शेष नारायण सिंह
तमिलनाडु की पार्टी ,द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम से पिंड छुडाने की कांग्रेस पार्टी की कोशिश ने दिल्ली में राजनीतिक उथल पुथल पैदा कर दी है . शुरू में तो डी एम के वालों को लगा कि मामला आसानी से धमकी वगैरह देकर संभाला जा सकता है लेकिन बात गंभीर थी और कांग्रेस ने डी एम के को अपनी शतरें मानने के लिए मजबूर कर दिया . कांग्रेस को अब तमिलनाडु विधान सभा में ६३ सीटों पर लड़ने का मौक़ा मिलेगा लेकिन कांग्रेस का रुख देख कर लगता है कि वह आगे भी डी एम के को दौन्दियाती रहेगी. यू पी ए २ के गठन के साथ ही कांग्रेस ने डी एम के को औकात बताना शुरू कर दिया था लेकिन बात गठबंधन की थी इसलिए खींच खांच कर संभाला गया और किसी तरह सरकार चल निकली . लेकिन यू पी ए के बाकी घटकों और कांग्रेसी मंत्रियों की तरह ही डी एम के वालों ने भी लूट खसोट शुरू कर दिया बाकी लोग तो बच निकले लेकिन डी एम के के नेता और संचार मंत्री ,ए राजा पकडे गए . उनके चक्कर में बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने डॉ मनमोहन सिंह को ही घेरना शूरू कर दिया . कुल मिलाकर डी एम के ने ऐसी मुसीबत खडी कर दी कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की राजनीति की लड़ाई में हारती नज़र आने लगी. राजा को हटाया गया लेकिन राजा बेचारा तो एक मोहरा था. भ्रष्टाचार के असली इंचार्ज तो करुणानिधि ही थे. उनकी दूसरी पत्नी और बेटी भी सी बी आई की पूछ ताछ के घेरे में आने लगे. तमिलनाडु में डी एम के की हालत बहुत खराब है लेकिन करूणानिधि को मुगालता है कि वे अभी राजनीतिक रूप से कमज़ोर नहीं हैं . लिहाजा उन्होंने कांग्रेस को विधान सभा चुनावो के नाम पर धमकाने की राजनीति खेल दी .कांग्रेस ने मौक़ा लपक लिया . कांग्रेस को मालूम है कि डी एम के के साथ मिलकर इस बार तमिलनाडु में कोई चुनावी लाभ नहीं होने वाला है . इसलिए उसने सीट के बँटवारे को मुद्दा बना कर डी एम के को रास्ता दिखाने का फैसला कर लिया लेकिन डी एम के को गलती का अहसास हो गया और अब फिर से सुलह की बात शुरू हो गयी . डी एम के के नेता अभी सोच रहे है कि कुछ विधान सभा की अतिरिक्त सीटें देकर कांग्रेस से करूणानिधि के परिवार के लोगों के खिलाफ सी बी आई का शिकंजा ढीला करवाया जा सकता है . लेकिन खेल इतना आसान नहीं है . कांग्रेस ने बहुत ही प्रभावी तरीके से करूणानिधि एंड कंपनी को औकात बोध करा दिया है . उत्तर प्रदेश के २२ संसद सदस्यों वाले दल के नेता मुलायम सिंह यादव ने ऐलान कर दिया है कि वे कांग्रेस को अंदर से समर्थन करने को तैयार हैं . यह अलग बात है कि कांग्रेस को उनके समर्थन की न तो ज़रुरत है और न ही उसने मुलायम सिंह यादव से समर्थन माँगा है . लेकिन मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी एकजुट रखने के लिए कहीं भी सत्ता के करीब नज़र आना है . सो उन्होंने वक़्त का सही इस्तेमाल करने का फैसला किया . कांग्रेस की अगुवायी वाली सरकार को २१ सदस्यों वाली बहुजन समाज पार्टी का समर्थन भी बाहर से मिल रहा है जयललिता भी करूणानिधि को बेघर करने के लिए यू पी ए को समर्थन देने को तैयार है . ऐसी हालत में कांग्रेस और डी एम के सम्बन्ध निश्चित रूप से राजनीति की चर्चा की सीमा पर कर गए हैं और प्रहसन के मुकाम पर पंहुच गए हैं .
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बिलकुल सही निष्कर्ष निकाला है आपने.तमाम खामियों के बावजूद कांग्रेस अपने सहयोगियों पर हावी है.
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