शेष नारायण सिंह
( आलोक तोमर की याद २१ मार्च २०११ )
आलोक तोमर की अंत्येष्टि से लौटा हूँ.मन बहुत ही खिन्न है .आलोक की कलम की ताक़त का लोहा मानने वालों का नाम दिमाग में घूम रहा है . अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सबसे पहले मन में आया . अटल जी आलोक के फैन थे. जब मुझे पता चला कि आलोक के लेखन को अटल बिहारी वाजपेयी बहुत पसंद करते हैं तो बहुत उत्सुक हुआ . आलोक तोमर को फिर से पढने की इच्छा हुई . पढ़ा भी . १९६७ में मैं भी अटल बिहारी वाजपेयी का प्रशंसक था . सही बात यह है कि हाई स्कूल के छात्र के रूप में मैंने उनको भाषण करते देखा था . और उनकी शैली को नक़ल करने की कोशिश की थी . बाद में उसी शैली की कृपा से अपने विश्वविद्यालय में एक वक्ता के रूप में नाम मिला. वजीफा मिला और पढाई हो सकी. ज़ाहिर है जिस को भी अटल बिहारी वाजपेयी पसंद कर रहे होगें,उसके बारे में मेरी राय निश्चित रूप से पाजिटिव होगी. उसके बाद से मैंने आलोक तोमर को नियमित रूप से पढ़ना शुरू कर दिया . बाद में पता लगा कि अमिताभ बच्चन ने ज़िंदगी भर में जो सबसे अच्छे गैर फ़िल्मी डायलाग बोले हैं , उनको भी आलोक तोमर ने लिखा था . अमिताभ के बेस्ट फ़िल्मी डायलाग तो खैर जावेद अख्तर ने लिखे थे , ज़ंजीर में भी और शोले में भी . प्रभाष जोशी ने निजी बातचीत में बार बार आलोक तोमर की तारीफ की थी .लिखा भी . प्रभाष जी की मृत्यु के बाद जब कुछ लोगों ने उनकी चावी के भंजन का अभियान चलाया तो आलोक ने अकेले सबसे लोहा लिया .प्रभाष जी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने वालों को बाकायदा धमकाया लेकिन मैदान नहीं छोड़ा .
बहुत सारी यादें हैं . लेकिन आज जो कुछ देख कर आया हूँ ,उसके बाद हिम्मत हार गया हूँ .. लोदी रोड की श्मसान भूमि में आलोक तोमर के पिता जी को देख कर बहुत तकलीफ हुई . अपना जवान बेटा अगर इंसान के सामने ही गुज़र जाए तो उस से बड़ा कष्ट हो ही नहीं सकता . कुंवर सिंह महाकाव्य की वह पंक्ति याद आ गयी जब बेटे के शहीद होने का वर्णन किया गया है
.
. पूत जुझाइ के देस बदे, बुढ़िया-बुढ़वा जहँ बैठल होइहें . जेकर कान्ह कुंआर जुझे उजरी मथुरा अब कौन बसईहें
आज जब मैंने आलोक की बच्ची को उनका अंतिम संस्कार करते देखा तो सिहर गया . जब वह बच्ची घड़े में जल लेकर आलोक के पार्थिव शरीर के चारों ओर परिक्रमा कर रही थी तो लगा कि पक्षाघात हो गया है मुझे. अंतिम क्षणों के अनुष्टान के दौरान जब उनकी पत्नी ने कहा कि आलोक उठ जाओ , तो लगा कि अगर जीवित होते तो अपनी मित्र और पत्नी की बात को ज़रूर पूरा करते. आलोक के बारे में सभी जानते हैं कि वे जिसके भी मित्र थे ,पूरी तरह उसके साथ रहते थे. मुंबई की फ़िल्मी दुनिया के कलाकार ,ओम पुरी आलोक के मित्र थे . जब अपने किसी आचरण की वजह से ओम जी की बहुत बदनामी हुई ,तो भी आलोक उनके साथ रहे , दिलासा दिया और कोशिश की कि उनका कम से कम नुकसान हो .
आलोक के कैंसर के बारे में सबसे पहले मुझे यशवंत सिंह ने बताया था . यशवंत सिंह से आलोक का परिचय ताज़ा था,पुराना नहीं था ,लेकिन वे यशवंत के पक्ष में हमेशा खड़े रहे . मेरे मित्र प्रदीप सिंह और आलोक तोमर ने साथ काम किया था . आलोक तोमर के बारे में कभी कोई सेमिनारनुमा चर्चा तो नहीं हुई लेकिन पिछले बीस-बाईस वर्षों में प्रदीप ने इतनी अच्छी बातें की हैं वे सारी याद आ रही हैं. विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने में मीडिया की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता . उसमें प्रभाष जोशी और जनसत्ता की भी अहम भूमिका थी. आलोक उस टीम के प्रमुख नायक थे . लेकिन जब वी पी सिंह ने उलटे सीधे काम करने शुरू कर दिए तो आलोक ने सबसे पहले लाठी उठायी और फिर तो वी पी सिंह के पतन की पटकथा लिखने का काम शुरू हो गया. अटल जी के करीबी होने के बावजूद जब भी उनकी पार्टी ने कोई गैर ज़िम्मेदार काम किया,आलोक ने उसका पत्रकारीय विश्लेषण ज़रूर किया.
आलोक तोमर को अंतिम विदाई देने गए लोगों में मालवा से आये हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र शाह भी थे .जब मैंने बात चीत के दौरान कहा कि अगर आलोक पचास साल में चले गए तो मैं तो ओवरड्यू हो गया हूँ . रवीन्द्र ने कहा कि ऐसा नहीं है . सभी पत्रकारों की शारीरिक उम्र और संघर्ष की उम्र फिक्स रहती है. हम लोगों ने उतना संघर्ष नहीं किया है जितना आलोक तोमर ने किया . उन्होंने कभी भी किसी लड़ाई को टाला नहीं , फ़ौरन निपटा देने में विश्वास करते रहे . इस तरह उनका पूरा जीवन ही संघर्ष को समर्पित था . हम लोग अभी उतना संघर्ष नहीं कर सके हैं ,इसलिए हमारी उम्र अभी बची हुई है . आलोक की संघर्ष और जीवन की उम्र बराबर ही थी . अलविदा आलोक . हम उम्मीद करते हैं कि तुम्हारी पत्नी जो तुम्हारी सबसे करीबी दोस्त भी हैं , अपने को संभाल सकें . हम दुआ करते हैं कि तुम्हारी बेटी भी उतनी ही मज़बूत बने जितने तुम थे .तुम्हारे माता पिता को पता नहीं किस जन्म की गलती के लिए सज़ा मिली है . उन्हने इतनी ताक़त मिले कि एक बहादुर बेटे के मान बाप के रूप में बाकी ज़िन्दगी बिता सकें . मैं तो बहुत मामूली आदमी हूँ लेकिन अगर डेटलाइन इंडिया जारी रहा तो जो कुछ भी लिखूंगा डेटलाइन इंडिया में ज़रूर भेजूंगा, चाहे किसी काम का हो या न हो. अलविदा एक बहादुर पत्रकार
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Monday, March 21, 2011
Saturday, January 9, 2010
अमिताभ बच्चन के नए कद्रदान---- गुजरात के मोदी जी
शेष नारायण सिंह
जिन लोगों ने फिल्म तीसरी क़सम देखी है, उन्हें मालूम है कि ज़ालिम ज़मींदार की फरमाइश के आगे ,फणीश्वर नाथ रेणु की नौटंकी कलाकार क्यों नहीं झुकती.. उसे मालूम है कि ठाकुर तंगनज़र है है , तंगदिल है और जिद्दी है लेकिन महिला कलाकार अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करती. उसे यह भी मालूम है कि ठाकुर खतरनाक है लेकिन वह उसे सीमा में रहने को मजबूर कर देती है . शायद ऐसा इसलिए हो सका कि वह अन्दर से मज़बूत थी.और एक अपने अमिताभ बच्चन है ,कलाकार हैं और बा रुतबा कलाकार हैं . पिछले २५ वर्षों में जब भी अमिताभ बच्चन ने अपने आपको कलाकार कहा , हमें लगा कि वे उतने की मज़बूत होंगें जितना वह महिला कलाकार थी लेकिन टेलेविज़न पर उनको नरेंद्र मोदी के सामने झुकते देख कर लगा कि अब तक गलत सोचते रहे. पापी पेट के वास्ते अमिताभ बच्चन कुछ भी कर सकते हैं . वे मुलायम सिंह यादव के दरवाज़े पर भी रेंग सकते हैं और नरेंद्र मोदी की चापलूसी भी कर सकते हैं . अमिताभ बच्चन ने अपनी इस हरकत से क्या खोया ,हम नहीं जानते लेकिन अपनी फिल्म ' पा ' का मनोरंजन कर माफ़ करवाने के लिए वे किस मुकाम तक जा सकते हैं, वह दुनिया ने देख लिया..नरेंद्र मोदी की शान में अमिताभ बच्चन ने जिस तरह से कसीदे पढ़े , उस से साफ़ लग गया कि अब गुजरात में भी वही सब होगा जो उन्होंने कभी उत्तर प्रदेश में किया था . उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री, मुलायम सिंह यादव के लिए उन्होंने अतिशयोक्ति के सुर में बात की . एक बार तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि मुलायम सिंह मेरे पिता हैं.. बी जे पी के नेता राजनाथ सिंह उनके इस बयान से बड़े खुश हो गए थे और कहा था कि जीव विज्ञान के विद्वानों यह पता करना चाहिए कि क्या बाप बेटे की उम्र में केवल चार साल फर्क हो सकता है ..बहर हाल अब मुलायम सिंह सत्ता में नहीं हैं और जिस तरह से उनकी पार्टी चल रही हैं, सत्ता में बहुत दिनीं तक आने की उम्मीद भी नहीं है . दुनिया जानती है कि जब १८५७ में दिल्ली उजड़ गयी थी, तो बड़ी संख्या में कलाकारों ने राम पुर, और हैदराबाद को अपना ठिकाना बना लिया था . इस लिए जब मुलायम सिंह की हैसियत किसी कलाकार और उसके परिवार को संरक्षण देने की नहीं है तो वह और दरबारों की तलाश में निकल जाएगा . जहां तक मुलायम सिंह यादव का सवाल है , अमिताभ बच्चन को बहुत अहमियत देकर उन्होंने अपनी पार्टी के जनाधार को ही लगभग समाप्त कर दिया है . समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं ने उस जनाधार को साथ रखने की पूरी कोशिश की लेकिन जनाधार तो हवा के रुख के साथ चलता है और वह खिसकता गया . फिरोजाबाद में समाजवादी पार्टी की हार एक दिन में नहीं हुई थी . मुलायम सिंह यादव के पड़ोस में रहने वालों ने देखा था कि किस तरह उनके नेता को फ़िल्मी दुनिया ने उनसे छीन लिया है और जब चुनाव का मौक़ा आया तो अवाम ने अपना फैसला सुना दिया.. लोक सभा 2००९ के चुनाव में समाजवादी पार्टी के शुभचिंतक नेताओं, जनेश्वर मिश्र, राम गोपाल यादव, ब्रज भूषण तिवारी और मोहन सिंह ने जो घोषणा पत्र बनाया उसमें अंग्रेज़ी और कंप्यूटर के खिलाफ नीति बनाने की बात लिख दी गयी. जब मैंने जनेश्वर मिश्र से पूछा कि इस प्राचीन विचारधारा को घोषणा पत्र में क्यों लिखा गया है तो उन्होंने बताया कि सनीमा वाले आजकल पार्टी में बहुत घुस रहे हैं उनको दूर रखने और आम आदमी को पार्टी में रोके रखने के लिये ऐसा किया गया है . ज़ाहिर है समाजवादी पार्टी के असली और बड़े नेता सिनेमा वालों को दूर रखना चाहते थे क्योंकि उनके हिसाब से सिनेमा वालों को साथ रखने से कोई फायदा नहीं होता ,उलटे नुकसान ही होता है ... मुलायम सिंह यादव ने अमिताभ बच्चन के परिवार के लिए जो किया वह सब को अजीब लगता था. बाराबंकी की ज़मीन का विवाद तो दुनिया जानती है. अमिताभ बच्चन , जया बच्च्चन, ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन को उत्तर प्रदेश में वह मुकाम दे दिया गया था जो कि राज्य के सामान्य नागरिकों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सपने में भी हासिल नहीं था. मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार की पूरी ताक़त लगा दी कि अमिताभ बच्चन के पिता , डॉ. हरिवंश राय बच्चन को महाकवि घोषित करवा दें लेकिन आलोचक उन्हें एक तुकबंदीकार से ज्यादा मानने को तैयार ही नहीं हैं .. मौजूदा राजनीतिक समीकरणों पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि आने वाले कई वर्षों तक मुलायम सिंह यादव वह सारी सुविधाएं देने की स्थिति में नहीं रहेंगें . ज़ाहिर है कि उन सुविधाओ की तलाश शुरू हो चुकी थी. अमिताभ बच्चन के रिश्ते कांग्रेस के नंबर वन परिवार से बहुत खराब हैं,लिहाज़ा वहां तो प्रवेश संभव नहीं था. मोदी का राज्य अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि के क़रीब भी है और मोदी तैयार भी हो गए लगते हैं . उनकी राजनीतिक हैसियत भी ऐसी है कि वे अपनी पार्टी में जो चाहें कर सकते हैं . इस लिए वे अमिताभ बच्चन के परिवार को वह राजनीतिक गिज़ा उपलब्ध करवा सकते हैं जिसकी अब बच्चन परिवार को आदत पड़ चुकी है ..ऐसी हालत में लगता है कि नरेंद्र मोदी की शरण में जाना अमिताभ बच्चन के लिए एक व्यापारिक और राजनीतिक फैसला है . मोदी भी अपने फन के माहिर हैं और अमिताभ बच्चन तो शताब्दी के सबसे बड़े अभिनेता माने जा चुके हैं . ज़ाहिर है आने वाला वक़्त आम आदमी को बहुत सारा मनोरंजन लेकर आने वाला है
जिन लोगों ने फिल्म तीसरी क़सम देखी है, उन्हें मालूम है कि ज़ालिम ज़मींदार की फरमाइश के आगे ,फणीश्वर नाथ रेणु की नौटंकी कलाकार क्यों नहीं झुकती.. उसे मालूम है कि ठाकुर तंगनज़र है है , तंगदिल है और जिद्दी है लेकिन महिला कलाकार अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करती. उसे यह भी मालूम है कि ठाकुर खतरनाक है लेकिन वह उसे सीमा में रहने को मजबूर कर देती है . शायद ऐसा इसलिए हो सका कि वह अन्दर से मज़बूत थी.और एक अपने अमिताभ बच्चन है ,कलाकार हैं और बा रुतबा कलाकार हैं . पिछले २५ वर्षों में जब भी अमिताभ बच्चन ने अपने आपको कलाकार कहा , हमें लगा कि वे उतने की मज़बूत होंगें जितना वह महिला कलाकार थी लेकिन टेलेविज़न पर उनको नरेंद्र मोदी के सामने झुकते देख कर लगा कि अब तक गलत सोचते रहे. पापी पेट के वास्ते अमिताभ बच्चन कुछ भी कर सकते हैं . वे मुलायम सिंह यादव के दरवाज़े पर भी रेंग सकते हैं और नरेंद्र मोदी की चापलूसी भी कर सकते हैं . अमिताभ बच्चन ने अपनी इस हरकत से क्या खोया ,हम नहीं जानते लेकिन अपनी फिल्म ' पा ' का मनोरंजन कर माफ़ करवाने के लिए वे किस मुकाम तक जा सकते हैं, वह दुनिया ने देख लिया..नरेंद्र मोदी की शान में अमिताभ बच्चन ने जिस तरह से कसीदे पढ़े , उस से साफ़ लग गया कि अब गुजरात में भी वही सब होगा जो उन्होंने कभी उत्तर प्रदेश में किया था . उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री, मुलायम सिंह यादव के लिए उन्होंने अतिशयोक्ति के सुर में बात की . एक बार तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि मुलायम सिंह मेरे पिता हैं.. बी जे पी के नेता राजनाथ सिंह उनके इस बयान से बड़े खुश हो गए थे और कहा था कि जीव विज्ञान के विद्वानों यह पता करना चाहिए कि क्या बाप बेटे की उम्र में केवल चार साल फर्क हो सकता है ..बहर हाल अब मुलायम सिंह सत्ता में नहीं हैं और जिस तरह से उनकी पार्टी चल रही हैं, सत्ता में बहुत दिनीं तक आने की उम्मीद भी नहीं है . दुनिया जानती है कि जब १८५७ में दिल्ली उजड़ गयी थी, तो बड़ी संख्या में कलाकारों ने राम पुर, और हैदराबाद को अपना ठिकाना बना लिया था . इस लिए जब मुलायम सिंह की हैसियत किसी कलाकार और उसके परिवार को संरक्षण देने की नहीं है तो वह और दरबारों की तलाश में निकल जाएगा . जहां तक मुलायम सिंह यादव का सवाल है , अमिताभ बच्चन को बहुत अहमियत देकर उन्होंने अपनी पार्टी के जनाधार को ही लगभग समाप्त कर दिया है . समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं ने उस जनाधार को साथ रखने की पूरी कोशिश की लेकिन जनाधार तो हवा के रुख के साथ चलता है और वह खिसकता गया . फिरोजाबाद में समाजवादी पार्टी की हार एक दिन में नहीं हुई थी . मुलायम सिंह यादव के पड़ोस में रहने वालों ने देखा था कि किस तरह उनके नेता को फ़िल्मी दुनिया ने उनसे छीन लिया है और जब चुनाव का मौक़ा आया तो अवाम ने अपना फैसला सुना दिया.. लोक सभा 2००९ के चुनाव में समाजवादी पार्टी के शुभचिंतक नेताओं, जनेश्वर मिश्र, राम गोपाल यादव, ब्रज भूषण तिवारी और मोहन सिंह ने जो घोषणा पत्र बनाया उसमें अंग्रेज़ी और कंप्यूटर के खिलाफ नीति बनाने की बात लिख दी गयी. जब मैंने जनेश्वर मिश्र से पूछा कि इस प्राचीन विचारधारा को घोषणा पत्र में क्यों लिखा गया है तो उन्होंने बताया कि सनीमा वाले आजकल पार्टी में बहुत घुस रहे हैं उनको दूर रखने और आम आदमी को पार्टी में रोके रखने के लिये ऐसा किया गया है . ज़ाहिर है समाजवादी पार्टी के असली और बड़े नेता सिनेमा वालों को दूर रखना चाहते थे क्योंकि उनके हिसाब से सिनेमा वालों को साथ रखने से कोई फायदा नहीं होता ,उलटे नुकसान ही होता है ... मुलायम सिंह यादव ने अमिताभ बच्चन के परिवार के लिए जो किया वह सब को अजीब लगता था. बाराबंकी की ज़मीन का विवाद तो दुनिया जानती है. अमिताभ बच्चन , जया बच्च्चन, ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन को उत्तर प्रदेश में वह मुकाम दे दिया गया था जो कि राज्य के सामान्य नागरिकों और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सपने में भी हासिल नहीं था. मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार की पूरी ताक़त लगा दी कि अमिताभ बच्चन के पिता , डॉ. हरिवंश राय बच्चन को महाकवि घोषित करवा दें लेकिन आलोचक उन्हें एक तुकबंदीकार से ज्यादा मानने को तैयार ही नहीं हैं .. मौजूदा राजनीतिक समीकरणों पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि आने वाले कई वर्षों तक मुलायम सिंह यादव वह सारी सुविधाएं देने की स्थिति में नहीं रहेंगें . ज़ाहिर है कि उन सुविधाओ की तलाश शुरू हो चुकी थी. अमिताभ बच्चन के रिश्ते कांग्रेस के नंबर वन परिवार से बहुत खराब हैं,लिहाज़ा वहां तो प्रवेश संभव नहीं था. मोदी का राज्य अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि के क़रीब भी है और मोदी तैयार भी हो गए लगते हैं . उनकी राजनीतिक हैसियत भी ऐसी है कि वे अपनी पार्टी में जो चाहें कर सकते हैं . इस लिए वे अमिताभ बच्चन के परिवार को वह राजनीतिक गिज़ा उपलब्ध करवा सकते हैं जिसकी अब बच्चन परिवार को आदत पड़ चुकी है ..ऐसी हालत में लगता है कि नरेंद्र मोदी की शरण में जाना अमिताभ बच्चन के लिए एक व्यापारिक और राजनीतिक फैसला है . मोदी भी अपने फन के माहिर हैं और अमिताभ बच्चन तो शताब्दी के सबसे बड़े अभिनेता माने जा चुके हैं . ज़ाहिर है आने वाला वक़्त आम आदमी को बहुत सारा मनोरंजन लेकर आने वाला है
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