शेष नारायण सिंह
भोजपुरी अभिनेता और गायक मनोज तिवारी के घर पर कुछ गुंडा टाइप लोगों ने हमला कर दिया और तोड़ फोड़ की. मनोज वहां थे नहीं वरना उनको भी नुक्सान पंहुंच सकता था. . जो लोग आये थे उन्होंने अपनी कोई पहचान तो नहीं बतायी लेकिन कहा कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने जब क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को फटकार लगाई तो उस पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मनोज तिवारी ने शिवसेना के मुखिया को नाराज़ कर दिया है. यह मुखिया महोदय सचिन तेंदुलकर से भी नाराज़ हैं क्योंकि उसने कहीं कह दिया था कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है..अब सचिन ने क्या गलत बात कह दी कि बाल ठाकरे नाराज़ हो गए. कमज़ोर लोगों को हड़का कर ही बाल ठाकरे ने अपनी राजनीतिक खेती की है. उन इस गुण को उनके बेटे तो नहीं अपना पाए लेकिन उनके भतीजे राज ठाकरे में वे सारे गुण विद्यमान हैं . वे भी अपने स्वनामधन्य चाचा की तरह ही मुंबई में आकर रोटी कमाने वालों को धमकाते रहते हैं . और पिछले चुनाव में उनकी हैसियत बढ़ गयी जबकि बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे बेचारे पिछड़ गए. .. सचिन तेंदुलकर को नसीहत देने वाला बाल ठाकरे का सम्पादकीय उसी लुम्पन राजनीति के खोये हुए स्पेस को फिर से हासिल करने की कोशिश है . लेकिन लगता है कि इस बार दांव उल्टा पड़ गया है . बाल ठाकरे के बयान पर पूरे देश में नाराज़गी व्यक्त की जा रही है. हालांकि इस बात की ठाकरे ब्रांड राजनीति करने वालों को कभी कोई परवाह नहीं रही लेकिन अब शिव सेना की सहयोगी पार्टी बी जे पी ने भी सार्वजनिक रूप से सचिन तेंदुलकर को सही ठहरा कर बाल ठाकरे को बता दिया है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी के बर्दाश्त की भीएक हद होतीहै. और बी जे पी के लिए ठाकरे की हर बात को सही कहना संभव नहीं होगा. बी जे पी का बयान किसी प्रवक्ता टाइप आदमी ने नहीं दिया है . पार्टी की तरफ से उनके सबसे गंभीर और प्रभावशाली नेता , अरुण जेटली ने बयान दिया है. अरुण जेटली कोई प्रकाश जावडेकर या रवि शंकर प्रसाद तो हैं नहीं कि उनके बयान को कोई बड़ा नेता खारिज कर देगा . इसलिए अब यह शिव सेना को तय करना है कि मराठी मानूस की अहंकार पूर्ण नीति चलानी है कि सही तरीके से राजनीतिक आचरण करना है . अरुण जेटली के बयान का साफ़ मतलब है कि बी जे पी अब शिवसेना के उन कारनामों से अपने को अलग कर लेगी जो देशवासियों में नफरत फैलाने की दिशा में काम कर सकते होंगें..
सचिन तेंदुलकर को मराठी मानूस वाले खांचे में फिट करने की कोशिश करके बाल ठाकरे ने जहां राष्ट्रीय एकता का अपमान किया है वहीं सचिन को भी नुक्सान पहुचाने की कोशिश की है .सचिन तेंदुलकर आज एक विश्व स्तर के व्यक्ति हैं . पूरे भारत में उनके प्रसंशक हैं . जगह जगह उनके फैन क्लब बने हुए हैं. पूरे देश की कंपनियों से उन्हें धन मिलता है क्योंकि वे उनके विज्ञापनों में देखे जाते हैं . . इस तरह के व्यक्ति को अपने पिंजड़े में बंद करने की बाल ठाकरे की कोशिश की चारों तरफ निंदा हो रही है. विधान सभा चुनावों में राज ठाकरे की मराठी शेखी की मदद कर रही , कांग्रेस पार्टी ने भी बाल ठाकरे की बात का बुरा माना है .महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, अशोक चह्वाण ने भी बाल ठाकरे को उनके गैर ज़िम्मेदार बयान के लिए फटकार लगाई है. . लगता है कि शिव सेना के बूढ़े नेता से नौजवानों के हीरो सचिन तेंदुलकर की अपील के तत्व को समझने में गलती हो गयी क्योंकि अगर कहीं सचिन तेंदुलकर ने अपनी नाराज़गी को ज़ाहिर कर दिया तो शिव सेना का बचा खुचा जनाधार भी भस्म हो जाएगा. पता नहीं बाल ठाकरे को क्यों नहीं सूझ रहा है कि सचिन तेंदुलकर की हैसियत बहुत बड़ी है और किसी बाल ठाकरे की औकात नहीं है कि उसे नुक्सान पंहुचा सके. हाँ अगर सचिन की लोकप्रियता की चट्टान के सामने आकर उसमें सर मारने की कोशिश की तो बाल ठाकरे का कुनबा मराठी समाज के राडार से हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगा. क्योंकि जिंदा कौमें अपने हीरो का अपमान करने वालों को कभी माफ़ नहीं करतीं.
सचिन से पंगा लेना बाल ठाकरे को महंगा पड़ेगा इसमें कोई शक नहीं है लेकिन जब तक समय की गति के साथ यह बात ठाकरे के लोगों को पता चलेगी तब तक अपने आका के हुक्म से काम करने वाले शिव सेना के लुम्पन भाई लोग कम से कम मुंबई में अपनी ताक़त का जलवा दिखाने से बाज़ नहीं आयेंगें. . इसका मतलब यह हुआ कि मुंबई एक बार फिर बदमाशी की राजनीति का शिकार होने वाली है. . महानगर के सभ्य समाज को अभी वे दिन नहीं भूले हैं जब राज ठाकरे ने बिहार से आये लोगों को कल्याण स्टेशन पर पिटवाया था, या उत्तर भारत के टैक्सी वालों को नुक्सान पहुचाया था. दुर्भाग्य की बात यह है कि महाराष्ट्र की सरकारें ठाकरे परिवार की राजनीतिक गुंडागर्दी को बर्दाश्त करती हैं , कभी कभी तो बढ़ावा भी देती हैं . ऐसा शायद इस लिए होता रहा है कि हर बार ठाकरे छाप बदमाशी गरीब उत्तर भारतियों या दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाती थी लेकिन इस बार तो ठाकरे ने मराठी गौरव के प्रतीक सचिन तेंदुलकर को ही अपनी नफरत की राजनीति के घेरे में ले लिया है . बाल ठाकरे के इस कारनामें को समझने के लिये अगर क्रिकेट की शब्दावली का प्रयोग करें तो इसे लूज़ बाल कहा जाएगा. सबको मालूम है कि जब लूज़ बाल आती है तो छक्का पड़ जाता है . सभ्य समाज को चाहिए कि महाराष्ट्र सरकार पर दबाव बनाए कि वह बाल ठाकरे के इस लूज़ बाल पर छाका मारे और उसे पकड़ कर जेल में बंद कर दे. बाल ठाकरे की नफरत की राजनीति पर लगाम लगाने के लिए यह एक अच्छा अवसर है
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Wednesday, November 18, 2009
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