Monday, September 5, 2011
मेरे बच्चे मुझसे अच्छे हैं
शेष नारायण सिंह
मुझे जीवन में करीब पांच साल शिक्षक के रूप में काम करने का मौक़ा मिला. पहली बार १९७३ में जब मैं एक डिग्री कालेज में इतिहास मास्टर था . दो साल बाद निराश होकर वहां से भाग खड़ा हुआ . वहां बी ए के बच्चों को इतिहास पढ़ाया था मैंने . वे बच्चे मेरी ही उम्र के थे. कुछ उम्र के लिहाज़ से मेरे सीनियर भी रहे होंगें . लेकिन आज तक हर साल ५ सितम्बर के दिन वे बच्चे मुझे याद करते हैं . कुछ तो टेलीफोन भी कर देते हैं . दुबारा २००५ में फिर एक बार शिक्षक बना . इस बार पत्रकारिता पढाता था. तीन बैच के बच्चे मेरे विद्यार्थी हुए . यह दौर मेरे लिए बहुत उपयोगी था. पत्रकारिता का जो सैद्धांतिक पक्ष है उसके बारे में बहुत जानकारी मुझको मिली. अपनें विद्यार्थियों के साथ साथ मैं भी नई बातें सीखता रहा . तीन साल बाद नौकरी से अलग हो गया . शायद वहां मेरा काम पूरा हो चुका था . लेकिन इन वर्षों में मैंने जिन बच्चों को पढ़ाया उन पर मुझे गर्व है . समय की परेशानियों के चलते उन बच्चों को वैसी नौकरी नहीं मिली जैसी मिलनी चाहिए थी . लेकिन मुझे मालूम है कि वे अपने दौर के बेतरीन पत्रकार हैं .अगर उन्हें मौक़ा मिला तो वे अपने संगठन को बुलंदियों पर ले जायेगें. मेरी इच्छा है कि कुछ संगठन आगे आयें और उन बच्चों को मौक़ा दें , जो लोग मुझे अच्छा पत्रकार मानते हैं मैं उनसे अपील करता हूँ कि वे मेरे बच्चों पर नज़र डालें . वे सब मुझसे बेहतर पत्रकार हैं . आज बहुत से बच्चों नें मुझे याद किया है . मैं भी उन सबसे कहना चाहता हूँ मुझेभी तुम्हारी बहुत याद आती है मेरे बच्चो. देर हो रही है लेकिन तुम सब पत्रकारिता की बुलंदियों तक जाओगे. ठोकर खाकर कभी नहीं परेशान होना . मैं जानता हूँ कि तुम लोग हर हाल में बहुत ऊंचाई तक जाओगे.
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ये मंगलकामनाएं स्तुत्य हैं।
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