Showing posts with label राहुल गांधी. Show all posts
Showing posts with label राहुल गांधी. Show all posts

Saturday, January 18, 2014

प्रधानमंत्री का निर्वाचन लोकसभा के सदस्य करते हैं , १० जनपथ और नागपुर को नहीं करना चाहिए

शेष नारायण सिंह

सोनिया गांधी ने एक बार फिर अपने परिवार के सदस्यों के आसपास गणेश परिक्रमा कने वाले कांग्रेसी नेताओं को औकातबोध करा दिया है . उन्होने साफ़ कह दिया है कि २०१४ के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी किसी को भी प्रधानमंत्री पद दावेदार नहीं बनायेगी जबकि  कांग्रेस में राहुल गांधी के आसपास रहने वाले लोग उनको प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाकर २०१४ का चुनाव लड़ने पर आमादा थे.  उनकी कोशिश थी कि नरेंद्र मोदी की चुनौती को राहुल जी को सामने करके सम्भाला जा सकता है . अजीब बात है कि राहुल गांधी के इन भक्तों को पता नहीं है कि यह बीजेपी और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की योजना है . उन्होंने जाल बिछा रखा है और जैसे ही कांग्रेस अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती , वह तुरंत उनके जाल में फंस जाती . लेकिन सोनिया गांधी ने एक ऐसे फैसले को रोक दिया है जिससे उनकी पार्टी की  दुर्दशा तो होती ही ,संसदीय लोकतंत्र की नेहरूवादी परंपरा का भी बहुत नुक्सान होता .
प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की बीजेपी की योजना उनकी तीन साल पहले से चल रही रणनीति का हिस्सा है . पहले तो उन्होंने अन्ना हजारे के नेतृत्व में आन्दोलन चलवाकर कांग्रेस को भ्रष्टाचार का समानार्थी शब्द बनाने के प्रोजेक्ट पर गंभीरतापूर्वक काम किया . उनके इस  काम में कांग्रेस ने भी उनकी मदद की. कामनवेल्थ खेल , टू जी और कोयला घोटाला जैसे हथियार कांग्रेस ने बीजेपी के हाथ में थमा दिया .  जब कांग्रेस भ्रष्टाचार के कीचड में बुरी तरह से लिपटी नज़र आने लगी तो बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को मुक्तिदाता के रूप में पेश कर दिया . मोदी के पक्षधर टी वी चैनलों ने हाहाकार मचा दिया कि अब बीजेपी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है , कांग्रेस को फ़ौरन राहुल गांधी को उम्मीदवार बना देना चाहिए . कांग्रेस में राजनीति को न समझने वालों का एक बड़ा वर्ग और राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति को कम्यूटरबंद करने वाले नौजवानों ने भी दिनरात काम शुरू कर दिया . उनको सही मायनों में विश्वास था कि राहुल गांधी को आगे करने से बात बन जायेगी या यह कि राहुल गांधी के नाम से चुनाव जीता जा सकता है . लेकिन इस बीच चार महत्वपूर्ण विधानसभाओं  के चुनाव हुए और साफ़ हो गया कि राहुल गांधी का नाम चुनाव जीतने की गारंटी तो खैर बिलकुल नहीं है,उनके नाम से कोई लाभ भी नहीं होता. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के  आसपास लगे लोगों ने फिर भी वही राग अलापना जारी रखा जिससे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना दिया जाए .जब कांग्रेस ने १७ जनवरी के लिए आल इण्डिया कांग्रेस कमेटी की बैठक का प्रस्ताव रखा तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नामज़द करने के नारे और तेज़ी से लगने लगे. लेकिन १६ जनवरी को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जब इस ब्रिगेड ने तेज़ी से अपना राग अलापना शुरू किया तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने  हस्तक्षेप किया और कहा कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की कोई ज़रुरत नहीं हैं . इसके पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इकलौते व्यक्ति थे जिन्होंने कांग्रेस पार्टी से बार बार आग्रह किया था कि  बीजेपी की नक़ल करके कांग्रेस को  प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं करना चाहिए .जब सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस वर्किंग कमेटी में यह बात कह दी तो सभी यही उनकी हाँ में हाँ मिलाने लगे और बैठक के बाद यह बात साफ़ कर दी गयी कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बनाये जायेगें , उनको कांग्रेस पार्टी के चुनाव प्रचार का मुखिया ज़रूर बनाया जाएगा . अपने इस एक फैसले से कांग्रेस ने संभावित गठबंधन के साथियों को यह सन्देश भी दे दिया  है कि अभी प्रधानमंत्री पद किसी के पास जा सकता है . इस रणनीति का नतीजा यह हो सकता है कि मई २०१४ में सहयोगी जुटाने में मदद मिलेगी .
 कांग्रेस ने तय कर दिया है कि वह लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में किसी को नहीं पेश करेगी तो उन टी वी चैनलों के सामने खासी परेशानी पैदा हो गयी है जो नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी चुनाव के लिये कई महीने से नारा लगा रहे थे .  बीजेपी में भी भारी चिंता है क्योंकि राहुल गांधी को कमज़ोर वक्ता समझकर नरेंद्र मोदी को लगता था कि वे विजयी हो जायेगें . लकिन सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है . हालांकि सोनिया गांधी ने परंपरा के हवाले से दावा किया है कि कांग्रेस अपने उम्मीदवार नहीं घोषित करती लेकिन यह भी माना जा  रहा है कि २०१३ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार भी इसका एक प्रमुख कारण है .  कारण जो भी रहा हो ,प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित करके कांग्रेस ने बीजेपी को अलग थलग करने की दिशा में एक अहम् पहल कर दी है . अब यह तय है कि २०१४ के चुनावों में जो भी पार्टियां उतर रही हैं उनमें केवल बीजेपी की तरफ से ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मैदान में होगा .  जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया था तो पार्टी को उम्मीद थी कि उनके नाम पर जिन राज्यों में पार्टी कमज़ोर है और जहां कांग्रेस बनाम बीजेपी चुनाव होते हैं , वहां बीजेपी को भारी बढ़त मिल जायेगी . २०१३ के विधानसभा  चुनावों  से एक अलग तरह की तस्वीर सामने आ गयी है . जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बीजेपी के अपने मुख्यमंत्री  रमन सिंह और  शिवराज चौहान की  लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्होने पार्टी की जीत सुनिश्चित कर ली . इन राज्यों में नरेंद्र मोदी के नाम का कोई ख़ास इस्तेमाल नहीं हुआ.  इन राज्यों के ग्रामीण  इलाकों में लोगों को मोदी का नाम तक नहीं मालूम था  . दिल्ली और राजस्थान के चुनावों में  मोदी का असर दिखा . राजस्थान में पार्टी भारी बहुमत से विजयी हुयी जबकि  दिल्ली में सरकार बनाने लायक बहुमत भी नहीं मिला. बीजेपी के  नेता और मोदी के समर्थक मीडिया विश्लेषक सब जानते हैं कि दिल्ली में मोदी का इतना भी असर नहीं था कि वे चुनाव जीत सकें लेकिन  कोई कुछ कहता  नहीं . दिल्ली में बीजेपी का चुनाव शुद्ध रूप से नेन्द्र मोदी का चुनाव था क्योंकि उन्होंने अपनी मर्जी का  मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था और दिल्ली जैसे छोटे राज्य में बहुत अधिक चुनावी सभाएं की थीं . लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था . अन्य तीन  राज्यों की तरह कांग्रेस बनाम बीजेपी नहीं रह गया था. आम आदमी पार्टी के चुनाव में प्रभावी तरीके से शामिल हो जाने के कारण सब कुछ बदल गया था . नतीजा  यह हुआ कि बीजेपी सत्ता से बाहर रह गयी .
 कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवार की घोषणा न करके एक अच्छा उदाहरण पेश किया है . साथ साथ बीजेपी की उस कोशिश को भी रोक दिया है जिसके तहत वे संसदीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परम्परा और भारतीय संविधान की मूल भावना पर प्रहार कर  रहे हैं . संविधान के अनुसार बहुमत दल का नेता ही प्रधानमंत्री बन सकता  है . इसलिए पहले से प्रधानमंत्री तय करना हालांकि गैरकानूनी नहीं है लेकिन संविधानसम्मत भी नहीं है . यह तो रहीं संविधान की बातें लेकिन राहुल गांधी या किसी और को प्रधानमंत्री पद का दावेदार न बनाकर कांग्रेस ने एक बात  तय कर दिया है कि कांग्रेस अगर सरकार बनाने में शामिल होगी तो उसकी  तरफ से कोई भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं होगा . यह तय है कि २०१४ के बाद भी गठबंधन सरकार बनेगी . उस स्थिति में कांग्रेस ने संकेत दे दिया  कि वह  किसी मायावती, शरद पवार , जयललिता, नीतीश कुमार , मुलायम सिंह यादव या इसी तरह के किसी  व्यक्ति को समर्थन दे सकती है . जबकि बीजेपी के साथ  जो भी शामिल होगा ,उसे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार स्वीकार करना पडेगा . ज़ाहिर है कांग्रेस की रणनीति  राजनीतिक रूप से ज़्यादा सही नज़र आती है .
प्रधानमंत्री पद  का दावेदार घोषित करने में बीजेपी की सोच है कि २०१४ के चुनावों देश एक मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी के समर्थन में टूट पडेगा .इस सोच में तर्कदोष है  और यह अनुभव से साबित भी हो चुका है कि ऐसा होना संभव नहीं है . २०१३ के विधानसभा चुनावों में जिन राज्यों में बीजेपी बनाम कांग्रेस मुकाबला था , वहां बीजेपी की जीत हुयी है लेकिन दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय था इसलिए बीजेपी सत्ता से बाहर बैठ कर मौजूदा मुख्यमंत्री  के कार्यों का विश्लेषण करती नज़र आ रही है . दिल्ली में भी कांग्रेस विरोधी लहर थी लेकिन उस लहर का फायदा आम आदमी पार्टी ले गयी और कांग्रेस को मजबूर कर दिया कि वह बीजेपी के  खिलाफ सरकार बनाने में उसकी मदद करे . बीजेपी की पूरी कोशिश है कि  वह आम आदमी पार्टी को यू पी ए का हिस्सा साबित कर दे लेकिन उसे अभी कोई सफलता नहीं मिल रही है . अलबत्ता उन राज्यों में जहां बीजेपी मज़बूत है ,वहां आम आदमी पार्टी मजबूती से संगठन बना रही है . २०१४ की लगभग सभी सीटें बीजेपी को गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़, दिल्ली , उत्तर प्रदेश , बिहार ,कर्णाटक और महाराष्ट्र से आने की उम्मीद है . इन सभी राज्यों में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति बहुत ही मज़बूत है . यहाँ तक कि गुजरात के सभी लोकसभा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी की सदस्य संख्या बढ़ रही  है . इसका मतलब यह हुआ कि जिस गुजरात में कांग्रेस मोदी के सामने एक बहुत ही कमज़ोर पार्टी के रूप में मैदान में थी वहां अब बीजेपी को एक ऐसी पार्टी का मुकाबला करना पडेगा जिसका पिछला कोई रिकार्ड नहीं है और जो दिल्ली में बीजेपी को मिल रही निश्चित सत्ता से दूर रखने में सफल रही है ..
अब  तक के संकेतों से साफ़ है कि आम आदमी पार्टी  भी किसी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बनायेगी  यानी वह भी नरेंद्र मोदी और बीजेपी को कोई ऐसा  व्यक्ति नहीं देने वाली है जिसके खिलाफ व्यक्तिगत स्तर पर अभियान चलाया जा सके . लोकसभा २०१४ की एक ख़ास बात और यह है कि आम आदमी पार्टी की अपील उन राज्यों में तो है ही जहां बीजेपी मज़बूत है लेकिन उसकी पंहुच हैदराबाद, चेन्नई, त्रिवेंद्रम,कोलकता  आदि बड़े शहरों के आसपास भी है . उत्तर प्रदेश ,जहां लोकसभा  चुनाव २००९ में बीजेपी चौथे स्थान पर रही थी और अभी २०१२ में हुए विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी,  वहां सभी ८० सीटों पर आम आदमी पार्टी की मौजूदगी प्रभावशाली तरीके से है और यह पक्का है कि समाजवादी पार्टी को होने वाले नुक्सान का सीधा लाभ  बीजेपी को नहीं मिलेगा . गठ्बंधन की राजनीति के ज़माने में अगर  झाडू वाली पार्टी अपना दिल्ली वाला  प्रदर्शन दोहरा सकी तो प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करना किसी भी पार्टी को भारी पड़ जाएगा.    

Sunday, April 21, 2013

जयपुर चिंतन की राहुल गांधी की बातों को बेकार मानते हैं बड़े कांग्रेसी नेता



शेष नारायण सिंह

कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जयपुर  चिंतन शिविर में जितनी बातें की थीं,लगता  है कि कांग्रेस के नेता हर उस बात को बेमतलब साबित कर देगें .उन्होंने जयपुर में अपने भाषण में बहुत जो देकर कहा था कि  “ हम टिकट की बात करते हैंजमीन पे हमारा कार्यकर्ता काम करता है यहां हमारे डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बैठे हैंब्लॉक प्रेसिडेंट्स हैं ब्लॉक कमेटीज हैं डिस्ट्रिक्ट कमेटीज हैं उनसे पूछा नहीं जाता  हैं .टिकट के समय उनसे नहीं पूछा जातासंगठन से नहीं पूछा जाताऊपर से डिसीजन लिया जाता है .भईया इसको टिकट मिलना चाहिएहोता क्या है दूसरे दलों के लोग आ जाते हैं चुनाव के पहले आ जाते हैं,  चुनाव हार जाते हैं और फिर चले जाते हैं और हमारा कार्यकर्ता कहता है भईयावो ऊपर देखता है चुनाव से पहले ऊपर देखता हैऊपर से पैराशूट गिरता है धड़ाक! नेता आता हैदूसरी पार्टी से आता है चुनाव लड़ता है फिर हवाई जहाज में उड़ के चला जाता है।“ कर्नाटक विधान सभा के ५ मई वाले चुनाव के लिए पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल ( सेकुलर ) को छोड़कर आये लोगों को टिकट दे दिया गया है . कर्नाटक में यह माहौल है कि कांग्रेस की टिकट पाने वालों के लिए विधानसभा पंहुचना आसान हो जाएगा . शायद इसीलिये अन्य पार्टियों से लोग दौड पड़े हैं और कांग्रेस में भी अपने उपाध्यक्ष की राय को ठंडे बस्ते में डालकर एन केन प्रकारेण सरकार बनाने की आतुरता के चलते ऐसे लोगों को टिकट देने की मजबूरी है . जयपुर में राहुल  गांधी ने कहा था कि उनकी पार्टी के ज़मीनी नेताओं में भी चुनाव जीतने  योग्यता होती है लेकिन पार्टी के पुराने नेता लोग उनकी बात को उतना महत्त्व नहीं दे रहे हैं जितना देना चाहिए था. बीजेपी छोड़कर आने वाले लोगों को भी कांग्रेस ने टिकट देने में संकोच नहीं किया है . अभी कल तक बीजेपी की कर्नाटक सरकार में कृषि और सहकारिता मंत्री रहे शिवराज तंगाडगी को भी टिकट दे दिया गया है.  वे कनकगिरि सीट से पार्टी के उम्मीदवार होंगें
राहुल गांधी ने जो और भी बातें कहीं थीं उनको भी नज़रंदाज़ किया जा  रहा है . मसलन उन्होने बहुत ही सख्त भाषा में कहा था कि कुछ नेताओं को मुगालता होता है कि वे जिस पार्टी में जाते हैं वह जीत जाती है . कांग्रेस भी उनको इज्ज़त देती है . उनके भाषण में शब्दशः कहा गया था कि , “जो हमारे ही लोग हमारे खिलाफ खड़े हो जाते हैं चुनाव के समय इंडिपेंडेंट खड़े हो जाते हैं जो इंडिपेंडेंट को खड़ा कर देते हैं उनके खिलाफ एक्शन लेने की जरुरत है।“  कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी ने ऐसे बहुत सारे लोगों को टिकट दे दिया है जो पिछले वर्षों में बार बार कांग्रेसी उमीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं , खिलाफ जाकर पार्टी बना चुके हैं लेकिन मौजूदा कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि वे चुनाव जीत सकते हैं और उनको भी टिकट दे दिया गया है .
राहुल गांधी ने यह भी  कहा है कि पार्टी को चाहिए कि उन लोगों को टिकट न दे जिनकी आपराधिक छवि है . कर्नाटक में टिकटों के बँटवारे को लेकर इस सलाह की भी धज्जियां उड़ाई गयी हैं . और आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों ,डी के शिवकुमार,एम कृष्णप्पा,और सतीश जरकीहोली को टिकट दे दिया  गया है .जयपुर में राहुल गांधी ने  कांग्रेस कार्यकर्ता को इज्ज़त देने की बात पर भी बहुत जोर दिया था . उन्होंने कहा था , “ सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता की इज्जत होनी चाहिए और सिर्फ कार्यकर्ता की इज्जत नहींनेताओं की इज्जतनेताओं की इज्जत का मतलब क्या हैकि अगर नेता ने अच्छा काम किया हैअगर नेता जनता के लिये काम कर रहा है चाहे वह जूनियर नेता हो या सीनियर नेता होजितना भी छोटा होजितना भी बड़ा हो अगर वो काम कर रहा है तो उसे आगे बढ़ाना चाहिएअगर वो काम नहीं कर रहा है तो उसको कहना चाहिए भईया आप काम नहीं कर रहे हो और अगर 2-3 बार कहने के बाद काम नहीं किया तो फिर दूसरे को चांस देना चाहिए” लेकिन नौजवानों को कोई महत्व नहीं दिया  गया है . अन्य राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में यूथ कांग्रेस के कार्यकाल के राहुल गांधी के पुराने साथियों को महत्व दिया गया था .कर्नाटक में यूथ कांग्रेस वालों ने बीस लोगों को टिकट देने की सिफारिश की थी लेकिन एकाध को छोड़कर किसी को टिकट नहीं दिया  गया है .कर्नाटक राज्य के यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रिजवान अरशद भी उम्मीदवार थे लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उनको टिकट नहीं दिया . खबर है कि वे बहुत नाराज़ हैं और पार्टी से इस्तीफे की  धमकी दे रहे हैं . उनके शुभचिंतक उनको समझा रहे हैं कि इस्तीफ़ा देना ठीक नहीं  होगा क्योंकि राज्य में जैसा माहौल है कि  उसमें कांग्रेस की सरकार बन सकती है और अगर पार्टी में बने रहे तो सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा के मुखिया के रूप में तो रुतबा रहेगा ,बेशक विधायक बनने का मौक़ा हाथ से निकल चुका है
कार्यकर्ताओं की इज्ज़त के बारे में राहुल गांधी के बयान की और भी दुर्दशा की गयी है. देश में कांग्रेस समेत सभी सरकारी पार्टियों की सबसे बड़े कमजोरी यह है कि पार्टियों के  बड़े नेताओं के रिश्तेदार पार्टी से मिलने वाले फायदे के सबसे बड़े लाभार्थी बन जाते हैं . ज़ाहिर है मंत्रियों और पार्टी के बड़े नेताओं के रिश्तेदार होने के कारण वे हमेशा आम कार्यकर्ता से ज़्यादा मज़े ले रहे होते हैं . लेकिन जब टिकट का मौक़ा आता है तो उनको टिकट दे दिया जाता है और आम कार्यकर्ता फिर मुंह ताकता रह जाता है .कर्नाटक में भी इस बार यह हुआ है .कई बड़े नेताओं के बच्चों या कुनबे वालों को टिकट दे दिया गया है . पूर्व मुख्यमंत्री धरम सिंह के बेटे अजय सिंह . केंद्रीय मंत्री मल्लिकार्जुन खार्गे के पुत्र प्रियांक खार्गे  , पूर्व रेलमंत्री सी के जाफर शरीफ के पौत्र रहमान शरीफ और दामाद सैयद यासीन , एस शिवाशंकरप्पा और उनके बेटे एस एस मल्लिकार्जुन ,  एम कृष्णप्पा और उनके प्रिय कृष्णा आदि को पक्षपातपूर्ण तरीके से टिकट दे दिया गया है .
कांग्रेस ने राहुल  गांधी की एक और इच्छा का विधिवत अनादर किया है . राहुल गांधी की बड़ी  इच्छा है कि जो लोग बार बार भारी वोटों से चुनाव हार जाते हैं उनको टिकट न दिया जाए और उनकी जगह पर नए लोगों  को महत्व दिया जाए. कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए तो यह दिशानिर्देश भी तय किया था . नियम बनाया गया था कि जो लोग  पिछले दों चुनावो में  १५ हज़ार से ज्यादा वोटों से हारे होंगें उनको इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा लेकिन ऐसे लोगों को टिकट दिया गया है . बासवराज रायारादी, कुमार बंगारप्पा  और एस नयमगौड़ा इस श्रेणी में प्रमुख हैं .  
इस तरह से साफ़ देखा जा सकता है कि कांग्रेस ने जयपुर चिंतन में कही गयी बातों को पहले ही अवसर पर दरकिनार  करना शुरू कर दिया है .जयपुर में राहुल गांधी की बातों से कांग्रेस  की राजनीति को एक नई दिशा  मिलने की उम्मीद जताई गयी थी. हालांकि यह भी सच है कि बीजेपी के उम्मीदवार को प्रधानमंत्री पद पर स्थापित कर देने के लिए व्याकुल पत्रकारों ने उस भाषण का खूब मजाक उडाया था और उन लोगों का भी मजाक उडाया था जो राहुल गांधी को गंभीरता से ले रहे थे लेकिन इस बात में दो राय नहीं है कि उस भाषण से उम्मीदें बंधी थीं .उन्होंने कहा था कि  सत्ता के बहुत सारे केन्द्र बने हुए हैं .बड़े पदों पर जो लोग बैठे हैं उन्हें समझ नहीं है और जिनको समझ और अक्ल है वे लोग बड़े पदों पर पंहुच नहीं पाते .ऐसा सिस्टम  बन गया है कि बुद्दिमान व्यक्ति महत्वपूर्ण मुकाम तक पंहुच ही  नहीं पाता.आम आदमी की आवाज़ सुनने वाला कहीं कोई नहीं है .उन्होंने कहा कि  अभी ज्ञान की इज्ज़त नहीं होती बल्कि  पद की इज्ज़त होती है . इस व्यवस्था को बदलना पडेगा.  ज्ञान  पूरे देश में जहां भी होगा उसे आगे लाना पडेगा. ऐसे लोगों को  आगे लाने का  एक मौक़ा चुनाव का  टिकट होता है . कर्नाटक  विधानसभा चुनाव के टिकटों के बँटवारे के मामले में कांग्रेस यह मौक़ा गँवा चुकी है 

Monday, January 21, 2013

जयपुर घोषणा: राहुल गांधी के अगले १० साल के लिए काम




शेष नारायण सिंह 



जयपुर,20  जनवरी। कांग्रेस का जयपुर घोषणा पत्र जारी हो गया . कांग्रेस ने दावा किया है की इस घोषणापत्र में जो कुछ लिखा है वह उनकी पार्टी का भावी कार्यक्रम भी है . कांग्रेस में आज नयी शुरुआत हुयी क्योकि  कल कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाए जाने को मंजूरी दे दी थी और कांग्रेस में एक नयी लीडरशिप की बुनियाद रख दी गयी थी। राहुल गांधी अपने नेहरू परिवार से आने वाले कांग्रेस अध्यक्षों की पांचवीं पीढी के नौजवान हैं . 42 साल के राहुल गांधी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के रूप में काम शुरू कर दिया हैं . इसी उम्र में इनके  पिता जी के नाना जवाहर लाल नेहरू ने लाहौर में काग्रेस का अध्यक्ष पद हासिल कर लिया था। जब जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में कांग्रेस अध्यक्ष  का पद संभाला था तो देश की राजनीति में महात्मा गांधी का था। वहीं रावी नदी के किनारे देश ने जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई  में पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य  निरधारित किया था। राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनाने के पहले भी कांग्रेस पार्टी में उपाध्यक्ष रह चुके हैं लेकिन उनको वह अधिकार नहीं मिले थे जो राहुल गांधी को मिल रहे हैं . आज  अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जब उनकी तैनाती को मंजूरी दी तो सोनिया गांधी के चेहरे की प्रसन्नता बता रही थी कि  वे अपने बेटे की नयी ज़िम्मेदारी से बहुत खुश हैं।

 जयपुर घोषणा पत्र  जारी होने के साथ साथ राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का एक तरह से सारा ही काम काज दे दिया  गया। जयपुर घोषणा पत्र में धर्म निरपेक्ष और प्रगतिशील ताक़तों से एकजुट होने की अपील की गयी है . और जो लोग समाज में ध्रवीकरण के ज़रिये दुशमनी पैदा करना चाहते हैं उनको शिकस्त देने की  बात की गयी है .यू पी ए  सरकार की आठ साल के एउप्लाब्धियों को लेकर वोट मांगने जाने के लिए तैयार कांग्रेस  पार्टी ने दावा किया है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी अपने संघर्ष  को जारी रखेगी।लोकपाल बिल के बारे में हुयी प्रगति  को पार्टी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई के उदाहरण के तौर पर पेश किया है .राजनेताओं और सरकारी  अफसरों के भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़रूरी मुहिम चलाई जायेगी।

कांग्रेस पार्टी ने स्वीकार किया है कि अल्पसंख्यकों के अधिकार  अभी भी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं हैं .इसके लिए सरकार से मांग भी कर डाली गयी है . जयपुर घोषणा पात्र ने अल्पसंख्यकों के लिए बनायी गयी सच्चर कमेटी की सिफारिशों को प्रासंगिक माना है अब कांग्रेस  प्रधान मंत्री के १५ सूत्री कार्यक्रम को लागू करने में सरकार को सहयोग करेगी.

पिछले दिनों  सडकों पर आ रहे नौजवानों के गुस्से को भी कांग्रेस ने पहचाना है . शहरी और ग्रामीण नौजवानों के सपनों की शिनाख्त करके उन्हने पूरा करने की दिशा में काम करने की बात की गयी है .पकिस्तान के बारे में कांग्रेस ने  दृढ रुख अपनाया है और तय किया  है कि देश की आतंरिक और बाह्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाएगा और  आतंकवाद को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा .पाकिस्तान के बारे में सोनिया गांधी के भाषण में जिन  मानदंडों की बात की  गयी थी उसे जयपुर घोषणा पत्र  का हिस्सा बनाया गया है . अलगाव वादी ताक़तों और साम्प्रदायिक ताक़तों के खिलाफ जारी राजनीतिक प्रयास को और तेज़ किया जाएगा .और उन्हें राजनीतिक  स्तर  पर हल करने की योजना बनायी जायेगी .न्याय पालिका और  चुनाव प्रक्रिया में सुधार को  प्राथमिकता दी जायेगी क्योंकि इन  रास्तों से भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा हो रहा है .. " आपका पैसा आपके हाथ " कार्यक्रम को भी कांग्रेस अपने कार्यक्रम के रूप  में पेश कर रही है और उसे लेकर उसके कार्यकर्ता अब जनता के बीच में जायेगें।

मूलभूत स्वास्थ और स्वच्छता  के कार्यक्रमों को भी प्रमुखता दी जायेगी . माओवादी आतंकवाद को राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर  पर कमज़ोर  करने के  लिए कम किया जायेगा।असमानता को कम करके  रोज़गार के सृजन के साथ समावेशी विकास को सुनिश्चित करना सबसे बड़ी सामाजिक आर्थिक चुनौती है ./ साल २०२० तक महिलाओं और बच्चों को कुपोषण का शिकार न होने देने का भी संकाल्प उठाया गया है .घोषणा पत्र में किसानों के लिए भी कुछ विषय डाले गए हैं .किसानों की ज़मीन लेने के पुराने कानून को बदल कर उसे आधुनिक बनाने की बात की गयी है .खाद्य सुरक्षा को पक्का करना भी जयपुर घोषणा पत्र की एक खास बात है  भारतीयों में उद्यमिता के विकास को महत्व दिया जाएगा और कोशिश की जायेगी और पूंजी निवेश को प्रमुखता दी जायेगी. पूंजी देशी और विदेशी दोनों तरह की हो सकती है . हैंडलूम को विकसित करने की बात भी  की गयी है .पंचायती राज संस्थाओं , सरकारी स्कूलों और ग्रामीण नौजवानों के शैक्षिक विकास के लिए सरकारों की मदद के काम में  कांग्रेसी कार्यकर्ता भी  लगाए जायेगें .बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को आर्थिक  विकास की बुनियाद माना गया है और उनके  विकास के लिये पार्टी हर प्रयास करेगी,संचार और सूचना के क्षेत्र में आई क्रान्ति को आम आदमी और अपनी पार्टी के हित में प्रयोग करने की भी कोशिश भी कांग्रेस पार्टी करेगी 
 . 
महिलाओं के  सुरक्षा के मसले पर  सोनिया गांधी और अन्य नेता बहुत संतुष्ट नहीं है . जिस से भी बात की गयी सभी दिल्ली गैंग रेप की घटना  से विचलित नज़र आये .कांग्रेस ने २००२ में महिलाओं के सशक्तीकरण  के लिए एक कार्य योजना बनाई थी . अब उसे अपने कार्यक्रम में शामिल करके उस दिशा में आगे बढ़ने  का कार्यक्रम बना लिया  गया है .लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति को बढ़ाया जाएगा.यौन अत्याचारों की परिभाषा के बारे में चल रही राष्ट्रीय  बहस में कांग्रेस ने अपने आपको जोड़ दिया है और तय किया है है कि जहां जहां कांग्रेस सरकारें हैं वहाँ पुलिस फ़ोर्स में ३० प्रतिशत  महिलाओं को भर्ती किया जाएगा. . महिलाओं के लिए एक अलग राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की जायेगी जो महिलाओं के कार्यक्रमों को उसी तरह से समर्थन देगी जिस तरह से खेती के कार्यक्रमों को नाबार्ड बैंक देता है . १८ से ६० साल की आयु के बीच की निराश्रित, परित्यक्ता और विधवा महिलाओं को उचित पेंशन दी जायेगी लेकिन इसमें एक सवाल पूछा जा  रहा है कि  ६० साल से ऊपर आयु की महिलायें कहाँ जायेगीं . कांग्रेस पार्टी में अब ३० प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए रिज़र्व कर दी जायेगीं.

विदेश नीति में नेहरू की विदेश नीति के आधार पर दावा करते हुए दुनिया में हुए बदलाव और कोल्ड वार  की समाप्ति के हवाले से अमरीका परस्ती के ढर्रे  पर चलने के संकेत दिए गए हैं .संगठन के स्तर पर कुछ काम लीक से हटकर किये जायेगें . ब्लाक और जिला स्तर पर कमेटियों में उन्हीं लोगों को  स्थान दिया जायेगा जिन्होंने  पंचायत के स्तर पर कहीं चुनाव में सफलता पायी हो . इसी योजना के सहारे सभी वर्गों के लोगों को कांग्रेस में काम दिया जाएगा .बूथ और ब्लाक  स्तर पर भी कांग्रेस कमेटियों का गठन किया जायेगा .  

Friday, July 20, 2012

क्या राहुल गांधी को उनकी असफलता के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है ?





शेष नारायण सिंह 

नई दिल्ली, १९ जुलाई. राष्ट्रपति चुनाव के मतदान में वोट डालने आये राहुल गाँधी ने आज यह कह कर सत्ता के गलियारों में तूफ़ान खड़ा कर दिया कि वे सरकार या पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हैं . इस से ज्यादा राहुल गांधी ने कुछ नहीं  कहा है . कांग्रेस पार्टी य यूं कहें के १० जनपथ के सबसे महत्वपूर्ण प्रवक्ता, जनार्दन  द्विवेदी  ने केवल यह कहा है कि हमें बहुत खुशी होगी अगर राहुल गांधी सरकार या पार्टी में और कोई  पद  स्वीकार करते हैं . लेकिन यह उनको तय करना है कि वे  कब और क्या पद स्वीकार करते हैं . आधिकारिक तौर पर इससे ज्यादा कुछ नहीं मालूम है  लेकिन सभी टी वी चैनलों और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में तरह तरह के अनुमान लगाए जा  रहे हैं . कुछ चैनलों पर बैठे राजनीतिक विश्लेषक मंत्रिपरिषद में राहुल गांधी के संभावित   विभागों की विवेचना भी कर रहे हैं . कोई उन्हें ग्रामीण विकास दे रहा है तो कोई शिक्षा मंत्रालय का चार्ज दे रहा  है . कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह भी अपनी पीठ ठोंक रहे हैं कि उन्होंने तो दो साल पहले ही कह दिया था.  

सही बात यह है कि किसी को नहीं मालूम है  कि अगले दो तीन दिनों में राष्ट्रीय राजनीति, खासकर कांग्रेस के राजनीति क्या शक्ल अख्तियार करेगी  लेकिन इतना पक्का है कि अब सत्ता के समीकरण निश्चित रूप से बदल जायेगें. हालांकि दिल्ली में अभी किसी ने खुलकर नहीं कहा है  लेकिन एक बहुत ही भरोसेमंद सूत्र ने बताया है कि  इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी सरकार में बहुत ऊंचे पद पर ही बैठा  दिए जाएँ. लेकिन यह सब केवल राहुल गांधी और उनके  परिवार के अलावा किसी को पता नहीं है . 

अब जब यह पक्का हो गया है कि राहुल गांधी को मौजूदा राजनीतिक जिम्मेदारियों से बड़ा काम मिलें वाला  है . यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्होंने  अपने पिछले करीब १० साल के राजनीतिक जीवन में क्या ख़ास हासिल किया है .  उत्तर प्रदेश विधान सभा के  पिछले चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत  मेहनत की लेकिन नतीजा सबके सामने है . उनके हवाले पूरी कांग्रेस पार्टी थी , सारे संसाधन थे, हेलीकाप्टर , और  विमान थे  लेकिन अपनी सीटों की संख्या में वे कोई वृद्धि नहीं कर पाए. उनकी  राजनीतिक सूझ बूझ  पर भी सवाल उठे जब उन्होंने बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता के हवाले पार्टी के विधान सभा के टिकटों का एक बहुत  बड़ा हिस्सा कर दिया . बेनी प्रसाद वर्मा ने जितने लोगों को टिकट दिया था वे सभी हार गए . जबकि उनसे कम संसाधनों के सहारे काम कर रहे समाजवादी पार्टी के   नेता अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को बहुमत दिला दिया . इसके पहले राहुल गांधी ने बिहार में अपनी  पार्टी के दुर्दशा  का  सुपरविजन  किया था.  हुछ साल पहले  उनकी राजनीति का लाभ नरेंद्र मोदी ने गुजरात में लिया था और कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष के भाषण  लेखक के उस वाक्य का पूरे देश में मजाक उड़ाया गया था जब उनके मुंह से  नरेंद्र  मोदी को मौत का सौदागर कहलवा दिया गया था .  
 इसके अलावा अभी राहुल गांधी और उनके साथियों के खाते में मुंबई सहित महाराष्ट्र  के नगर पालिका चुनावों में कांग्रेस की खस्ता हालत भी दर्ज है . आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए भी राष्ट्रीय नेतृत्व  ही ज़िम्मेदार  है . इस सबसे ऐसा लगता है कि राहुल इतिहास के इकलौते ऐसे नेता हैं जो हर मोर्चे पर फेल होने के बाद भी और बड़ी ज़िम्मेदारी के  हक़दार माने जा रहे हैं . बहर हाल  जो भी हो अब  यह पक्का है कि राहुल गांधी के हाथ में देश का भविष्य सुरक्षित करने की तैयारी कांग्रेस ने पूरी कर ली है .

Tuesday, November 15, 2011

क्या नेहरू के नाम पर यू पी में कांग्रेस की डूबती नैया पार होगी

शेष नारायण सिंह

कांग्रेस के सरताज राहुल गांधी जवाहरलाल नेहरू के चुनाव क्षेत्र ,फूलपुर से उत्तरप्रदेश विधान सभा के २०१२ के चुनाव अभियान की शुरुआत कर चुके हैं . अपने पिताजी के नाना से अपने नाम को जोड़ने के चक्कर में राहुल गांधी, जवाहरलाल नेहरू की विरासत को केवल अपने परिवार तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं . यह सच नहीं है. जवाहरलाल नेहरू को इंदिरा गाँधी के पिता के रूप में ही प्रस्तुत करना देश की आज़ादी की लड़ाई के संघर्ष के साथ मजाक है . यह भी वैसी ही कोशिश है जिसके तहत एक राजनीतिक पार्टी के लोग हर गलती के लिए जवाहरलाल नेहरू को ज़िम्मेदार ठहराते पाए जाए हैं . आजकल तो इस प्रजाति के लोग अखबारों में भी खासी संख्या में पंहुच गए हैं और वे कहते रहते हैं कि कश्मीर समस्या सहित देश की सभी बड़ी समस्याएं नेहरू की देन हैं . समकालीन इतिहास की इससे बड़ी अज्ञानतापूर्ण समझ हो ही नहीं सकती. सच्ची बात यह है कि अगर महात्मा गाँधी ,जवाहरलाल नेहरू , सरदार पटेल और शेख अब्दुल्ला ने राजनीतिक बुलंदी न दिखाई होती तो राजा हरि सिंह और मुहम्मद अली जिन्ना ने तो जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिला ही दिया था. लेकिन सरदार पटेल और शेख अब्दुल्ला की संयुक्त कोशिश का नतीजा था कि कश्मीर आज भारत का हिस्सा है .समकालीन इतिहास के इस सच को जनता तक पंहुचाने का काम किसी राजनीतिक विश्लेशक का नहीं है . यह काम तो कांग्रेस पार्टी का है लेकिन उसने सच्चाई को पब्लिक डोमेन में लाने का काम कभी नहीं किया . नतीजा यह है कि आज की पीढी के एक बहुत बड़े वर्ग को अब भी यही बताया जा रहा है कि जवाहरलाल नेहरू ने देश को कमज़ोर किया . शायद इसका करण यह है कि कांग्रेस पार्टी वाले नेहरू के वंशजों की जय जय कार में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें नेहरू की विरासत को याद करने का मौक़ा ही नहीं मिल रहा है .आज कांग्रेसी नेता यह कोशिश करते देखे जा रहे हैं कि राहुल गांधी भी उतने ही दूरदर्शी नेता हैं ,जितने कि जवाहरलाल नेहरू थे.. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि जवाहरलाल नेहरू का वंशज होकर कोई उन जैसा नहीं बन जाता . कल्पना कीजिये कि अगर जवाहरलाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री की प्रधानमंत्री के रूप में असमय मृत्यु न हो गयी होती और उस दौर के कांग्रेसी चापलूस, जिसमें कामराज सर्वोपरि थे, ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री न बनवा दिया होता तो आज राहुल गांधी और वरुण गांधी जैसे अजूबे कहाँ होते. वास्तव में राहुल गांधी और वरुण गांधी टाइप नेताओं को अपने आप को जवाहरलाल नेहरू का वारिस कहना ही नहीं चाहिए . में यह सब तो इंदिरा गाँधी के वारिस हैं . वही इंदिरा गाँधी जिन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए लोकतंत्र का सर्वनाश करने की गरज से इमरजेंसी लगाई थी, विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया था, प्रेस का गला घोंट दिया था और इस देश के लगभग सभी नेताओं को यह प्रोत्साहन दिया था कि वे अपने वंशजों को राजनीति में बढ़ावा दें और जनता के धन की लूट के अभियान में शामिल हों. आज हर पार्टी का नेता अपने बच्चों को राजनीति में शामिल करवा रहा है और उनको भी वैसी ही चोरी करने की प्रेरणा दे रहा है जिसके चलते वह खुद करोडपति या अरबपति बन गया है.
बहरहाल अब कोई जवाहरलाल नेहरू का अभिनय करना चाहे तो उसे कोई रोक नहीं सकता है इसलिए आज फूलपुर में राहुल गांधी का भाषण उसी तर्ज़ पर हो गया जैसा फिल्म्स डिवीज़न के आर्काइव्ज़ में जवाहरलाल नेहरू का भाषण देखा जाता है . लेकिन यह समझ लेना ज़रूरी है कि फूलपुर में जवाहरलाल नेहरू इसलिए जीत जाते थे कि उनको कहीं से भी मज़बूत विरोध नहीं मिल रहा था. एक बार तो उनके खिलाफ स्वामी करपात्री जी लड़े थे और एकाध बार स्वामी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने उन्हें चुनौती दी थी. जवाहरलाल नेहरू देश को प्रगति के रास्ते पर ले जा रहे थे तो सभी चाहते थे कि उन्हें कोई चुनावी चुनौती न मिले . लेकिन जब उन्हें चुनौती मिली तो जीत बहुत आसान नहीं रह गयी थी. १९६२ के चुनाव में फूलपुर में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी से डॉ. राम मनोहर लोहिया उम्मीदवार थे . डॉ लोहिया भी आज़ादी के लड़ाई के महान नेता थे. कांग्रेस से अलग होने के पहले वे नेहरू के समाजवादी विचारों के बड़े समर्थक रह चुके थे. बाद में भी एक डेमोक्रेट के रूप में वे नेहरू जी की बहुत इज्ज़त करते थे . लेकिन जब आज़ादी के एक दशक बाद यह साफ़ हो गया कि जवाहरलाल नेहरू भी समाजवादी कवर के अंदर देश में पूंजीवादी निजाम कायम कर रहे हैं तो डॉ लोहिया ने जवाहरलाल को आगाह किया था . तब तक जवाहरलाल पूरी तरह से नौकरशाही और पुरातनपंथी लोगों से घिर चुके थे. नतीजा यह हुआ कि डॉ राम मनोहर लोहिया ने फूलपुर चुनाव में पर्चा दाखिल कर दिया . ऐसा लगता है कि डॉ लोहिया भी जवाहरलाल नेहरू को हराना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्होंने फूलपुर चुनाव क्षेत्र में केवल दो सभाएं कीं . स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र ने बताया था कि जहां भी डॉ लोहिया गए और उन्होंने नेहरू की अगुवाई वाली सरकार की कमियाँ गिनाई तो जनता की समझ में बात आ गयी. जनेश्वर मिश्रा का कहना था कि जिन इलाकों में लोहिया ने सभाएं की थीं वहां नेहरू को बहुत कम वोट मिले थे. मसलन कोटवा नाम के पोलिंग स्टेशन पर डॉ लोहिया को ७५० वोट मिले थे तो जवाहरलाल नेहरू के नाम पर केवल २ वोट पड़े थे. इसी तरह से हरिसेन गंज में लोहिया को ३७५ वोट मिले तो जवाहरलाल को ३ वोट मिले.राहुल गांधी और उनकी मंडली के लोगों को यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि जवाहर लाल नेहरू की तरह चुनाव लड़ने का अभिनय करके बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है . उत्तर प्रदेश या देश के किसी भी हिस्से में जवाहरलाल नेहरू की तरह सफल होने के लिए राजनीतिक छुटपन से बाहर निकलना होगा और देश की समस्यायों को सही सन्दर्भ में समझना होगा . अगर ऐसा न हुआ तो जवाहरलाल नेहरू की बेटी का पौत्र बनकर राजनीतिक सफलता हासिल कर पाना आसान नहीं होगा .

Thursday, August 5, 2010

राहुल गांधी को गुस्सा क्यों आता है ?

शेष नारायण सिंह

( डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में छप चुका है )

कांग्रेस के आला नेता, राहुल गाँधी आजकल बहुत गुस्से में हैं . पता चला है कि जिन राज्यों में उनकी पार्टी की विरोधी सरकारें हैं ,वहां मुसलमानों के लिए केंद्र सरकार की ओर से चलाई गयी योजनाओं को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है . उनके प्रिय राज्य उत्तर प्रदेश में भी मुसलमानों की भलाई के लिए केंद्र से मंज़ूर रक़म का इस्तेमाल नहीं हो रहा है . और अब खबर है कि केंद्र सरकार अपने अफसरों की मदद से प्रधान मंत्री की पन्द्रह सूत्री योजना को लागू करने की बात पर विचार कर रही है . अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए घोषित, प्रधान मंत्री के १५ सूत्रीय कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है. इनमें से एक है 'अल्पसंख्यकों के लिए बहु आयामी विकास कार्यक्रम.' इस मद में केंद्र सरकार की तरफ से अल्पसंख्यकों के विकास के लिए आर्थिक पैकेज की व्यवस्था की गयी है . यह कार्यक्रम केंद्र सरकार की तरफ से चुने गए ९० जिलों में शुरू किया गया है . इसे लागू करने के लिए ज़रूरी है कि सम्बंधित जिले में कम से कम २५ प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी हो. जिन जिलों का चुनाव किया गया है उनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश,असम ,पश्चिम बंगाल और बिहार का नाम है . लेकिन अजीब बात है कि राज्य सरकारें इस फंड का इस्तेमाल ही नहीं कर रही हैं. करीब पचीस हज़ार करोड़ रूपये से ज़्यादा की सहायता राशि की व्यवस्था हुई है लेकिन अब तक केवल २० प्रतिशत का इस्तेमाल हुआ है . प्रधान मंत्री कार्यालय को इस बात की चिंता है कि कार्यक्रम को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है . इसका राजनीतिक भावार्थ यह हो सकता है कि जिन ९० जिलों को चुना गया है उनमेंसे ज़्यादातर जिले, ऐसे राज्यों में पड़ते हैं जहां की राज्य सरकारें प्रधान मंत्री की पार्टी को अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों में लोकप्रिय नहीं होने देना चाहतीं. इसी लिए प्रधान मंत्री के नाम पर चल रहे कार्यक्रम को प्रचारित नहीं होने देना चाहतीं. लगता है कि प्रधान मंत्री कार्यालय को इस मंशा की भनक लग गयी है और अब केंद्र सरकार की ओर से दो जिलों में कार्यक्रम लागू करने के लिए काम शुरू कर दिया गया है . उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में तो केंद्रीय पर्यवेक्षक पंहुंच भी गए हैं.उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम को लागू करने केलिए २१ जिलों का चुनाव किया गया है . बाकी २० जिलों को केंद्र सरकार ने भी भगवान् भरोसे छोड़ रखा है . जहां तक राज्य सरकार की बात है वह तो कभी नहीं चाहेगी कि मुसलमानों के बीच प्रधान मंत्री और उनकी पार्टी की वाह-वाही हो .वैसे भी अगर मुकामी अफसरों को किसी भी विकास योजना से सही मात्रा में रिश्वत की मलाई नहीं मिलती तो वे उसमें रूचि लेना बंद कर देते हैं . उत्तर प्रदेश में रोजगार गारंटी योजना अब तक खूब धडल्ले से चल रही थी क्योंकि उसकी रक़म को गाँव पंचायत का प्रधान और बी डी ओ मिलकर हज़मकर रहे थे . बी डी ओ को ही ऊपर के अधिकारियों का घूस इकठ्ठा करके पंहुचाने का ज़िम्मा था . सब ठीक ठाक चल रहा था. सारे अफसर खुश थे. कुछ पंचायतों में तो थोडा बहुत विकास भी हो रहा था लेकिन केंद्र सरकार की प्रेरणा से सोशल आडिट करने वाले कुछ लोग सक्रिय हो गए. जब से यह सोशल आडिट वाले सक्रिय हुए हैं , ग्रामीण रोज़गार योजना में पैसों के वितरण में कमी आई है क्योंकि घूसजीवी समाज के लिए किसी ऐसे काम में हाथ डालना ठीक नहीं माना जाता जिसमें रिश्वत की गिज़ा कम हो . बहर हाल अल्पसंख्यकों के हित के लिए शुरू की गयी योजनाओं के प्रति राज्य सरकारों की इस अनदेखी का फ़ौरन कोई न कोई हल निकाला जाना चाहिए . केंद्र सरकार इस बात पर भी गौर कर सकती है कि इन योजनाओं को लागू करने के लिए केंद्र के अधिकारियों को ही तैनात कर दिया जाए या कोई ऐसी एजेंसी बना दी जाए जो काम संभाल ले . क्योंकि इस बात में दो राय नहीं है कि देश में अल्प संख्यकों , ख़ास कर मुसलमानों की आर्थिक हालात बहुत ही खराब है . उनके आर्थिक पिछड़े पन का कारण मूल रूप से शिक्षा के क्षेत्र में उनका पिछड़ापन है . केंद्र की मौजूदा सरकार इस सच्चाई से वाकिफ है . इसी लिए मनमोहन सिंह की सरकार ने सच्चर कमेटी का गठन किया था और उसकी सिफारिशों को ध्यान में रख कर ही प्रधानमंत्री के १५ सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की गयी थी . शिक्षा के मह्त्व को निजी तौर पर समझने वाले प्रधान मंत्री ने मुसलमानों की तरक्की के लिए सबसे ज़रूरी महत्व शिक्षा को दिया . लेकिन मुसलमानों की शिक्षा में सबसे बड़ी अड़चन तो उन स्वार्थी लोगों की तरफ से आ रही है जो मुस्लिम शिक्षा के नाम पर सरकारी फायदा उठा रहे हैं .कोशिश की जानी चाहिए कि इन स्वार्थी लोगों को मुसलमानों की तरक्की में बाधा डालने से रोका जा सके. सबसे पहले तो इस तरह के लोगों की पहचान होना ज़रूरी है . सबसे बड़ा वर्ग तो घूसखोर अफसरों का है जिनको काबू में करने के लिए मीडिया का सहयोग लिया जा सकता है . दूसरा वर्ग हैं आर एस एस की मानसिकता वाले नेताओं और सरकारों का . उनके ऊपर निगरानी के लिए सेकुलर लोगों की एक जमात तैयार की जानी चाहिए जो धार्मिक कारणों से मुसलमानों का विरोध करने वालों को रोक सकें . और तीसरी बात यह है कि मुसलमानों में भी एक बड़ा वर्ग है जो मुस्लिम आबादी को आधुनिक शिक्षा देने का विरोध करता है .इन लोगों को सरकाकी बात है ,लगता है कि मौजूदा केंद्र सरकार मुस्लिम समाज की तरक्की के लिए पैसा ढीला करने को तैयार है .ज़रुरत इस बात की है कि उसका सही इस्तेमाल किया जाए .