भाग की करीब नौ सौ किलोमीटर की सीमा पर झगडा है . करीब सौ साल पहले १९१४ में सर हेनरी मैकमोहन ने तिब्बत और ब्रिटेन के बीच इस विवाद को सुलझा देने का दावा किया था .तिब्बत तब एक स्वतन्त्र देश हुआ करता था .आजकल तो चीन का कब्जे में है .जो सीमा रेखा तय हुई थी उसको ही आज मैकमोहन लाइन कहते हैं .जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा की बातचीत चल रही थी तो भारत तो पूरी तरह से ब्रिटेन के अधीन था .ज़ाहिर है कि उसका हित ब्रिटेन ही देख रहा था . और ब्रिटेन एक ताक़तवर साम्राज्य था इसलिए उस विवाद को सुलझाने में सर हेनरी मैकमोहन ने चीन को भी केवल आब्ज़र्वर की हैसियत ही दी थी ,उसको विचारविमर्श में शामिल नहीं किया था. मैकमोहन लाइन की एक खास बात यह भी है कि वह बहुत मोटी निब वाले कलम से मार्क की गयी थी जिसकी वजह से गलती का मार्जिन १० किलोमीटर तक का है . ८९० किलोमीटर की सीमा में अगर १० किलोमीटर का गलती का मार्जिन है तो वह करीब ८९०० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को विवाद की ज़द में तुरंत ही स्थापित कर देता है .उत्तराखंड के इलाके में भी भारत और चीन का सीमा विवाद होता ही रहता है क्योंकि बहुत सारे इलाके ऐसे हैं जहां भारतीय और चीनी सैनिक पंहुच ही नहीं सकते . नतीजा यह होता है कि सेना के साथ काम करने वाले कुत्तों का इस्तेमाल ही अपनी सीमाओं को रेखांकित करने के लिए किया जाता है .भारत और चीन के बीच में कई बार ऐसे माहौल को देखा गया है जैसा कि आजकल बना हुआ है . एक बार तो १९८६ में ऐसा लगने लगा था कि उत्तरी तवांग जिले में फौजें भिड जायेगीं . भारत ने भी अपने करीब दो लाख सैनिक वहाँ भेज दिया था लेकिन बात संभल गयी . सच्चाई यह है कि दोनों देशों के बीच में १९६२ की लड़ाई के बाद बहुत ही तल्ख़ रिश्ते बन गए थे और १९६७ तक कभी कभार सीमा पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोली भी चल जाया करती थी लेकिन १९६७ के बाद दोनों देशों के बीच एक भी गोली नहीं चली है . १९६२ की अपमानजनक हार के बाद भारत में चीन को लेकर बहुत चिंताएं हैं . चीन के साथ किसी तरह की दोस्ती की बात को आगे बढ़ा पाना भारतीय राजनेताओं के लिए लगभग असंभव होता है .लेकिन दोनों देशों के बीच के झगडे को खत्म करने का एक ही तरीका है कि भारत और चीन यह बात स्वीकार कर लें कि जो जहां है वहीं ठीक है . भारत के बहुत बड़े भूभाग पर चीन का कब्जा है . कश्मीर और लद्दाख में कई जगहों पर चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर भारतीय ज़मीन पर कब्जा कर रखा है . चीन दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश समेत एक बड़ा हिस्सा उसका है जिसपर भारत का कब्जा है .ज़ाहिर है कि दोनों ही देश सैनिक ताक़त में बहुत मज़बूत हैं . दोनों ही परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और आर्थिक ताक़त भी बन रहे हैं . न चीन भारत को हडका सकता है और न ही चीन भारत से डरने वाला है . ज़ाहिर है दोनों देशों के विवाद को हल करने में सेना का कोई योगदान नहीं होगा . जो भी हल निकलेगा वह बातचीत से ही निकलेगा . और बातचीत में सहमति का सबसे मज़बूत आधार स्टेट्स को यानी यथास्थिति को बनाए रख कर समझौता करना ही हो सकता है . इस तरह का प्रस्ताव अस्सी के दशक में चीन के प्रधानमंत्री डेंग शाओपिंग दे भी चुके हैं लेकिन भारत में यथास्थिति को बरकरार रख कर कोई समझौता करने वाली पार्टी और उसका नेता राजनीतिक रूप से समाप्त हो जाएगा . इन खतरों के बावजूद 2003 में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार ने पहल की और वाजपेयी सरकार ने यथास्थिति के सिद्धांत का पालन करते हुए शान्ति स्थापित करने की कोशिश शुरू की . चीन ने भी जो ज़मीन भारत के पास है उसको भारत का मानने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया. दोनों देशों ने इस काम के लिए विशेष दूतों की तैनाती की और बातचीत का सिलसिला चल पड़ा .अब तक इस सन्दर्भ में दो दर्ज़न से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं .२००५ में एक समझौता भी हुआ जिसमें संभावित अंतिम समझौते के दिशा निर्देश और राजनीतिक आयाम को शामिल किया गया है .इस समझौते में यह भी लिखा है कि आबादी का विस्थापन नहीं होगा. इसका मतलब यह हुआ कि चीन तवांग जिले पर अपनी दावेदारी को भूलने को तैयार था. लेकिन बाद में सब कुछ बिगड गया . चीन ने मीडिया और अपने नेताओं के ज़रिये अजीबोगरीब बातें करना शुरू कर दिया और कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों के लिए अलग तरह का वीजा देना शुरू कर दिया . जिसके कारण रिश्ते खराब होते गए . चीन ने सीमा के पास बहुत ही अच्छी सड़कें बना ली हैं और भारत ने भी असम के आसपास अपनी सैनिक मौजूदगी को और पुख्ता किया है . दोनों देशों के बीच जो अविश्वास का माहौल बना है उसके चलते सब कुछ गडबड होने की दिशा में पिछले कई वर्षों से चल रहा है और लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी सेकटर में चीनी सैनिकों का आगे बढ़ कर अपने टेंट लगा देना उन्हीं बिगड़ते रिश्तों का एक नमूना है . लेकिन बिगड़ते रिश्तों को ठीक करने की कोशिश की जानी चाहिए ,उसके लिए हर तरह के प्रयास किये जाने चाहिए क्योंकि दोनों देशों के बीच अगर युद्ध की स्थिति बनी तो खून तो गरीब आदमी का ही बहेगा .