शेष नारायण सिंह
अमरीका या इराक कभी नहीं चाहेगा कि उत्तरी इराक का इलाका एक अलग देश बन जाय लेकिन आज जो हालात हैं उन पर अगर एक नज़र डालें तो कुछ वर्षों के अंदर ही एक स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की संभावना नज़र आने लगती है . इराक के उत्तरी हिस्से में तीन राज्य ऐसे हैं जिनको कुर्द राज्य कहा जाता है . इन्हीं तीन राज्यों की जो प्रांतीय सरकार है वह के आर जी यानी कुर्दिश रीजनल गवर्नमेंट के नाम से जानी जाती है . इस मुकाम तक पंहुचने में इराकी कुर्दों को बहुत धीरज और बहुत परेशानियों से गुजरना पड़ा है .१९८० के दशक में जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कुर्दों को दबाना शुरू किया तो एक दौर तो ऐसा भी आया कि साफ़ लगने लगा था कि कुर्द कौम के सामने अस्तित्व का संकट आने वाला था लेकिन जिस अमरीकी हमले ने सद्दाम हुसैन और उनके साथियों को तबाह कर दिया उसी हमले के बाद कुर्दों को आत्मनिर्भर बनने का बहुत बड़ा मौक़ा मिला. बताते हैं कि जब सद्दाम हुसैन ने कुर्दों को औकात बताने का अभियान शुरू किया था तो एक लाख कुर्दों की जान गयी थी ,चार हज़ार गाँव तबाह हो गए थे और दस लाख लोगों को घरबार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था . आज सीरिया से भाग कर आये हुए मोहजिरों को देख कर इराकी कुर्द इलाकों में सहानुभूति के लहर दौड जाती है क्योंकि अभी बीस साल से कम वक़्त हुआ जब अपनी ही ज़मीन पर उत्तरी इराक के यह कुर्द शरणार्थी के रूप में रहने के लिए अभिशप्त थे . हालांकि उस दौर में भी कुर्द स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं हुआ था.कुर्दों की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाला जंगजू संगठन पेश्मरगा पूरी तरह से भूमिगत तरीके से अपणा काम करता रहा था. यह कुर्दों की अस्मिता की रक्षा करने वाला संगठन है और १९२० से ही सक्रिय रूप से कुर्द सम्मान के लिए लड़ाई लड़ता रहा है .जब इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने कुर्दों के खिलाफ दमन का सिलसिला शुरू किया तो सबसे बड़ा झटका पेश्मर्गा को ही लगा था लेकिन १९९१ में जब संयुक्त राष्ट्र ने अमरीकी दबाव के चलते ईराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो कुर्दों को थोड़ा राहत मिली थी. लेकिन चारों तरफ से ज़मीन से घिरा इलाका परेशानियों से घिरा ही रहा .
लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है .कुर्दिस्तान के कुर्द राज्यों में अब दक्षिणी इराक से ज़्यादा शान्ति है . ताज़ा खोज से पता लगा है कि इस इलाके में मुख्य इराक की तुलना में तेल के भण्डार भी ज़्यादा हैं . कुल पचास लाख की कुर्द आबादी है लिहाजा इलाके पर आबादी का दबाव भी नहीं है . शायद इसीलिये सीरिया के संघर्ष से शान्ति की तलाश में भागे हुए करीब डेढ़ लाख सीरियाई कुर्दों को यहाँ इस तरह से बसाया जा रहा है जैसे वे यहाँ के कुर्दों के बिछुडे हुए रिश्तेदार हों . अनुमान है कि इस साल के अंत तक सीरिया से भागकर आने वाले कुर्दों की संख्या साढ़े तीन लाख तक पंहुच सकती है लेकिन कुर्दिस्तान में शरणार्थियों के बोझ को कहीं भी महसूस नहीं किया जा रहा है .पूर्वी इलाकों से भी कुर्द जाति के लोग यहाँ रोज़गार की तलाश में आ रहे है . क्योंकि पूर्व से आने वाले कुर्द इरानी नागरिक हैं और इरान में भी राजनीतिक उत्पीडन की कमी नहीं है और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से लागू की गयी पाबंदियों के चलते हालात बहुत ही खराब हैं . इरानी कुर्दों का भी यहाँ स्वागत किया जा रहा है . उत्तरी इराक के कुर्द इलाके में आजकल काम की कमी नहीं है .उत्तर के पड़ोसी देश तुर्की के उद्योगपति बहुत बड़े पैमाने पर इराक में काम कर रहे हैं और उनका मुख्य ध्यान उत्तरी इराक के कुर्द इलाके में ही केंद्रित है .
ऐसे माहौल में कुर्दिस्तान रीज़नल गवर्नमेंट की दबी हुई इच्छा अक्सर सामने आ जाती है और वे अपनी आजादी को मुकम्मल रूप दे देने के लिए तड़प उठते हैं . उनकी इच्छा है कि कुर्द राज्यों के रूप में जिन तीन राज्यों को स्वीकार कर लिया गया है उनको इराक की अधीनता से छुट्टी मिले लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि किरकुक सहित उसके आसपास के वे इलाके भी उनके हिस्से में आ जाएँ जहां कच्चे तेल के भारी भण्डार बताए जाते हैं .कुर्दिश रीज़नल गवर्नमेंट में शामिल दोनों ही शासक और विपक्षी पार्टियां आपस में तो लड़ती रही हैं लेकिन जब स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की बात आती है तो दोनों एक हो जाती हैं .२००३ के अमरीकी हमले के बाद से कुर्दों ने अपने उन गाँवों को फिर से बसा लिया है जो इराकी दमन के चलते तबाह कर दिए गए थे .आजकल हालात ठीक हैं . मुख्य इराक में बिजली की भारी कटौती रहती है लेकिन कुर्दिस्तान में बिजली की कोई कमी नहीं है .
कुर्दिस्तान के नेता लोग अभी खुले आम आज़ादी की बात नहीं करते लेकिन माहौल में चारों तरफ आज़ादी ही आज़ादी है . इराक के बहुसंख्यक शिया लोग भी अब चाहते हैं कि रोज रोज की झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि कुर्द आबादी अलग ही हो जाए क्योंकि जातीय विभिन्नता अब पूरी तरह से राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर चुकी है .वैसे भी दक्षिणी इराक पर लगातार अल कायदा के हमले होते रहते हैं और पड़ोसी देश सीरिया की शिया हुकूमत की स्थिरता पर स्थायी रूप से सवालिया निशान लग चुका है . इराकी हुक्मरान भी दबी जुबान से कहते पाए जाते हैं कि कुर्दो के बढते राष्ट्रवाद से बचने का तरीका यह है कि उनको काबू में करने की बात भूलकर उनको अलग होने दिया जाए और जो भी बचा हुआ इलाका है ,उसमें शान्ति के साथ हुकूमत की जाय लेकिन इराक के प्रधानमंत्री अभी भी कुर्दों को उसी तरह का सबक सिखाने के लिए व्याकुल नज़र आ रहे हैं जिस तरह का सबक कभी तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने सिखाया था.
इराक के मौजूदा प्रधानमंत्री नूरी अल मलीकी कुर्दों के हमेशा ही दमन की नीति का पालन करने में विश्वास करते हैं . अभी दिसंबर में उन्होंने किरकुक में सेना भेज दिया था .कुर्द क्षेत्रीय सरकार के अधिकारियों और नेताओं में घबडाहट फ़ैल गयी थी और वहाँ भी उनके लड़ाकू संगठन पेश्मर्गा को चौकन्ना कर दिया गया था. बात बिगड़ने से बच गयी लेकिन तल्खी बढ़ गयी क्योंकि झगडा खत्म नहीं हुआ बस टल गया .कुर्दों को अपमानित करने के उद्देश्य से ही मार्च में जब बजट पेश किया गया तो भी कुर्दों के साथ उसी तरह की नाइंसाफी हुई जैसाकि किसी विदेशी और कमज़ोर ताक़त के साथ किया जाता है . इराक की संसद ने ११८ अरब डालर का केंद्रीय बजट पास किया तो उसमें से केवल साढ़े छः करोड डालर का प्रावधान विदेशी तेल कंपनियों को उस कर्ज को अदा करने के लिए कुर्द क्षेत्रीय सरकार को दिया गया . कुर्द नेताओं में भारी नाराज़गी व्याप्त हो गयी क्योंकि उनका कहना है कि उनके ऊपर विदेशी तेल कंपनियों का साढ़े तीन अरब डालर का क़र्ज़ है और बजट में उसके दो प्रतिशत का ही इंतज़ाम किया गया है. इस फैसले का ही नतीजा है कि कुर्द संसद सदस्यों और मंत्रियों ने इराक की केंद्रीय सरकार से इस्तीफा दे दिया . अब इराक की केंद्रीय सरकार में कोई भी कुर्द प्रतिनिधित्व नहीं है
यह सारा घटनाक्रम स्वतन्त्र कुर्दिस्तान की तरफ ही जाता है . वैसे भी लगता है कि नेताओं खासकर इराकी ,अमरीकी और इरानी नेताओं की मर्जी के खिलाफ वक़्त एक अलग कुर्दिस्तान की बात कह रहा है .कुर्द क्षेत्रों में रहने वाले यह तर्क देते हैं कि इराक के संविधान में यह व्यवस्था है कि आटोनामस इलाके अपने तेल की संपदा का केंद्रीय हुकूमत से अपने को अलग करके विकास कर सकते हैं इसी नियम के तहत बहुत सारी विदेशी कंपनियों ने कुर्दिस्तान में भारी तेल सम्पदा की तलाश के बाद कुर्दिश रीज़नल गवर्नमेंट के साथ उत्पादन शेयर करने का समझौता किया और अब वहाँ बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियां मौजूद हैं और बहुत बड़ा विदेशी धन लगा हुआ है . वे कभी नहीं चाहेगें कि कुर्द क्षेत्र में किसी तरह की अशान्ति हो . अब कुर्द क्षेत्रीय सरकार ऐलानियाँ इराक की केंद्रीय सरकार को धमकाती रहती है और इराक वाले उस पाइपलाइन को बंद कर देते हैं जिसके ज़रिए कुर्दिस्तान का कच्चा तेल तुर्की जाता है. इस से तुर्की को भी परेशानी होती है .जिसके कारण यह सारा माल ट्रक से जाता है . इसका एक नतीजा यह हो रहा है कि तुर्की और कुर्द राज्य में दोस्ती बहुत प्रगाढ़ हो रही है और अब इराक से स्वतंत्र रूप से एक पाइपलाइन पर काम चल रहा है और उम्मीद है कि कि सितम्बर तक यह पाइपलाइन तैयार हो जायेगी .
इन सारी बातों से इराकी सरकार की चिंता बहुत बढ़ चुकी है . प्रधानमंत्री मलीकी को चिंता है कि अगर कुर्दिस्तान तेल की ताक़त के बल पर उनको धमका सकता है तो अन्य जातियों के प्रभाव वाले क्षेत्र भी उसकी नकल करने लगेगें . कुर्दिस्तान की घटनाओं की अमरीकी मीडिया में विस्तार से चर्चा होने लगी है. प्रतिष्ठित इक्नामिस्ट ने भी इस बात को गंभीरता से उठा दिया है .बताया गया है कि अमरीका और इरान भी इस बात से चिंतित हैं क्योंकि अमरीका इस क्षेत्र में किसी तरह का झगडा नहीं चाहता और इरान को डर है कि अगर अलग कुर्दिस्तान देश बन गया तो इराक की कुर्द आबादी को काबू में कर पाना बहुत मुश्किल होगा . बहरहाल जो भी होगा भविष्य में होगा लेकिन इस इलाके की ताज़ा राजनीतिक हालात ऐसे हैं जिसके बाद एक स्वतन्त्र सार्वभौम कुर्द देश की स्थापना की संभावना साफ़ नज़र आने लगी है .