शेष नारायण सिंह
किसानों की आत्मह्त्या देश की राजनीतिक पार्टियों को हमेशा मुश्किल में डालती रहती है .हालांकि मीडिया आम तौर पर किसानों की आत्महत्या को इग्नोर ही करता है लेकिन कुछ ऐसे पत्रकार हैं जो इस मामले पर समय समय बहस का माहौल बनाते रहते हैं. देश के कुछ इलाकों में तो हालात बहुत ही बिगड़ गए हैं और लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि समस्या का हल किस तरह से निकाला जाए.हो सकता है कि इन्हीं कारणों से संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा ने समय निकाला और किसानों की आत्महत्या से पैदा हुए सवाल पर दो दिन की बहस कर डाली . बीजेपी के वेंकैया नायडू की नोटिस पर नियम १७६ के तहत अल्पकालिक चर्चा में बहुत सारे ऐसे मुद्दे सामने आये जिसके बाद कि संसद ने इस विषय पर बात को आगे बढाने का मन बनाया. बहस के दौरान सदस्यों ने मांग की कि इसी विषय पर चर्चा के लिए सदन का एक विशेष सत्र बुलाया जाए .बहस के अंत में इस बात पर सहमति बन गयी कि सदन की एक कमेटी बनायी जाए जो किसानों की आत्महत्या के कारणों पर गंभीर विचार विमर्श करे और सदन को जल्द से जल्द रिपोर्ट पेश करे.बाद में लोकसभा में सी पी एम के नेता और कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति के अध्यक्ष, बासुदेव आचार्य ने लोक सभा की स्पीकर से मिल कर आग्रह किया कि राज्यसभा की जो कमेटी बनने वाली है है उसमें लोकसभा के सदस्य भी शामिल हो जाएँ तो कमेटी एक जे पी सी की शक्ल अख्तियार कर लेगी.
राज्यसभा में बहस की शुरुआत करते हुए बीजेपी के वेंकैया नायडू ने किसानों की आत्मह्त्या और खेती के सामने पेश आ रही बाकी दिक्क़तों का सिलसिलेवार ज़िक्र किया . उन्होंने कृषि लागत और मूल्य आयोग की आलोचना की और कहा कि उस संस्था का तरीका वैज्ञानिक नहीं है .वह पुराने लागत के आंकड़ों की मदद से आज की फसल की कीमत तय करते हैं जिसकी वजह से किसान ठगा रह जाता है .फसल बीमा के विषय पर भी उन्होंने सरकार को सीधे तौर पर कटघरे में खड़ा किया . खेती की लागत की चीज़ों की कीमत लगातार बढ़ रही है लेकिन किसान की बात को कोई भी सही तरीके से नहीं सोच रहा है जिसके कारण इस देश में किसान तबाह होता जा रहा है .उन्होंने कहा कि जी डी पी में तो सात से आठ प्रतिशत की वृद्धि हो रही है जबकि खेती की विकास दर केवल २ प्रतिशत के आस पास है . उन्होंने कहा कि किसानों को जो सरकारी समर्थन मूल्य मिलता है वह बहुत कम है . उन्होंने इसके लिए भी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया .बहस में कई पार्टियों के सदस्यों ने हिस्सा लिया लेकिन नामजद सदस्य,मणिशंकर अय्यर ने किसानों की समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में लाने की कोशिश की. उन्होंने साफ़ कहा कि आत्महत्या करने वाले किसान वे नहीं होते जो खाद्यान्न की खेती में लगे होते हैं और आमतौर पर सरकारी समर्थन मूल्य पर निर्भर करते हैं . किसानों की आत्मह्त्या के ज़्यादातर मामले उन इलाकों से सुनने में आ रहे हैं जहां कैश क्राप उगाई जा रही है .कैश क्राप के लिए किसानों को लागत बहुत ज्यादा लगानी पड़ती है . कैश क्राप के किसान पर देश के अंदर हो रही उथल पुथल का उतना ज्यादा असर नहीं पड़ता जितना कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही अर्थव्यवस्था के उतार-चढाव का पड़ता है . जब उनके माल की कीमत दुनिया के बाजारों में कम हो जाती है तो उसके सामने संकट पैदा हो जाता है .वह अपनी फसल में बहुत ज़्यादा लागत लगा चुका होता है. लागत का बड़ा हिस्सा क़र्ज़ के रूप में लिया गया होता है . माल को रोकना उसके बूते की बात नहीं होती. सरकार की गैर ज़िम्मेदारी का आलम यह है कि खेती के लिए क़र्ज़ लेने वाले किसान को छोटे उद्योगों के लिए मिलने वाले क़र्ज़ से ज्यादा ब्याज देना पड़ता है.एक बार भी अगर फसल खराब हो गयी तो दोबारा पिछली फसल के घाटे को संभालने के लिए वह अगली फसल में ज्यादा पूंजी लगा देता है . अगर लगातार दो तीन साल तक फसल खराब हो गयी तो मुसीबत आ जाती है. किसान क़र्ज़ के भंवरजाल में फंस जाता है . जिसके बाद उसके लिए बाकी ज़िंदगी बंधुआ मजदूर के रूप में क़र्ज़ वापस करते रहने के लिए काम करने का विकल्प रह जाता है . किसानों की आत्म हत्या के कारणों की तह में जाने पर पता चलता है कि ज़्यादातर समस्या यही है . राज्यसभा में बहस के दौरान यह साफ़ समझ में आ गया कि ज़्यादातर सदस्य आपने इलाकों के किसानों की समस्याओं का उल्लेख करने के एक मंच के रूप में ही समय बिताते रहे. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी ने समस्या के शास्त्रीय पक्ष पर बात की ,सदन में भी और सदन के बाहर भी . उन्होंने सरकार की नीयत पर ही सवाल उठाया और कहा कि अपने जवाब में कृषिमंत्री ने जिस तरह से आंकड़ों का खेल किया है वह किसानों की आत्महत्या जैसे सवाल को कमज़ोर रोशनी में पेश करने का काम करता है . उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि २००७ के एक जवाब में सरकार ने कहा था कि नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का आंकड़ा किसानों की आत्महत्या के मामले में ही सही आंकड़ा है जबकि जब राज्यसभा में इस विषय पर हुई दो दिन की बहस का जवाब केन्द्रीय कृषि मंत्री महोदय दे रहे थे तो उन्होंने राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों का हवाला दिया .सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया कि यह सरकार की गलती है . कोई भी मुख्यमंत्री या राज्य सरकार आमतौर पर यह स्वीकार करने में संकोच करती है कि उसके राज्य में किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं.. उन्होंने उन अर्थशास्त्रियों को भी आड़े हाथों लिया जो आर्थिक सुधारों के बल पर देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं .सीताराम ने साफ़ कहा कि जब तक इस देश के किसान खुशहाल नहीं होगा तह तह अर्थव्यवस्था में किसी तरह की तरक्की के सपने देखना बेमतलब है .उन्होंने साफ़ कहा कि जब तक खेती में सरकारी निवेश नहीं बढाया जाएगा, भण्डारण और विपणन की सुविधाओं के ढांचागत निवेश का बंदोबस्त नहीं होगा तब तक इस देश में किसान को वही कुछ झेलना पड़ेगा जो अभी वह झेल रहा है . उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर खेती से जुडी हर लाभकारी स्कीम को एम एन सी के हवाले करने की जो योजना सरकारी चर्चाओं में सुनने में आ रही है वह बहुत ही चिंताकारक है.
एक दिन की बहस के बाद जब कृषिमंत्री शरद पवार ने जवाब दिया तो लगभग तस्वीर साफ़ हो गयी कि सरकार इतने अहम मसले पर भी लीपापोती का काम करने के चक्कर में है .सरकार की तरफ से कृषि मंत्री ने एक हैरत अंगेज़ बात भी कुबूल कर डाली . उन्होंने कहा कि इस देश में २७ प्रतिशत किसान ऐसे हैं जो खेती को लाभदायक नहीं . बाद में जनता दल ( यू ) के शिवानन्द तिवारी ने कहा कि कृषिमंत्री के बयान से लगता है कि २७ प्रतिशत किसान खेती छोड़ना चाहते हैं . उन्होंने कहा कि यह २७ प्रतिशत किसान का मतलब यह है कि देश के करीब १७ करोड़ किसान खेती से पिंड छुडाना चाहते हैं . यह बात बहुत ही चिंता का कारण है .भारत एक कृषिप्रधान देश है और यहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती से अलग होना चाहता है. कृषिमंत्री ने इस बात को भी स्वीकार किया कि रासायनिक खादों को भी किसानों को उपलब्ध कराने में सरकार असमर्थ है . उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देशों में खाद उत्पादन करने वाली बड़ी कंपनियों ने गिरोह बना रखा है और वे भारत सरकार से मनमानी कीमतें वसूल कर रहे हैं . सरकार ऐसी हालत में मजबूर है . उन्होंने इस बात पार भी लाचारी दिखाई कि सरकार किसानों को सूदखोरों के जाल में जाने से नहीं बचा सकती . बहरहाल सरकार की लाचारी भरे जवाब के बाद यह साफ़ हो गया है कि इस देश में किसान को कोई भी राजनीतिक या सरकारी समर्थन मिलने वाला नहीं है. किसान को इस सरकार ने रामभरोसे छोड़ दिया है .
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Sunday, December 25, 2011
Wednesday, December 21, 2011
किसानों की आत्म ह्त्या के मामले में सरकार आंकड़ों की बाज़ीगरी कर रही है.
शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली ,२० दिसंबर. किसानों की आत्महत्या के मामले में राज्यसभा में दो दिन की बहस हुई लेकिन घूम फिर कर आमला सतही स्तर पर ही रह गा . कृषिमंत्री का जवाब ऐसा था जिस से जादा तर सदस्य निराश हुए और आखिर में वाक आउट तक किया . सदस्यों का आरोप था कि सरकार की ओर से आंकड़ों के ज़रिये बात को टालने की कोशिश की गयी. बहस की शुरुआत में ही यह तय हो गया था कि इस मामले को राष्ट्रीय मह्त्व का मानकर बात को आगे बढाया जाएगा लेकिन कृषिमंत्री शरद पवार बार बार अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के आंकड़ों से आज के आंकड़ों की तुलना करके बात को टालने की कोशिश करते नज़र आये. सदस्यों की मांग थी कि इस विषय पर बहस के लिए एक विशेष सत्र बुलाया जाए लेकिन आखीर में यह तय पाया कि सदन की एक कमेटी बनाकर मुद्दे की जांच के जाए.
मूल प्रस्ताव भाजपा के वेंकैया नायडू का था लेकिन बहस में सबसे अहम हस्तक्षेप कांग्रेस के मणि शंकर अईय्यर , समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी का रहा . मणि शंकर अईय्यर ने कहा कि किसानों की आत्म ह्त्या का मामला ऐसा है जिसमें अधिकतम समर्थन मूल्य जैसे सरकारी तरीकों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है .अधिकतम समर्थन मूल्य का प्रावधान खाद्यान्न की समस्या को हल करने के लिए चलाया गया जबकि आत्म ह्त्या करने वाला किसान आम तौर पर कैश क्राप वाला किसान होता है .उसको जो बीज मिलता है वह बहुत ही महंगा होता है जबकि उसकी फसल की कीमत के बाए में कोई भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. नतीजा यह होता है कि किसान महंगे बीज लेता है और , कैश क्राप के लिए अन्य महंगे सामान का इस्तेमाल करता है लेकिन जब फसल फेल हो जाई है तो वह क़र्ज़ के जाल में फंस जाता है. अगले साल भी वह ज़्यादा कर्ज़ लेकर फसल उगाता है लेकिन एक मुकाम ऐसा आता है जब वह क़र्ज़ के भंवर से नहीं निकल सकता और अपना जीवन ही ख़त्म कर लेता है .
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीता राम येचुरी ने कहा कि अपने जवाब में कृषि मंत्री ने आंकड़ों का गलत इस्तेमाल किया है .उन्होंने कहा कि २००७ तक तो वे राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों का प्रयोग करते थे लेकिन आज उन्होंने राज्यों से मिले हुए किसानों की आत्म ह्त्या के आंकड़ों का प्रयोग किया है . ज़ाहिर है कि कोई भी राज्य यह स्वीकार नहीं करता कि उसके राज्य में किसान आत्मह्त्या कर रहे हैं या भूख से मर रहे हैं . इस प्रकार उनके आंकड़े सही तस्वीर नहीं पेश कर रहे हैं . उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि अब संसद की एक कमेटी आत्म हत्या के कारणों का पता लगाएगी जिसके बाद संसद उस पर विचार करेगी.
समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव ने सुझाव दिया कि किसानों को मुफलिसी से बचाने के लिए ज़रूरी है कि उनको पशु पालन की तरफ जाने के लिए उत्साहित किया जाए. उनका कहना था कि इस से खेती में भी सुधार होगा और गामीण आबादी के लोग आत्म निर्भर भी बन सकेगें .जे डी ( यू ) के शिवानन्द तिवारी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह केवल आंकड़ों की बाज़ीगरी कर रही है . उन्होंने कृषि मंत्री से अनुरोध किया कि वे गद्दी छोड़ दें . बहरहाल किसानों की आत्महत्याओं का मामला अब संसद की नज़र में है . और जिन नेताओं से भी बात हुई सब इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मामले पर सरकार और संसद कुछ गंभीर काम कर सकेगी .
नई दिल्ली ,२० दिसंबर. किसानों की आत्महत्या के मामले में राज्यसभा में दो दिन की बहस हुई लेकिन घूम फिर कर आमला सतही स्तर पर ही रह गा . कृषिमंत्री का जवाब ऐसा था जिस से जादा तर सदस्य निराश हुए और आखिर में वाक आउट तक किया . सदस्यों का आरोप था कि सरकार की ओर से आंकड़ों के ज़रिये बात को टालने की कोशिश की गयी. बहस की शुरुआत में ही यह तय हो गया था कि इस मामले को राष्ट्रीय मह्त्व का मानकर बात को आगे बढाया जाएगा लेकिन कृषिमंत्री शरद पवार बार बार अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के आंकड़ों से आज के आंकड़ों की तुलना करके बात को टालने की कोशिश करते नज़र आये. सदस्यों की मांग थी कि इस विषय पर बहस के लिए एक विशेष सत्र बुलाया जाए लेकिन आखीर में यह तय पाया कि सदन की एक कमेटी बनाकर मुद्दे की जांच के जाए.
मूल प्रस्ताव भाजपा के वेंकैया नायडू का था लेकिन बहस में सबसे अहम हस्तक्षेप कांग्रेस के मणि शंकर अईय्यर , समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी का रहा . मणि शंकर अईय्यर ने कहा कि किसानों की आत्म ह्त्या का मामला ऐसा है जिसमें अधिकतम समर्थन मूल्य जैसे सरकारी तरीकों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला है .अधिकतम समर्थन मूल्य का प्रावधान खाद्यान्न की समस्या को हल करने के लिए चलाया गया जबकि आत्म ह्त्या करने वाला किसान आम तौर पर कैश क्राप वाला किसान होता है .उसको जो बीज मिलता है वह बहुत ही महंगा होता है जबकि उसकी फसल की कीमत के बाए में कोई भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. नतीजा यह होता है कि किसान महंगे बीज लेता है और , कैश क्राप के लिए अन्य महंगे सामान का इस्तेमाल करता है लेकिन जब फसल फेल हो जाई है तो वह क़र्ज़ के जाल में फंस जाता है. अगले साल भी वह ज़्यादा कर्ज़ लेकर फसल उगाता है लेकिन एक मुकाम ऐसा आता है जब वह क़र्ज़ के भंवर से नहीं निकल सकता और अपना जीवन ही ख़त्म कर लेता है .
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीता राम येचुरी ने कहा कि अपने जवाब में कृषि मंत्री ने आंकड़ों का गलत इस्तेमाल किया है .उन्होंने कहा कि २००७ तक तो वे राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों का प्रयोग करते थे लेकिन आज उन्होंने राज्यों से मिले हुए किसानों की आत्म ह्त्या के आंकड़ों का प्रयोग किया है . ज़ाहिर है कि कोई भी राज्य यह स्वीकार नहीं करता कि उसके राज्य में किसान आत्मह्त्या कर रहे हैं या भूख से मर रहे हैं . इस प्रकार उनके आंकड़े सही तस्वीर नहीं पेश कर रहे हैं . उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि अब संसद की एक कमेटी आत्म हत्या के कारणों का पता लगाएगी जिसके बाद संसद उस पर विचार करेगी.
समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव ने सुझाव दिया कि किसानों को मुफलिसी से बचाने के लिए ज़रूरी है कि उनको पशु पालन की तरफ जाने के लिए उत्साहित किया जाए. उनका कहना था कि इस से खेती में भी सुधार होगा और गामीण आबादी के लोग आत्म निर्भर भी बन सकेगें .जे डी ( यू ) के शिवानन्द तिवारी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह केवल आंकड़ों की बाज़ीगरी कर रही है . उन्होंने कृषि मंत्री से अनुरोध किया कि वे गद्दी छोड़ दें . बहरहाल किसानों की आत्महत्याओं का मामला अब संसद की नज़र में है . और जिन नेताओं से भी बात हुई सब इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस मामले पर सरकार और संसद कुछ गंभीर काम कर सकेगी .
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