शेष नारायण सिंह
( मूल लेख daily news activist में छपा है )
अपने राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाने की जल्दी में छत्तीस गढ़ के मुख्य मंत्री ने पुलिस का इस्तेमाल करने की ऐसी योजना बना दी की दिल्ली में केंद्र सरकार तो नाराज़ है ही, मुख्य मंत्री की अपनी पार्टी के नेता भी उनसे बहुत मायूस हैं. सभी फासिस्ट पार्टियों की तरह आर एस एस का भी नियम है की राजनीतिक विरोधी को विचार धारा के स्तर पर तो हराया नहीं जा सकता , इसलिए आतंक और ज़बरदस्ती का तरीका अख्तियार किया जाना चाहिए लेकिन जब तक सत्ता पर पूरी तरह क़ब्ज़ा न हो, फासिस्ट नियमावली में ऐसा करना मना है . अभी आठ साल पहले आर एस एस के एक अन्य नेता ने गुजरात में जिस तरह सत्ता का इस्तेमाल किया उसे आज तक अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं . शायद इससे लिए छत्तीएस गढ़ पुलिस के नए कारनामे से उनके दिल्ली वाले नेता भी नाराज़ हो गए हैं ..
छत्तीसगढ़ पुलिस का ताज़ा कारनामा ऐसा है जो एक बार फिर साबित कर देता है कि अभी पुलिस को सभ्य देश की पुलिस की तरह व्यवहार करने में बहुत टाइम लगेगा .पिछले कुछ महीनों में दुनिया को साफ़ पता लग चुका है कि छत्तीसगढ़ की सरकार और पुलिस माओवादी आतंकवाद का मुकाबला करने में नाकाम रहे हैं .. अब एक नया शिगूफा छोड़कर दांतेवाडा के पुलिस प्रमुख ने न केवल अपने को गैर ज़िम्मेदार साबित कर दिया है बल्कि अपनी सरकार के हल्केपन को भी रेखांकित कर दिया है .पता नहीं किस पिनक में दांतेवाडा के पुलिस कप्तान ने लिखित बयान दे दिया कि लिंगाराम कोदोपी नाम का एक आदमी किसी कांग्रेसी नेता के घर ६ जुलाई को हुए हमले के लिए ज़िम्मेदार है. यह भी बताया गया कि यह पूरे छत्तीसगढ़ राज्य के माओवादी संगठनों का मुखिया है .पुलिस ने यह भी बताया कि यह लिंगाराम बहुत ही खतरनाक आदमी है क्योंकि यह दिल्ली में रहता है और मेधा पाटकर,अरुंधती रॉय और प्रोफ़ेसर नलिनी सुन्दर जैसे लोगों से मिलता है. .उसके बाद लाल बुझक्कड़, शेखचिल्ली आदि पारंपरिक सर्वज्ञों की परंपरा का निर्वाह करते हुए जिला पुलिस प्रमुख ने फरमाया कि यह लिंगाराम कोई मामूली माओवादी नहीं है . वास्तव में माओवादी नेता, आज़ाद की मौत के बाद यही लिंगाराम उनका काम संभालने वाला है .पुलिस की रिलीज़ में और भी बहुत सारी दिलचस्प जानकारी है . लिखा है कि यह लिंगारम पिछ्ले दिनों दिल्ली और गुजरात भी गया था और वहां उसने आतंकवाद की ट्रेनिंग ली थी. अब कोईं इन पुलिस बाबू से पूछे कि भाई ,दिल्ली और गुजरात में कौन सी यूनिवर्सिटी खुली हैं जहां आतंकवाद वाला कोर्स पढ़ाया जाता है . या यही बता दें कि अगर इतना बड़ा माओवादी नेता इस तरह घूम रहा है और दिल्ली में लोगों से मिल जुल रहा है, प्रेस कान्फरेन्स कर रहा है तो उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा है . जहां तक दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकनामिक्स की प्रोफ़ेसर नलिनी सुन्दर की बात है , उन्होंने तो साफ़ कह दिया है कि वे छत्तीसगढ़ सरकार पर मानहानि का केस करेगीं. जिस लिंगाराम को पुलिस ने बहुत ही खूंखार माओवादी बताया वह दिल्ली में रविवार को प्रेस के सामने हाज़िर हुआ.उसके साथ सुप्रीम कोर्ट के वकील,प्रशांत भूषण और मानवाधिकार नेता, स्वामी अग्निवेश भी थे . उसने बताया कि उसे छत्तीस गढ़ पुलिस ने पहले भी पकड़ लिया था और जब उसके भाई ने हाई कोर्ट में उसके लिये हेबियास कार्पस का मुक़दमा किया तब जाकर पुलिस ने उसे छोड़ा था. उसके बाद वह दिल्ली चला आया और यहीं पत्रकारिता का डिप्लोमा लेने के लिए उसने एक निजी संस्थान में नाम लिखा लिया. अजीब बात है कि अपने मातहत जिला पुलिस प्रमुख की इतनी बड़ी तफ्तीश के बाद छतीसगढ़ पुलिस के महानिदेशक ,विश्वराजन ने कहा कि पुलिस की एक टीम दिल्ली भेज दी गयी है जो लिंगारम से पूछ ताछ करेगी. और अगर ज़रूरी हुआ तो गिरफ्तार करने की बात शुरू की जायेगी यानी पुलिस महानिदेशक को खुद भरोसा नहीं है कि उनके पुलिस अधीक्षक ने जो बातें कही हैं उन पर कार्रवाई की जा सकती है
सिविल सोसाइटी ने छत्तीसगढ़ पुलिस की इस फासिस्ट तानाशाही के खिलाफ सख्ती बरतने की बात की है. अब पता चला है कि सलवा जुडूम और पुलिस लिंगारम के पीछे पड़ी हुई थी कि वह पुलिस का मुखबिर बन जाए लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं था . उसको सबक सिखाने की गरज से दंतेवाड़ा के पुलिस कप्तान ने उसके खिलाफ साज़िश करके यह कार्रवाई की.अरुंधती रॉय ने एक बयान में कहा है कि जिस लिंगारम को मैं जानती हूँ, वह दिल्ली फोरम में रहता है उसने कई मंचों पर सलवा जुडूम के बारे में बात की है और यह बताया है कि किस तरह से सरकारी मदद से चलने वाले संगठन सलवा जुडूम ने उसका अपहरण किया .. अगर पुलिस यह कह रही है कि वह माओवादी नेता आज़ाद की जगह लेने वाला था तो पुलिस सपने देख रही है. प्रोफ़ेसर नलिनी सुन्दर का कहना है कि दांतेवाडा पुलिस की प्रताड़ना से बच कर जब लिंगारम दिल्ली आया तो मैं उस से मिली थी.यह कहना बिलकुल गलत है कि वह अवधेश गौतम पर हुए हमले का मास्टर माइंड है.उस हमले से लिंगाराम और हम लोगों को जोड़ कर दांतेवाडा पुलिस ने ऐसा काम किया है जो कोई असंतुलित दिमाग वाला ही कर सकता है . प्रोफ़ेसर नलिनी सुन्दर ने सलवा जुडूम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक केस दायर कर रखा है . उनका आरोप है कि इस तरह की बातें करके पुलिस मामले पर असर डालने की कोशिश कर रही है.. वरिष्ठ पत्रकार और हिन्दू आखबार के ब्यूरो चीफ सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि पुलिस ने अब तो हद कर दी. सिद्धार्थ और नलिनी पति-पत्नी हैं .
इस मामले में छत्तीस गढ़ पुलिस का फासिस्ट चेहरा एक बार फिर सामने आ गया है .छत्तीस गढ़ में जिस पार्टी का राज है वह जनता के प्रति अपनी कोई जवाबदेही नहीं मानती. बी जे पी के बड़े नेताओं ने बार बार कहा है कि वे आर एस एस का एक संगठन हैं और पार्टी उसी के प्रति ज़िम्मेदार हैं . दुनिया जानती है कि आर एस एस शुद्ध रूप से फासिस्ट संगठन है . उनका कोई लिखित संविधान नहीं है , संगठन के मुखिया की मर्ज़ी ही वहां सारे फैसलों की बुनियाद में होती है . इसी संगठन के आशीर्वाद से उनकी सरकार ने छत्तीसगढ़ में सरकारी आतंक फैलाने के लिए सलवा जुडूम का गठन किया है . छत्तीसगढ़ में उन लोगों को भी माओवादी कह कर पकड़ लिया जा रहा है जिनके घरों में कोई भी मार्क्सवादी साहित्य मिल जाता है . अब आर एस एस में तो विरोधी की विचारधारा को पढने की भी मनाही रहती है लकिन नार्मल तरीके से शिक्षा हासिल करने वालों के घरों में हर तरह का साहित्य मिल जाएगा . अगर छत्तीसगढ़ या गुजरात पुलिस की चले तो ऐसे हर आदमी को नक्सली बता कर पकड़ लिया जाएगा जिसके घर में मार्क्सवादी साहित्य मिल जाए. ज़ाहिर है कि इस उम्मीद में कि कभी पूरे देश पर आर एस एस का राज हो जाएगा , नागपुर वाले कोशिश कर रहे हैं कि पहले से ही फासिस्ट तरीकों का अभ्यास चलता रहे. केंद्र सरकार सहित सभी सभ्य समाज के लोगों को चाहिए कि छत्तीसगढ़ के बहाने तानाशाही का काम शुरू करने की आर एस एस की कोशिश को फ़ौरन रोकें.
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Thursday, July 15, 2010
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