शेष नारायण सिंह
मुंबई,३१ अक्टूबर.भ्रष्टाचार के खिलाफ करीब तीस वर्षों से अभियान चला रहे अन्ना हजारे दुविधा में हैं . उनके मौन व्रत से उनको बहुत सारे मुश्किल सवालों से तो छुट्टी मिल गयी है लेकिन अपने करीबी साथियों के आचरण को लेकर उनके आन्दोलन और उनकी शख्सियत को मिल रही कमजोरी से उनके पुराने साथी परेशान हैं. करीब तीस साल से अन्ना हजारे के साथी रहे नामी अर्थशास्त्री, एच एम देसरदा का कहना है कि दिल्ली में सामाजिक कार्य का काम करने वालों पर भरोसा करके अन्ना हजारे और उनके मिशन को भारी नुकसान हुआ है और विवादों के चलते लोकपाल बिल का मुद्दा कमज़ोर पड़ा है .
पिछले तीस साल से अन्ना हजारे की आन्दोलनों के थिंक टैंक का हिस्सा रहे अर्थशास्त्री ,एच एम देसरदा बताते हैं कि जब अन्ना हजारे ने इस साल अप्रैल में जंतर मंतर पर अनशन शुरू किया था, उसके अगले दिन ही उन्होंने दिल्ली जाकर अन्ना को समझाया था कि दिल्ली में सामाजिक सेवा का काम करने वालों से बच कर रहें .उन्होंने उनको लगभग चेतावनी दे दी थी कि इन लोगों के चक्कर में आने पर अन्ना हजारे के सामने मुसीबत पैदा हो सकती है ..लेकिन अन्ना हजारे ने एक नहीं सुनी. नतीजा सामने है. देसरदा का कहना है कि अगर अन्ना ने उनकी बात सुनी होती तो आज उनको शर्माना न पड़ता. अनशन के स्थगित होने के बाद अन्ना लोकपाल बिल और उस से जुड़े मुद्दों पर कोई बात नहीं कर पा रहे हैं . उनका सारा समय और ऊर्जा किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण पर लगे आरोपों का जवाब देने में बीत रहा है .बेदी के ऊपर यात्रा बिल में हेराफेरी का आरोप है. तो अरविंद केजरीवाल पर चंदे के गलत हिसाब और नौकरी के वक़्त किये गए कानून के उल्लंघन का आरोप है . प्रशांत भूषण तो और भी आगे बढ़ गए हैं . जो कश्मीर मूदा १९४७ में सरदार पटेल ने हल कर दिया था, प्रशांत भूषण उसी मुद्दे के नाम पर ख़बरों में बने रहने की साज़िश में शामिल पाए गए हैं . स्वामी अग्निवेश नाम के सामजिक कार्यकर्ता के ऊपर सरकार के लिए जासूसी करने का आरोप पहले ही लग चुका है . शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण के ऊपर पैसा दिलवाकर मुक़दमों में फैसले करवाने का मामला चल ही रहा है . कुमार विश्वास नाम के एक मास्टर जी हैं , वे भी कालेज में पढ़ाने की अपनी बुनियादी ड्यूटी को भूल कर अन्ना के नाम पर चारों तरफ घूमते पाए जा रहे हैं .. देसरदा का कहना है कि अभी भी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है .अन्ना हजारे को चाहिए कि अपनी रणनीति पर फिर से विचार करें और अपने अभियान को सही दिशा देने के लिए दिल्ली में सामाजिक काम का धंधा करने वालों से अपने आपको बचाएं .
देसरदा १९८२ से ही अन्ना हजारे के कागज़ात तैयार करते रहे हैं ,उनके लिए रणनीतियाँ बनाते रहे हैं.और उनकी अब तक की सफलताओं में कुछ अन्य निः स्वार्थ लोगों के साथ शामिल रहे हैं . अप्रैल में जब अन्ना हजारे के साथ बहुत देर तक चली उनकी बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्होंने अन्ना हजारे को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था कि अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अन्ना अपनी टीम के हाथों नज़रबंद थे,इस टीम की मर्जी के बिना वे अपने पुराने साथियों से भी नहीं मिल सकते थे .उन्हें इस बात पर भी एतराज़ था कि अन्ना के नए साथी कई मामलों में अन्ना को बताये बिना भी फैसले ले लेते थे. अन्ना हजारे से ने संकेत दिया था कि मौन व्रत के ख़त्म होने के बाद वे टीम के बारे में फिर से विचार करेगें . लेकिन एच एम देसरदा को अफ़सोस है कि टीम ने उनके मौनव्रत के बावजूद भी अपनी खामियों की बचत के प्रोजेक्ट में अन्ना हजारे को इस्तेमाल कर लिया.
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बिलकुल सही कहा
ReplyDeleteलेकिन अन्ना इन सबमे सबसे बड़ा वाला है
खुद अन्ना कहता है कि पिछले पेंतीस वर्षों में उसने कभी कांग्रेस के खिलाफ काम नहीं किया
तो क्या अन्ना को साल भार पहले तक कांग्रेस में कोई भ्रष्टाचार नज़र नहीं आता था
http://yugals.com/?p=1350
देसरदा की सोच बिल्कुल सही है|
ReplyDeleteअन्ना एनजीओ वीरों के मक्कड़ जाल में फंस गए है या कहिये कि तथाकथित समाज सेवियों ने अपने फायदे के लिए अन्ना को हाई जैक कर लिया है|
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