शेष नारायण सिंह
सैम पित्रोदा ने एक नई बात कहना शुरू कर दिया है . उनकी बात को गंभीरता से लेने की ज़रुरत इसलिए है कि मेरे जैसे जिन लोगों ने १९८४ में उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था,बाद में उन्हें पछताना पड़ा था. उन दिनों अपने देश में टेलीफोन होना स्टेटस सिम्बल माना जाता था. बहुत कम लोगों के घरों में टेलीफोन के कनेक्शन होते थे . टेलीफोन लगाने के लिए दरखास्त देने के कई साल बाद लोगों के नंबर आते थे. इंदिरा गाँधी का राज था और टेलीफोन का काम देखने वाला मंत्रालय ऐसे मंत्री के हवाले कर दिया जाता था जिसकी राजनीतिक हैसियत बहुत मामूली होती थी. . जिसको सज़ा देनी हो वही संचार मंत्री बनाया जाता था. सैम पित्रोदा उन दिनों अमरीका में बहुत नाम कमा चुके थे ,संचार के क्षेत्र में उनका बड़ा नाम था . बताते हैं कि उनके अंदर मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना ज्यादा था कि उन्होंने अपना अमरीका का बहुत बड़ा कारोबार छोड़कर भारत में सूचना क्रान्ति की बुनियाद रखने की योजना बनायी .किसी परिचित के हवाले से तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी से मिले .इंदिरा जी ने उनकी बात सुनी और उनको लगभग टाल दिया . लेकिन उनका दिल रखने के लिए उन्हें राजीव गाँधी के पास भेज दिया . राजीव गाँधी उन दिनों राजनीति में शुरुआती प्रशिक्षण ले रहे थे . इंदिरा गाँधी के सामने सैम पित्रोदा ने जो प्रस्ताव रखा था ,उसी को उन्होंने राजीव गाँधी को सुना दिया . राजीव गाँधी इलेक्ट्रानिक गैजेट्स के बहुत शौक़ीन थे. उन्होंने सैम पित्रोदा की बात को समझा और उन्हें फिर इंदिरा गाँधी के सामने पेश किया . बेटे के कहने पर इंदिरा गाँधी ने कुछ धन की व्यवस्था कर दी और देश में संचार क्रान्ति की बुनियाद पड़ गयी . उस दौर में सब को मालूम था कि इंदिरा जी ने सैम सैम पित्रोदा को गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन अपने बेटे की बात मान कर उनको कुछ काम दे दिया था. हालांकि यह सच है कि सैम पित्रोदा किसी काम की तलाश में नहीं थे ,वे अपने देश में संचार की व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहते थे. बहरहाल उसके बाद ही सी-डाट की शुरुआत हुई और टेलीफोन टेक्नालोजी के क्षेत्र में दुनिया के बड़े बड़े दिग्गज सैम पित्रोदा के ज्ञान का लोहा मानने लगे. राजीव गाँधी जब प्रधान मंत्री बने तो उन्होंने सैम पित्रोदा को अपने आविष्कारों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए खुली छूट दे दी और आज दुनिया जानती है कि सैम पित्रोदा के उसी प्रयास का नतीजा है कि संचार क्रान्ति आ चुकी है . संचार क्रान्ति की दुनिया में भारत अग्रणी देश है . दुनिया भर की कम्पनियां भारत में काम करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं . दुनिया भर के काल सेंटर , इन्फार्मेशन टेक्नालोजी के क्षेत्र में निर्यात सब उसी संचार क्रान्ति का नतीजा है . सैम पित्रोदा के आने के पहले टेलीफोन विभाग के बाहर लोग लाइन में खड़े होते थे और ट्रंककाल करने की लाइन लगती थी. आज सब की जेब में ऐसी मशीन रहती है कि दुनिया के किसी कोने में आसानी से बात हो जाती है . मेरे जैसे बहुत सारे लोगों ने अस्सी के दशक में सैम पित्रोदा के काम पर हो रहे खर्च को राजीव गांधी की सरकार के शौक़ की चीज़ माना था . बाद में हमने अपनी राय बदली और अब हम भी उसी संचार क्रान्ति का आनंद ले रहे हैं.
सैम पित्रोदा ने फिर आवाज़ दी है कि इस बार ज्ञान की क्रान्ति लाने की ज़रुरत है . जब तक बच्चे लीक से हट कर नई शिक्षा नहीं हासिल करेगें तब तक कुछ नहीं होने वाला है . शिक्षा के परंपरागत हथियारों को भूल कर नए हथियारों के ज़रिये ही ज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति लायी जा सकती है .उनकी कोशिश है कि मैकाले ने जिस तरह की शिक्षा की बात की थी उस से आविष्कार करने वाले दिमाग नहीं पैदा होगें . शिक्षा की तरकीबों में मौलिक बदलाव की ज़रुरत है . उसके बिना काम नहीं चलने वाला है .सैम पित्रोदा का पुराना रिकार्ड ऐसा है कि उनकी बात पर विश्वास करके लाभ होगा. इसलिए अब अपने देश को ऐसे नौजवानों का स्वागत करने को तैयार हो जाना चाहिए जिनका दिमाग आविष्कार की तरफ मुड़ चुका हो
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Sunday, July 10, 2011
Friday, January 7, 2011
हर बच्चे के हाथ में लैपटाप होना चाहिए .
शेष नारायण सिंह
नईदिल्ली , ७ जनवरी. आज दिल्ली में नौवें प्रवासी भारतीय दिवस का उदघाटन हुआ . इस अवसर पर भारत की ताक़त की हनक नज़र आई. शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल ने साफ़ कहा कि अब उद्योग और व्यापार और उस से जुडी चीज़ों के अवसर भारत में ही हैं इसलिए भारतीय मूल के लोगों को नयी हालात में अपने बात कहने की आदत डालनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि भारत में जो लोग भी आ रहे हैं वे यहाँ बेहतर अवसर की तलाश में आ रहे हैं .इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं पर भी एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्तव्य प्रधान मंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने दिया . उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में नयी टेक्नालोजी का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण है .लेकिन शिक्षा का महत्व सही अर्थों में समझना होगा . ज़रुरत इस बात की है कि शिक्षा में सुधार को एक राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में विकसित किया जाए . कोशिश की जानी चाहिए कि भारतीय मूल के साढ़े बारह करोड़ लोग जो विदेशों में बसे हैं उन्हें भारत में काम करने के लिए प्रेरणा दी जा सके.उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय मूल के विदेशियों का धन हमें नहीं चाहिए उनके पास जो ज्ञान का ज़खीरा है वह भारत के विकास में इस्तेमाल हो सकता है . उसके बदले में उन्हें भी काम करने के बड़े मौके मिलेगें .श्री पित्रोदा ने दावा किया कि मौजूदा सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता शिक्षा है . लेकिन शिक्षा के बारे में जो पुरानी समझ है उसे ख़त्म करना होगा . शिक्षा के बारे में नयी समझ को आगे लाना पड़ेगा और भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी देश बनाना होगा .
इस अवसर पर सैम पित्रोदा ने कहा कि अपने देश में करीब ५० करोड़ ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र २५ साल से कम है . उनकी काम करने की क्षमता का विकास किया जाना चाहिए . अगर शिक्षा के क्षेत्र में विकास की दर करीब १० प्रतिशत नहीं रही तो देश पिछड़ जाएगा. . शिक्षा की मांग बहुत ज्यादा है लेकिन मौजूदा तरीके के बुनियादी ढाँचे के विकास के सहारे उस मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है .इसके लिए ज़रूरी है कि कुशल कारीगरों और अन्य तरह के काम करने वालों की शिक्षा को कंट्रोल की व्यवस्था से बाहर किया जाए . इस दिशा में मनमोहन सिंह की सरकार ने ज़रूरी पहल कर दी है. नालेज कमीशन उसी आधुनिक सोच का नतीजा था . हमने तीन साल मेहनत करके रिपोर्ट तैयार की जिसमें २७ मुद्दे पहचाने गए और उन पर काम करने की ज़रुरत थी लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने वह काम मुस्तैदी ने नहीं किया .अब सरकार ने तय किया है कि दो अरब डालर खर्च करके एक सूचनातंत्र बनाया जाएगा अगले डेढ़ साल में देश की ढाई लाख पंचायतों को ब्राड बैंड से जोड़ दिया जाएगा . शिक्षा में मास्टर के ज़रुरत को ख़त्म करने की दिशा में काम चल रहा है . इतनी बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित करने के ज़रुरत है कि पुराने तरीके के बुनियादी ढाँचे से काम नहीं चलने वाला है . आज की तारीख में हमें नए आविष्कार करके ही समस्या का समाधान तलाशने की ज़रुरत है .. प्रधान मंत्री ने इस दिशा में शुरुआत कर दी है सरकारी खर्च पर एक राष्टीय आविष्कार परिषद की स्थापना कर दी गयी है . जिसका शुरुआती बजट एक अरब डालर का है . और भी पैसा उपलब्ध करवाया जा सकता है . इस सरकार ने शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा है और कोशिश की जा रही है कि देश भर में १४ ऐसे विश्वविद्यालय बनाए जाएँ जहां केवल आविष्कार से सम्बंधित काम हो ..
इस अवसर पर हर बच्चे के लिए एक लैप टाप के व्यवस्था करने वाले मिशन के अध्यक्ष सतीश झा ने भी भाषण दिया .. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय को नेशनल इमरजेंसी इन एजूकेशन का नाम दिया जाना चाहिए . उन्होंने कहा कि इस देश में ६४० हज़ार गावं हैं . गावों में शिक्षा का जो स्तर वह बिलकुल आदिम है . उसको ठीक करने की ज़रुरत है . लेकिन यह हमारी मौजूदा शिक्षाव्यवस्था के बूते के बात नहीं है कि उसको बदला जा सके . उसके लिए कुछ नया करना होगा . श्री झा ने बताया कि बहुत सोच विचार और शोध के बाद एक ऐसा कम्प्युटर तैयार किया जा सका है जिसकी देखभाल गाँव का बच्चा भी कर लेगा. उसको ज्यादा गर्मी से कोई नुकसान नहीं होता , उसको पटक देने से टूटता नहीं और उस लैप टाप की मदद से बिना टीचर की मदद के भी बच्चे अपनी पढाई कर सकते हैं . उसमें बच्चों के स्तर का इंटरनेट , उनकी अपनी भाषा में उपलब्ध करवाया जा सकता है .
बाद में सैम पित्रोदा ने भी कहा कि अपने देश की शिक्षा की ज़रुरत को पूरा करने के लिए सतीश झा के प्रोजेक्ट की तरह काम करने की ज़रूरत है लेकिन इस तरकीब में भी लगातार विकास करते रहना चाहिए
नईदिल्ली , ७ जनवरी. आज दिल्ली में नौवें प्रवासी भारतीय दिवस का उदघाटन हुआ . इस अवसर पर भारत की ताक़त की हनक नज़र आई. शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल ने साफ़ कहा कि अब उद्योग और व्यापार और उस से जुडी चीज़ों के अवसर भारत में ही हैं इसलिए भारतीय मूल के लोगों को नयी हालात में अपने बात कहने की आदत डालनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि भारत में जो लोग भी आ रहे हैं वे यहाँ बेहतर अवसर की तलाश में आ रहे हैं .इस अवसर पर शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं पर भी एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वक्तव्य प्रधान मंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने दिया . उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में नयी टेक्नालोजी का रोल बहुत ही महत्वपूर्ण है .लेकिन शिक्षा का महत्व सही अर्थों में समझना होगा . ज़रुरत इस बात की है कि शिक्षा में सुधार को एक राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में विकसित किया जाए . कोशिश की जानी चाहिए कि भारतीय मूल के साढ़े बारह करोड़ लोग जो विदेशों में बसे हैं उन्हें भारत में काम करने के लिए प्रेरणा दी जा सके.उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय मूल के विदेशियों का धन हमें नहीं चाहिए उनके पास जो ज्ञान का ज़खीरा है वह भारत के विकास में इस्तेमाल हो सकता है . उसके बदले में उन्हें भी काम करने के बड़े मौके मिलेगें .श्री पित्रोदा ने दावा किया कि मौजूदा सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता शिक्षा है . लेकिन शिक्षा के बारे में जो पुरानी समझ है उसे ख़त्म करना होगा . शिक्षा के बारे में नयी समझ को आगे लाना पड़ेगा और भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी देश बनाना होगा .
इस अवसर पर सैम पित्रोदा ने कहा कि अपने देश में करीब ५० करोड़ ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र २५ साल से कम है . उनकी काम करने की क्षमता का विकास किया जाना चाहिए . अगर शिक्षा के क्षेत्र में विकास की दर करीब १० प्रतिशत नहीं रही तो देश पिछड़ जाएगा. . शिक्षा की मांग बहुत ज्यादा है लेकिन मौजूदा तरीके के बुनियादी ढाँचे के विकास के सहारे उस मांग को पूरा नहीं किया जा सकता है .इसके लिए ज़रूरी है कि कुशल कारीगरों और अन्य तरह के काम करने वालों की शिक्षा को कंट्रोल की व्यवस्था से बाहर किया जाए . इस दिशा में मनमोहन सिंह की सरकार ने ज़रूरी पहल कर दी है. नालेज कमीशन उसी आधुनिक सोच का नतीजा था . हमने तीन साल मेहनत करके रिपोर्ट तैयार की जिसमें २७ मुद्दे पहचाने गए और उन पर काम करने की ज़रुरत थी लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने वह काम मुस्तैदी ने नहीं किया .अब सरकार ने तय किया है कि दो अरब डालर खर्च करके एक सूचनातंत्र बनाया जाएगा अगले डेढ़ साल में देश की ढाई लाख पंचायतों को ब्राड बैंड से जोड़ दिया जाएगा . शिक्षा में मास्टर के ज़रुरत को ख़त्म करने की दिशा में काम चल रहा है . इतनी बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित करने के ज़रुरत है कि पुराने तरीके के बुनियादी ढाँचे से काम नहीं चलने वाला है . आज की तारीख में हमें नए आविष्कार करके ही समस्या का समाधान तलाशने की ज़रुरत है .. प्रधान मंत्री ने इस दिशा में शुरुआत कर दी है सरकारी खर्च पर एक राष्टीय आविष्कार परिषद की स्थापना कर दी गयी है . जिसका शुरुआती बजट एक अरब डालर का है . और भी पैसा उपलब्ध करवाया जा सकता है . इस सरकार ने शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा है और कोशिश की जा रही है कि देश भर में १४ ऐसे विश्वविद्यालय बनाए जाएँ जहां केवल आविष्कार से सम्बंधित काम हो ..
इस अवसर पर हर बच्चे के लिए एक लैप टाप के व्यवस्था करने वाले मिशन के अध्यक्ष सतीश झा ने भी भाषण दिया .. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय को नेशनल इमरजेंसी इन एजूकेशन का नाम दिया जाना चाहिए . उन्होंने कहा कि इस देश में ६४० हज़ार गावं हैं . गावों में शिक्षा का जो स्तर वह बिलकुल आदिम है . उसको ठीक करने की ज़रुरत है . लेकिन यह हमारी मौजूदा शिक्षाव्यवस्था के बूते के बात नहीं है कि उसको बदला जा सके . उसके लिए कुछ नया करना होगा . श्री झा ने बताया कि बहुत सोच विचार और शोध के बाद एक ऐसा कम्प्युटर तैयार किया जा सका है जिसकी देखभाल गाँव का बच्चा भी कर लेगा. उसको ज्यादा गर्मी से कोई नुकसान नहीं होता , उसको पटक देने से टूटता नहीं और उस लैप टाप की मदद से बिना टीचर की मदद के भी बच्चे अपनी पढाई कर सकते हैं . उसमें बच्चों के स्तर का इंटरनेट , उनकी अपनी भाषा में उपलब्ध करवाया जा सकता है .
बाद में सैम पित्रोदा ने भी कहा कि अपने देश की शिक्षा की ज़रुरत को पूरा करने के लिए सतीश झा के प्रोजेक्ट की तरह काम करने की ज़रूरत है लेकिन इस तरकीब में भी लगातार विकास करते रहना चाहिए
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