शेष नारायण सिंह
नौकरशाही ने जनाकांक्षाओं को काबू करने की एक और राजनीतिक कोशिश पर बाबूतंत्र की लगाम कस दी है . ग्रामीण विकास मंत्रालय की योजनाओं के ऊपर नज़र रखने की गरज से राजनीतिक स्तर पर तय किया गया था कि पूरे देश में ग्रामीण विकास की सभी योजनाओं की मानिटरिंग ऐसे लोगों से करवाई जायेगी जो सरकार का हिस्सा न हों . वे ग्रामीण इलाकों का दौरा करेगें और अगर कहीं कोई कमी पायी गयी तो उसकी जानकारी केंद्र सरकार को देगें जिसके बाद उसे दुरुस्त करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाये जा सकें . इन लोगों को राष्ट्रीय स्तर का मानिटर ( एन एल एम ) का नाम दिया गया है .राजनीतिक इच्छा यह थी कि बाबूतंत्र के बाहर के लोगों के इनपुट की मदद से ग्रामीण विकास की योजनाओं को और बेहतर बनाया जाएगा . लेकिन नौकरशाही ने इस योजना को अवकाश प्राप्त मातहत अफसरों के पुनर्वास के लिए इस्तेमाल करने की चाल चल दी. सारी योजना को सरकारी तरीकों का इस्तेमाल करके राजनीतिक मंजूरी ले ली गयी और अब जो स्वरुप उभर कर सामने आया है ,उसके अनुसार ऐसे लोगों को राष्ट्रीय स्तर का मानिटर बनाया जाना है जो सरकारी नौकरी में मझोले दर्जे के पदों तक पंहुचे हों और वहीं से रिटायर हो गए हों . ज़ाहिर है यह लोग अपनी पूरी सर्विस में बिना ऊपर की हरी झंडी मिले कभी भी स्वतंत्र निर्णय न ले सके होंगें .आम तौर पर इया वर्ग के लोग आदतन बड़े अफसरों की हाँ में हाँ मिलाने की कला में दक्ष पाए जाते हैं .
ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक योजना है कि अपनी योजनाओं की मानिटरिंग के लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाए तो सरकार का हिस्सा न हों , ग्रामीण विकास के प्रति उनके मन में बहुत उत्साह हो , गावों में जाकर योजनाओं पर नज़र रख सकें और सरकारी तंत्र को बेलगाम होने से रोक सकें . लेकिन नौकरशाही ने इस योजना को ऐसा रूप दे दिया कि अब यह केवल रिटायर्ड अफसरों को कुछ काम दे देने के अलावा कुछ भी नहीं है . नैशनल लेवल मानिटर बनाने के लिए अब एक पैनल बनाया जा रहा है . उसी पैनल में से जिसे सरकार चाहेगी ग्रामीण इलाकों में भेजेगी . यानी उसमें भी सरकारी मनमानी ही चलेगी . लेकिन इस आइडिया को क़त्ल करने का असली काम तो पैनल बनाने में किया जा रहा है . अखबारों में इश्तिहार देकर बाकायदा अप्लीकेशन माँगी गयी है . यानी पैनल में आने के लिए ही सिफारिश और जुगाड़ का इंतज़ाम किया जाएगा और जिसको भी पैनल में मंत्रालय के हाकिम लोग शामिल करेगें ,उसके ऊपर उनका अहसान पहले से की लद जाएगा. ज़ाहिर है कि अहसान के नीचे दबा हुआ आदमी इंसाफ़ नहीं कर सकता . लेकिन नौकरशाही का असली हमला तो इस आइडिया को लुंजपुंज करने के लिए निर्णायक रूप से हुआ है . इस पैनल में शामिल होने के लिए जिस योग्यता का वर्णन अखबारों में किया गया है वह बहुत ही दिलचस्प है . एन एल एम बनाने के लिए आठ वर्गों के लोगों को योग्य माना गया है . पहले वर्ग में वे लोग हैं जो सेना से अवकाश प्राप्त हों और कम से कम लेफ्टीनेंट कर्नल रैंक से रिटायर हुए हों . दूसरे वर्ग में पैरामिलटरी फोर्स के वे लोग हैं जो लेफ्टीनेंट कर्नल की बराबरी वाले किसे पद से रिटायर हुए हों. तीसरे वर्ग में केंद्र सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी रैंक के बराबर के पदों से रिटायर हुए केंद्र या राज्य के सरकारी कर्मचारी शामिल किये गए हैं ,.. चौथे वर्ग में केंद्र या राज्य सरकारों में सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर रैंक या उसके ऊपर के पदों के अवकाश प्राप्त इंजीनियरों को शामिल किया गया है . पांचवे वर्ग में महालेखा परीक्षक या नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कार्यालय से डिप्टी सेक्रेटरी रैंक के बराबर के पदों से रिटायर हुए लोगों को एडजस्ट किया गया है . छठवें वर्ग में पुलिस विभाग से पुलिस अधीक्षक पद से रिटायर हुए लोगों को अवसर देने की बात की गयी है . सातवाँ वर्ग मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों ,वैज्ञानिक संस्थाओं या शोध संस्थाओं से रिटायर प्रोफेसरों के लिए रखी गयी है . जबकि आठवीं श्रेणी में उन लोगों को अवसर दिया गया है जो सरकारी कंपनियों या सरकारी बैंकों से डिप्टी जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए हों .
इस तरह नौकरशाही ने राजनैतिक इच्छाशक्ति को भोथरा करने के लिए एक ख़ास चाल चल दी है . ज़ाहिर है जो लोग पैंतीस-चालीस साल तक सरकारी नौकरी करते रहते हैं वे कन्वेंशनल सोच के बाहर जा ही नहीं सकते और ग्रामीण विकास की जो योजनायें अभी ग्राम प्रधानों और बी डी ओ की लूट का शिकार हो रही हैं उन्हें इन अवकाश प्राप्त बाबुओं की निगरानी में देकर नौकरशाही ने यह मुक़म्मल इंतज़ाम कर लिया है कि ग्राम प्रधान और बी डी ओ के अलावा एक और वर्ग बना दिया जाए जो ग्रामीण विकास के नाम पर सरकारी पैसा अपनी अंटी में डाल सके. अगर यही हाल रहा तो ग्रामीण विकास का सपना कभी पूरा नहीं नहीं हो सकेगा . सवाल उठता है कि मनरेगा जैसी स्कीम जिसमें जनता का लाखों करोड़ रूपया लग रहा है उसकी निगरानी के लिए कुछ ऐसे लोगों को क्यों नहीं तैनात किया जा रहा है जो ग्रामीण विकास को अपनी ज़िंदगी का मकसद मानते हों . इस तरह के लोगों की कमी नहीं है लेकिन वे बाबूतंत्र की जी हुजूरी नहीं करेगें .और सच को सच कहने में संकोच नहीं करेगें .
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