शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, २ दिसंबर.आज नौवें दिन भी संसद में कोई काम नहीं हो सका. शीतकालीन सत्र का आधा वक़्त ख़त्म हो चुका है और अभी यह उम्मीद नज़र नहीं आ रही है कि आने वाले दिनों में भी कोई काम काज हो सकेगा. इसी सत्र में लोकपाल बिल भी पास होना है जिसके लिए राजनीतिक वातावरण पहले से ही बहुत गर्म हो चुका है . लोकपाल कानून को पास कराने के लिए शुरू किये गए आन्दोलन से सुर्ख़ियों में आये अन्ना हजारे और उनके संगी साथी अभी से ताल ठोंक रहे हैं . ज़ाहिर है आने वाला समय देश की राजनीति में बहुत ही दिलचस्प होगा.
आज शुक्रवार है .संसद में शुक्रवार का दिन वैसे भी ढीला माना जाता है . शुक्रवार का दिन उन सदस्यों के विधायी काम के लिए रिज़र्व रखा गया है जो सरकार में नहीं है . संसद के समय का बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी विधायी कार्य को समर्पित होता है . इसलिए वे कानून धरे रह जाते हैं जिसे सरकार की मर्जी के खिलाफ सदस्य लाना चाहते हैं . इसीलिये १९५२ से ही शुक्रवार का दिन प्राइवेट मेंबर बिल के लिए आरक्षित कर दिया गया है . इस दिन सदस्य ऐसा कोई भी प्रस्ताव संसद के विचार के लिए ला सकते हैं जिसको वे जनहित में कानून बनाना चाहते हैं . पिछले ५९ वर्षों में हज़ारों प्राइवेट मेंबर बिल संसद के दोनों सदनों में पेश किये जा चुके हैं . जिनमें से १४ अब तक कानून भी बन चुके हैं . ऐसा ही एक बिल १९५६ में रायबरेली के कांग्रेस सांसद फीरोज़ गांधी ने पेश किया था जिसकी वजह से आज संसद की कार्यवाही आम आदमी तक पंहुच पाती है . उसके पहले संसद की कार्यवाही को रिपोर्ट करने की पूरी छूट नहीं होती थी. हुआ यह था कि उस वक़्त के वित्तमंत्री ने बिरला औद्योगिक घराने के बारे में कोई बयान दिया था . लेकिन अगले दिन के अखबारों में उसका कहीं भी कोई उल्लेख नहीं था. राजनीतिक आचरण में शुचिता के पक्षधर फीरोज़ गांधी को यह बात ठीक नहीं लगी. उन्होंने लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया जिसका उद्देश्य संसद की कार्यवाही को रिपोर्ट करने के काम को बंदिशों से आज़ाद कराना था . . उन्होंने कहा कि मैं इस सदन में जनता का प्रतिनधि हूँ . मैं जो कुछ भी यहाँ बोलता हूँ उसे जनता तक पंहुचाना प्रेस की ड्यूटी है. मैं आग्रह करता हूँ कि एक ऐसा क़ानून बनाया जाय जिस से सदन की कार्यवाही वर्बेटिम ( अक्षरशः ) रिपोर्ट की जा सके. यह भी प्रावधान किया जाना चाहिये कि उन संवाददाताओं के ऊपर संसद की कार्यवाही रिपोर्ट करने के लिए कोई भी मानहानि का मुक़दमा न चलाया जा सके या उनके ऊपर कोई जुरमाना न हो सके. आज संसद के अंदर होने वाली हर बात को पूरा देश जानता है . वह एक प्राइवेट मेबर बिल के ज़रिये ही कानून बन सका था लेकिन आजकल अजीब माहौल है . ज़्यादातर संसद सदस्य गुरुवार को ही दिल्ली छोड़ देते हैं और शुक्रवार का दिन आम तौर पर खाली माना जाता है . जबकि सच्चाई यह है कि अगर संसद सदस्य रचनात्मक तरीके से काम करें तो शुक्रवार के दिन का बहुत ही अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है .
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Sunday, December 4, 2011
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