Showing posts with label पूंजीवादी डायन. Show all posts
Showing posts with label पूंजीवादी डायन. Show all posts

Tuesday, July 20, 2010

आम इंसान का खून पी जायेगी महंगाई नाम की पूंजीवादी डायन

शेष नारायण सिंह

लोक सभा का मानसून सत्र अगले हफ्ते शुरू हो जाएगा. महिला आरक्षण बिल सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष उसे पास करवाना चाहती हैं और कांग्रेसी के लिए मैडम की इच्छा हर्फ़-ए-आखिर होती है.. सरकार में शामिल लोगों की प्राथमिकताएं अलग होती हैं जबकि आम आदमी को रोज़मर्रा की ज़रूरतों की चिंता रह्ती है . सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में बड़े उद्योगपति घरानों की कंपनियों को टैक्स में करीब चार लाख करोड़ रूपये की रियायत दी है लेकिन आम आदमी के लिए ज़िंदगी दूभर करने के लिए ऐसा इंतज़ाम किया है कि बड़े पूंजीपति ग्रुप मौज करें. हर उस चीज़ की कीमत कम हो जा रही है जो किसान के घर पैदा होती है लेकिन हर वह चीज़ महंगी हो रही है जिस सामान को , उपभोक्ता संस्कृति का शिकार आम आदमी खरीदना चाहता है ..सबसे बुनियादी बात यह है कि पूंजीवादी विचारधारा वाली सरकारें कभी भी आम आदमी की पक्षधर नहीं होतीं . अगर यह बात समझ में आ जाए तो समस्या अपने आप हल हो जायेगी लेकिन रूलिंग क्लास के वर्गचरित्र वाली सरकारें ऐसा जाल फैलाती हैं कि उसमें आम आदमी तब तक फंसा रहता है जब तक वह अपनी मजदूरी को शोषण के बाज़ार में बेच सकता है. जब वह बेकार हो जाता है तो पूंजीवादी शोषक दूसरी तरफ नज़र कर लेता है . अगर शासक वर्ग का वर्गचरित्र और उसका शोषण परक स्वभाव लोगों की समझ में आ जाए तो यह व्यवस्था बदली जा सकतीहै लेकिन कोई भी उसे बदलने लायक शिक्षा मजदूरों तक नहीं पंहुचने देता. नतीजा साफ़ है कि परत दर परत गरीब का खून चूसने का बंदोबस्त होता रहता है. महगाई की बारीकी को समझने के लिए आम इंसान को इतना ही समझ लेना काफी है कि अपने देश में जो सरकार है वह पैसे वालों के हित में काम करती है और उनके हित साधन में अगर आम लोगों का भी थोडा भला हो जाए ,तो ठीक है लेकिन यह पूंजीवादी सरकारें, किसी भी कीमत पर बराबरी वाले समाज को नहीं स्थापित होने देगीं .
यह राजनीतिक दल जिस तरह से मानसून सत्र की तैयारिया कर रहे हैं उस से लगता है कि कि जनता का भला वहीं तक होने देगें जहां तक इनका अपना और अपने पूंजीपति वर्ग का भला होता हो.रिपोर्टों पर गौर करें तो समझ में आ जाएगा कि यू पी ए के घटक दलों की क्या सोच है . उनकी एक बैठक हुई है जिसमें इस बात पर गौर किया गया कि सत्र के दौरान विपक्ष के हमलों को नाकाम कैसे किया जाए.इस बैठक में भी रेल मंत्री ममता बनर्जी और शरद पवार अनुपस्थित थे. ज़ाहिर है पिछले दिनों महंगाई के मामले को जिस गैरज़िम्मेदार तरीके से शरद पवार ने संभाला है , उनकी वजह से सरकार को खासी परेशानी होगी. रेल मंत्रालय का भी काम ठीक नहीं रहा है ज़ाहिर है रोज़ ब रोज़ हो रहे रेल हादसे भी मानसून सत्र में चर्चा का विषय बनेगें .इस बात में कोई दो राय नहीं है कि रेल विभाग का काम बहुत ही निराशा जनक रहा है . संचार मंत्री और डी एम के नेता, ए राजा भी चर्चा में रहगें क्योंकि उन्होंने घूस से जुडी खबरों में प्राथमिकता पायी है . कुल मिला कर आम आदमी के खिलाफ काम कर रही यह सरकार उद्योग और व्यापार के हित को ही अगला सत्र भी समर्पित कर देगी,

विपक्ष से भी बहुत उम्मीद करने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि सैद्धांतिक रूप से कांग्रेस और बी जे पी एक ही पूंजीवादी सोच को आगे बढाने के लिए राजनीति में हैं इसलिए जहा तक पूंजीवादी सिद्धांतों को आगे बढाने की बात है , दोनों में सहमति रहेगी . हाँ ,यह हो सकता है कि कुछ ख़ास मुद्दों पर हल्ला गुला मचा लें लेकिन पूंजीवादी धन्ना सेठों का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. इस मामले में एक क्षेत्र ऐसा होगा जिसमें कोई भी मतभेद बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. पेट्रोल और उस से जुडी चीज़ों की कंपनियों को फायेदा पंहुचाने से जिस सेठ को लाभ होगा उसके बारे में कहा जाता है कि उसका परिवार पिछले ३० वर्षों से बी जे पी और कांग्रेस दोनों को अपने अनुकूल रखने में सफल रहा है . इसलिए उसके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोलेगा . छिटपुट शोरगुल किया जा सकता है . कुल मिलाकर देश में गरीब आदमी को कोई भविष्य नहीं है. उसकी मजदूरी पर दुनिया भर की नज़र रहेगी और उसे ही हर तरफ से आने वाले आर्थिक हमलों को झेलना पडेगा.
यह बात कोई नयी नहीं है . गरीब आदमी को शोषण हमारी लोक परंपरा का भी हिस्सा बन चुका है . आज़ादी के पहले भी गाँव की औरतें जब अपने आदमी को कलकत्ता -बम्बई भेजती थीं तो उन्हें मालूम रहता था कि उनकी असली दुशमनी शोषण की व्यवस्था पर आधारित समाज से थी , जो गरीबी को उनके परिवार पर थोपता था . आज भी किसी फिल्म का वह लोक गीत बहुत ही लोकप्रिय होने जा रहा है जिसमें कहा गया है कि गरीब औरत के पति की कमाई में कोई कमी नहीं है , वह तो महंगाई डायन उसे खा लेती है . इस महंगाई को पूंजीवादी शोषण का हथियार मान लें तो गरीब आदमी की मुसीबत भरी ज़िंदगी का मर्म पूरी तरह समझ में आ जाएगा