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Friday, January 29, 2010

मोहन सिंह, बृजभूषण तिवारी और रामगोपाल यादव सपा के नये आलाकमान

शेष नारायण सिंह

मुलायम सिंह यादव ने कहा कि सपा जनेश्वर मिश्र के रास्ते पर चलेगी.जनेश्वर मिश्र अमर सिंह के समाजवाद को "फिल्मी समाजवाद" कहकर खारिज कर दिया करते थे फिर भी उनके जीते जी समाजवादी पार्टी में वही फिल्मी समाजवाद हावी रहा. लेकिन नियति देखिए कि उस फिल्मी समाजवाद के समाप्ति का ऐलान उन्हीं मुलायम सिंह ने उस सभा से की जो जनेश्वर मिश्र की याद में आयोजित शोकसभा थी.

निश्वित रूप से भौतिक शरीरधारी जनेश्वर मिश्र जिस अच्छी खबर को नहीं सुन पाये उसे उनका पारलौकिक शरीर महसूस कर रहा होगा. सपा से फिल्मी समाजवाद के सफाये का ऐलान खुद खांटी लंगोटधारी मुलायम सिंह यादव ने किया और कहा कि जनेश्वर मिश्र की हर बात मानेंगे और उनके बताए हुए रास्ते पर ही समाजवादी पार्टी के आगे के कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

इस घोषणा को बल देने के लिए मुलायम सिंह ने दूसरी बात भी कही. बुधवार को दिल्ली में सपा के सिपहसलार रामगोपाल यादव ने अमर सिंह की के बारे में बिना कहे जो कुछ कहा उसकी पुष्टि अगले दिन गुरुवार को दिल्ली में ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कर दी. गुरुवार को मुलायम सिंह यादव ने साफ किया कि अब सपा उसी शक्तिशाली त्रिगुट के हवाले है जिसका ऐलान रामगोपाल यादव ने किया था. इस तरह से समाजवादी पार्टी में अमर सिंह युग की समाप्ति पर औपचारिक मुहर लग गई। अब मोहन सिंह, बृजभूषण तिवारी और रामगोपाल यादव समाजवादी पार्टी के नये आलाकमान हैं.

स्व. जनेश्वर मिश्र की शोकसभा का आयोजन समाजवादी पार्टी की ओर से किया गया था। सभा का संचालन कर रहे पार्टी के नव नियुक्त प्रवक्ता मोहन सिंह ने सबसे पहले मुलायम सिंह यादव को भाषण करने के लिए आमंत्रित किया। रुंधे गले से मुलायम सिंह यादव ने जनेश्वर मिश्र को याद किया और कहा कि 1965 में अपनी पहली मुलाकात से अब तक उन्होंने हमेशा जनेश्वर मिश्र को नेता माना। उन्होंने कहा कि स्व. मिश्र की सलाह पर ही 19 जनवरी के संघर्ष की योजना बनाई गई थी उनके आदेश पर ही हर जि़ले में एक वरिष्ठ नेता ने संघर्ष की अगुवाई की। वे खुद तो इलाहाबाद में रहे लेकिन मुलायम सिंह को लखनऊ में नेतृत्व करने को कहा। मुलायम सिंह ने कहा कि जनेश्वर मिश्र कहते थे कि किसान, छात्र, गरीब, बेरोज़गार, नौजवान, राज्य कर्मचारी सब निराश हैं, सब गुस्से में हैं। इन सबको संघर्ष करने की प्रेरणा देना और उनका नेतृत्व करना समाजवादी पार्टी का कर्तव्य है। आज वे नहीं हैं लेकिन समाजवादी पार्टी इस बात का संकल्प लेती है उनके बताए रास्ते पर ही चलेंगे। इसके लिए मोहन सिंह, बृज भूषण तिवारी और राम गोपाल यादव को निर्देश दे दिया गया है कि वे जल्द से जल्द रणनीति बनाए और योजना को कार्यरूप देने की कोशिश शुरू कर दें। इन तीनों को सबसे महत्वपूर्ण नेता बताकर मुलायम सिंह ने सभी अटकलबाजियों और चर्चाओं पर विराम लगा दिया।

समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर काम करने की भी मुलायम सिंह यादव ने घोषणा की। उहोंने कहा कि छोटे मोटे मतभेद भुलाकर आम आदमी की भलाई और राष्ट्र निर्माण के काम में वे अन्य पार्टियों को भी साथ लेकर चलना चाहेंगे और इस देश से असमानता को हर हाल में खत्म कर देंगे। जनेश्वर मिश्र का जाना इस नाजुक मोड़ पर एक बड़ा झटका है लेकिन हम इससे बच निकलेंगे।

लगता है कि विपक्षी पार्टियों में अंदर ही अंदर कहीं एकता की बात चल रही है क्योंकि शोकसभा मं आए माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, सीताराम येचुरी को मुलायम सिंह यादव ने बहुत महत्व दिया। सीताराम येचुरी ने भी कहा कि जनेश्वर मिश्र ने जो राजनीतिक नैतिकता के मानदंड स्थापित किए हैं, उनका बहुत महत्व है। आज चौतरफा नैतिक मूल्यों की गिरावट के माहौल में उनके जीवन का उदाहरण बहुत उपयोगी हो सकता है। समान विचारधारा की राजनीतिक पार्टियों की एकता के सवाल पर श्री येचुरी ने कहा कि समाजवादी वामपंथी और कम्युनिस्ट वामपंथी पार्टियों को एकजुट होकर राजनीतिक कार्य करना चाहिए जिससे बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना की जा सके। आज भारत दो वर्गों में बंट गया है - चमकता भारत और तड़पता भारत। अगर सभी वामपंथी एक हो जायं तो तड़पता भारत की तकलीफें कम की जा सकती हैं। शोकसभा में शरद यादव, सी.पी.आई की अमरजीत कौर, अबनी राय, सतपाल मलिक, मधुकर दिघे, प्रो. आनंद कुमार, मस्तराम कपूर आदि मौजूद थे। शोकसभा की अध्यक्षता वयोवृद्घ समाजवादी, आजाद हिंद फौज के पूर्व कैप्टन अब्बास अली ने किया। मोहन सिंह ने कहा कि कैप्टन साहब समाजवादी आंदोलन के पुरोधा और स्व. डा. राम मनोहर लोहिया के मित्र रहे हैं।

Saturday, January 23, 2010

अलविदा, छोटे लोहिया

शेष नारायण सिंह

76 साल की उम्र में जनेश्वर मिश्र ने इस दुनिया को अलविदा कहा। आज सुबह इलाहाबाद में उन्होंने अंतिम सांस ली। सुबह अचानक तबीयत बिगडऩे पर उन्हें लखनऊ के पी.जी.आई. ले जाने की सलाह दी गई क्योंकि उन के ऊपर ब्रेन हैमरेज का अटैक हुआ था। शहर से बाहर भी नहीं निकल पाए थे कि आखरी वक्त आ गया

और समाजवादी राजनीति के शलाका पुरूष ने हमेशा के लिए कूच कर दिया है और इस तरह से उसी इलाहाबाद में उन्होंने अपने आपको समाहित कर दिया जहां की क्षिति, जल, पावक और वायु उनके रोम-रोम में समाया हुआ था।

जनेश्वर मिश्र की मृत्यु समाजवादी आंदोलन की उस परम्परा का पटाक्षेप है जिसमें गप के जरिये सभी विषयों पर चर्चा होती थी। डॉ. लोहिया भारतीय राजनीति की इस पंरम्परा के आदि पुरूष थे। दिल्ली में लोहिया के बाद मधु लिमये ने उस पंरम्परा को जारी रखा था। मधु जी के बाद जनेश्वर मिश्र के यहां पूरे देश से आए समाजवादियों का मिलन स्थल बना था। अब उजड़ गया। जनेश्वर मिश्र समाजवादियों की उस पंरम्परा के प्रतिनिधि थे फकीरी जिसका स्थाई भाव है। इलाहाबाद में बी.ए. की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया लेकिन ऐसी पढ़ाई शुरू की कि कभी छुट्टी ही नहीं मिली और आज पांच दशक बाद अपना नाम ही कटवा कर चल पड़े।

इंटरमीडिएट के छात्र के रूप में ही जनेश्वर मिश्र ने यह सबूत दे दिया था कि वे संघर्ष के लिए ही पैदा हुए हैं। बलिया में जब उन्हें पता लगा कि उपस्थिति कम होने की वजह से परीक्षा नहीं दे सकते तो इलाहाबाद आकर बोर्ड के अधिकारियों से मिले। जब यहां भी काम नहीं बना तो लखनऊ जाकर शिक्षामंत्री संपूर्णानंद से मिलकर उत्तर प्रदेश के उन सभी छात्रों को इंटर परीक्षा में शामिल होने की अनुमति का आदेश पारित करवाया जिनकी उपस्थिति कम थी। पचास के दशक से ही इलाहाबाद और बाकी उत्तर प्रदेश के सभी समाजवादी आंदोलनों में जनेश्वर मिश्र के हस्ताक्षर साफ नजर आते थे। समाजवादी नेताओं की एक बड़ी फेहरीस्त है जो जनेश्वर मिश्र के कामरेड रहे चुके है। मुलायम सिंह यादव, बृज भूषण तिवारी, मोहन सिंह, जनार्दन द्विवेदी, सत्यदेव द्विवेदी आदि सभी उनके साथी थे। गैर कांग्रेसवाद की डॉ. लोहिया की राजनीतिक सोच को अमली जामा पहनाने की गरज से 1963 में जो चार उपचुनाव हुए थे उसमें फर्रूखाबाद वाला चुनाव डॉ. लोहिया ने खुद लड़ा था। पूरे देश के समाजवादी वहां जमा हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश के नौजवानों की अगुवाई जनेश्वर ने की थी।

जब उन्होंने जवाहर लाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित को फूलपुर संसदीय क्षेत्र में चुनौती दी तो पूरी दुनिया के प्रगतिशील लोगों की नजर उस चुनाव पर थी। संयुक्त राष्ट्र के राजदूत बनने के चक्कर में विजय लक्ष्मी पंडित ने इस्तीफ दिया तो कांग्रेस ने केशव देव मालवीय को फूलपुर उपचुनाव के 1969 में उम्मीदवार बनाया। जनेश्वर मिश्र ने जब उनको पराजित किया तो पूरी दुनिया के प्रगतिशीलों ने जश्न मनाया था। यह समय लोकसभा में बहसों को भी स्वर्ण युग है। हरि विष्णू कामथ मधुलिमये, ज्योतिर्मय बसु, अटल बिहारी वाजपेयी, जनेश्वर मिश्र सभी विपक्षी बेंचों पर बैठते थे और इंदिरा गांधी की सरकार को सही विपक्ष मिलता था।

इमरजेंसी में जेल यात्रा काटने के बाद जब वे 1977 में फूलपुर से चुनकर आए तो जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने। वैसे मंत्री तो वे 1989, 1990 और 1996 में भी बनाए गए लेकिन मंत्री पद का उन पर कोई असर नहीं पड़ता था। गंभीर से गंभीर राजनतिक विषयों पर बातचीत के जरिए विमर्श करना उनकी फितरत थी। समाजवाद में भी उन्होंने पाखंड का हमेशा विरोध किया और पूंजीवादी समाजवाद को कभी बर्दाश्त नही किया। जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें अपनी पार्टी के एक नेता की तल्ख बातों का भी सामना करना पड़ा लेकिन इस रिर्पोटर को उन्होंने जो बात ऑफ दि रिकार्ड बताई थी। उससे साफ है कि वे बिना मतलब की टिप्पणी की परवाह नहीं करते थे। बृज भूषण तिवारी, मुलायम सिंह यादव और राम गोपाल यादव के खिलाफ वे कोई भी उल्टी सीधी बात बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। आखरी कुछ वर्षो मे मिठाई खाना मना था लेकिन साथ बैठे लोगों को जरूर खिलवाते थे और थोड़ा सा खुद भी चख लेते थे। उनकी महानता में बाल सुलभ सादगी थी जिसकी वजह से बड़ा से बड़ा और मामूली से मामूली आदमी उन्हें अपना मानता था।