शेष नारायण सिंह
नई दिल्ली, १७ जनवरी. दिल्ली के ओखला इलाके के बटला हाउस में सितम्बर 2008 में हुए कथित मुठभेड़ में मारे गए मुस्लिम नौजवानों और दिल्ली पुलिस के इन्स्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मौत पर हो रही राजनीति में एक नया आयाम जुड़ गया है . उत्तर प्रदेश में चुनावी दौरे कर रहे, लोकमंच के नेता,अमर सिंह ने कल बयान दे दिया था अकी उनकी पुरानी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उन्हें बटला हाउस जाकर मुस्लिम नौजवानों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने से रोका था . सब को मालूम है कि आजकल अमर सिंह मुलायम सिंह के घोर विरोधी हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि हो सकता है कि उनकी पार्टी चुनाव में सीटें न जीते लेकिन वे मुलायम सिंह की पार्टी को नुकसान ज़रूर पंहुचायेगें . बटला हाउस केस में मुलायम सिंह यादव की भूमिका को मुस्लिम विरोधी बताते हुए अमर सिंह की कोशिश है कि वे मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से दूर खींच ले जाएँ . ज़ाहिर है कि समाजवादी पार्टी को यह बात पसंद नहीं आई और पार्टी ने अमर सिंह के बयान को बेबुनियाद ,झूठा और बेहूदा बताया और उसका खंडन किया .
अमर सिंह का बटला हाउस संबंधी बयान आज के अखबारों में छपा है . समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो. राम गोपाल यादव ने आज उस बयान को पूरी तरह से गलत बताया और उसका खंडन किया. उन्होंने कहा कि अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर आरोप लगाया है कि श्री यादव ने उन्हें घटना स्थल पर जाने से रोका था . यह बयान पूरी तरह से झूठा और तथ्यहीन है .उन्होंने कहा कि मैं और अमर सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर बटला हाउस गए थे .अमर सिंह ने बटला हाउस में मारे गए इन्स्पेक्टर शर्मा के पिताजी को दस लाख रूपये देने की घोषणा की थी और चेक भी भेजा था. समाजवादी पार्टी ने चेक देने का विरोध किया था. बाद में स्वर्गीय शर्मा के पिता जी ने वह चेक वापस कर दिया था. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उस इनकाउंटर को फर्जी मानते हुए अपने प्रतिनिधि के रूप में हमें भेजा था .इसलिए अमर सिंह के बेबुनियाद, झूठे और बेहूदे बयान का समाजवादी पार्टी खंडन करती है .
अमर सिंह ने प्रो.राम गोपाल यादव के बयान को दुर्भावनापूर्ण बताया और कहा कि बटला हाउस काण्ड में मुस्लिम बच्चे भी मारे गए थे और दिल्ली पुलिस के इन्स्पेक्टर शर्मा भी मारे गए थे . दोनों ही साज़िश का शिकार हुए थे. इनकाउंटर फर्जी था और इन्स्पेक्टर शर्मा को भी किसी साज़िश के तहत मारा गया था. इसलिए मैंने उनके परिवार को दस लाख रूपये देने की पेशकश की थी . साथ ही मैं जामिया मिलिया जाकर उन मुस्लिम लड़कों को भी दस लाख देकर आया था जो फर्जी इनकाउंटर के शिकार मुस्लिम लड़कों के सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे थे और यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे के मारे गए लड़के आतंकवादी नहीं थे ,वे निर्दोष थे. . उन्होंने समाजवादी पार्टी के उस बयान को भी गलत बताया कि इन्स्पेक्टर शर्मा के परिवार को चेक देने का विरोध समाजवादी पार्टी ने किया था. उसका विरोध वास्तव में संघ परिवार और बीजेपी ने किया था . बटला हाउस में मारे गए एक लडके के पिता शादाब साहेब आज़म गढ़ में समाजवादी पार्टी की ज़िला ईकाई के उपाध्यक्ष थे . समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष बलराम यादव ने उन्हें पार्टी से यह कह कर निकाल दिया था कि एक दहशत गर्द के बाप को पार्टी में रहने का कोई हक नहीं है . इसलिए समाजवादी पार्टी को कोई हक नहीं है कि वह आज अपने आप को मुसलमानों का खैरख्वाह बताये .अमर सिंह कहते हैं कि जो लड़के बटला हाउस के फर्जी इनकाउंटर में मारे गए थे वे आज़मगढ़ के थे ,इसलिए वे उनके ज़्यादा करीबी थे .बटला हाउस का वाकया उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के वोट खींचने का एक अहम तरीका बनता जा रहा ज़ाहिर है अभी इसके बारे में बहुत कुछ बयान आयेगें .
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Wednesday, January 18, 2012
Wednesday, July 20, 2011
क्या कैश फार वोट केस में अमर सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी की भी जांच होगी ?
शेष नारायण सिंह
लोक सभा में पिछली लोकसभा में जो दृश्य देखा गया वह उसके पहले कभी नहीं देखा गया था. कुछ संसद सदस्य हज़ार हज़ार के नोटों के बण्डल उपाध्यक्ष जी के सामने लहरा रहे थे . बाद में पता चला कि वह रूपये उनका समर्थन खरीदने के लिए उनके पास समाजवादी पार्टी के तत्कालीन नेता अमर सिंह ने भेजे थे.पिछली लोकसभा में अमरीका के साथ परमाणु समझौते वाला बिल पास कराने के लिए उस वक़्त की यू पी ए सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था.आरोप है कि उस काम के लिए कि सरकार ने सांसदों की खरीद फरोख्त की थी. बीजेपी वाले खुद लोक सभा में हज़ार हज़ार के नोटों की गड्डियाँ लेकर आ गए थे और दावा किया था कि यूपीए के सहयोगी और समाजवादी पार्टी के नेता ,अमर सिंह ने वह नोट उनके पास भिजवाये थे, बाद में एक टी वी चैनल ने सारे मामले को स्टिंग का नाम देकर दिखाया भी था. बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वीकार भी किया था कि उनके कहने पर ही उनकी पार्टी के सांसद वह भारी रक़म लेकर लोकसभा में आये थे . सारे मामले की जे पी सी जांच भी हुई थी और जे पी से ने सुझाव दिया था कि मामला गंभीर है लेकिन जे पी सी के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि आपराधिक मामलों की जांच कर सके . इसलिए किसी उपयुक्त संस्था से इसकी जांच करवाई जानी चाहिए . जिन लोगों की गहन जांच होनी थी , उसमें बीजेपी के नेता, लाल कृष्ण आडवाणी के विशेष सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी का भी नाम था . कमेटी की जांच के नतीजों के मद्दे नज़र लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने आदेश भी दे दिया था कि गृह मंत्रालय को चाहिए कि सारे मामले की जांच करे .लोक सभा के महासचिव ने दिल्ली पुलिस को एक चिट्ठी लिख कर जानकारी दी थी जिसे प्राथामिकी के रूप में रिकार्ड कर लिया गया था . लेकिन कहीं कोई जांच नहीं हुई .जब पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को हडकाया तो जाकर मामला ढर्रे पर आया. अमर सिंह के तत्कालीन सहायक संजीव सक्सेना से पुलिस हिरासत में पूछ ताछ चल रही है .अमर सिंह के ड्राइवर की तलाश की जा रही है लेकिन आडवाणी के सहायक और एक अन्य व्यक्ति जिसके लिए लोक सभा की कमेटी ने जांच का आदेश दिया था , अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में जो सवाल पूछे जा रहे हैं ,वे बहुत ही मुखर हैं . सवाल यह है कि क्या सक्सेना और कुलकर्णी टाइप प्यादों की जांच करके ही न्याय हो जाएगा या अमर सिंह और आडवाणी की भी जांच होगी. इसके अलावा कैश फार वोट की राजनीति का लाभ सबसे ज्यादा तो कांग्रेस को मिला था .क्या उनके भी कुछ नेताओं को जांच के दायरे में लिया जायेगा.क्योंकि यह मानना तो बहुत ही मुश्किल है कि कुलकर्णी, सक्सेना या हिन्दुस्तानी अपने मन से संसद सदस्यों को करोड़ों रूपये दे रहे थे. मार्च में जब विकीलीक्स के दस्तावेजों में बात एक बार फिर सामने आई तो बीजेपी वालों को फिर गद्दी नज़र आने लगी थी . आर एस एस के मित्र टेलीविज़न एंकरों ने जिस हाहाकार के साथ मामले को गरमाने की कोशिश की वह बहुत ही अजीब था. बीजेपी ने भी अपने बहुत तल्ख़-ज़बान प्रवक्ताओं को मैदान में उतारा था और मामला बहुत ही मनोरंजक हो गया था . लेकिन बाद में सब कुछ शांत हो गया .यह चुप्पी हैरान करने वाली थी . जानकार बताते हैं कि उस वक़्त बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को अंदाज़ हो गया था कि अगर सही जांच होगी तो अमर सिंह के सहायक और आडवानी के सहायक तक ही मामला सीमित नहीं रहेगा .सब को मालूम है कि लोकसभा में नोटों की गड्डियाँ लहराए जाने के बाद ही लाल कृष्ण आडवाणी ने संसद भवन परिसर में ही टी वी चैनलों को बताया था कि बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों को नोटों के बण्डल लोकसभा में लाने की अनुमति दी थी. इस इक़बालिया बयान के बाद लोकसभा में नोटों के बण्डल लहराए जाने के मामले में की गयी साजिश में सक्सेना, कुलकर्णी और अमर सिंह के अलावा आडवानी की भूमिका की भी जांच होना जरूरी है .अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर उम्मीद बनी है कि सही जांच होगी . लेकिन जांच का उद्देश्य असली ज़िम्मेदार लोगों को भी पकड़ना होना चाहिए , प्यादों की जांच करके मामले की लीपा पोती की दिल्ली पुलिस और सरकार की हर कोशिश को खारिज किया जाना चाहिए .
लोक सभा में पिछली लोकसभा में जो दृश्य देखा गया वह उसके पहले कभी नहीं देखा गया था. कुछ संसद सदस्य हज़ार हज़ार के नोटों के बण्डल उपाध्यक्ष जी के सामने लहरा रहे थे . बाद में पता चला कि वह रूपये उनका समर्थन खरीदने के लिए उनके पास समाजवादी पार्टी के तत्कालीन नेता अमर सिंह ने भेजे थे.पिछली लोकसभा में अमरीका के साथ परमाणु समझौते वाला बिल पास कराने के लिए उस वक़्त की यू पी ए सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था.आरोप है कि उस काम के लिए कि सरकार ने सांसदों की खरीद फरोख्त की थी. बीजेपी वाले खुद लोक सभा में हज़ार हज़ार के नोटों की गड्डियाँ लेकर आ गए थे और दावा किया था कि यूपीए के सहयोगी और समाजवादी पार्टी के नेता ,अमर सिंह ने वह नोट उनके पास भिजवाये थे, बाद में एक टी वी चैनल ने सारे मामले को स्टिंग का नाम देकर दिखाया भी था. बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वीकार भी किया था कि उनके कहने पर ही उनकी पार्टी के सांसद वह भारी रक़म लेकर लोकसभा में आये थे . सारे मामले की जे पी सी जांच भी हुई थी और जे पी से ने सुझाव दिया था कि मामला गंभीर है लेकिन जे पी सी के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि आपराधिक मामलों की जांच कर सके . इसलिए किसी उपयुक्त संस्था से इसकी जांच करवाई जानी चाहिए . जिन लोगों की गहन जांच होनी थी , उसमें बीजेपी के नेता, लाल कृष्ण आडवाणी के विशेष सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी का भी नाम था . कमेटी की जांच के नतीजों के मद्दे नज़र लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने आदेश भी दे दिया था कि गृह मंत्रालय को चाहिए कि सारे मामले की जांच करे .लोक सभा के महासचिव ने दिल्ली पुलिस को एक चिट्ठी लिख कर जानकारी दी थी जिसे प्राथामिकी के रूप में रिकार्ड कर लिया गया था . लेकिन कहीं कोई जांच नहीं हुई .जब पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को हडकाया तो जाकर मामला ढर्रे पर आया. अमर सिंह के तत्कालीन सहायक संजीव सक्सेना से पुलिस हिरासत में पूछ ताछ चल रही है .अमर सिंह के ड्राइवर की तलाश की जा रही है लेकिन आडवाणी के सहायक और एक अन्य व्यक्ति जिसके लिए लोक सभा की कमेटी ने जांच का आदेश दिया था , अभी गिरफ्तार नहीं हुए हैं . दिल्ली में सत्ता के गलियारों में जो सवाल पूछे जा रहे हैं ,वे बहुत ही मुखर हैं . सवाल यह है कि क्या सक्सेना और कुलकर्णी टाइप प्यादों की जांच करके ही न्याय हो जाएगा या अमर सिंह और आडवाणी की भी जांच होगी. इसके अलावा कैश फार वोट की राजनीति का लाभ सबसे ज्यादा तो कांग्रेस को मिला था .क्या उनके भी कुछ नेताओं को जांच के दायरे में लिया जायेगा.क्योंकि यह मानना तो बहुत ही मुश्किल है कि कुलकर्णी, सक्सेना या हिन्दुस्तानी अपने मन से संसद सदस्यों को करोड़ों रूपये दे रहे थे. मार्च में जब विकीलीक्स के दस्तावेजों में बात एक बार फिर सामने आई तो बीजेपी वालों को फिर गद्दी नज़र आने लगी थी . आर एस एस के मित्र टेलीविज़न एंकरों ने जिस हाहाकार के साथ मामले को गरमाने की कोशिश की वह बहुत ही अजीब था. बीजेपी ने भी अपने बहुत तल्ख़-ज़बान प्रवक्ताओं को मैदान में उतारा था और मामला बहुत ही मनोरंजक हो गया था . लेकिन बाद में सब कुछ शांत हो गया .यह चुप्पी हैरान करने वाली थी . जानकार बताते हैं कि उस वक़्त बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को अंदाज़ हो गया था कि अगर सही जांच होगी तो अमर सिंह के सहायक और आडवानी के सहायक तक ही मामला सीमित नहीं रहेगा .सब को मालूम है कि लोकसभा में नोटों की गड्डियाँ लहराए जाने के बाद ही लाल कृष्ण आडवाणी ने संसद भवन परिसर में ही टी वी चैनलों को बताया था कि बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने अपनी पार्टी के सांसदों को नोटों के बण्डल लोकसभा में लाने की अनुमति दी थी. इस इक़बालिया बयान के बाद लोकसभा में नोटों के बण्डल लहराए जाने के मामले में की गयी साजिश में सक्सेना, कुलकर्णी और अमर सिंह के अलावा आडवानी की भूमिका की भी जांच होना जरूरी है .अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक बार फिर उम्मीद बनी है कि सही जांच होगी . लेकिन जांच का उद्देश्य असली ज़िम्मेदार लोगों को भी पकड़ना होना चाहिए , प्यादों की जांच करके मामले की लीपा पोती की दिल्ली पुलिस और सरकार की हर कोशिश को खारिज किया जाना चाहिए .
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Tuesday, June 22, 2010
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमर सिंह ने कांशीराम का रास्ता अपनाया
शेष नारायण सिंह
बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम वोटों के लिए जुगाड़ शुरू हो गया है . बिहार में तो मुसलमानों को रिझाने के पारंपरिक तरीके इस्तेमाल किये जा रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में कुछ नए प्रयोग हो रहे हैं . आम तौर पर चुनाव में कुछ पैसों की लालच में छोटी राजनीतिक पार्टियां बना ली जाती हैं लेकिन इस बार जो छोटी राजनीतिक पार्टियां बन रही हैं, उन्हें जनता ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है . डुमरिया गंज विधान सभा चुनाव में इस बात पर बहस नहीं थी कि कौन जीतेगा . सब को मालूम था कि सत्ताधारी पार्टी की उम्मीदवार ही जीतेगी लेकिन दूसरी जगह पर कौन आएगा ,इस पर चर्चा थी क्योंकि उस को ही सबसे लोकप्रिय पार्टी माना जाएगा. दूसरी जगह पर बी जे पी आ गयी जबकि राहुल गाँधी और जगदम्बिका पाल की कोशिश के बावजूद कांग्रेस बहुत पीछे छूट गयी . उत्तर प्रदेश में आम तौर पर मुसलमानों की पसंदीदा पार्टी, समाजवादी पार्टी भी बहुत पिछड़ गयी. और गैर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर घोषित रूप से पिछड़े मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए बनायी गयी , पीस पार्टी का उम्मीदवार बाकायदा लड़ाई में बना रहा. पीस पार्टी के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का नंबर आया. पीस पार्टी के बारे में कहा जाता है कि उसे हिंदुत्व वादी ताक़तों ने बनवाया है ताकि मुसलमानों का वोट कांग्रेस या समाजवादी पार्टी को न मिल सके. इस बात के कोई सबूत नहीं है लेकिन ऐसा कहने वाले बहुत सारे लोग मिल जायेगें . पीस पार्टी के अलावा भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के नाम पर कई पार्टियां बन चुकी हैं. अभी उनकी राजनीतिक हैसियत कुछ ख़ास नहीं है लेकिन चुनाव के मैदान में उनकी मौजूदगी निश्चित रूप से नतीजों को प्रभावित कर रही है और करेगी भी .
उत्तर प्रदेश में डुमरिया गंज के उपचुनाव ने बहुत सारे राजनीतिक विमर्श के सूत्र छोड़े हैं . डुमरिया गंज जिस लोक सभा क्षेत्र में पड़ता है , वहां से पिछले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जगदम्बिका पाल विजयी रहे थे. डुमरिया गंज सेगमेंट में भी वे आगे थे . यानी वहां माहौल कांग्रेस के पक्ष में था लेकिन विधान सभा उपचुनाव में पांचवें स्थान पर आकर कांग्रेस ने साबित कर दिया कि लोक सभा चुनाव का नतीजा एक इत्तेफाक था .इस से ज्यादा कुछ नहीं .लेकिन इसमें कांग्रेस की प्रतिष्टा दांव पर लगी थी और वह धूमिल हुई है ..इस उपचुनाव में और भी बहुत कुछ दांव पर लगा था. कल्याण सिंह को साथ लेने के बाद समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के सम्बन्ध भी मुस्लिम जनमत के बीच बहस का विषय हैं . हालांकि कल्याणसिंह को अब समाजवादी पार्टी ने निकाल दिया है लेकिन अभी विश्वसनीयता का संकट बना हुआ है . कुछ मुसलमान नेता भी कल्याण सिंह मामले को मुद्दा बनाने के चक्कर में थे लेकिन सफल नहीं हुए . इनमें से एक तो पार्टी से निकाले भी गए. पूरे देश के मुसलमानों का प्रतिनिधि बनने का दावा करने वाले यह नेता जी अपने विधान सभा क्षेत्र में भी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार जयाप्रदा को हरा नहीं पाए . उनके घर के सामने , जयाप्रदा के समर्थकों ने सभा की और उनके समर्थन वाली कांग्रेसी उम्मीदवार को हराया .इसलिए मुस्लिम जनमत में उन नेता जी की तो कोई ख़ास इज्ज़त नहीं है लेकिन लोक सभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से जोड़ने वाले पार्टी के पूर्व महासचिव ,अमर सिंह की राजनीति का खामियाजा समाजवादी पार्टी को भोगना पड़ रहा है. डुमरिया गंज में भी अमर सिंह ने पूरी ताक़त से पीस पार्टी के उम्मीदवार की मदद की थी. भोजपुरी फिल्मों के नायक , मनोज तिवारी और हिन्दी फिल्मों की नायिका और संसद सदस्य , जयाप्रदा के साथ डुमरिया गंज में सभा भी की थी. और भी कारण रहे होंगें जिसकी वजह से मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट नहीं दिया लेकिन इस चुनाव ने साबित कर दिया कि समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह चुक जाने को तैयार नहीं हैं.. कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी में भी नेता की कृपा से सत्ता का सुख भोगने का फैशन है . कांगेस में इंदिरा गाँधी के नाम पर चुनाव जीते जाते थे और जिसको भी वे पार्टी से निकाल देती थीं उसकी राजनीति का अंत हो जाता था. अब सोनिया गाँधी की लोकप्रियता की छाया में कांग्रेस के नेता लोग सत्ता का आनंद ले रहे हैं . समाजवादी पार्टी में भी यही होता था. मुलायम सिंह यादव के नाम पर ही सारी जमात राज कर रही थी . माना जा रहा था कि अमर सिंह भी उसी भीड़ का हिसा हैं जो नेता जी के नाम पर मौज कर रहे हैं. जिसको भी नेता जी ने निकाल दिया उनकी हालत खस्ता हो जाती थी और पार्टी का कोई नुकसान नहीं होता था . बेनी प्रसाद वर्मा, रघु ठाकुर,राज बब्बर, आज़म खां आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो समाजवादी पार्टी के आलाकमान हुआ करते थे लेकिन आज कहीं नहीं हैं . अमर सिंह भी इसी दशा को प्राप्त होगें ऐसा माना जा रहा था लेकिन उन्होंने डुमरिया गंज चुनाव में हस्तक्षेप करके बता दिया है कि वे राज्य की राजनीति में मजबूती के साथ मौजूद हैं और आने वाले महीनों में अपनी पुरानी पार्टी के लिए तो मुश्किल पैदा करेगें ही, छोटी पार्टियों को जोड़कर एक ऐसा गठबंधन तैयार कर देगें जो उत्तर प्रदेश की पारंपरिक पार्टियों को सत्ता के गलियारों से बाहर भी खदेड़ सकता है. १९८७ के बाद कांशी राम ने भी यही प्रयोग किया था और आज देश के हर कोने में उनकी पार्टी की ताक़त से लोग डरते हैं. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तन का डंका बज चुका है . भविष्य में क्या होगा , उसके बारे में अभी कुछ कहना इसलिए ठीक नहीं होगा कि अपनी राजनीतिक समझदारी की समझ दांव पर लग सकती है .
बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम वोटों के लिए जुगाड़ शुरू हो गया है . बिहार में तो मुसलमानों को रिझाने के पारंपरिक तरीके इस्तेमाल किये जा रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में कुछ नए प्रयोग हो रहे हैं . आम तौर पर चुनाव में कुछ पैसों की लालच में छोटी राजनीतिक पार्टियां बना ली जाती हैं लेकिन इस बार जो छोटी राजनीतिक पार्टियां बन रही हैं, उन्हें जनता ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है . डुमरिया गंज विधान सभा चुनाव में इस बात पर बहस नहीं थी कि कौन जीतेगा . सब को मालूम था कि सत्ताधारी पार्टी की उम्मीदवार ही जीतेगी लेकिन दूसरी जगह पर कौन आएगा ,इस पर चर्चा थी क्योंकि उस को ही सबसे लोकप्रिय पार्टी माना जाएगा. दूसरी जगह पर बी जे पी आ गयी जबकि राहुल गाँधी और जगदम्बिका पाल की कोशिश के बावजूद कांग्रेस बहुत पीछे छूट गयी . उत्तर प्रदेश में आम तौर पर मुसलमानों की पसंदीदा पार्टी, समाजवादी पार्टी भी बहुत पिछड़ गयी. और गैर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर घोषित रूप से पिछड़े मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए बनायी गयी , पीस पार्टी का उम्मीदवार बाकायदा लड़ाई में बना रहा. पीस पार्टी के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का नंबर आया. पीस पार्टी के बारे में कहा जाता है कि उसे हिंदुत्व वादी ताक़तों ने बनवाया है ताकि मुसलमानों का वोट कांग्रेस या समाजवादी पार्टी को न मिल सके. इस बात के कोई सबूत नहीं है लेकिन ऐसा कहने वाले बहुत सारे लोग मिल जायेगें . पीस पार्टी के अलावा भी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के नाम पर कई पार्टियां बन चुकी हैं. अभी उनकी राजनीतिक हैसियत कुछ ख़ास नहीं है लेकिन चुनाव के मैदान में उनकी मौजूदगी निश्चित रूप से नतीजों को प्रभावित कर रही है और करेगी भी .
उत्तर प्रदेश में डुमरिया गंज के उपचुनाव ने बहुत सारे राजनीतिक विमर्श के सूत्र छोड़े हैं . डुमरिया गंज जिस लोक सभा क्षेत्र में पड़ता है , वहां से पिछले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार जगदम्बिका पाल विजयी रहे थे. डुमरिया गंज सेगमेंट में भी वे आगे थे . यानी वहां माहौल कांग्रेस के पक्ष में था लेकिन विधान सभा उपचुनाव में पांचवें स्थान पर आकर कांग्रेस ने साबित कर दिया कि लोक सभा चुनाव का नतीजा एक इत्तेफाक था .इस से ज्यादा कुछ नहीं .लेकिन इसमें कांग्रेस की प्रतिष्टा दांव पर लगी थी और वह धूमिल हुई है ..इस उपचुनाव में और भी बहुत कुछ दांव पर लगा था. कल्याण सिंह को साथ लेने के बाद समाजवादी पार्टी और मुसलमानों के सम्बन्ध भी मुस्लिम जनमत के बीच बहस का विषय हैं . हालांकि कल्याणसिंह को अब समाजवादी पार्टी ने निकाल दिया है लेकिन अभी विश्वसनीयता का संकट बना हुआ है . कुछ मुसलमान नेता भी कल्याण सिंह मामले को मुद्दा बनाने के चक्कर में थे लेकिन सफल नहीं हुए . इनमें से एक तो पार्टी से निकाले भी गए. पूरे देश के मुसलमानों का प्रतिनिधि बनने का दावा करने वाले यह नेता जी अपने विधान सभा क्षेत्र में भी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार जयाप्रदा को हरा नहीं पाए . उनके घर के सामने , जयाप्रदा के समर्थकों ने सभा की और उनके समर्थन वाली कांग्रेसी उम्मीदवार को हराया .इसलिए मुस्लिम जनमत में उन नेता जी की तो कोई ख़ास इज्ज़त नहीं है लेकिन लोक सभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मुसलमानों को समाजवादी पार्टी से जोड़ने वाले पार्टी के पूर्व महासचिव ,अमर सिंह की राजनीति का खामियाजा समाजवादी पार्टी को भोगना पड़ रहा है. डुमरिया गंज में भी अमर सिंह ने पूरी ताक़त से पीस पार्टी के उम्मीदवार की मदद की थी. भोजपुरी फिल्मों के नायक , मनोज तिवारी और हिन्दी फिल्मों की नायिका और संसद सदस्य , जयाप्रदा के साथ डुमरिया गंज में सभा भी की थी. और भी कारण रहे होंगें जिसकी वजह से मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को वोट नहीं दिया लेकिन इस चुनाव ने साबित कर दिया कि समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह चुक जाने को तैयार नहीं हैं.. कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी में भी नेता की कृपा से सत्ता का सुख भोगने का फैशन है . कांगेस में इंदिरा गाँधी के नाम पर चुनाव जीते जाते थे और जिसको भी वे पार्टी से निकाल देती थीं उसकी राजनीति का अंत हो जाता था. अब सोनिया गाँधी की लोकप्रियता की छाया में कांग्रेस के नेता लोग सत्ता का आनंद ले रहे हैं . समाजवादी पार्टी में भी यही होता था. मुलायम सिंह यादव के नाम पर ही सारी जमात राज कर रही थी . माना जा रहा था कि अमर सिंह भी उसी भीड़ का हिसा हैं जो नेता जी के नाम पर मौज कर रहे हैं. जिसको भी नेता जी ने निकाल दिया उनकी हालत खस्ता हो जाती थी और पार्टी का कोई नुकसान नहीं होता था . बेनी प्रसाद वर्मा, रघु ठाकुर,राज बब्बर, आज़म खां आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो समाजवादी पार्टी के आलाकमान हुआ करते थे लेकिन आज कहीं नहीं हैं . अमर सिंह भी इसी दशा को प्राप्त होगें ऐसा माना जा रहा था लेकिन उन्होंने डुमरिया गंज चुनाव में हस्तक्षेप करके बता दिया है कि वे राज्य की राजनीति में मजबूती के साथ मौजूद हैं और आने वाले महीनों में अपनी पुरानी पार्टी के लिए तो मुश्किल पैदा करेगें ही, छोटी पार्टियों को जोड़कर एक ऐसा गठबंधन तैयार कर देगें जो उत्तर प्रदेश की पारंपरिक पार्टियों को सत्ता के गलियारों से बाहर भी खदेड़ सकता है. १९८७ के बाद कांशी राम ने भी यही प्रयोग किया था और आज देश के हर कोने में उनकी पार्टी की ताक़त से लोग डरते हैं. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े पैमाने पर परिवर्तन का डंका बज चुका है . भविष्य में क्या होगा , उसके बारे में अभी कुछ कहना इसलिए ठीक नहीं होगा कि अपनी राजनीतिक समझदारी की समझ दांव पर लग सकती है .
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Thursday, May 27, 2010
समाजवादी पार्टी में अमर सिंह के विरोधियों को मुलायम चेतावनी
शेष नारायण सिंह
समाजवादी पार्टी में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेज़ी से घूम रहा है . अमर सिंह के हटने के बाद जो शिथिलता आई थी ,लगता है वह अब ख़त्म होने वाली है . पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पहलवानी का ऐसा दांव मारा है कि अभी लोगों को पता ही नहीं चल रहा है कि हमला किस पर है. अमर सिंह के बाद की राजनीति के बड़े बड़े सूरमा एक दूसरे से पूछते पाए जा रहे हैं कि भाई हुआ क्या. राज्य सभा और विधान परिषद् के लिए जिन पांच उम्मीदवारों की घोषणा मुलायम सिंह यादव ने की है , वह आधुनिक राजनीति के विद्यार्थी के लिए एक बड़ा सबक हो सकता है . . दुनिया जानती है कि मुलायम सिंह यादव अमर सिंह को पार्टी से निकालना नहीं चाहते थे लेकिन माहौल ऐसा बना कि उनके लिए अमर सिंह को पार्टी में रख पाना मुश्किल हो गया . अमर सिंह ने भी अपनी हैसियत को बहुत बढ़ा कर आंक रखा था . यह उनकी गलती थी . दिल्ली की राजनीति में कोई भी बहुत ताक़तवर नहीं होता . इसी दिल्ली में सबसे बेहतरीन मुग़ल बादशाह को उसी के बेटे औरंगजेब ने जेल की हवा खिलाई थी . बाद के युग में इंदिरा गाँधी के दरबार के बहुत करीबी लोग ऐसे मुहल्लों में खो गए थे जहां कोई भी ताक़तवर आदमी जाना नहीं चाहेगा. दिनेश सिंह एक बार जवाहरलाल नेहरू के करीबी हुआ करते थे, इंदिरा जी के ख़ास सलाहकार थे और बाद में राज नारायण समेत बहुत सारे लोगों के दरवाजों पर दस्तक देते देखे गए थे. वामपंथी रुझान के नेता चन्द्र जीत यादव की हनक का अंदाज़ वह इंसान लगा ही नहीं सकता जिसने सत्तर के दशक के शुरुआती वर्षों में उनका जलवा नहीं देखा . कभी बाबू जगजीवन राम की मर्जी को इंदिरा जी अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करती थीं , बाद में वे ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हुए . इसलिए दिल्ली की राजनीति एक ऐसा अखाड़ा है जहां जो पहलवान मुकाबिल हो वहां से तो हमला होता ही है , अपने साथी भी ज़बर्दस्त वार करते हैं . अमर सिंह इसी बारकी को समझने में गच्चा खा गए और जब उन्हें राजनीति के शतरंज की शह की जानकारी मिली तब तक वे मात चुके थे . लेकिन समाजवादी पार्टी में उनके विरोधियों को भी मुगालता था कि उन्होंने लड़ाई जीत ली है . और यहीं वे गच्चा खा गए. अमर सिंह के चेलों को हटा कर उन लोगों ने अपने बन्दों को ख़ास पदों बैठा दिया लेकिन अब तस्वीर की बारीकियां उभरने लगी हैं . मुलायम सिंह ने साफ़ कर दिया है कि समाजवादी पार्टी में उनकी ही चलेगी . अमर सिंह के भाई की पत्नी को दुबारा राज्य सभा की टिकट देकर उन्होंने ऐलान कर दिया है कि अमर सिंह ज्यादा बोलने की अपनी आदत के चलते उनको नाराज़ करने में तो भले ही सफल हो गए हैं लेकिन अभी मुलायम सिंह यादव उन्हें दुश्मन नहीं मानते. समाजवादी पार्टी की मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम को देखने से स्वर्गीय चन्द्र शेखर की एक बात याद आती हैं. वे कहा करते थे कि राजनीति संभाव्यता का खेल है . यानी यहाँ कुछ भी संभव है . राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता . एक घटना से बात को समझने की कोशिश की जायेगी. एक बार लालू प्रसाद यादव को देवेगौड़ा ने पार्टी से निकला दिया था. लालू ने उनके खिलाफ बहुत सारे बयान दिए . कुछ दिन बाद फिर एकता हो गयी. किसी प्रेस वार्ता में दोनों ही नेता साथ साथ प्रेस को संबोधित कर रहे थे . किसी ने पूछा कि लालू जी आपने तो देवेगौडा को बहुत गालियाँ दी थीं, आज उनके साथ क्यों बैठे हैं ? लालू ने बगल में बैठे हुए देवेगौडा की तरफ इशारा करके जवाब दिया कि इन्होने हमें पार्टी से निकाला था , तो क्या हम इनकी आरती उतारते. बात एक बहुत ही ज़ोरदार ठहाके में ख़त्म हो गयी और सारी तल्खी हवा हो गयी . बहरहाल समाजवादी पार्टी में भी लगता है कि यही हो रहा है. अमर सिंह के सारे बयानों के बावजूद पार्टी में उनके विरोधियों को औकात पर रखना और उनके सबसे करीबी परिवार की मुखिया को राज्यसभा में दुबारा भेजने का फैसला करके मुलायम सिंह यादव ने बहस को अखाड़े में फेंक दिया है . अब आगे का घटनाक्रम देखना बहुत ही दिलचस्प होगा..
इसके अलावा भी राज्यसभा और विधान परिषद् का टिकट देने में मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया है . जब मायावती और काशी राम उनसे अलग हुए तो उन्होंने उनके दलित वोट बैंक को बैलेंस करने के लिए फूलन देवी को अपने साथ ले लिया था . और कहा कि दलितों की आबादी के सत्तर प्रतिशत निषाद भी उत्तर प्रदेश में रहते हैं .मुसलमानों में रशीद मसूद को टिकट देकर उन्होंने लगभग ऐलान कर दिया है कि अब आज़म खान की वापसी उनकी पार्टी में नहीं होगी, हालांकि अमर सिंह का विरोधी खेमा पूरी कोशिश कर रहा है .जया बच्चन को टिकट देकर उन्होंने बड़ा जुआ खेला है . हो सकता है कि वे सीट हाथ आ जाने के बाद साथ छोड़ जाएँ लेकिन इस बात की भी पूरी संभावना है कि उनको सम्मानित किये जाने के बाद अमर सिंह को गलती का पता चले और वे वापस आने के लिये पहल कर दें . जो भी हो , उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल में निश्चित रूप से परिवर्तन होने वाला है . देखिये ऊँट किस करवट बैठता है
समाजवादी पार्टी में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेज़ी से घूम रहा है . अमर सिंह के हटने के बाद जो शिथिलता आई थी ,लगता है वह अब ख़त्म होने वाली है . पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पहलवानी का ऐसा दांव मारा है कि अभी लोगों को पता ही नहीं चल रहा है कि हमला किस पर है. अमर सिंह के बाद की राजनीति के बड़े बड़े सूरमा एक दूसरे से पूछते पाए जा रहे हैं कि भाई हुआ क्या. राज्य सभा और विधान परिषद् के लिए जिन पांच उम्मीदवारों की घोषणा मुलायम सिंह यादव ने की है , वह आधुनिक राजनीति के विद्यार्थी के लिए एक बड़ा सबक हो सकता है . . दुनिया जानती है कि मुलायम सिंह यादव अमर सिंह को पार्टी से निकालना नहीं चाहते थे लेकिन माहौल ऐसा बना कि उनके लिए अमर सिंह को पार्टी में रख पाना मुश्किल हो गया . अमर सिंह ने भी अपनी हैसियत को बहुत बढ़ा कर आंक रखा था . यह उनकी गलती थी . दिल्ली की राजनीति में कोई भी बहुत ताक़तवर नहीं होता . इसी दिल्ली में सबसे बेहतरीन मुग़ल बादशाह को उसी के बेटे औरंगजेब ने जेल की हवा खिलाई थी . बाद के युग में इंदिरा गाँधी के दरबार के बहुत करीबी लोग ऐसे मुहल्लों में खो गए थे जहां कोई भी ताक़तवर आदमी जाना नहीं चाहेगा. दिनेश सिंह एक बार जवाहरलाल नेहरू के करीबी हुआ करते थे, इंदिरा जी के ख़ास सलाहकार थे और बाद में राज नारायण समेत बहुत सारे लोगों के दरवाजों पर दस्तक देते देखे गए थे. वामपंथी रुझान के नेता चन्द्र जीत यादव की हनक का अंदाज़ वह इंसान लगा ही नहीं सकता जिसने सत्तर के दशक के शुरुआती वर्षों में उनका जलवा नहीं देखा . कभी बाबू जगजीवन राम की मर्जी को इंदिरा जी अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करती थीं , बाद में वे ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हुए . इसलिए दिल्ली की राजनीति एक ऐसा अखाड़ा है जहां जो पहलवान मुकाबिल हो वहां से तो हमला होता ही है , अपने साथी भी ज़बर्दस्त वार करते हैं . अमर सिंह इसी बारकी को समझने में गच्चा खा गए और जब उन्हें राजनीति के शतरंज की शह की जानकारी मिली तब तक वे मात चुके थे . लेकिन समाजवादी पार्टी में उनके विरोधियों को भी मुगालता था कि उन्होंने लड़ाई जीत ली है . और यहीं वे गच्चा खा गए. अमर सिंह के चेलों को हटा कर उन लोगों ने अपने बन्दों को ख़ास पदों बैठा दिया लेकिन अब तस्वीर की बारीकियां उभरने लगी हैं . मुलायम सिंह ने साफ़ कर दिया है कि समाजवादी पार्टी में उनकी ही चलेगी . अमर सिंह के भाई की पत्नी को दुबारा राज्य सभा की टिकट देकर उन्होंने ऐलान कर दिया है कि अमर सिंह ज्यादा बोलने की अपनी आदत के चलते उनको नाराज़ करने में तो भले ही सफल हो गए हैं लेकिन अभी मुलायम सिंह यादव उन्हें दुश्मन नहीं मानते. समाजवादी पार्टी की मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम को देखने से स्वर्गीय चन्द्र शेखर की एक बात याद आती हैं. वे कहा करते थे कि राजनीति संभाव्यता का खेल है . यानी यहाँ कुछ भी संभव है . राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता . एक घटना से बात को समझने की कोशिश की जायेगी. एक बार लालू प्रसाद यादव को देवेगौड़ा ने पार्टी से निकला दिया था. लालू ने उनके खिलाफ बहुत सारे बयान दिए . कुछ दिन बाद फिर एकता हो गयी. किसी प्रेस वार्ता में दोनों ही नेता साथ साथ प्रेस को संबोधित कर रहे थे . किसी ने पूछा कि लालू जी आपने तो देवेगौडा को बहुत गालियाँ दी थीं, आज उनके साथ क्यों बैठे हैं ? लालू ने बगल में बैठे हुए देवेगौडा की तरफ इशारा करके जवाब दिया कि इन्होने हमें पार्टी से निकाला था , तो क्या हम इनकी आरती उतारते. बात एक बहुत ही ज़ोरदार ठहाके में ख़त्म हो गयी और सारी तल्खी हवा हो गयी . बहरहाल समाजवादी पार्टी में भी लगता है कि यही हो रहा है. अमर सिंह के सारे बयानों के बावजूद पार्टी में उनके विरोधियों को औकात पर रखना और उनके सबसे करीबी परिवार की मुखिया को राज्यसभा में दुबारा भेजने का फैसला करके मुलायम सिंह यादव ने बहस को अखाड़े में फेंक दिया है . अब आगे का घटनाक्रम देखना बहुत ही दिलचस्प होगा..
इसके अलावा भी राज्यसभा और विधान परिषद् का टिकट देने में मुलायम सिंह यादव ने राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया है . जब मायावती और काशी राम उनसे अलग हुए तो उन्होंने उनके दलित वोट बैंक को बैलेंस करने के लिए फूलन देवी को अपने साथ ले लिया था . और कहा कि दलितों की आबादी के सत्तर प्रतिशत निषाद भी उत्तर प्रदेश में रहते हैं .मुसलमानों में रशीद मसूद को टिकट देकर उन्होंने लगभग ऐलान कर दिया है कि अब आज़म खान की वापसी उनकी पार्टी में नहीं होगी, हालांकि अमर सिंह का विरोधी खेमा पूरी कोशिश कर रहा है .जया बच्चन को टिकट देकर उन्होंने बड़ा जुआ खेला है . हो सकता है कि वे सीट हाथ आ जाने के बाद साथ छोड़ जाएँ लेकिन इस बात की भी पूरी संभावना है कि उनको सम्मानित किये जाने के बाद अमर सिंह को गलती का पता चले और वे वापस आने के लिये पहल कर दें . जो भी हो , उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल में निश्चित रूप से परिवर्तन होने वाला है . देखिये ऊँट किस करवट बैठता है
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Monday, January 25, 2010
कल्याण सिंह ने कहा-- अमर सिंह बहुत अच्छे नेता
शेष नारायण सिंह
अमर सिंह को खोकर मुलायम सिंह यादव का भारी नुकसान हुआ है ..अमर सिंह बहुत अच्छे इंसान हैं , राजनीतिक प्रबंधन का कौशल उनके टक्कर का किसी और नेता में नहीं है . उन्होंने मुलायम सिंह यादव की पार्टी को बहुत मजबूती दी और आय से अधिक संपत्ति के मामले में उनको अमर सिंह ने ही बचाया . अमर सिंह एक बहुत अच्छे नेता हैं और मैं उनका बहुत आदर करता हूँ .उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, कल्याण सिंह ने एक बातचीत के दौरान यह बातें कहीं.. यह पूछे जाने पर कि क्या आप अमर सिंह को अपने साथ लेंगें , उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया. बोले कि अभी अमर सिंह के लिए पार्टी में शामिल होना तकनीकी रूप से अड़चन वाला काम है क्योंकि जब तक समाजवादी पार्टी उन्हें निष्कासित नहीं करती उन्हें उसी पार्टी में रहना पड़ेगा. क्योंकि अगर खुद इस्तीफ़ा दे देगें तो राज्य सभा की सदस्यता जायेगी. इस लिए जब तक वे समाजवादी पार्टी से अलग नहीं होते उनके लिए कोई भी पार्टी ज्वाइन करना संभव नहीं है ... कल्याण सिंह ने इस बात को भी सिरे से खारिज कर दिया कि अमर सिंह उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ लाये थे. उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह ही उनके बेटे के घर गए और लखनऊ उनके घर गए. साथ में अमर सिंह भी थे लेकिन लाये मुलायम सिंह यादव ही थे . उन्होंने इस बात पर अपनी नाराज़गी जताई कि बाद में उन्हें अपमानित करके अलग कर दिया और कहा कि गलती से आगरा सम्मलेन के लिए कार्ड पंहुच गया था और कल्याण सिंह चले आये. . कोई उनसे पूछे कि आगरा में जब माइक पर माननीय मुलायम सिंह यादव , कल्याण सिंह जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे तो वह भी गलती से हो गया था . मुलायम सिंह की आदत है कि वे लोगों को मझधार में छोड़ देते हैं ..वही मेरे साथ हुआ और वही अब अमर सिंह के साथ हो रहा है. हाँ इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब अमर सिंह को कहीं जगह न मिले तो वे और मुलायम सिंह फिर इकठ्ठा हो सकते हैं .. इसलिए अभी अमर सिंह के अगले पड़ाव के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं होगा. जहां तक उनका सवाल है वे अब कभी भी मुलायम सिंह के साथ नहीं जायेंगें. क्योंकि अबकी जो नयी पार्टी, जन क्रान्ति पार्टी , बनायी गयी है वह उनका अपना फैसला नहीं है. दिल्ली , लखनऊ, डिबाई और अतरौली में अपने कार्यकर्ताओं की बैठक करके सबकी राय से पार्टी बनायी है. सब ने एक सुर से कहा था कि नया घर ,नयी पार्टी ,नया झंडा और नया एजेंडा लेकर हम आये हैं और अब बी जे पी या किसी अन्य पार्टी में जाने का कोई मतलब नहीं है .. कल्याण सिंह कहते हैं कि २०१२ में उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधान सभा आना तय है और उनकी पार्टी करीब ६० सीटें लेकर ऐसी स्थिति में होगी जिस से कोई भी सरकार उनकी पार्टी से सहयोग लिए बिना न बन सके. कल्याण सिंह कहते है कि २०१२ में मायावती भी को १०० के थोडा ऊपर सीटें मिल सकती हैं और सबसे बड़ी पार्टी वही होगी. . उत्तर प्रदेश में जो अभी जंगलराज है , भ्रष्टाचार चरम पर है , लूट मची हुई है वह अगले दो साल में और बढ़ेगी जिसकी वजह से मायावती की सीट संख्या कम होगी. . सारे हल्ले गुल्ले के बाद भी कांग्रेस को ५० के आस पास ही सीटें मिलेंगीं. बी जे पी का कोई भी नेता राज्य में ऐसा नहीं है जिसकी वजह से चुनाव जीता जा सके.पहले बी जे पी को पार्टी विथ ए डिफरेंस कहा जाता था लेकिन अब वह ए पार्टी ऑफ़ डिफरेंसेज़ हो गयी है .. मुसलमान अब मुलायम सिंह के साथ नहीं है. पिछड़ा वर्ग भी उनके साथ नहीं है. इस सब का फ़ायदा लेकर कल्याण सिंह एक ताक़त वर राजनीतिक जमात बन सकने की उम्मीद लागाये बैठे हैं ..उनका दावा है कि उनकी पार्टी ही राज्य की तरक्की का कार्यक्रम बना कर चल रही है ..कल्याण सिंह की नज़र में मुलायम सिंह यादव एक अपरिपक्व नेता हैं जिन्होंने मुसलमानों के अलग होने के बाद मुझे आनन् फानन में अलग कर दिया जबकि आज़म खां ने बेमतलब इसको मुद्दा बना दिया था. . मुसलमान अलग इसलिए हुआ कि अब उसके सामने बी जे पी का हौवा नहीं है , बी जे पी अब उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक ताक़त नहीं है और मुसलमान कांग्रेस को बतौर विकल्प स्वीकार करने की तैयारी में है ..आज़म खां की नाराज़गी ,रामपुर से जया प्रदा की टिकट की वजह से थी जो वह ऐलानियाँ कह नहीं पाए और मेरे नाम पर हल्ला गुल्ला शुरू कर दिया .२०१२ में यह सारे चुनावी शिगूफे बेकार साबित होंगें क्योंकि उनकी पार्टी ने जो कार्यक्रम बनाया है उसकी तरफ सभी आकर्षित होंगें .. उनकी पार्टी का कार्यक्रम है प्रखर हिन्दुत्व , प्रखर राष्ट्रवाद,लोकतंत्र ,सामाजिक न्याय, राम मंदिर के प्रति प्रतिबद्धता और विकास मंदिर की रचना. कल्याण सिंह के इस हिन्दुत्व अभियान में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट का विरोध भी शामिल है ..क्योंकि वह हिन्दू ओ बी सी का हक मारता है .. बहरहाल उनका यह कहना है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक स्थिति बहुत ही डावाडोल है और आने वाला वक़्त और भी अराजकता की तरफ जा सकता है . और उनकी पार्टी आने के बाद सब का नुकसान होगा सिवा कांग्रेस के और सबके नुक्सान का फ़ायदा उनकी पार्टी को हो सकता है ..
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अमर सिंह को खोकर मुलायम सिंह यादव का भारी नुकसान हुआ है ..अमर सिंह बहुत अच्छे इंसान हैं , राजनीतिक प्रबंधन का कौशल उनके टक्कर का किसी और नेता में नहीं है . उन्होंने मुलायम सिंह यादव की पार्टी को बहुत मजबूती दी और आय से अधिक संपत्ति के मामले में उनको अमर सिंह ने ही बचाया . अमर सिंह एक बहुत अच्छे नेता हैं और मैं उनका बहुत आदर करता हूँ .उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, कल्याण सिंह ने एक बातचीत के दौरान यह बातें कहीं.. यह पूछे जाने पर कि क्या आप अमर सिंह को अपने साथ लेंगें , उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया. बोले कि अभी अमर सिंह के लिए पार्टी में शामिल होना तकनीकी रूप से अड़चन वाला काम है क्योंकि जब तक समाजवादी पार्टी उन्हें निष्कासित नहीं करती उन्हें उसी पार्टी में रहना पड़ेगा. क्योंकि अगर खुद इस्तीफ़ा दे देगें तो राज्य सभा की सदस्यता जायेगी. इस लिए जब तक वे समाजवादी पार्टी से अलग नहीं होते उनके लिए कोई भी पार्टी ज्वाइन करना संभव नहीं है ... कल्याण सिंह ने इस बात को भी सिरे से खारिज कर दिया कि अमर सिंह उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ लाये थे. उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह ही उनके बेटे के घर गए और लखनऊ उनके घर गए. साथ में अमर सिंह भी थे लेकिन लाये मुलायम सिंह यादव ही थे . उन्होंने इस बात पर अपनी नाराज़गी जताई कि बाद में उन्हें अपमानित करके अलग कर दिया और कहा कि गलती से आगरा सम्मलेन के लिए कार्ड पंहुच गया था और कल्याण सिंह चले आये. . कोई उनसे पूछे कि आगरा में जब माइक पर माननीय मुलायम सिंह यादव , कल्याण सिंह जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे तो वह भी गलती से हो गया था . मुलायम सिंह की आदत है कि वे लोगों को मझधार में छोड़ देते हैं ..वही मेरे साथ हुआ और वही अब अमर सिंह के साथ हो रहा है. हाँ इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब अमर सिंह को कहीं जगह न मिले तो वे और मुलायम सिंह फिर इकठ्ठा हो सकते हैं .. इसलिए अभी अमर सिंह के अगले पड़ाव के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं होगा. जहां तक उनका सवाल है वे अब कभी भी मुलायम सिंह के साथ नहीं जायेंगें. क्योंकि अबकी जो नयी पार्टी, जन क्रान्ति पार्टी , बनायी गयी है वह उनका अपना फैसला नहीं है. दिल्ली , लखनऊ, डिबाई और अतरौली में अपने कार्यकर्ताओं की बैठक करके सबकी राय से पार्टी बनायी है. सब ने एक सुर से कहा था कि नया घर ,नयी पार्टी ,नया झंडा और नया एजेंडा लेकर हम आये हैं और अब बी जे पी या किसी अन्य पार्टी में जाने का कोई मतलब नहीं है .. कल्याण सिंह कहते हैं कि २०१२ में उत्तर प्रदेश में त्रिशंकु विधान सभा आना तय है और उनकी पार्टी करीब ६० सीटें लेकर ऐसी स्थिति में होगी जिस से कोई भी सरकार उनकी पार्टी से सहयोग लिए बिना न बन सके. कल्याण सिंह कहते है कि २०१२ में मायावती भी को १०० के थोडा ऊपर सीटें मिल सकती हैं और सबसे बड़ी पार्टी वही होगी. . उत्तर प्रदेश में जो अभी जंगलराज है , भ्रष्टाचार चरम पर है , लूट मची हुई है वह अगले दो साल में और बढ़ेगी जिसकी वजह से मायावती की सीट संख्या कम होगी. . सारे हल्ले गुल्ले के बाद भी कांग्रेस को ५० के आस पास ही सीटें मिलेंगीं. बी जे पी का कोई भी नेता राज्य में ऐसा नहीं है जिसकी वजह से चुनाव जीता जा सके.पहले बी जे पी को पार्टी विथ ए डिफरेंस कहा जाता था लेकिन अब वह ए पार्टी ऑफ़ डिफरेंसेज़ हो गयी है .. मुसलमान अब मुलायम सिंह के साथ नहीं है. पिछड़ा वर्ग भी उनके साथ नहीं है. इस सब का फ़ायदा लेकर कल्याण सिंह एक ताक़त वर राजनीतिक जमात बन सकने की उम्मीद लागाये बैठे हैं ..उनका दावा है कि उनकी पार्टी ही राज्य की तरक्की का कार्यक्रम बना कर चल रही है ..कल्याण सिंह की नज़र में मुलायम सिंह यादव एक अपरिपक्व नेता हैं जिन्होंने मुसलमानों के अलग होने के बाद मुझे आनन् फानन में अलग कर दिया जबकि आज़म खां ने बेमतलब इसको मुद्दा बना दिया था. . मुसलमान अलग इसलिए हुआ कि अब उसके सामने बी जे पी का हौवा नहीं है , बी जे पी अब उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक ताक़त नहीं है और मुसलमान कांग्रेस को बतौर विकल्प स्वीकार करने की तैयारी में है ..आज़म खां की नाराज़गी ,रामपुर से जया प्रदा की टिकट की वजह से थी जो वह ऐलानियाँ कह नहीं पाए और मेरे नाम पर हल्ला गुल्ला शुरू कर दिया .२०१२ में यह सारे चुनावी शिगूफे बेकार साबित होंगें क्योंकि उनकी पार्टी ने जो कार्यक्रम बनाया है उसकी तरफ सभी आकर्षित होंगें .. उनकी पार्टी का कार्यक्रम है प्रखर हिन्दुत्व , प्रखर राष्ट्रवाद,लोकतंत्र ,सामाजिक न्याय, राम मंदिर के प्रति प्रतिबद्धता और विकास मंदिर की रचना. कल्याण सिंह के इस हिन्दुत्व अभियान में रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट का विरोध भी शामिल है ..क्योंकि वह हिन्दू ओ बी सी का हक मारता है .. बहरहाल उनका यह कहना है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक स्थिति बहुत ही डावाडोल है और आने वाला वक़्त और भी अराजकता की तरफ जा सकता है . और उनकी पार्टी आने के बाद सब का नुकसान होगा सिवा कांग्रेस के और सबके नुक्सान का फ़ायदा उनकी पार्टी को हो सकता है ..
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