शेष नारायण सिंह
( मूल लेख आज ,४ जुलाई ,के दैनिक जागरण में छपा है )
आज अमरीका का स्वतंत्रता दिवस है.४ जुलाई १७७६ को ही अमरीकी अवाम ने इकठ्ठा होकर अपने आप को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने की घोषणा की थी . किसी भी राष्ट्र की स्थापना के कई तरीके होते हैं . सैनिक बगावत, नागरिक संघर्ष , बहादुरी, धोखेबाजी , आपसी लड़ाई झगड़े सब के बाद राष्ट्र की स्थापना की घटनाएं इतिहास को मालूम हैं . लेकिन अमरीकी राष्ट्र की स्थापना में इन सब चीज़ों का योगदान है . अपने करीब सवा दो सौ साल के इतिहास में अमरीकियों ने अपनी आज़ादी की हिफाज़त के लिए बहुत तकलीफें उठाईं, बहुत परेशानियां झेलीं लेकिन आज़ादी की शान से कभी भी समझौता नहीं होने दिया . अमरीका को आजादी बहुत मुश्किल से मिली है और उसे हासिल करने में अठारहवीं सदी में उस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग शामिल हुए थे , शायद इसीलिए उन्होंने उसकी हिफाज़त के लिए कभी कोई कसर नहीं छोडी. आजादी का घोषणापत्र भी अमरीकी अवाम का एक अहम दस्तावेज़ है और उसकी सुरक्षा के लिए भी सर्वोच्च स्तर पर प्रबंध किये जाते हैं . दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब जापन की सेना ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया था, अमरीकी हुक्मरान डर गए थे . अमरीकी स्वतंत्रता का घोषणापत्र लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस में रखा जाता है . लेकिन जब यह ख़तरा पैदा हो गया कि यूरोप में चल रही लड़ाई अमरीका में भी न पंहुच जाए तो १९४१ में इस दस्तावेज़ को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया था .
इतिहास में इस तरह के बहुत सारे सन्दर्भ मिल जायेगें जब अमरीकियों ने अपनी आज़ादी से जुडी हर याद को संजोने में बहुत मेहनत की . ऐसा शायद इस लिए हुआ कि अपनी आज़ादी को हासिल करने में लगभग पूरी आबादी शामिल हुई थी. अपनी आज़ादी को सबसे ऊपर रखने के लिए अमरीकी नीतियाँ इस तरह से डिजाइन की गयीं कि वह आज दुनिया का चौकी दार बना हुआ है , किसी पर भी धौंस पट्टी मारता रहता है लेकिन अपने राष्ट्रहित को सबसे ऊपर रखता है . अमरीकी आज़ादी के घोषणापत्र में लिखी गयी हर चीज़ को वहां की सरकार और जनता पवित्र मानती है . इस के बरक्स जब हम अपनी आज़ादी के करीब ६३ वर्षों पर नज़र डालते हैं , तो एक अलग तस्वीर नज़र आती है . यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज की हमारी हालत ऐसी है जिस से हमारी आज़ादी और संविधान को बार बार ख़तरा पैदा होता रहता है .
अमरीकी समाज को उनकी आज़ादी बहुत मुश्किल से मिली थी. शायद इसीलिये वे उसको सबसे ज्यादा महत्व देते हैं . इस बात की पड़ताल करने की ज़रुरत है कि कुछ मुल्कों के लोग अपनी राजनीतिक आज़ादी को अपने जीवन से बढ़ कर मानते हैं लेकिन बहुत सारे ऐसे मुल्क हैं आज़ादी को कुछ भी नहीं समझते . साउथ अफ्रीका के उदाहरण से बात को समझने में आसानी होगी. वहां पूरा मुल्क श्वेत अल्पसंख्यकों के आतंक को झेलता रहा . अमरीका और ब्रिटेन की साम्राज्यवादी सत्ता की मदद से आतंक का राज कायम हुआ और चलता रहा . पूरा देश आज़ादी की मांग को लेकर मैदान में आ गया . उनके सर्वोच्च नेता , नेल्सन मंडेला को २७ साल तक जेल में रखा गया और जब आज़ादी मिली तो पूरा मुल्क खुशी में झूम उठा . जब राजनीतिक आज़ादी को मुक़म्मल करने के लिए सामाजिक और आर्थिक सख्ती बरती गयी तो पूरा देश राजनीतिक नेतृत्व के साथ था. आज १५ साल बाद ही साउथ अफ्रीका दुनिया में एक बड़े और ताक़तवर मुल्क के रूप में पहचाना जाता है . तीसरी दुनिया के मुल्कों में सबसे ऊपर उसका नाम है क्योंकि पूरी आबादी उस आज़ादी में अपना हिस्सा मानती है . बिना किसी कोशिश के आज़ादी हासिल करने वालों में पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर है . पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना शुरू में तो कांग्रेस के साथ रहे लेकिन बाद में वे पूरी तरह से अंग्रेजों के साथ थे और महात्मा गाँधी की आज़ादी हासिल करने की कोशिश में अडंगा डाल रहे थे. बाद में जब आज़ादी मिल गयी तो अंग्रेजों ने उन्हें पाकिस्तान की जागीर इनाम के तौर पर सौंप दी. नतीजा सामने है . कुछ ही वर्षों में पाकिस्तान आन्दोलन में जिन्ना के बाद सबसे बड़े नेता और पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री ,लियाक़त अली को मौत के घाट उतार दिया गया. बाद में राष्ट्र की सरकार को ऐशो आराम का साधन मानने वाली जमातों का क़ब्ज़ा हो गया और आज पाकिस्तान के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है . लेकिन यह अमरीका के साथ कभी नहीं होगा क्योंकि आज़ादी की लड़ाई के लिए संघर्ष करने वाली जमातों के वंशज ही आज अमरीका में सत्ता के केंद्र में हैं . अपनी आज़ादी का स्वरुप अजीब है . सवतंत्रता संग्राम में जो लोग शामिल थे ,आज़ादी के बाद राष्ट्र निर्माण का काम उनके कन्धों पर ही आन पडा. जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को इन लोगों ने नेता माना और देश की प्रगति का काम ढर्रे पर चल पडा. जवाहर लाल नेहरू की दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि देश में विकास का इतना मज़बूत ढांचा तैयार हो गया कि आज भारत उसी दिन आज़ाद हुए पाकिस्तान से बहुत ही बड़ा देश है . लेकिन जब राजनीतिक वंशवाद की शुरुआत हो गयी तो हमारी आज़ादी के लिए भी मुश्किलें बढ़ गयी हैं . आज देश के कई हिस्सों से भारत विरोधी आवाज़ उठने लगी है . कहीं कश्मीर है तो कहीं पूर्वोत्तर भारत के राज्य . कभी कभी तो विदेशी मदद से पंजाब में भी यह आवाजें उठ जाती हैं .इसका कारण यह है कि आज़ादी के रणबांकुरों के चले जाने के बाद देश की जनता को यक़ीन हो चला है कि उनका काम केवल वोट देना है .आज़ादी के बाद मिली सत्ता का इस्तेमाल कुछ परिवारों के लिए रिज़र्व है . अब तक तो इसमें एक ही परिवार का नाम लिया जाता था लेकिन अब नेताओं के बच्चे सत्ता पर काबिज़ होना अपना अधिकार मानते हैं . केंद्र सरकार में बहुत सारे ऐसे मंत्री हैं जो वहां इसलिए हैं कि उनके पिता स्वर्गवासी हो गए और उन लोगों ने उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी संभाली. यह लोकशाही के साथ मजाक है . लोक तंत्र में सत्ता देने का अधिकार बहुमत के अलावा किसी के पास नहीं है. इन दूसरी और तीसरी पीढी के नेताओं का तर्क यह है कि उन्हें जनता ने चुन कर भेजा है . सब को मालूम है कि इस बात की हकीकत क्या है . लोक शाही तभी मज़बूत होगी जब पूरा देश अपने आपको उसमें शामिल माने. अमरीका में ऐसा ही होता है .आज अमरीकी स्वतंत्रता दिवस के हवाले से इस बात को याद किया जाना चाहिए . लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि अमरीका का सब कुछ अनुकरण करने लायक है . अमरीकी सरकारों ने वियतनाम, इराक , पश्चिम एशिया आदि इलाकों में इंसानी खून बहाया है , जिसको कि कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता . लेकिन अपने देश की आज़ादी में सबको शामिल करने के लिए यह ज़रूरी है कि देश का हर नागरिक अपने को आज़ादी में हिस्सेदार माने और वंशवाद का हर स्तर पर विरोध करे. अमरीकी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपनी आजादी करने के लिए भारतीयों को अपनी आज़ादी की हिफाज़त करने का संकल्प लेना चाहिये .
Sunday, July 4, 2010
अमरीकी अवाम से सीख सकते हैं वंशवाद का विरोध
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http://en.wikipedia.org/wiki/Bush_family
ReplyDeleteThe Bush family is a prominent American family. Along with many members who have been successful bankers and businessmen, across three generations the family includes two U.S. Senators, one Supreme Court Justice, two Governors, one Vice President and two Presidents. Peter Schweizer, author of a biography of the family, has described the Bushes as "the most successful political dynasty in American history."
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http://en.wikipedia.org/wiki/Kennedy_family
Their political involvement has revolved around the Democratic Party. Harvard University educations have been common among them, and they have contributed heavily to that university's John F. Kennedy School of Government. The wealth, glamour and photogenic quality of the family members, as well as their extensive and continuing commitment to public service, has elevated them to iconic status over the past half-century. They were known as America's Royal Family.
Following the 1960 election of U.S. President John F. Kennedy, he and his two younger brothers, Robert F. Kennedy and Edward M. Kennedy, soon all held prominent positions in the federal government, and received intensive publicity, often emphasizing their youth (relative to comparably influential politicians), allure, education and collective future in politics. From 1947, when John F. Kennedy was first elected to Congress, to 2011, when Patrick J. Kennedy will leave Congress, there has been a 64-year run of a Kennedy family member holding an elective office in Washington. This represents more than a quarter of the nation's existence.
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http://en.wikipedia.org/wiki/Long_family
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http://en.wikipedia.org/wiki/Daley_family
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http://en.wikipedia.org/wiki/Muhlenberg_family
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http://en.wikipedia.org/wiki/Muhlenberg_family
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For rest of the list of prominent American political families consult fallowing article.
http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_United_States_political_families