शेष नारायण सिंह
विकीलीक्स के खुलासों के बाद बीजेपी को एक बार फिर गद्दी नज़र आने लगी थी. पिछले लोक सभा चुनाव में प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार रह चुके लाल कृष्ण आडवाणी ने द हिन्दू अखबार में छपी कुछ ख़बरों के बाद प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को आदेश दे डाला कि वे लोक सभा में आयें और वहां अपने इस्तीफे की घोषणा करें. आडवाणी जी की यह इच्छा २००४ के लोक सभा चुनाव से ही रह रह कर कुलांचे मारती रही है . जब भी मौक़ा लगता है कि वे डॉ मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग कर देते हैं . मीडिया में उनकी पार्टी और मालिक संस्था,आर एस एस के बहुत सारे समर्थक मौजूद हैं और यह बात जोर शोर से उछल भी जाती है . लेकिन किसी सरकार के इस्तीफे की याचना करना और उसे गिरा देना दो अलग अलग बातें हैं . बजट सेशन में तो सरकार गिरा देना बहुत ही आसान होता है क्योंकि अगर सरकार के वित्तीय प्रस्तावों पर कटौती प्रस्ताव विपक्ष की ओर से लाये जाएँ और वे स्वीकार हो जाएँ तो सरकार को जाना पड़ता है . अविश्वास प्रस्ताव का रास्ता तो हमेशा ही खुला रहता है . `लेकिन बीजेपी वाले केवल मीडिया का इस्तेमाल करके सरकार की किरकिरी करने के चक्कर में रहते हैं. लेकिन यह बात चलती नहीं है . जिस मुद्दे पर बीजेपी वाले प्रधान मंत्री को घेरने के चक्कर में थे वह पिछली लोकसभा का मामला था. . परमाणु बिल पास कराने के लिए उस वक़्त की यू पी ए सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था. उस दौरान यह चर्चा भी थी कि सरकार ने सांसदों की खरीद फरोख्त की थी. बीजेपी वाले खुद लोक सभा में हज़ार हज़ार के नोटों की गड्डियाँ लेकर आ गए थे और दावा किया था कि यूपीए के सहयोगी और समाजवादी पार्टी के नेता ,अमर सिंह ने वह नोट उनके पास भिजवाये थे, बाद में एक टी वी चैनल ने सारे मामले को स्टिंग का नाम देकर दिखाया भी था लेकिन वह वास्तव में स्टिंग नहीं था क्योंकि वह बीजेपी के साथ मिल कर किया गया एक ड्रामा था. बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वीकार भी किया था कि उनके कहने पर ही उनकी पार्टी के सांसद वह भारे रक़म लेकर लोकसभा में आये थे . सारे मामले की जे पी सी जांच भी हुई थी और जे पी से ने सुझाव दिया था कि मामला गंभीर है लेकिन जे पी सी के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि आपराधिक मामलों की जांच कर सके . इसलिए किसी उपयुक्त संस्था से इसकी जांच करवाई जानी चाहिए . जिन लोगों की गहन जांच होनी थी , उसमें बीजेपी के नेता, लाल कृष्ण आडवाणी के विशेष सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी का भी नाम था जे पी सी की जांच के नतीजों के मद्दे नज़र लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष ,सोम नाथ चटर्जी ने आदेश भी दे दिया था कि गृह मंत्रालय को चाहिए कि सारे मामले की जांच करे . लेकिन कहीं कोई जांच नहीं हुई . और अब जब विकीलीक्स के लीक हुए दस्तावेजों में बात एक बार फिर सामने आई तो बीजेपी वालों को फिर गद्दी नज़र आने लगी . नतीजा वही हुआ जो टी वी चैनलों पर पूरे देश ने देखा . आर एस एस के मित्र एंकरों ने जिस हाहाकार के साथ मामले को गरमाने की कोशिश की वह बहुत ही अजीब था. बीजेपी ने भी अपने बहुत तल्ख़- ज़बान प्रवक्ताओं को मैदान में उतारा और मामला बहुत ही मनोरंजक हो गया . लेकिन आज सब कुछ शांत है . इस बात की गंभीर संभावना लगने लगी है कि लाल कृष्ण आडवाणी के तत्कालीन सहायक , सुधीन्द्र कुलकर्णी के ऊपर जांच बैठ जायेगी . ऐसा इसलिए संभव लगता है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता , सीताराम येचुरी ने आज जोर देकर कहा कि सोमनाथ चटर्जी ने जिस जेपीसी का गठन किया था उसने सुधीन्द्र कुलकर्णी, संजीव सक्सेना और सुहेल हिन्दुस्तानी की गंभीर जांच करने का सुझाव दिया था . यानी अगर यह जाँच होती है तो लाल कृष्ण आडवाणी एक बार फिर शक़ के दायरे में आ जायेगें . . ज़ाहिर है कि बीजेपी ने इसलिए इतना हल्ला गुल्ला नहीं मचाया था कि उनकी जूती उनके ही सर आकर पद जाए . ऊपर से आज अपने जवाब में मनमोहन सिंह ने बीजेपी के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया . उन्होंने sansad के दोनों सदनों को बताया कि विपक्ष का आचरण गैर ज़िम्मेदार है . अमरीकी दूतावास और अमरीकी सरकार के बीच हुए पत्र व्यवहार को महत्व देकर विपक्ष ने एक गलत परंपरा डाली है . उन्होंने बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह सारे आरोप पब्लिक डोमेन में हैं . इन पर चर्चा हो चुकी है और 2009 के लोकसभा चुनावों में जनता इन्हें खारिज कर चुकी है .उन चुनावों में कैश फार वोट के तथाकथित स्टिंग में शामिल बीजेपी की सीटें कम हो गयी थीं जबकि कांग्रेस की सीटों की संख्या बढ़ गयी थी . इसलिए जनता ने जिन आरोपों को रिजेक्ट कर दिया है , उनको फिर से चर्चा में laana ठीक नहीं है . संसद होली के अवकाश के लिए बंद रहेगा और अब २२ मार्च को फिर बैठक होगी लेकिन बीजेपी की आतुरता को देखते हुए यह आशंका बनी रहेगी कि पता नहीं sansad का काम यह लोग चलने देगें कि नहीं
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Saturday, March 19, 2011
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