शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली,१९ फरवरी . भारत में नदियों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण नेटवर्क है . प्राचीन काल में नदियाँ आवाजाही का सबसे प्रमुख साधन थीं इसीलिये ज़्यादातर पुराने शहर नदियों के किनारे ही बसे हैं .बहादुरशाह ज़फर भी जब दिल्ली से रंगून भेजे जा रहे थे कलकत्ता तक की यात्रा गंगा नदी के रास्ते पूरी की थी. आज़ादी के बाद सरकार ने तय किया कि अपने देश में नदियों के ज़रिये यातायात को बड़े पैमाने पर विकसित किया जाएगा. इसके लिए इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी भी बना दी गयी . सरफेस ट्रांसपोर्ट मंत्रालय के अधीन सारा सरकारी तामझाम भी बना दिया गया . लेकिन अफसरों के गैर ज़िम्मेदार रवैये के कारण पिछले ४० साल से यह सारा काम बेकार पड़ा है . सरकारी पैसा लग रहा है लेकिन कहीं कुछ नहीं हो रहा है . केन्द्र सरकार के अफसरों के दिल्ली प्रेम के चलते इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी का मुख्यालय नोयडा में बना दिया गया है जो कि एक तरह से दिल्ली ही है . इनसे कोई पूछे कि ,’भाई दिल्ली के पास मुख्यालय क्यों रखा गया है जबकि दिल्ली या नोयडा के पास अथारिटी का कहीं कोई काम नहीं है . यह भी वैसा ही अजूबा है कि जैसे ओ एन जी सी का मुख्यालय देहरादून में बना दिया गया था जबकि उनका सारा काम समुद्र के आस पास है . इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी काम नेशनल वाटरवेज का विकास करना है लेकिन कहीं कोई खास प्रगति नहीं हो है .
संसद की इस विभाग का काम देखने वाली ,यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति की नज़र इस मामले पर पड़ गयी और समिति ने विधिवत जांच की और पाया कि सरकारी तंत्र जो सफ़ेद हाथियों को पालने का बेहद शौक़ीन है ,उसने यहाँ भी एक बेहतरीन क्वालिटी के बहुत ही सफ़ेद हाथी पाल रखा है . कमेटी ने इसी फरवरी में कमेटी ने दोनों ही सदनों के पीठासीन अधिकारीयों को अपनी रिपोर्ट दी है. रिपोर्ट देख कर कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जिनको देख कर लगता है कि अगर सरकारी अफसर चाह लें तो बढ़िया से बढिया राष्ट्रीय योजनाओं को अपनी जगह से उठने का कोई मौक़ा ही न नसीब हो .अपने देश में इनलैंड वाटरवेज़ का एक अच्छा नेटवर्क है .नदियों, नहरों,समुद्री क्षेत्रों में करीब १४५०० किलोमीटर की दूरी में जल यातायात संभव है.जिसमें से ५२०० किलोमीटर नदी और ४००० किलोमीटर नहरों में है जिसमें मशीनीकृत छोटे जहाज़ चल सकते हैं जिनसे बहुत सारा व्यापारिक माल ढोया जा सकता है . एक तुलना से बात सही सन्दर्भ में सामने आ जायेगी. अमरीका में पानी के मार्ग से माल ढुलाई उनकी पूरी राष्ट्रीय क्षमता का २१ प्रतिशत है जबकि अपने देश में दशमलव एक प्रतिशत ( ०.१०) माल की दुलाई जलमार्गों से होती है . माल ढुलाई का यह सस्ता तरीका है और अपने देश में इसकी बहुत सारी संभावना है लेकिन सरकारी अफसरों के आलस्य की कृपा से राष्ट्र लगातार नुक्सान उठा रहा है . यह कोई आरोप नहीं है , यह सारी जानकारी यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति की १८९वीं रिपोर्ट में संकलित है . रिपोर्ट में मांग की गयी है कि इस बात को अर्जेंट समझ कर काम किया जाना चाहिए लेकिन भरोसा इसलिए नहीं जम रहा है कि इस तरह के सिफारिशें पहले भी हो चुकी हैं लेकिन अधिकारियों ने हर बार संसद की मंशा को पटरी से उतारने में सफलता पा ली है.
यातायात,पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध स्थायी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि देश के अंदर जलमार्गों के यातायात को विकसित करने से भारी माल की ढुलाई आसान हो जायेगी . यह तरीका पर्यावरण की रक्षा में भी मदद करेगा.अभी तक यातायात की इस विधा को सरकार की वह प्राथमिकता नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए. सरकार ने देश में आतंरिक जल यातायात के लिए पांच मार्गों की घोषणा की है जिनमें से दो मार्ग तो बिलकुल बंद पड़े हैं और जो तीन चल भी रहे हैं वह भी लगभग शून्य के आसपास ही की क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं . संसदीय समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि १२वीं
योजना में १०५०० करोड रूपये इस मद में लगाए जाएँ.और एन टी पी सी ,ओ एन जी सी जैसी सरकारी कंपनियों को इस यातायात के विकास में भागीदार बनाया जाए.इस रकम का इस्तेमाल बुनियादी ढाँचे के विकास में लगाया जाए. और इस यातायात को समयबद्ध तरीके से विकसित किया जाए. आतंरिक जलमार्गों को पड़ोसी देशों , बांग्लादेश और म्यांमार के साथ जोड़ने के लिए भी कोशिश की जानी चाहिए जिससे आर्थिक पक्ष के अलावा कूटनीतिक लाभ भी हासिल किया जा सके.
इस सब काम के लिए ज़िम्मेदार इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी है . कमेटी ने उसके कामकाज के तरीकों पर भी सख्त टिप्पणी की है. कमेटी का कहना है कि इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी के पास अपनी क्षमता और लक्ष्य हासिल करने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही ज़रूरी लावलश्कर. सरकार को सुझाव दिया गया है कि हाइड्रोग्राफी ,नेवीगेशन,सिविल इंजीनियरिंग,नौसैनिक आर्किटेक्चर जैसी सुविधाओं से इनलैंड वाटरवेज़ अथारिटी को लैस किया जाना चाहिए . इसके प्रबंधन में विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए . अभी तो यह आई ए एस अफसरों के लिए एक तरह से डम्पिंग ग्राउंड बना हुआ है जहां यह अफसर तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक कि इन्हें कोई बढ़िया मालदार तैनाती न मिल जाए. अफसरशाही की इस जिद के सामने राष्ट्र का एक अहम संसाधन लुंजपुंज पड़ा है इस पर फौरान लगाम लगाने की ज़रूरत है .