Sunday, September 16, 2012

पूरी ताक़त प्रधानमंत्री की छवि संवारने में लगी लेकिन राज्यों में कांग्रेस ने हार स्वीकार कर ली है .


 ( 5 सितम्बर को लिखा था)

शेष नारायण सिंह  

लोकसभा २०१४ की  तैयारियां ज़ोरों पर हैं .बीजेपी ने अब प्रधानमंत्री को भी निशाने पर ले लिया है . यह अलग बात है कि  पिछले आठ साल तक मुख्य विपक्षी दल ने कभी भी प्रधानमंत्री पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए थे . कुछ बहुत ही नख दन्त विहीन आरोप लगाए जाते थे.. जैसे बीजेपी की तरफ से कहा जाता था कि प्रधान मंत्री बहुत कमज़ोर हैं, या बहुत  सीधे  हैं या खुद तो ईमानदार हैं लेकिन बे ईमानों की सरकार के अगुआ हैं . लेकिन अब बीजेपी को प्रधान मंत्री भ्रष्ट नज़र आने लगे हैं . प्रधानमंत्री ने भी बीजेपी को राजनीतिक रूप से घेरने के लिए सोनिया गांधी की मंजूरी ले ली है और उनके ताज़ा बयानों से लगता है कि वे बीजेपी को भी ईमानदारी के सांचे से बाहर लाने के लिए कटिबद्ध हैं .
अब कोयला भी एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिसमें कांग्रेस का भ्रष्टाचार उजागर होता है तो बीजेपी भी उस से कम भ्रष्ट नहीं है . संसद में बहस न करवाकर बीजेपी ने जो अपनी पोल खुलने से बचाने की कोशिश की थी , मनमोहन सिंह की सरकार के कुछ अफसरों ने वह काम फाइलें मीडिया को लीक करके पूरी कर दी हैं .. देश के सबसे महत्वपूर्ण अंग्रेज़ी चैनल के पास रोज़ ही कोई  ऐसी  फ़ाइल ज़रूर होती है  जिस से कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी की भी किरकिरी हो रही है . संसद में जारी गतिरोध को राजनीतिक रूप से बीजेपी के खिलाफ इस्तेमाल करने की मुहिम में प्रधान मंत्री ने खुद मोर्चा संभाल लिया है . कोयला आवंटन के तकनीकी पक्ष की  बात तो उनके मंत्री और कांग्रेस के प्रवक्ता  लोग कर रहे हैं लेकिन बीजेपी  को राजनीतिक रूप से कमज़ोर साबित करने का ज़िम्मा खुद प्रधान मंत्री ने  संभाल लिया है .  खबर है कि बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस के भी उन संसद सदस्यों को बेनकाब किया जाएगा जिन्होंने कोयले के ब्लाक ले रखे हैं . इस काम में सी बी आई का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है .४ सितम्बर को सी बी आई ने जिन पांच कंपनियों के दफ्तरों पर छापे मारे हैं उनमें से कई दफ्तर कांग्रेसी सांसदों के बताये जा रहे हैं  . यह लगभग पक्का माना जा रहा है कि अब सी बी आई बीजेपी नेताओं के दोस्तों के ठिकानों पर छापेमारी करेगी जो कोयले के ब्लाक के लाभार्थी हैं .

प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि हमारी अर्थव्यवस्था ९ प्रतिशत के आर्थिक विकास दर को  हासिल नहीं कर पा रही है  इसका मुख्य कारण यह है अपने देश में राजनीतिक माहौल विकास के पक्ष में नहीं है . उन्होंने गुड्स और सर्विसेज़ टैक्स को लागू न कर पाने के लिए भी विपक्ष को ही ज़िम्मेदार ठहराया . उन्होंने दावा किया कि अगर यह टैक्स लागू हो जाए तो आर्थिक विकास की दर कम से कम २ प्रतिशत बढ़ जायेगी.और टैक्स न देने वालों पर काबू किया जा सकेगा.उन्होंने विपक्ष पर सीधा हमला किया और कहा कि गरीबी,भूख और बीमारी जैसी समस्याओं को हल करने में भी विपक्ष बाधा डाल रहा है . उनका दावा है कि अगर विपक्ष सरकार को ठीक से काम करने दे तो इन समस्याओं  को हल करना आसान हो जाएगा. देश एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रहा है और बीजेपी वाले संसद की कार्यवाही में लगातार बाधा डाल रहे हैं .यह मुख्य समस्याओं से आम आदमी का ध्यान हटाने की कोशिश है .काम के लिए  केवल २४ घंटे मिलते है और उसमें अगर बड़ा वक़्त बीजेपी की ध्यान बांटने वाली कारस्तानियों को संभालने में लग जायेगें  तो काम कैसे हो पायेगा.इस चक्कर में सरकार अपना बुनियादी काम भी नहीं कर पाती . इस से सरकार के काम कर सकने की क्षमता पर असर पड़ता है .डॉ मनमोहन सिंह का कहना है कि उनकी सरकार का मुख्य काम गरीबी , बीमारी और अशिक्षा से मुकाबला करना है.अगर उनकी सरकार यह काम करने में सफल होती है तो देश के करोड़ों लोगों को लाभ पंहुचेगा. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बीजेपी इस काम को करने नहीं दे रही है .
लेकिन इसका मतलब यह  नहीं है कि कांग्रेस चुनाव के लिए तैयार है, जिन राज्यों में  जल्द ही चुनाव होने हैं वहां कांग्रेस ने अपनी हार का सही इंतज़ाम  कर रखा है . गुजरात में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है लेकिन वहां कांग्रेस का कोई अभियान नहीं है . वाइब्रेंट गुजरात के ज़रिये नरेंद्र मोदी ने मीडिया में अपनी छवि को चमकाने  का कार्यक्रम नियमित रूप से चला रखा है . गुजरात में  कांग्रेसी पूरी तरह से हतप्रभ हैं  और नरेंद्र मोदी के तय किये हुए एजेंडा पर केवल प्रतिक्रिया देने का काम कर रहे हैं . हिमाचल प्रदेश  में काग्रेस की कमान वीरभद्र सिंह के हाथ में दे दी गयी है . समझ में नहीं आता कि जो आदमी केंद्र सरकार से इसलिए निकाल दिया गया हो कि वह अपना काम ठीक से नहीं कर रहा  था, उसे सत्ताधारी  बीजेपी को चुनौती देने का काम क्यों सौंपा गया. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी विधान सभा  के चुनाव जल्द होने हैं . छत्तीस गढ़ में तो कांग्रेस की तरफ  से लगभग वाकओवर देने की तैयारी हो चुकी है .  रमन सिंह को वहां का कांग्रेसी आगामी मुख्यमंत्री के रूप में देख रहा है जबकि मध्य प्रदेश में राहुल उर्फ़ अजय सिंह के अलावा कोई भी कद्दावर  कांग्रेसी मध्य प्रदेश की राजनीति में रूचि नहीं  ले  रहा है . राहुल गाँधी के कृपा पात्र सिंधिया जी के परिवार की ग्वालियर राज में थोड़ी बहुत हैसियत है. बाकी राज्य तो खाली ही पड़ा है . छिंदवाडा में कमलनाथ जीत जायेगें लेकिन उसके बाहर उनकी कोई राजनीति  नहीं है. दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश के अलावा बाकी भारत में  अपना साम्राज्य फैला रखा है और राम देव से लेकर अन्ना  हजारे तक को औकातबोध करा रहे हैं . मध्य प्रदेश  में वे २०१३ में जाने वाले हैं लेकिन फिलहाल तो वहां भी शिवराज सिंह का डंका बज रहा है . 

राजस्थान में भी चुनाव होने हैं . वहां कांग्रेस का राज है लेकिन सबका कहना है कि मौजूदा मुख्य मंत्री की अगुवाई में तो कांग्रेस की वर्तमान सीटों की आधी संख्या भी नहीं बचेगीं.कांग्रेस आलाकमान तय भी कर चुका है कि मुख्य मंत्री बदलना है. बताते हैं कि राहुल गांधी के एक प्रिय शिष्य  राजस्थान की किसी  रियासत के राजा के परिवार के कोई श्रीमानजी उनके मुख्य सलाहकार हैं , वे खुद ठाकुर हैं और  ठाकुरों के नेता बनने के सपने पाल चुके हैं इसलिए ब वहां किसी ठाकुर को आगे नहीं आने दे रहे हैं . राहुल गांधी उनकी नज़र से  ही देख रहे हैं इसलिए उनके मरजी चल रही है . बताया जा रहा है कि किसी ठाकुर मुख्य मंत्री के नेतृत्व  में चुनाव लड़ा जाने वाला है . राहुल गांधी के यह शिष्य नेता अपने आपको ही मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने के चक्कर में हैं .शायद इसी लिए इन्होने राजस्थान में ठाकुरों को कांग्रेस में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर नहीं बैठने  दिया है . अजीब लगता है जब ठाकुर प्रभाव वाले राज्य में कांग्रेस के किसी भी संगठन का मुखिया ठाकुर नहीं है.  राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष  जाट है जिसके ऊपर किसी ब्राह्मण के क़त्ल  का आरोप है . यह व्यक्ति जब भी चुनाव लड़ता है,हार जाता है . युवक कांग्रेस का अध्यक्ष भी जाट है . सेवा दल भी जाटों के कब्जे में है एन एस यू आई ,इंटक और महिला कांग्रेस के अध्यक्ष  भी जाट हैं . जाटों के इस दबदबे का कोई कारण समझ में नहीं आता क्योंकि इसकी वजह से ब्राहमण , और ठाकुर जो कांग्रेस की तरफ खिंच रहे थे अब दूर भाग रहे हैं . इस तरह से एक महत्वपूर्ण राज्य जहां कांग्रेस मज़बूत हो सकती थी ,वहां  एक नौजवान राजपूत कांग्रेसी नेता की महत्वाकांक्षा  के चलते  कांग्रेस की हार की तैयारी हो चुकी है .
हालांकि अभी दूर है लेकिन लोक सभा चुनाव 2014 में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में भी   हार मान ली है . वहां  फैजाबाद के सांसद निर्मल खत्री को पार्टी की कमान सौंप दी गयी है . निर्मल खत्री बहुत भले आदमी हैं लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं  . फैजाबाद जिले में कभी कभार चुनाव जीतने के अलावा उन्होंने कभी कोई बड़ी सफलता नहीं हासिल ही है . उनको  उनके समकालीनों में कोई भी  नेता नहीं मानता . लगता है कि राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश का मैदान पूरी तरह से सपा बनाम बसपा की लड़ाई के लिए छोड़ दिया है .ऐसी हालत में लगता है कि अपने वफादार लोगों को स्थापित करने के चक्कर  में  कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बेदखल  होने की योजना पर काम कर रही है . दिल्ली में तो मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत छवि को ठीक करने के लिए सारी ताकतें एकजुट हो गयी हैं लेकिन राज्यों में  कांग्रेस आलाकमान हार की इबारत लिख रहा है .

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