शेष नारायण सिंह
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ,ममता बनर्जी ने बलात्कार के बारे में अपनी राय एक बार फिर व्यक्त कर दी है . उन्होंने इस बार ऐलान किया है कि युवक युवतियां खुले आम मिल जुल रहे हैं इसलिए बलात्कार की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं . उन्होंने अपनी पार्टी के बुद्दिजीवियों और कोलकता के कुछ अभिनेताओं की एक बैठक में यह बात कही. उन्होंने अफ़सोस जताया कि पहले जब लड़के लडकियां हाथ में हाथ लेकर घुमते थे तो माता पिता उनको डांटते थे लेकिन अब सब कुछ स्वतन्त्र हो गया है . कहीं किसी बात पर एतराज़ नहीं किया जाता.लगे हाथ ममता जी ने मीडिया से भी नाराज़गी जता दी और कहा कि मीडिया वाले ख़बरों को प्रदूषित कर रहे हैं और उनकी सरकार के खिलाफ प्रचार अभियान चलाने के चक्कर में बंगाल को बलात्कारियों के प्रदेश के रूप में पेश कर रहे हैं .उन्होंने आरोप लगाया कि मीडिया बलात्कार को महिमामंडित कर रहा है . उन्होंने कहा कि नकारात्मक पत्रकारिता तबाही लाती है इसलिए सकारात्मक पत्रकारिता की ज़रूरत है . चेतावनी भी दी कि नकारात्मक पत्रकारिता को जनता बर्दाश्त नहीं करेगी. मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि मीडिया का एक वर्ग गलत खबरें दिखा रहा है और कुछ चैनल तो उनके अपने दृष्टिकोण को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं .
ममता बनर्जी का यह आरोप गलत है , न तो मीडिया उनके खिलाफ लामबंद है और न ही बलात्कार की घटनाएं लड़कों -लडकियों के ज्यादा मिलने जुलने से हो रही हैं .बलात्कार पुरुषों की एक बीमारी है जिसे कोई नार्मल इंसान नहीं कर सकता. बलात्कार वह करता है जिसका दिमाग गलीज़ से भरा हुआ हो .इसलिए इस मुद्दे पर भी ममता बनर्जी गलत हैं.दूसरी बात यह है कि बलात्कार की घटनाओं को मीडिया में महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि वह अमानुषिक है , और कभी कभी होता है . समाचार वही चीज़ बनती है जो रोज़मर्रा की घटना न हो . मीडिया जब भी बलात्कार की किसी घटना को रिपोर्ट करता है तो उसे उम्मीद रहती है कि उसे दुबारा न रिपोर्ट करना पड़े. बलात्कार कभी कभी होता है इसलिए वह खबर के लिहाज़ से अहम होता है और उसके खिलाफ जनमत बनाने की गरज से उसे मीडिया हाईलाईट करता है . अब ममता बनर्जी चाहती हैं कि बलात्कार को रोज़मर्रा की घटना मान कर उसे मीडिया नज़र अंदाज़ कर तो यह संभव नहीं है .उन्हें इतना तो पता होना ही चाहिए कि उनकी सरकार को बचाए रखने के लिए मीडिया अपने कर्तव्य को नहीं भूल सकता है . हाँ यह ज़रूर है कि तृणमूल कांग्रेस की मुखिया की मीडिया के बारे में ताज़ा राय जब अखबारों में छपेगी तो मीडिया वालों को अपनी खैरियत के बारे में चिंतित रहना पडेगा क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हिंसक रूप काफी खूंखार हो सकता है .
ममता बनर्जी की सरकार को सत्ता में आये एक साल से ज्यादा हो गया और इस एक साल में उन्होंने इंसानी भावनाओं का बार बार अपमान किया है . महिलाओं के प्रति उनका रवैया खास तौर पर बहुत ही गलत रहा है . उन्होंने बलात्कार की पीडिता महिलाओं को ही कई बार अपराधी मानने की गलती की है .इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि ममता बनर्जी बलात्कार के लिए अजीबो गरीब चीज़ों को ज़िम्मेदार ठहराने के पहले अपनी मानसिक दशा का अध्ययन करें और यह समझने की कोशिश करें कि हमेशा उनके दिमाग में इस तरह की गैरजिम्मेदाराना बातें ही क्यों आती हैं .ऐसा भी नहीं है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि बलात्कार की बात आते ही पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ने पहली बार यह गलती की हो . पिछले एक साल का रिकार्ड देखा जाए तो समझ में आ जाएगा कि कि सत्ता मिलने के साथ साथ उनकी सरकार ने यही रुख लगातार अपनाया है. अभी अगस्त में कोलकाता पुलिस ने बलात्कार से बचने के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि महिलाओं को चाहिए कि वे अपनी सुरक्षा का ख्याल रखें और शहर में संभल कर चलें . जहां तक हो सके समूह में चलें ,अकेले शहर में से बाहर निकलने से बचें. कोलकाता पुलिस की इस एडवाइज़री के बाद शहर के बुद्धिजीवियों में गुस्से और दुःख की लहर दौड गयी थी .लोगों को शक हो रहा था अकी कहीं वह मध्यकालीन भारत के किसी राज्य में तो नहीं रह रहे हैं .
ममता बनर्जी और उनकी सरकार में शामिल मंत्रियों की सोच महिलाओं के प्रति अपमान जनक रही है . यह बात पिछले एक साल में बार बार साबित हो चुकी है .उनके कुछ मंत्रियों ने तो उन महिलओं के बारे में ही अपमानजनक टिप्पणियाँ की हैं जिन्होंने बलात्कार की घटनाओं को पुलिस में रिपोर्ट किया . तृणमूल कांग्रेस के कुछ विधयाकों ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर बलाकार से बचना है तो कपडे ज़रा ढंग के पहना करें . बलाकार की शिकार महिलाओं को अस्पताल जाने से हतोत्साहित किया जाता है जिस से बलात्कार के आंकड़ों को कम करके पेश किया जा सके.लेकिन सच्चाई यह है कि आज पश्चिम बंगाल महिलाओं के प्रति हिंसक व्यवहार के मामले में नंबर एक पर है . पहले ऐसा नहीं था. ममता बनर्जी को यह सवाल उठाना चाहिए कि कि उनकी सरकार और उनके मंत्रियों को गैरजिम्मेदारना बयानों के कारण बलात्कार करने वालों को प्रोत्साहन मिल रहा है . बंगाल के नामी लेखक अजीजुल हक ने लिखा है कि १९४७ के बाद सबसे अधिक राजनीतिक उथल पुथल का दौर नक्सलवाद के आंदोलन के दौर में आया था. उस दौर में भी महिलायें बहुत ही सुरक्षित थीं.यह सुरक्षा किसी राजनेता की कृपा से नहीं आयी थी . सत्ता वाले तो हमेशा से ही महिलाओं को दुसरे दर्जे का नागरिक बनाने के चक्कर में रहते रहे हैं . इन्हीं सत्ताधीशों के खिलाफ १८७० के दशक में आंदोलन चला था . राम मोहन रॉय के नेतृत्व में बंगाल में महिलाओं के सम्मान और सती प्रथा के खात्मे के लिए जो आन्दोलन चला था वह बंगाल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मुकाम है . महिलाओं के जीवन और उनके शरीर के ऊपर सामाजिक नियंत्रण के ढोंग को बंगाल में दी गयी चुनौती का नतीजा था जिसके कारण ब्रिटिश सरकार ने १८७२ में एज आफ कंसेंट बिल पास किया जिसके बाद बाल विवाह पर कानूनी रोक लगाने का रास्ता साफ़ हुआ . यह आंदोलन बंगाल की सरज़मीं पर बहुत वर्षों तक चला था .और शताब्दी के अंत में बंगाल के समाज में ऐसा माहौल बन गया कि १८९० के दशक में महिलाओं की आज़ादी का विरोध करना राजनीतिक और सामाजिक रूप से संभव नहीं रह गया था .
इसलिए बंगाल के किसी नेता के लिए आज १०० साल बाद महिलाओं को ठीक से कपडे पहनने का उपदेश देना एक दुस्साहस का काम है. व्यंग्यकार राजशेखर बोस ने जब श्रीमती भयंकरी के कैरेक्टर का आविष्कार किया तो उसे आधुनिक, फैशनबल और आज़ाद महिला के रूप में तो पेश किया लेकिन यह संकेत करने की हिम्मत नहीं जुटा सके कि वह सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं थी. १९९६ में जब कोलकता के एक कालेज के प्रिंसिपल शुभंकर चक्रवर्ती ने अपने कालेज में ड्रेस कोड लागू करने की कोशिश की तो उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें अपना फरमान वापस लेना पड़ा.
इस ऐतिहासिक सन्दर्भ में जब पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री के विचारों को रख कर देखते हैं तो भारी विरोधाभास नज़र आता है . चुनाव अभियान के समय उन्होंने परिवर्तन का नारा दिया था और उसी नारे के साथ सत्ता में आयी हैं .लेकिन काम उनका ऐसा है कि वे पिछले एक सौ वर्षों में जीते गए महिलाओं के अधिकारों को खत्म करके बंगाल को १८६० की स्थिति में वापस ले जाना चाहती हैं. उनको भी मालूम है कि जब सौ साल पहले के धर्म और समाज के ठेकेदारों को प्रगति की लालसा रखने वाले बंगाली समाज ने हाशिए पर ला दिया था तो मामूली राजनीतिक लोकप्रियता के सहारे
सत्ता में आयी किसी राजनेता को तो बंगाल की संस्कृति की ताक़त किनारे लगाकर ही अपनी अस्मिता की रक्षा करेगी.
वाम मोर्चे को सत्ता से बेदखल करके ममता बनर्जी के हाथ सत्ता आयी है . वामपंथी पार्टियों की राजनीति में महिलाओं का बहुत सम्मान होता है. लगता है कि ममता बनर्जी को लगा कि महिलाओं को अपमानित करके वे अपनी पार्टी के लुम्पन तत्वों को खुश कर लेगीं. शायद इसी लिए वे महिला होते हुए भी महिला विरोधी राजनीति की अलम्बरदार बनी हुयी हैं . ममता बनर्जी ने शुरू में ही बलात्कार पीड़ित महिलाओं के बारे में जिस तरह के गैर ज़िम्मेदार बयान दिए हैं उस से साफ़ लगता है कि उन्होंने अपनी पार्टी के अपराधियों को यह संकेत दे दिया है कि महिलाओं के खिलाफ किसी तरह के अपराध को हल्का कर के देखा जाएगा. बलात्कार के अभियुक्तों को आजकल बंगाल में ज़मानत बहुत ही आसानी से मिल जाती है . हालांकि यह ऐसा अपराध है जिसके बारे में आम तौर पर माना जाता है कि यह गैर ज़मानती अपराध है . पिछले एक वर्ष से बंगाल में महिलायें हर तरह के आतंक का शिकार हो रही हैं . लगता है कि लुम्पन तत्वों को महिलाओं के खिलाफ अपराध करने से जो ३३ साल तक रोका गया था उसकी भरपाई अपराधी लोग एक साल में ही पूरा कर लेना चाहते हैं .परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में आयी बंगाल की मुख्यमंत्री पिछले एक सौ वर्षों की बंगाल की महिलाओं के सम्मान की धरोहर को ही तबाह करने पर आमादा हैं और उसके लिए बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की रिपोर्ट करने वाले मीडिया को भी भला बुरा कह रही हैं .