शेष नारायण सिंह
लेकिन एक बात से मन में दुविधा पैदा हो रही है. कहीं अरविन्द केजरीवाल की बातों पर लोग एतबार करना बंद न कर दें . अगर ऐसा हुआ तो देश के लिए बुरा होगा. बहुत दिन बाद सार्वजनिक जीवन में कोई ऐसा आदमी आया है जो सच्चाई को डंके की चोट पर कह रहा है . केजरीवाल ने जो सबसे ताज़ा मामला पब्लिक के सामने पेश किया है उसके लिए कोई कागज़ी सबूत नहीं दिया . स्विस बैंकों में काले धन के जिस मामले को उन्होंने इस बार उजागर किया है उसके लिए कोई दस्तावेज़ नहीं हैं . वे कह रहे हैं कि " चूंकि मैं कह रहा हूँ इसलिए इसका विश्वास कर लिया जाए" .हो सकता है कि उनको हीरो मानने वाले उनकी बात मान लें लेकिन उनके मानने से कुछ नहीं होता. भंडाफोड नंबर तीन और चार में अरविन्द केजरीवाल ने रिलायंस को निशाने पर लिया है . रिलायंस के बारे में हर पढ़े लिखे आदमी को मालूम है . सबको मालूम है कि रिलायंस ने पिछ्ले ३५ वर्षों में नियमों को तोड़कर और नेताओं-पत्रकारों-नौकरशाहों के सामने टुकड़े फेंक कर अपना हर काम करवाया है . उसके चाकर नेताओं और पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग देश की हर गैर कम्युनिस्ट पार्टी और लगभग हर अखबार में सक्रिय है. आशंका यह जताई जा रही है कि बिना किसी सबूत के लगाए गए आरोपों को रिलायंस के मित्रों की ताक़त से गलत न साबित कर दिया जाए. ऐसी हालत में अरविन्द केजरीवाल की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए जायेगें .अगर ऐसा हुआ तो वह इस देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बन रहे माहौल के लिए मुश्किल होगा.
९ नवम्बर के खुलासे के बाद ही हवा में बात छोड़ने की कोशिश की जा रही है कि अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम को रिलायंस के विरोधी हवा दे रहे हैं . इसका नतीजा यह होगा कि रिलायंस के साथी केजरीवाल को किसी अन्य कारपोरेट घराने का कारिन्दा साबित कर देगें . इस से आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता . कोई किसी घराने का हो ,सच्चाई तो सामने आ रही है लेकिन अगर सच्चाई बताने वाले की विश्वसनीयता पर सवाल उठ गए तो मुश्किल होगा. अरविन्द केजरीवाल को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए .