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Sunday, November 25, 2012

गाजा में इजरायल की दादागीरी रोकने में नाकाम अमरीका की विदेशनीति कन्फ्यूज्ड है



शेष नारायण सिंह 


दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी में यहूदियों के साथ बहुत ज्यादती हुई थी .उसके बाद ही नाजी जर्मनी  को हराने वाली शक्तियों ने  अरब क्षेत्रमें यहूदी  राज्य की स्थापना कर दी थी.इसी राज्य में यरूशलम है जो  इस्लाम का एक बहुत ही पवित्र केन्द्र है और वहाँ पिछले ६४ साल से यहूदियोंका कब्जा है . इजरायल नाम के इस राज्य  को अमरीका ही चलाता है . अमरीकी नीति के इजरायल समर्थक रुख के कारण ही आज अरब क्षेत्र में यहूदीआतंकवाद कायम है . यह अलग बात है कि पश्चिम एशिया के कुछ देशों के शासक अमरीका को खुश रखने के चक्कर  में इजरायल का ऐलानियाँविरोध नहीं करते लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि पश्चिम एशिया और बाकीदुनिया के मुसलमान इजरायली दादागीरी के खिलाफ हैं . दुनिया भर में इन्साफपसंद लोग इजरायल द्वारा आतंक को हथियार बनाने के तरीकोंकी मुखालफत करते हैं .इस इलाके में हमेशा से ही इजरायली आधिपत्य का विरोध होता रहा है .  बहुत दिन बाद जब फिलीस्तीनी लोगों की भावनाओंको सम्मान देने की गरज़ से अमरीका ने फिलीस्तीनी नेता यासर अराफात और इजरायल के बीच समझौता करवाया तो फिलीस्तीनी इलाकों में अरबलोगों को थोड़े बहुत अधिकार तो  मिले लेकिन उनकी हैसियत हमेशा से ही दूसरे दर्जे के नागरिकों की ही रही .चुनावी लोकशाही के चलते चुनावों  में गाजा में हमास के नेतृत्व में सरकार बनी लेकिन अमरीका ने उसे स्वीकार नहीं किया और  एक बार फिर फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जारीदुश्मनी  सामने आ गयी और आजकल वहाँ गोलीबारी चल  रही है . हमास किसी भी सूरत में पश्चिम एशिया में इजरायल की मौजूदगी स्वीकार करने कोतैयार नहीं है. जिस ज़मीन को वे अपनी मानते हैं उसी गाजा  इलाके में अरब आबादी  बद से बदतर हालत में रहने को मजबूर है.गाजासे इजरायली सैनिक तो चले  गए हैं लेकिन अभी भी इजरायल ने समुद्री सीमा, वायु सीमा और गाजा के चारों तरफ की ज़मीन की सीमा की घेरेबंदी कर रखी है. आज भी गाजा के लोग यह मानते हैं कि उनके ऊपर इजरायल ने सैनिक कब्जा कर रखा है और उस कब्जे से मुक्ति दिलाने वाले संगठन के रूप में हमास की पहचान  बनती है .

इस पृष्ठभूमि में वर्तमान हमास-इजरायल संघर्ष को देखा जाना चाहिए . जब चार साल पहले  इजरायल ने गाजा पर हमला किया था तो उसी हमले के बाद हुई शान्ति में अगले संघर्ष की इबारत लिख दी गयी थी. हमास की कोशिश है कि वह पश्चिम एशिया में न्याय के लिए चल रहे संघर्ष का नायक  बन जाय . शायद इसीलिए वह अमरीकी समर्थन से राज कर रहे इजरायल के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल कर देता है . हर बार की तरह इस बार भी  इजरायल ने  ज़रूरत से ज्यादा ताक़त झोंककर फिलितीनियों को दबा लेने की कोशिश की. दुनिया जनाती है  कि एक ही ज़मीन पर रह रहे इजरायलियों  और फिलिस्तीनियों के बीच नफरत के सिवा कुछ भी साझा नहीं है .ऐसी हालत में गाजा पट्टी में सक्रिय हमास के लड़ाकू कभी कभार इजरायली इलाकों पर राकेट दागते रहते हैं . जबकि इजरायल का कहना है कि जब २००५ में उसने गाजा पट्टी से अपने सैनिक हटा लिए और अपनी आबादी को वापस बुला लिया तो फिलीस्तीनी आवाम की नाराज़गी का कोई कारण नहीं होना चाहिए . लेकिन २००५ के समझौते से अरब अवाम में कोई खुशी नहीं थी . शायद इसी लिए गाजा की जनता ने यासर अराफात की  फतह पार्टी को हराकर हमास को  २००६ में सत्ता सौंप दी थी .


इजरायली अवाम भी हर हाल में अपने आपको  मज़बूत रखना चाहता है  . उसकी ऐतिहासक याददाश्त में जर्मनी में यहूदियों के साथ हुए अत्याचार ताज़ा हैं . जबकि अरब  दुनिया में भी आजकल चारों तरफ इन्साफ के लिए  संघर्ष की ख़बरें आम हैं .इसी सन्दर्भ में हमास की स्वीकार्यता भी  बढ़ रही है .हालांकि अमरीका हमास को मान्यता नहीं  देता और कोशिश करता है कि उसे अछूत माना जाय  लेकिन अरब और इस्लामी दुनिया में हमास की स्थिति मज़बूत हो रही है . पिछले महीने कतर के अमीर  की  यात्रा से हमास की  मान्यता हासिल करने की कोशिश को ताकत मिली थी . इजिप्ट के प्रधानमंत्री की यात्रा भी इसी कड़ी में देखी जानी चाहिए .हालांकि इजिप्ट में जो सरकार है वह अमरीका की कृपा पर पल  रही है लेकिन हालात की नजाकात ऐसी है कि अमरीकी कारिंदे भी अब हमास को नज़र अंदाज़ नहीं कर पा रहे हैं .इजिप्ट के राष्ट्रपति मुहम्मद मोर्सी ने कहा है कि आज के इजिप्ट और पुराने इजिप्ट में बहुत फर्क है . यहाँ यह बात गौर करने की है कि  हमास और मुहम्मद मोर्सी के संगठन ,मुस्लिम ब्रदरहुड के  बीच बिरादराना  राजनीतिक सम्बन्ध हैं .

पश्चिम एशिया की राजनीति के जानकार बताते हैं कि २२ जनवरी को होने वाले इजरायली चुनाव के कारण भी शायद वहाँ के शासकों  ने  अरबों को सबक सिखाने की बात को बार बार दोहराया है.. इजरायली नेता इस बात से इनकार करते हैं लेकिन ऐसा  पहले भी हुआ है जब इजरायली चुनाव में अच्छा नंबर लाने के चक्कर ने इजरायली सत्ताधारी दल ने अरबों पर हमले किये थे.जून १९८१ में मेनाचेम बेगिन इजरायल के प्रधान मंत्री थे . कुछ ही हफ्ते बाद चुनाव होने थे और माना जा रहा था  कि उनको चुनौती देने वाले शिमोन पेरेज़ की जीत होगी लेकिन बेगिन ने अपनी सीमा से बहुत  दूर इराक में ओसिरक के परमाणु ठिकाने पर हमला करके उसे बर्बाद कर दिया .बेगिन की अमरीका ने तारीफ़ की और कहा कि सद्दाम हुसेन की परमाणु  हथियार बनाने की क्षमता को तबाह करके बेगिन ने अच्छा काम किया है . बेगिन के लिए जो हारा हुआ चुनाव था उसमें वे मामूली बहुमत से जीत गए .जिन शिमोन पेरेज़ को १९८१ में बेगिन ने हराया था वे १९९६ में कामचलाऊ  प्रधानमंत्री थे.चुनाव में उनकी हालत अच्छी नहीं थी. इजरायली लोग उन्हें शान्ति का पैरोकार मानते थे .इजरायली समाज में शान्ति का पैरोकार होना कोई बहुत अच्छी बात  नहीं मानी जाती. अपनी छवि को हमलावर साबित करने  के लिए  उन्होने हमास के बहुत सारे कार्यकर्ताओं को मरवा डाला और हेज़बोल्ला के खिलाफ हमला बोल दिया . लेबनान में हेज़बोल्ला  के  ठिकानों पर बमबारी की . उस चुनाव के दौरान आमतौर पर यह बताया गया था कि पेरेज़ चुनाव में जीत  के चक्कर में यह सब कर रहे थे. उनकी हालत में सुधार भी हुआ लेकिन आखिर में चुनाव हार  गए . ऐसा शायद इसलिए कि  उनके हमले में लेबनान में मौजूद संयुक्तराष्ट्र के कुछ कार्यकर्ता भी मारे  गए थे . ऐसा ही सैनिक हमला चार साल पहले भी देखा गया था जब बेंजामिन नेतान्याहू की जीत पक्की मानी जा रही थी . घबडाकर उस वक़्त  के प्रधानमंत्री एहूद ओलमर्ट ने हमला कर दिया और उनको थोडा बहुत चुनावी लाभ मिल गया .

इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष का अरब दुनिया पर जो भी असर पड़ रहा हो लेकिन अमरीकी विदेशनीति की भी कड़ी परीक्षा हो रही है .अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने नोम पेन्ह में मौजूद अपनी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को पश्चिम एशिया की यात्रा पर भेज दिया है .  अमरीका की हमास से तो बोलचाल नहीं है लेकिन हिलेरी क्लिंटन ने वहाँ रामल्ला में फिलीस्तीनी नेताओं से बातचीत किया है और कोई नतीजा तलाशने की कोशिश जारी है . अमरीका की चिंता इसलिए भी बढ़ गयी है कि तुर्की के प्रधानमंत्री रेसेप तय्यब एरदोगान ने भी इजरायल को एक आतंकवादी राज्य घोषित कर दिया और गाजा पर हो रहे इजरायल के हवाई हमलों की निंदा की . अभी कुछ दिन पहले जब इजरायल ने जब कहा कि वह गाजा में ज़मीनी हमला शुरू कर देगा तो इजिप्ट के राष्ट्रपति मुहम्मद मोर्सी ने इजरायल को ऐसी किसी भी कोशिश से बाज़ आने की चेतावनी दी और  अपने प्रधानमंत्री को गाजा की यात्रा  पर भेज दिया  . इजरायल की  ताज़ा हठधर्मी के चलते उसके आका अमरीका के पश्चिम एशिया में मौजूद दोस्त भी अमरीका की जयजयकार करने की स्थिति में नहीं हैं .इजिप्ट की सरकार में इस बात पर भारी नाराज़गी है कि अमरीका ने  हफ़्तों चली बमबारी के बाद भी इजरायल से सार्वजनिक रूप से हमले रोकने को नहीं कहा .इस क्षेत्र में इजिप्ट के अलावा  जोर्डन भी अमरीका का दोस्त  माना  जाता  है लेकिन इजरायल के  रवैया ऐसा है कि वह  भी अब तक अमरीका के पक्ष में कुछ भी नहीं कह पाया है . अमरीकी सरकार ने सभी पक्षों से अपील की है कि वह  पश्चिम एशिया में संघर्ष की हालत को काबू में करें . बमबारी कर रहे इजरायल और हमले झेल रहे गाजा को एक ही  स्तर पर रखने के अमरीकी रुख से अरब दुनिया में गम और गुस्सा है . शायद इसीलिये अपनी लगातार गिर रही साख को संभालने की गरज़ से ओबामा ने अपनी विदेश मंत्री को  रामल्ला भेजा है . यह अलग बात है कि हालात पर काबू कर पाना अब अमरीका के लिए तभी संभव होगा जब वह इजरायल को  सैनिक ताकत का इस्तेमाल करने से रोक पाए.


(२१ नवंबर को लिखा गया लेख )

Monday, September 21, 2009

मानवता का युद्ध अपराधी इजरायल

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने गाजा शहर पर हुए इजरायली सैनिक अभियान की सच्चाई खोल दी है। इस रिपोर्ट में वही बातें कही गईं हैं जो पूरी दुनिया को पहले से ही मालूम थीं लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट आने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि अमरीका को भी सच्चाई मालूम हो जायेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायली सेना ने जान बूझकर फिलस्तीनी अवाम के खिलाफ सैनिक शक्ति का इस्तेमाल किया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा एक जज को सौंपा गया था।

रिचर्ड गोल्डस्टोन नाम के इस जज ने कहा है कि इजरायल ने जो कुछ भी गाजा में उन तीन हफ्तों में किया है, उसे युद्ध अपराध माना जाएगा कुछ मामले तो ऐसे हैं जहां इजरायली सेना की कार्रवाई "मानवता के खिलाफ" अपराध की श्रेणी में आ जाएगी इजरायल कहता रहा है कि सैनिक कार्रवाई फिलिस्तानी इलाकों से होने वाले हमलों के जवाब में है लेकिन सच्चाई यह है कि इजरायली सेना ने कम से कम चौदह सौ लोगों को मार डाला जिसमें करीब 500 महिलाएं और बच्चे हैं। यह जांच एक निष्पक्ष जज ने की है जो मूलतः दक्षिण अफ्रीका के रहने वाले हैं।

उन्होंने पता लगाया है कि नागरिक ठिकानों को जानबूझकर निशाना बनाया गया। इजरायल ने आवश्यकता से अधिक सैनिक बल का इस्तेमाल करके सिविलियन संपत्ति और सार्वजनिक सुविधाओं की तबाही की जिसकी वजह से गाजा के सीधे सादे फिलिस्तीनियों को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा। जांच से यह भी पता लगा कि इजरायली सेना ने संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी ठिकानों को भी नहीं बख्शा। 15 जनवरी की रात ऐसे ही एक ठिकाने पर हमला किया गया जहां करीब 700 सिविलयन रखे गए थे। इस हमले में फॉस्फोरस बम का इस्तेमाल किया गया जिसकी वजह से आग लग जाती है।

गाजा शहर के अल कुदस अस्पताल पर भी हमला किया गया इजरायल ने अस्पताल पर हमले के बाद बहाना बनाया था कि वहां फिलिस्तीनी आतंकवादी छुपे हुए थे। जांच से पता चला है कि इजरायल का यह बयान बिल्कुल गलत है, वहां कोई नहीं छुपा हुआ था। हमले में बेगुनाह लोग मारे गए थे। कई ऐसे भी मामलों से पर्दाफाश हुआ है जब इजरायली सेना ने निर्दोष बच्चों और औरतों को अगवा किया, उनकी आंखों पर पट्टी बांधी और उनको आगे करके मानवीय शील्ड की तरह इस्तेमाल किया, फिलिस्तीनी ठिकानों पर हमला किया और तबाही मचाई।

ऐसे भी सबूत मिले हैं कि इजरायली सेना ने खेती को बर्बाद किया, पानी के कुओं में बमबारी की, पानी के टैंक बरबाद किए और जिंदगी को नामुमकिन बनाने की कोशिश की। उनका लक्ष्य स्पष्ट था कि फिलिस्तीनी अवाम के लिए इतनी मुश्किले पैदा कर दी जायं कि उनकी जिंदगी तबाह हो जाय। इजरायली सेना हमेशा से यही करती रही है, इसमें नया कुछ नहीं है। नया है तो बस उस उम्मीद का मर जाना, जो दुनिया के सभ्य समाजों ने अमरीका के नए राष्ट्रपति बराक ओबामा से लगा रखी थी।अपने चुनाव अभियान के शुरुआती दौर से ही बराक ओबामा यह संकेत देते रहे थे कि उनकी पश्चिम एशिया नीति उतनी अरब विरोधी नहीं होती जितनी अब तक के राष्ट्रपतियों की होती रही है लेकिन अब तक के संकेतों से तो यही लगता है कि कोई खास परिवर्तन नहीं होने वाला है।

अमरीका की नीति पश्चिम एशिया में वही रहेगी जिसके हिसाब से इजरायल को धौंस देने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। दरअसल रिचर्ड ग्लैडस्टोन की रिपोर्ट के बाद बराक ओबामा की परीक्षा की घड़ी भी आ पहुंची है। जैसी कि उम्मीद थी, इजरायल ने ग्लैडस्टोन की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण कहकर टरकाने की कोशिश की लेकिन इस दक्षिण अफ्रीकी जज ने इजरायल को फटकार दिया है और कहा कि इजरायल का यह कहना ही गैर जिम्मेदार आचरण है कि रिपोर्ट तैयार करते समय उन पर कोई दबाव डाल रहा था। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी रिपोर्ट में लिखा गया है, वह एक निष्पक्ष जांच का नतीजा है। और उन्हें इस बात का अफसोस रहेगा कि इस पूरी जांच प्रक्रिया में इजरायल का रुख सहयोग का नहीं रहा।

इस बीच इजरायली मीडिया के माध्यम से सरकार ने जज ग्लैडस्टोन पर व्यक्तिगत हमलों का अभियान शुरू कर दिया है लेकिन ग्लैडस्टोन के ऊपर इसका कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है। वे इस तरह की परिस्थितियों से कई बार गुजर चुके हैं। 1994 में जब रंगभेद के खात्मे के बाद दक्षिणी अफ्रीका में चुनाव हुए तो चुनावों के पहले बड़े पैमाने पर हिंसा और धौंस पट्टी की वारदातें हुई थीं। उनकी जांच का जिम्मा भी इन्हें दिया गया था और उसे उन्होंने बहुत ही सच्चाई के साथ पूरा किया था। वे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में यूगोस्लाविया और वांडा जैसे मामलों में भी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से काम कर चुके है। अब अमरीका के राष्ट्रपति को एक मौका मिला है कि वे फिलिस्तीन और अरब राजनीति में इंसाफ के पक्षधर के रूप में अपने आपको पेश करें क्योंकि अगर ऐसा न हुआ तो अन्य अमरीकी राष्ट्रपतियों की तरह इतिहास उनको भी नहीं माफ करेगा।