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Monday, April 1, 2013

अमरीकी वीज़ा के लिए नरेन्द्र मोदी की एक और कोशिश नाकाम



शेष नारायण सिंह  

अमरीकी वीज़ा  के लिए  गुजरात के मुख्यमंत्री कुछ भी करने को तैयार हैं .अभी दो दिन पहले न्यूज़ चैनलों पर दिन भर एक खबर चलती रही कि  अमरीकी कांग्रेस के चार सदस्य आये हैं और उन्होंने नरेन्द्र मोदी से मुलाक़ात करके उन्हें अमरीका आने का न्योता दिया और भरोसा दिलाया कि  वे कोशिश करेगें कि  नरेन्द्र मोदी को गुजरात आने का वीजा मिल जायॆ. ख़बरों को इस तरह से प्रचारित किया गया था कि लगता था कि अमरीकी संसद की ओर से आये किसी प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व कर रहे अमरीकी सांसदों ने अपनी सरकार या संसद की तरफ से मोदी को आमंत्रित किया था. लेकिन अब बात कुछ और ही नज़र आ रही है . बात अजीब शक्ल अख्तियार कर चुकी है . भारत में उन अखबारों को भी सच्चाई छापनी पड़ रही है जो आमतौर पर ऐसी ख़बरें नहीं छापते जिनसे मोदी की छवि को नुक्सान पंहुचे . नरेन्द्र मोदी के एक प्रशंसक अखबार में छपा है कि शिकागो से प्रकाशित होने वाले एक  अमेरिकी अखबार ने दावा किया है कि दल में शामिल लोगों ने गुजरात का दौरा करने के लिए बाकायदा पैसे लिए। 
शिकागो के एक अखबार हाई इंडिया में छपा है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लिए अमेरिकी दल में शामिल हर लोगों को 16 हजार डॉलर यानी आठ लाख रुपये दिए जमा करना पड़ा था और यह एक  टूरिस्ट कार्यक्रम था . वहां पर बाकायदा विज्ञापान देकर लोगों को शामिल किया गया था. और बताया गया था कि सोलह हज़ार डालर जमा करने पर इस यात्रा में शामिल  होने का मौक़ा मिलेगा . विज्ञापन में लिखा था कि अमरीकी संसद के चार सदस्यों के साथ भारत की यात्रा पर जाने का जो मौक़ा मिल रहा है उसमें गुजरात, कर्णाटक और पंजाब की यात्रा शामिल है . गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल से मुलाक़ात के अलावा रणथम्भोर में बाघ दिखाए जायेगें और बालीवुड की सैर का भी मौक़ा मिलेगा. शिकागो में रहने वाले भारतीय मूल के एक व्यापारी ने यह सारा कार्यक्रम बनाया था.  नरेन्द्र मोदी के ऊपर अमरीका में घुसने की मनाही का आदेश लगा हुआ है . गुजरात में २००२ के नरसंहार के बाद अमरीका ने  कई बार नरेन्द्र मोदी की वीजा की अर्जी को ठुकराया है . उसके  बाद से जब भी मौक़ा मिलता है नरेन्द्र मोदी कोशिश करते हैं कि  उन्हें अमरीकी वीजा मिल जाये. देश के सबसे बड़े अखबार( दैनिक जागरण ) में आज खबर है कि यह मौजूदा यात्रा का आयोजन शिकागो के एक व्यापारी शलभ कुमार ने किया है . खबर में लिखा है की वाशिंगटन ने जो एक दशक पूर्व नरेंद्र मोदी की अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगा रखा है और इस प्रतिबंध को हटाने के लिए माहौल बनाने के वास्ते शलभ व ओवरसीज भाजपा के बीच एक करार हुआ है। अखबार आगे लिखता है कि इस दौरे को न तो वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास न ही नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने आयोजित किया था। इस दौरे में रिपब्लिकन सांसद भी आए थे। आयोजकों ने सेवेन स्टार ट्रिप के लिए 16 हजार डॉलर [लगभग आठ लाख रुपये] प्रति व्यक्ति व एक युगल के लिए 29 हजार डॉलर [लगभग 15 लाख रुपये] और फोर स्टार टूर के लिए 10 हजार डॉलर [लगभग पांच लाख रुपये] लिए। इस ट्रिप में दल को गांधी स्मारक का दौरा करना है। इसके बाद उदयपुर में लेक पैलेस में ठहरने की योजना है। कर्नाटक में राज्य सरकार के बतौर मेहमान तिरुपति का दौरा करना है। इस ट्रिप में रणथंभौर टाइगर रिजर्व और जयपुर पैलेस का टूर भी शामिल है। साथ में पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ डिनर भी शामिल है। इस खुलासे के बाद दल के गुजरात दौरे के महत्व धूमिल हो गई। मोदी हों या बादल, खबर के मुताबिक इनसे अमेरिकियों की मुलाकात महज सैर सपाटे का हिस्सा था। अमेरिका से आए उस प्रतिनिधिमंडल के आयोजकों ने इस दौरे में शामिल होने के लिए प्रति व्यक्ति 3,000 डॉलर से लेकर 16,000 डॉलर तक की राशि रखी थी। इस व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के चार सदस्य शामिल हैं और सभी रिपब्लिकन पार्टी से हैं।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि  नरेन्द्र मोदी को अमरीका में स्वीकार्य बनवाने के लिए जुटे  हुए लोग आग एक्य काम करते हैं . मौजूदा योजना तो लगता है की मुंह के बल  गिर चुकी है .

Thursday, June 17, 2010

फिर पूछें कि मौत का सौदागर कौन है

शेष नारायण सिंह


(डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट से साभार )

दिसंबर १९८४ में हुए भोपाल गैस हादसे का विवाद एक बार फिर जिंदा हो गया है . राजीव गाँधी का नाम आते ही बी जे पी को लगने लगा है कि शायद बोफर्स टाइप कुछ काम बन जाए और राजनीतिक फसल में मुनाफ़ा हो . उधर दिल्ली में बैठे कांग्रेस के ज़रुरत से ज्यादा वफादार लोग राजीव के नाम को बचाने के चक्कर में उल जलूल बयान दे रहे हैं . जिन्होंने भोपाल की उस खूंखार रात को देखा है उनके लिए भोपाल गैस त्रासदी के किसी अपराधी को माफ़ कर् पाना मुश्किल है . अब भोपाल गैस काण्ड पर विधिवत राजनीति शुरू हो गयी है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन राजनीतिक किलेबंदी के चक्कर में मुद्दे से जनमत का ध्यान हटाने की कोशिश को भी बात को को हड़प लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. मुद्दा यह है कि भोपाल के इतने बड़े मामले को जिन लोगों ने मामूली कानून व्यवस्था के मामले की तरह पेश किया , वे ज़िम्मेदार हैं और उन्हें सवालों के घेरे में लिया जाना चाहिए . हादसा जिस दिन हुआ उस दिन मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री ,अर्जुन सिंह थे , उनकी जो भी ज़िम्मेदारी हो उसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिये. उन पर आरोप है कि उन्होंने युनियन कार्बाइड के मुखिया को देश से भाग जाने में मदद की. लेकिन इस मामले में इस से बहुत बड़े बड़े घपले हुए हैं . उन पर भी नज़र डाली जानी चाहिए और सब को कटघरे में लाया जाना चाहिए जिस से भविष्य में कोई भी नेता या अधिकारी इस तरह के काम करने से डरे . भोपाल गैस काण्ड में बहुत सारे आयाम हैं. यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि दंड संहिता की धाराओं को हल्का किसने किया , लोगों के पुनर्वास के काम में ढिलाई किसने बरती , एक अभियुक्त को तत्कालीन गृह मंत्री और राष्ट्रपति के पास कौन लेकर गया और क्यों यह मुलाक़ात करवाई गयी. उस वक़्त के ताक़तवर लोगों की क्या भूमिका थी . यह सब ऐसे सवाल हैं जिनकी जांच करने से आगे की बात साफ़ करने में मदद मिलेगी. लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो जाती. दिसंबर ८४ से लेकर आजतक इस मामले में बहुत सारे लोग आये हैं. उसमें भोपाल के जिला प्रशासन के वे अधिकारी हैं जिन्होंने मामले को हल्का किया . इसमें पुलिस का रोल है , मुकामी न्यायपालिका का रोल हैं , मुकामी नेताओं का रोल है. सब की पड़ताल की जानी चाहिए . और इस तरह से अर्जुन सिंह के बाद जो लोग भी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री हुए हों सबसे पूछ ताछ की जानी चाहिए . अगर ऐसा हुआ तो पिछले २५ वर्षों के हर मुख्य मंत्री की जवाबदेही और ज़िम्मेदारी तय की जा सकेगी और आने वाले दौर में मुख्य मंत्री मनमानीकरने से बाज़ आयेगें. हाँ अगर कांग्रेस के उस वक़्त के मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री को सूली पर चढ़ाना है तो मीडिया में जिस तरह का काम चल रहा है , उसे जारी रखा जा सकता है लेकिन अगर सही बात को सामने लाना है तो मीडिया के लिए भी लाजिम है कि वह सारी बातों को बहस के घेरे में लाये और बात को आगे बढाए. भारत के कानून ऐसे हैं कि वह यह सुनिश्चित करने के अवसर देते हैं कि किसी के साथ अन्याय न हो . इसके लिए कभी भी किसी मुक़दमे में दुबारा जांच की जा सकती है . इस बात की भी जांच की जानी चाहिए कि क्या अर्जुन सिंह के बाद से लेकर अब तक किसी मुख्य मंत्री ने जांच के बारे में कोई जानकारी ली क्योंकि जनता के प्रतिनधि के रूप में चुने गए हर मुख्यमंत्री का यह कि वह जनता के हितों के कस्टोडियन के रूप में काम करे.इसलिए यह ज़रूरी है कि कि दिग्विजय सिंह , मोतीलाल वोरा, उमा भारती , कैलाश जोशी. सुन्दर लाल पटवा ,राजीव गाँधी, वी पी सिंह , पी वी नरसिंह राव, एच डी देवेगोड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, और मनमोहन सिंह की भूमिका की भी जांच कर लेनी छाहिये . मीडिया को भी चौकन्ना रहने की ज़रुरत है कि वह बी जे पी की ओर से एजेंडा फिक्स कर रहे लोगों की बात को भी ध्यान में रखें लेकिन बी जे पी वालों को बचाने की कोशिशों का भी पर्दा फाश करें. ताज़ा खबर यह है कि मौत के सौदागर वाली बहस भी शुरू हो गयी है . और गुजरात २००२ के लिए ज़िम्मेदार नेता ने पूछना शुरू कर दिया है कि मौत का सौदागर कौन है . उन नेता जी को भी यह बताने की ज़रुरत है कि मौत का सौदागर वह होता है जो अपनी निगरानी में हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारे . वे खुद तय कर लें कि उस सांचे में कौन फिट बैठता है.

Tuesday, June 15, 2010

पंद्रह हज़ार करोड़ रूपये का मुआवजा देंगें लीबिया के गद्दाफी

शेष नारायण सिंह

आतंकवाद के प्रायोजकों के लिए बहुत बुरी खबर है . आतंकवादियों को मदद देने वालों को सभ्य समाज की ताक़त दबोचती ज़रूर है . ओसामा बिन लादेन का उदाहरण दुनिया के सामने है .उसे अंदाज़ भी नहीं रहा होगा कि आतंक की कीमत इतनी भारी हो सकती है . ताज़ा उदाहरण नरेंद्र मोदी का है . गुजरात में आतंक और २००२ के नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार नेता, नरेंद्र मोदी की पूरी दुनिया के सभ्य समाजों में प्रवेश की मनाही है . अभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें ज़रा संभल के रहने की चेतावनी दी है .इसके पहले अमरीका और यूरोप के देशों की कुछ सरकारों ने उनकी वीजा की अर्जी को ठुकरा कर उन्हें अपनी हैसियत में रहने की ताकीद की थी. १९७४ में चिली के राष्ट्रपति अलेंदे को मार कर चिली में आतंक का शासन कायम करने वाले पिनोशे का भी वही हाल हुआ जो बाकी आतंक फैलाने वालों का होता है . आतंक की सियासत के आदिपुरुष, एडोल्फ हिटलर को अपने किये की जो सज़ा मिली, उस से दुनिया में आतंक की खेती करने वाले आजतक सबक लेते हैं .१९८४ में सिखों को चुन चुन कर आतंक का शिकार बनाने वाले अर्जुन दास, ललित माकन, हरिकिशन लाल भगत ,सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर का हश्र दुनिया ने देखा ही है .आतंक की सियासत के नतीजों को भोगने का एक नया मामला सामने आया है . करीब ३५ साल से अमरीका और पश्चिमी यूरोप के देशों के खिलाफ अभियान चला रहे, लीबिया के राष्ट्रपति , कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को तीसरी दुनिया के बहुत सारे देशों में इज्ज़त से देखा जाता था लेकिन अपने आपको गलत समझने के चक्कर में वे आतंकवादी गतिविधियों के प्रायोजक हो गए.और इंग्लैंड में आतंक फैला रहे आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के आतंकवादियों को हथियार देने लगे जिसका इस्तेमाल करके उन लोगों ने आयरलैंड और इंग्लैण्ड में खूब आतंक फैलाया . हज़ारों लोगों का मौत के घाट उतारा और सामान्य जीवन को खतरनाक बनाया .. अब तो दुनिया जानती है कि लाकरबी विमान विस्फोट काण्ड भी कर्नल गद्दाफी के दिमाग की उपज थी क्योंकि अब उन्होंने ही उसे स्वीकार कर लिया है ... हालांकि सबको मालूम है कि गद्दाफी ने अमरीकी और पश्चिमी यूरोप के साम्राज्यवादी मुल्कों की उस लूट पर लगाम लगाई थी जो पेट्रोल के आविष्कार के बाद से ही जारी थी . लेकिन अपने उत्साह में उन्होंने निर्दोष लोगों को मारने का काम शुरू कर दिया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था लेकिन गद्दाफी निरंकुश तानाशाह थे और उनको टोकने की हिम्मत किसी के पास नहीं थी . बाद में जब सोवियत रूस का विघटन हुआ तो गद्दाफी ने पश्चिम के देशों से रिश्ते सुधारने की कोशिश शुरू कर दी लेकिन वह कोशिश उनको बहुत महंगी पड़ रही है . लाकरबी विमान के हादसे के शिकार हुए लोगों के परिवारों को वे बहुत बड़ी रक़म बतौर मुआवजा दे चुके हैं . और अब खबर आई है कि वे आयरलैंड में आतंक के शिकार हुए परिवारों को भी करीब १५ हज़ार करोड़ रूपये के बराबर की रक़म देने वाले हैं . हालांकि वे इसे मुआवजा नहीं मान रहे हैं , उनका कहना है कि यह तो मानवीय सहायता के लिए दिया जा रहा है लेकिन यह तय है कि कि लीबिया की सरकार आयरलैंड के आतंक के शिकार लोगों को बहुत बड़ी रक़म दे रही है .. गद्दाफी ने आयरलैंड के आतंकवादियों को एक खतरनाक विस्फोटक सेमटैक्स की सप्लाई की थी . यह एक प्लास्टिक विस्फोटक है और आर डी एक्स जैसा असर करता है . गद्दाफी की सरकार की तरफ से सप्लाई किये गए सेमटैक्स का इस्तेमाल कम से कम दस आतंकवादी वारदातों में हुआ था लन्दन के विख्यात डिपार्टमेंटल स्टोर, हैरड्स और लाकरबी विमान के धमाके में इसी विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ था. लाकरबी धमाके के शिकार लोगों के परिवार वालों को तो गद्दाफी पहले ही मुआवाज़ा दे चुके हैं . यह सारी रक़म रखवा लेने के बाद ब्रिटेन की सरकार ने गद्दाफी को केवल यह राहत दी है कि वे आयरलैंड में मानवीय सहायता के नाम पर कुछ कार्यक्रम चला सकते हैं जिस से यह लगे कि वे जो कुछ भी दे रहे हैं अपनी खुशी से दे रहे हैं ,उन पर कोई दबाव नहीं है . बहर हाल तरीकों पर चर्चा करना यहाँ उद्देश्य नहीं है लेकिन यह पक्का है कि आतंकवादी की राजनीति हमेशा हार कू ही गले लगाती है और इंसानियत हर बार विजयी रहती है . भविष्य के आतंकवादियों को इन पुराने आतंकियों के अंजाम को देख कर सबक ज़रूर लेना चाहिए

Sunday, June 6, 2010

ता हद्दे नज़र शहरे-खामोशां के निशाँ हैं

शेष नारायण सिंह

गुजरात में एक दलित नेता और उनकी पत्नी को पकड़ लिया गया है . पुलिस की कहानी में बताया गया है कि वे दोनों नक्सलवादी हैं और उनसे राज्य के अमन चैन को ख़तरा है . शंकर नाम के यह व्यक्ति मूलतः आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन अब वर्षों से गुजरात को ही अपना घर बना लिया है . गुजरात में साम्प्रदायिकता के खिलाफ जो चंद आवाजें बच गयी हैं , वे भी उसी में शामिल हैं. विरोधियों को परेशान करने की सरकारी नीति के खिलाफ वे विरोध कर रहे हैं और लोगों को एक जुट करने की कोशिश कर रहे हैं .उनकी पत्नी, हंसाबेन भी इला भट के संगठन सेवा में काम करती हैं , वे गुजराती मूल की हैं लेकिन उनको गिरफ्तार करते वक़्त पुलिस ने जो कहानी दी है ,उसके अनुसार वे अपने पति के साथ आंध्र प्रदेश से ही आई हैं और वहीं से नक्सलवाद की ट्रेनिंग लेकर आई हैं . ज़ाहिर है पुलिस ने सिविल सोसाइटी के इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के पहले होम वर्क नहीं किया था. इसके पहले डांग्स जिले के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ,अविनाश कुलकर्णी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था . किसी को कुछ पता नहीं कि ऐसा क्यों हुआ लेकिन वे अभी तक जेल में ही हैं .गुजरात में सक्रिय सभी मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ताओं को चुप कराने की गुजरात पुलिस की नीति पर काम शुरू हो चुका है और आने वाले वक़्त में किसी को भी नक्सलवादी बता कर धर लिया जाएगा और उसक अभी वही हाल होगा जो पिछले १० साल से गुजराती मुसलमानों का हो रहा है .नक्सलवादी बता कर किसी को पकड़ लेना बहुत आसान होता है क्योंकि किसी भी पढ़े लिखे आदमी के घर में मार्क्सवाद की एकाध किताब तो मिल ही जायेगी. और मोदी क एपुलिस वालों के लिए इतना ही काफी है . वैसे भी मुसलमानों को पूरी तरह से चुप करा देने के बाद , राज्य में मोदी का विरोध करने वाले कुछ मानवाधिकार संगठन ही बचे हैं . अगर उनको भी दमन का शिकार बना कर निष्क्रिय कर दिया गया तो उनकी बिरादराना राजनीतिक पार्टी , राष्ट्रवादी सोशलिस्ट पार्टी और उसके नेता , एडोल्फ हिटलर की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री का भी अपने राज्य में एकछत्र निरंकुश राज कायम हो जाएगा .
अहमदाबाद में जारी के बयान में मानवाधिकार संस्था,दर्शन के निदेशक हीरेन गाँधी ने कहा है कि 'गुजरात सरकार और उसकी पुलिस विरोध की हर आवाज़ को कुचल देने के उद्देश्य से मानवाधिकार संगठनो , दलितों के हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के अन्य कार्यकर्ताओं को नक्सलवादी बताकर पकड़ रही है ' लेकिन विरोध के स्वर भी अभी दबने वाले नहीं है . शहर के एक मोहल्ले गोमतीपुर में पुलिस का सबसे ज़्यादा आतंक है, . वहां के लोगों ने तय किया है कि अपने घरों के सामने बोर्ड लगा देंगें जिसमें लिखा होगा कि उस घर में रहने वाले लोग नक्सलवादी हैं और पुलिस के सामने ऐसी हालात पैदा की जायेगीं कि वे लोगों को गिरफ्तार करें . ज़ाहिर है इस तरीके से जेलों में ज्यादा से ज्यादा लोग बंद होंगें और मोदी की दमनकारी नीतियों को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया जाएगा.वैसे भी अगर सभ्य समाज के लोग बर्बरता के खिलाफ लामबंद नहीं हुए तो बहुत देर हो चुकी होगी और कम से कम गुजरात में तो हिटलरी जनतंत्र का स्वाद जनता को चखना ही पड़ जाएगा.

वैसे गुजरात में अब मुसलमानों में कोई अशांति नहीं है , सब अमन चैन से हैं . गुजरात के कई मुसलमानों से सूरत और वड़ोदरा में बात करने का मौक़ा लगा . सब ने बताया कि अब बिलकुल शान्ति है , कहीं किसी तरह के दंगे की कोई आशंका नहीं है . उन लोगों का कहना था कि शान्ति के माहौल में कारोबार भी ठीक तरह से होता है और आर्थिक सुरक्षा के बाद ही बाकी सुरक्षा आती है.बड़ा अच्छा लगा कि चलो १० साल बाद गुजरात में ऐसी शान्ति आई है .लेकिन कुछ देर बाद पता चला कि जो कुछ मैं सुन रहा था वह सच्चाई नहीं थी. वही लोग जो ग्रुप में अच्छी अच्छी बातें कर रहे थे , जब अलग से मिले तो बताया कि हालात बहुत खराब हैं . गुजरात में मुसलमान का जिंदा रहना उतना ही मुश्किल है जितना कि पाकिस्तान में हिन्दू का . गुजरात के शहरों के ज़्यादातर मुहल्लों में पुलिस ने कुछ मुसलमानों को मुखबिर बना रखा है , पता नहीं चलता कि कौन मुखबिर है और कौन नहीं है . अगर पुलिस या सरकार के खिलाफ कहीं कुछ कह दिया गया तो अगले ही दिन पुलिस का अत्याचार शुरू हो जाता है. मोदी के इस आतंक को देख कर समझ में आया कि अपने राजनीतिक पूर्वजों की लाइन को कितनी खूबी से वे लागू कर रहे हैं . लेकिन यह सफलता उन्हें एक दिन में नहीं मिली . इसके लिए वे पिछले दस वर्षों से काम कर रहे हैं . गोधरा में हुए ट्रेन हादसे के बहाने मुसलमानों को हलाल करना इसी रणनीति का हिस्सा था . उसके बाद मुसलमानों को फर्जी इनकाउंटर में मारा गया, इशरत जहां और शोहराबुद्दीन की हत्या इस योजना का उदाहरण है . उसके बाद मुस्लिम बस्तियों में उन लड़कों को पकड़ लिया जाता था जिनके ऊपर कभी कोई मामूली आपराधिक मामला दर्ज किया गया हो . पाकेटमारी, दफा १५१ , चोरी आदि अपराधों के रिकार्ड वाले लोगों को पुलिस वाले पकड़ कर ले जाते थे , उन्हें गिरफ्तार नहीं दिखाते थे, किसी प्राइवेट फार्म हाउस में ले जा कर प्रताड़ित करते थे और अपंग बनाकर उनके मुहल्लों में छोड़ देते थे . पड़ोसियों में दहशत फैल जाती थी और मुसलमानों को चुप रहने के लिए बहाना मिल जाता था .लोग कहते थे कि हमारा बच्चा तो कभी किसी केस में पकड़ा नहीं गया इसलिए उसे कोई ख़तरा नहीं था . ज़ाहिर है इन लोगों ने अपने पड़ोसियों की मदद नहीं की ..इसके बाद पुलिस ने अपने खेल का नया चरण शुरू किया . इस चरण में मुस्लिम मुहल्लों से उन लड़कों को पकड़ा जाता था जिनके खिलाफ कभी कोई मामला न दर्ज किया गया हो . उनको भी उसी तरह से प्रताड़ित करके छोड़ दिया जाता था . इस अभियान की सफलता के बाद राज्य के मुसलमानों में पूरी तरह से दहशत पैदा की जा सकी. और अब गुजरात का कोई मुसलमान मोदी या उनकी सरकार के खिलाफ नहीं बोलता ..डर के मारे सभी नरेन्द्र मोदी की जय जयकार कर रहे हैं. अब राज्य में विरोध का स्वर कहीं नहीं है . कांग्रेस नाम की पार्टी के लोग पहले से ही निष्क्रिय हैं . वैसे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि विपक्ष का अभिनय करने के लिए उनकी ज़रूरत है .यह मानवाधिकार संगठन वाले आज के मोदी के लिए एक मामूली चुनौती हैं और अब उनको भी नक्सलवादी बताकर दुरुस्त कर दिया जाएगा. फिर मोदी को किसी से कोई ख़तरा नहीं रह जाएगा. हमारी राजनीति और लोकशाही के लिए यह बहुत ही खतरनाक संकेत हैं क्योंकि मोदी की मौजूदा पार्टी बी जे पी ने अपने बाकी मुख्यमंत्रियों को भी सलाह दी है कि नरेन्द्र मोदी की तरह ही राज काज चलाना उनके हित में होगा

Monday, March 29, 2010

मोदी से एस आई टी की पूछ ताछ के पीछे क्या है ?

शेष नारायण सिंह

नरेंद्र मोदी से आठ घंटे चली पूछताछ के बाद कुछ लोग बहुत खुश हैं कि अब मोदी को २००२ के गुजरात नरसंहार के लिए उनके किये की सज़ा दिलाई जा सकेगी. जांच के लिए पेश होने के बाद जब मोदी बाहर निकले तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपने महान देश की न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा है और उनके साथ भी न्याय होगा.यह बात सभी कहते हैं और यह सच भी है . मोदी का गुनाह ऐसा है जिसे वे सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं जिन्हें उस दौर में गुजरात का नरसंहार देखने या उसे कवर करने का मौका लगा था .लेकिन सच्चाई यह है कि कहीं कुछ नहीं होने वाला है . कुछ जानकार तो यह कहते पाए गए हैं कि यह सारा आडम्बर मोदी को पाक-साफ घोषित करने की एक साज़िश है . बड़े नेताओं के खिलाफ राजनीतिक मजबूरी के कारण शुरू किये गए मामलों में अब तक किसी के दण्डित होने की जानकारी नहीं है .राजनीति में बड़ा पद पाने वाले बहुत सारे लोगों के ऊपर मुक़दमें चले लेकिन लगभग सभी बरी हो गए. इमरजेंसी के तुरंत बाद जिस तरह से सबूत मिलना शुरू हुए, सबको लगने लगा था कि इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी, जगमोहन, विद्या चरण शुक्ल, ओम मेहता, बंसी लाल, नारायण दत्त तिवारी जैसे सैकड़ों नेताओं और अफसरों को कानून की जंजीर पहना दी जायेगी. लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाद में बोफोर्स तोप का सौदा हुआ जिसमें भी राजनीति के बड़े लोगों का नाम आया था लेकिन कुछ नहीं हुआ. पी वी नरसिंह राव जब प्रधान मंत्री थे तो तरह तरह के हेरा फेरी और ठगी के मामले उन पर दर्ज हुए लेकिन कुछ नहीं हुआ . जार्ज फर्नांडीज़ , बंगारू लक्ष्मण आदि को तहलका मामले में घूस का शिकार होते पूरी दुनिया ने देखा . जांच में कुछ नहीं निकला . जैन हवाला काण्ड में देश की सुरक्षा से समझौता किया गया था . और उसमें लाल कृष्ण आडवानी,शरद यादव, सीता राम केसरी, सतीश शर्मा, अरुण नेहरू, आरिफ मुहम्मद खान जैसे गैर कम्म्युनिस्ट पार्टियों के बहुत सारे नेता शामिल थे .लेकिन किसी के ऊपर चार्ज शीट तक दाखिल नहीं हुई अटल बिहारी वाजपयी के करीबी रिश्तेदार , भट्टाचार्य नाम के एक सज्जन थे , देश को लूट कर रख दिया लेकिन कहीं हुछ नहीं हुआ . बाबरी मस्जिद के विध्वंस के मामले में लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी उमा भारती, विनय कटियार आदि के खिलाफ संगीन आरोप हैं लेकिन सब मस्त हैं . प्रमोद महाजन और अरुण शोरी के ऊपर सरकारी कंपनियों को औने पौने दाम पर बेचने का आरोप लगा लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ. लालू प्रसाद, राबडी देवी, जगन्नाथ मिश्र, शिबू सोरेन,मायावती, मुलायम सिंह यादव आदि के ऊपर गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोप हैं और सब के सब निश्चिन्त हैं . सब को मालूम है कि सब ठीक हो जाएगा, कहीं कुछ नहीं होने वाला नहीं है .

इसलिए इस बात में कोई शक़ नहीं हिया कि मोदी का कुछ बनने बिगड़ने वाला नहीं है . अगर उन लोगों की बात को मान लिया जाए कि मोदी को क्लीन चिट देने के लिए उनसे कड़ाई से पूछताछ का स्वांग किया गया तो बात बहुत ही आसान हो जाती है लेकिन अगर इस बात को न भी माना जाए और यह विश्वास किया जाए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही जांच में किसी की हिम्मत हेरा फेरी करने की नहीं है तो भी मोदी जैसे ताक़तवर नेता के खिलाफ आरोप साबित कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा. हमारी न्याय व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है , ईमानदार गवाह . हमने देखा है कि मुकामी गुंडों को सज़ा इस लिए नहीं हो पाती कि उनके खिलाफ गवाह नहीं मिलते. तो मोदी जैसे सत्ताधीश के खिलाफ कहाँ से गवाह आ जाएंगें . दुनिया जानती है कि फरवरी २००२ में किस तरह से गुजरात के कुछ शहरों में खून खराबा हुआ था और किस तरह मुसलमानों को चुन चुन कर मारा गया था . लेकिन मोदी न केवल खुले आम घूम रहे हैं बल्कि चुनाव भी जीत रहे हैं .. ज़ाहिर है कि सिस्टम में कहीं कोई खोट है जिसके चलते सत्ता के पदों पर बैठे राजनेता बरी हो जाते हैं . और जब किसी नेता पर बुरा वक़्त आता है तो बाकी लोग ,जो राज नेता, फंसे हुए नेता के खिलाफ रहते हैं , वे भी साथ साथ खड़े हो जाते हैं . ठीक वैसे है जैसे मौसेरे भाइयों के बीच होता है .जब एक भाई फंसता है तो उसका मौसेरा भाई उसे बचाने आ जाता है . मौसेरे भाइयों की यह मुहब्बत अपने देश की बहुत सारी कहावतों में भी संभाल कर रखी हुई है . वरना वली गुजरती की मज़ार को ज़मींदोज़ करने वाले को तो सज़ा कभी की मिल गयी होती .

इस लिए मोदी या किसी नेता के अपराधों के लिए उस से पूछ ताछ तक तो हो सकती है लेकिन उसे सज़ा नहीं दी जा सकती . अगर मोदी के अपराध की सज़ा उनको मिल गयी तो देश की जनता को भरोसा हो जाएगा कि कानून का राज सब पर चलता है वरना अभी तक तो लोग यही मानते हैं कि कानून की ताक़त को नेता लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं .

Wednesday, December 2, 2009

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, इशरत जहां को न्याय की उम्मीद

शेष नारायण सिंह

गुजरात में मोदी की सरकार अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ भी करने में कोई संकोच नहीं कर रही है . मुंबई की एक लडकी, इशरत जहां को ,कुछ तथाकथित आतंकियों के साथ अहमदाबाद में जून २००५ में कथित मुठभेड़ में मार डाला गया था. . इशरत जहां के घर वाले पुलिस की इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि उनकी लड़की आतंकवादी है . मामला अदालतों में गया और सिविल सोसाइटी के कुछ लोगों ने उनकी मदद की और अब मामले के हर पहलू पर सुप्रीम कोर्ट की नज़र है.. न्याय के उनके युद्ध के दौरान इशरत जहां की मां , शमीमा कौसर को कुछ राहत मिली जब गुजरात सरकार के न्यायिक अधिकारी, एस पी तमांग की रिपोर्ट आई जिसमें उन्होंने साफ़ कह दिया कि इशरत जहां को फर्र्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया था और उसमें उसी पुलिस अधिकारी, वंजारा का हाथ था जो कि इसी तरह के अन्य मामलों में शामिल पाया गया था. एस पी तमांग की रिपोर्ट ने कोई नयी जांच नहीं की थी, उन्होंने तो बस उपलब्ध सामग्री और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के आधार पर सच्चाई को सामने ला दिया था . एस पी तमांग के एरेपोर्ट के बाद ,सार्वजनिक जीवन के कई क्षेत्रो में साम्प्रदायिकता के जमे होने की ख़बरें आयीं थीं. जहां तक गुजरात सरकार और उसकी पुलिस का सवाल है , पिछले कई वर्षों के मोदी राज में वहां तो साम्प्रदायिकता पूरी तरह से स्थापित हो चुकी है . इशरत जहां के मामले में मीडिया के एक वर्ग की गैर जिम्मेदाराना सोच भी सामने आ गयी थी. ज़्यादातर टी वी चैनलों ने , इशरत के हत्यारे पुलिस वालों की बाईट लेकर दिन दिन भर खबर चलाई थी कि गुजरात पुलिस ने एक खूंखार महिला आतंकवादी और उसके साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया था .. बहरहाल इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ के बारे में जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आई तो कुछ गंभीर किस्म के पत्रकारोंने अपनी गलती मानी और खेद प्रकट किया लेकिन जो गुरु लोग साम्प्रदायिकता के चश्मे से ही सच्चाई देखते हैं वे चुप रहे , सांस नहीं ली.. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. और इशरत की याद को बेदाग़ बनाने की उसकी मां की मुहिम को फिर भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था में विश्वास हो गया. इशरत की मां का आरोप है कि गुजरात हाई कोर्ट भी राज्य की पुलिस के संघ प्रेमी रुख को ही आगे बढाता है .हालांकि किसी कोर्ट के बारे में उनके इस आरोप को सही नहीं ठहराया जा सकता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी है . हुआ यह था कि जब एस पी तमांग की रिपोर्ट आई तो गुजरात हाई कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी थी और कह दिया कि उस रिपोर्ट पर कोईभी कार्रवाई नहीं हो सकती थी. शमीमा कौसर ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार की और अब देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला आ गया है कि गुजरात हाई कोर्ट में इशरत जहां केस के फर्जी मुठभेड़ से सम्बंधित सारे मामले रोक दिए जाएँ...इस स्टे के साथ ही मामले को जल्दी निपटाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है . . जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस दीपक वर्मा की अदालत ने ७ दिसंबर को मामले की सुनवाई का हुक्म भी सुना दिया है .. शमीमा कौसर को इस बात से सख्त एतराज़ है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के बावजूद, गुजरात हाई कोर्ट मामले को रफा दफा करने के चक्कर में है..नरेन्द्र मोदी सरकार ने गुजरात हाई कोर्ट में प्रार्थना की थी कि एस पी तमांग की रिपोर्ट गैर कानूनी है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए क्योंकि एस पी तमांग ने जो जांच की है वह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है . गुजरात हाई कोर्ट ने ९ सितम्बर के दिन इस रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ शमीमा कौसर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जिस पर अब फैसला आया है . एस पी तमांग की रिपोर्ट में तार्किक तरीके से उसी सामग्री की जांच की गयी है जिसके आधार पर इशरत जहां के फर्जी मुठभेड़ मामले को पुलिस अफसरों की बहादुरी के तौर पर पेश किया जा रहा था. तमांग की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जिन अधिकारियों ने इशरत जहां को मार गिराया था उनको उम्मीद थी कि उनके उस कारनामे से मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी बहुत खुश हो जायेंगें और उन्हें कुछ इनाम -अकराम देंगें . अफसरों की यह सोच ही देश की लोकशाही पर सबसे बड़ा खतरा है . जिस राज में अधिकारी यह सोचने लगे कि किसी बेक़सूर को मार डालने से मुख्य मंत्री खुश होगा , वहां आदिम राज्य की व्यवस्था कायम मानी जायेगी. यह ऐसी हालत है जिस पर सभ्य समाज के हर वर्ग को गौर करना पड़ेगा वरना देश की आज़ादी पर मंडरा रहा खतरा बहुत ही बढ़ जाएगा और एक मुकाम ऐसा भी आ सकता है जब सही और न्यायप्रिय लोग कमज़ोर पड़ जायेंगें और मोदी टाईप लोग समाज के हर क्षेत्र में भारी पड़ जायेंगें.. ज़ाहिर है ऐसी किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए सभी जनवादी लोगों को तैयार रहना पड़ेगा. वरना मोदी के साथी कभी भी, किसी भी वक़्त महात्मा गाँधी की अगुवाई में हासिल की गयी आज़ादी को वोट के ज़रिये तानाशाही में बदल देंगें . ऐसा न हो सके इसके लिए जनमत को तो चौकन्ना रहना ही पड़ेगा , लोकत्रंत्र के चारों स्तंभों , न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया को भी हमेशा सतर्क रहना पड़ेगा